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पट्टाभि सीतारमैया का जन्म आंध्र प्रदेश में 24 नवम्बर सन् 1880 ईसवी को हुआ था। बी.ए. परीक्षा में उत्तीर्ण होकर आपने मेडिकल कालेज में अध्ययन किया। आपने मछलीपट्टम में चिकित्साकार्य आरंभ किया किंतु सन् 1920 में महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन के समय आप उसे छोड़कर स्वाधीनता संग्राम के सैनिक बन गए। राष्ट्रीयता का प्रचार प्रसार करने तथा जनता में देश को स्वतंत्र करने के लिये त्याग की भावना भरने के निमित्त आपने "जन्मभूमि" नामक अंग्रेजी साप्ताहिक प्रकाशित किया। सन् 1930 में अपने क्षेत्र में सविनय अवज्ञा आंदोलन के सूत्रधार आप ही थे। आंदोलन में भाग लेने के कारण आपको ढाई वर्ष के कारावास की सजा सुनाई गई। इस समय तक आप देश के प्रमुख कांग्रेस नेताओं की पंक्ति में आ चुके थे। सन् 1929 से अनेक वर्षों तक आप लगातार कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य चुने जाते रहे। सन् 1932-33 में भी आपने जेलयात्रा की। सन् 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्यों के साथ आप भी गिरफ्तार कर नजरबंद कर दिए गए।
कांग्रेस संघटन के अतिरिक्त आपने देशी राज्य प्रजापरिषद् की कार्यसमिति में वर्षों रहकर राष्ट्रीय जागरण का कार्य किया। आपकी सेवओं का संमान आपको अध्यक्ष बनाकर किया गया। आपमें जन्मजात नेता तथा महान संघटनकर्ता के गुण थे। यही कारण है कि आपने प्रारंभ में ही आंध्र के सहकारिता आंदोलन में जहाँ भाग लिया वहीं जीवन बीमा व्यवस्था की प्रगति में भी उल्लेखनीय योगदान किया। सन् 1925 में आपने आंध्र इंश्योरेंस कंपनी की स्थापना की और इसके संचालक मंडल के अध्यक्ष बने। इसके बाद आपने आंध्र बैंक, भारत लक्ष्मी इंश्योरेंस कंपनी, हिंदुस्तान म्युच्युएल इंश्योरेंस कंपनी आदि की स्थापना कर आर्थिक एवं औद्योगिक प्रगति के निमित्त ऐतिहासिक कार्य किया।
राजनैतिक जीवन
नयी शदी के आरम्भ से ही भारत में स्वाधीनता आन्दोलन ने धीरे-धीरे जोर पकड़ना शुरू किया और सीतारमैया भी इससे अछूते नही रह पाए। कॉलेज में अध्ययन के दौरान ही वो कांग्रेस के संपर्क में आ चुके थे और फिर बाद में चिकित्साकार्य छोड़कर वो स्वाधीनता संग्राम में कूद गए। सन 1910 में उन्होंने ‘आन्ध्र जातीय कलासला’ स्थापित किया और सन 1908 से लेकर 1911 तक ‘कृष्ण पत्रिका’ के संपादक भी रहे। अंग्रेजी और तेलुगु लेखन में उन्होंने अपनी अलग शैली विकसित कर ली थी। सन 1919 में उन्होंने ‘जन्मभूमि’ नामक एक अंग्रेजी पत्र प्रारंभ किया। इस पत्र का मुख्य लक्ष्य था गाँधी के विचारों का प्रसार। इस पत्र के माध्यम से लोग उनके लेखन कला से प्रभावित हुए और मोतीलाल नेहरु ने उन्हें अपने पत्र ‘इंडिपेंडेंट’ के संपादन के लिए आमंत्रित किया। ‘इंडिपेंडेंट’ का प्रकाशन इलाहाबाद से होता था।
स्वाधीनता आन्दोलन के दौरान डॉ सीतारमैया ने ऐसे अनेकों संस्थानों की स्थापना की जिससे राष्ट्रिय आकांक्षाओं की पूर्ती होती थी। सन 1915 में उन्होंने कृष्ण कोआपरेटिव सेंट्रल बैंक, किसानों की सहायता के लिए सन 1923 में आंध्र बैंक, आंध्र की पहली बीमा कंपनी ‘आन्ध्र इंश्योरेंस कंपनी (1925), वदिअमोन्नदु लैंड मोर्टगेज बैंक (1927), भारत लक्ष्मी बैंक लिमिटेड (1929), और हिंदुस्तान आइडियल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड (1935) की स्थापना की।
