Advertisement
नाथुराम विनायक गोडसे – Nathuram Godse का जन्म पुणे जिले के मिशन सेंटर पर हुआ था। उनके पिता विनायक वामनराव गोडसे पोस्ट ऑफिस के कार्यकर्ता और माता लक्ष्मी बाई थी। जन्म के समय उनका नाम रामचंद्र था। एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना की वजह से उनका नाम नाथुराम पडा। उनके जन्म से पहले उनके माता-पिता को 3 बेटे और एक बेटी थी, लेकिन बचपन में ही वो तीनो बेटे मारे गये थे।
अपने परिवार में बेटो की मृत्यु के डर से ही जन्म के आरंभिक काल में उनके माता-पिता ने नाथुराम को एक लकड़ी बनाकर रखा था। वे उसे एक लड़की की तरह रखते थे। क्यू की उन्हें डर था की कही बाकी 3 बेटो की तरह नाथुराम भी मारा न जाये। इसलिए वे एक लड़की की ही तरह नाथुराम को रखते थे, बल्कि नाथुराम को बचपन में अपने नाक में नथ (नाक की रिंग) भी पहननी पड़ी थी। और तभी से उनका नया नाम “नाथुराम” रखा गया। (राम उनके नाम से लिया गया था)। और नाथुराम के छोटे भाई के जन्म लेते ही उनके माता-पिता ने नाथूराम को एक लड़का बताया।
पांचवी तक गोडसे ने बारामती के स्थानिक स्कूल से ही शिक्षा ग्रहण की। बाद में अंग्रेजी भाषा की पढाई के लिए उनके अंकल के साथ पुणे जाना पड़ा। उनके स्कूल के दिनों में, वे गांधीजी का बहोत आदर करते थे।
बचपन
ब्राह्मण परिवार में जन्म होने के कारण इनकी बचपण से ही धार्मिक कार्यों में गहरी रुचि थी। इनके छोटे भाई गोपाल गोडसे के अनुसार ये बचपन में ध्यानावस्था में ऐसे-ऐसे विचित्र श्लोक बोलते थे जो इन्होंने कभी भी पढ़ें ही नहीं थे। ध्यानावस्था में ये अपने परिवार वालों और उनकी कुलदेवी के मध्य एक सूत्र का कार्य किया करते थे परन्तु यह सब १६ वर्ष तक की आयु तक आते-आते स्वत: समाप्त हो गया
शिक्षा-दीक्षा
यद्यपि इनकी प्रारम्भिक शिक्षा पुणे में हुई थी परन्तु हाईस्कूल के बीच में ही अपनी पढ़ाई-लिखाई छोड़ दी तथा उसके बाद कोई औपचारिक शिक्षा नहीं ली। धार्मिक पुस्तकों में गहरी रुचि होने के कारण रामायण, महाभारत, गीता, पु राणों के अतिरिक्त स्वामी विवेकानन्द,स्वामी दयानन्द, बाल गंगाधर तिलक तथा महात्मा गान्धी के साहित्य का इन्होंने गहरा अध्ययन किया था।!