डॉ सीतारमैया महात्मा गाँधी से बहुत प्रभावित थे और गाँधी जी के आह्वान पर उन्होंने सन 1920 में ‘असहयोग आन्दोलन’ के समय चिकित्सा कार्य त्याग दिया और उसके बाद स्वाधीनता संग्राम के प्रत्येक महत्वपूर्ण आंदोलन में भाग लेने के कारण सात साल जेल की सजाएँ भोगीं।
भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के अतिरिक्त डॉ सीतारमैया ने देशी राज्य प्रजापरिषद् की कार्यसमिति में वर्षों रहकर राष्ट्रीय जाग्रति लाने में बड़ा योगदान दिया।
कांग्रेस से सम्पर्क
राष्ट्रीयता की भावना उनके अंदर आरंभ से ही विद्यमान थी। 'बंग भंग' के विरुद्ध देशव्यापी आंदोलन का उन पर प्रभाव पड़ा था। कॉलेज के दिनों से ही वे कांग्रेस के समर्क में आ चुके थे। राष्ट्रीय विचारों के प्रचार के लिए उन्होंने 'जन्मभूमि' नामक एक साहित्यिक पत्र भी निकाला था। सन 1916 से 1952 तक वे 'अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी' के और अनेक बार कार्य समिति के सदस्य भी रहे।
जेल यात्रा
महात्मा गाँधी के प्रभाव से सन 1920 में 'असहयोग आन्दोलन' के समय उन्होंने चिकित्सा कार्य त्याग दिया। उसके बाद प्रत्येक आंदोलन में भाग लेने के कारण 1930, 1932 और 1942 में जेल की सजाएँ भोगीं। देशी रियासतों में राष्ट्रीय जाग्रति लाने में उनका बड़ा योगदान था। आंध्र प्रदेश में 'सहकारिता आंदोलन' और 'राष्ट्रीय बीमा कंपनियाँ' आंरभ करने का श्रेय भी सीतारामैया को जाता है।
कांग्रेस अध्यक्ष का पद
सीतारामैया 1939 में 'भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस' के अध्यक्ष पद के लिए खड़ा होने को लेकर अत्यंत चर्चा में रहे थे। सामान्य तौर पर कांग्रेस का अध्यक्ष सर्वसम्मति से निर्वाचित होता था। वर्ष 1938 में अध्यक्ष निर्वाचित हुए नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने 1939 में भी कांग्रेस अध्यक्ष पद हेतु चुनाव लड़ने का निर्णय किया। नेताजी बोस ने कहा कि "कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव विभिन्न समस्याओं और कार्यक्रमों के आधार पर ही लड़ा जाना चाहिए"। सुभाषचन्द्र बोस जनवरी, 1939 में महात्मा गाँधी का आशीर्वाद प्राप्त सीतारामैया से 1,377 के मुकाबले 1,580 मतों से जीत गए। सीतारामैया जी की हार पर गाँधीजी ने बयान दिया कि "सीतारामैया की हार उनसे अधिक मेरी हार है"। बाद में वर्ष 1948 की जयपुर कांग्रेस के वे अध्यक्ष चुने गए थे। 1952 से 1957 तक वे मध्य प्रदेश के राज्यपाल पद पर भी रहे।
निधन
17 दिसम्बर, 1959 ई. को पट्टाभि सीतारामैया का देहांत हुआ।
जीवन घटनाक्र
1880: 24 नवम्बर को नेल्लोर तालुका, आंध्र प्रदेश, में जन्म
1910: आन्ध्र जातीय कलासला स्थापित किया
1919: ‘जन्मभूमि’ नामक अंग्रेजी पत्र प्रारंभ किया
1915: कृष्ण कोआपरेटिव सेंट्रल बैंक की स्थापना
1923: आंध्र बैंक की स्थापना
1925: ‘आन्ध्र इंश्योरेंस कंपनी की स्थापना
1927: वदिअमोन्नदु लैंड मोर्टगेज बैंक की स्थापना
1929: भारत लक्ष्मी बैंक लिमिटेड की स्थापना
1935: हिंदुस्तान आइडियल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड की स्थापना की
1939: सुभाष चन्द्र बोस ने इन्हें अध्यक्ष पद के चुनाव में हराया
1948: जयपुर अधिवेशन में कांग्रेस के अध्यक्ष बने
1952-1957: मध्य प्रदेश के राज्यपाल रहे
1959: 17 दिसम्बर में निधन