हैदराबाद आन्दोलन
१९४० में हैदराबाद के तत्कालीन शासक निजाम ने उसके राज्य में रहने वाले हिन्दुओं पर बलात जजिया कर लगाने का निर्णय लिया जिसका हिन्दू महासभा ने विरोध करने का निर्णय लिया। हिन्दू महासभा के तत्कालीन अध्यक्ष विनायक दामोदर सावरकर के आदेश पर हिन्दू महासभा के कार्यकर्ताओं का पहला जत्था नाथूराम गोडसे के नेतृत्व में हैदराबाद गया। हैदराबाद के निजाम ने इन सभी को बन्दी बना लिया और कारावास में कठोर दण्ड दिये परन्तु बाद में हारकर उसने अपना निर्णय वापस ले लिया।
भारत-विभाजन
१९४७ में भारत का विभाजन और विभाजन के समय हुई साम्प्रदायिक हिंसा ने नाथूराम को अत्यन्त उद्वेलित कर दिया। तत्कालीन परिस्थितियों को देखते हुए बीसवीं सदी की उस सबसे बडी त्रासदी के लिये मोहनदास करमचन्द गान्धी ही सर्वाधिक उत्तरदायी समझ में आये।
राजनीतिक जीवन
Nathuram Godse गोडसे माध्यमिक स्कूल की शिक्षा बीच में ही छोडकर हिन्दू राष्ट्रवादी संगठनों राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और हिन्दू महासभा के साथ जुड़ गये थे | हिन्दू महासभा ने एक बार गांधीजी के सविनय अवज्ञा आन्दोलन से पीछे हट गये थे और 1940 से शुरू हुए भारत छोड़ो आन्दोलन का विरोध किया था | ये दोनों दल मुस्लिम लीग की कट्टर विरोधी पार्टी थी | Nathuram Godse गोडसे ने हिन्दू महासभा के लिए एक मराठी पत्रिका “अग्रणी ” का प्रकाशन शुरू किया था जिसे बाद में “हिन्दू राष्ट्र” नाम कर दिया गया | Nathuram Godse गोडसे को गांधीजी के सिद्धांतो से सख्त नफरत थी और हमेशा उनको हिन्दू विरोधी मानते थे | गोडसे का मानना था कि गांधीजी हिन्दुओ की बजाय मुस्लिमो के सरक्षण में ज्यादा रूचि दिखा रहे थे जो उनको अनुचित और राष्ट्र विरोधी लगती थी |
जीवन
1. नाथूराम के जन्म से पहले इनके माता-पिता की सन्तानों में तीन पुत्रों की मृत्यु हो गयी थी केवल एक पुत्री ही जीवित बची थी. इसलिये इनके माता-पिता ने ईश्वर से प्रार्थना की थी कि यदि अब कोई पुत्र हुआ तो उसका पालन-पोषण लड़की की तरह किया जायेगा.
2. इसी मान्यता के कारण इनकी नाक बचपन में ही छेद दी और नाम भी बदल दिया. बाद में ये नाथूराम विनायक गोडसे के नाम से प्रसिद्ध हुए.
3. ब्राह्मण परिवार में जन्म होने के कारण इनका बचपन से ही धार्मिक कार्यों में बहुत दिलचस्पी रही थी. इनके छोटे भाई गोपाल गोडसे के अनुसार ये बचपन में ऐसे-ऐसे विचित्र श्लोक बोलते थे जो इन्होंने कभी भी पढ़ें ही नहीं थे
4. जब ये ध्यान में होते थे तो अपने परिवार वालों और उनकी कुलदेवी के मध्य एक सूत्र का काम किया करते थे लेकिन यह सब 16 साल की उम्र तक आते-आते खत्म हो गया.
5 इनकी प्रारम्भिक शिक्षा पुणे में हुई लेकिन हाईस्कूल के बीच में ही अपनी पढ़ाई-लिखाई छोड़ दी तथा उसके बाद कोई शिक्षा नहीं ली.
6. धार्मिक पुस्तकों में गहरी रुचि होने के कारण रामायण, महाभारत, गीता, पुराणों के अतिरिक्त स्वामी विवेकानन्द, स्वामी दयानन्द, बाल गंगाधर तिलक तथा महात्मा गांधी के साहित्य का इन्होंने गहरा अध्ययन किया था.
7 अपने राजनैतिक जीवन के प्रारम्भिक दिनों में नाथूराम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में शामिल हो गये. अन्त में 1930 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी छोड़ दिया और अखिल भारतीय हिन्दू महासभा में चले गये.
8. उन्होंने अग्रणी तथा हिन्दू राष्ट्र नामक दो समाचार-पत्रों का सम्पादन भी किया था. वे मुहम्मद अली जिन्ना की अलगाववादी विचार-धारा का विरोध करते थे.