Deoxa Indonesian Channels

lisensi

Advertisement

" />
, 21:25 WIB
लेखक

मानवेन्द्र राय जीवनी - Biography of M. N. Roy in Hindi Jivani

Advertisement


मानवेन्द्र राय का जन्म सन् 1888 में बंगाल के अरबालिया गांव में हुआ था । उनका जन्म नाम नरेन्द्र भट्टाचार्य था । एक भूमिगत क्रान्तिकारी के रूप में अपने जीवन की शुरुआत करते हुए बंग-भंग आन्दोलन 1905 में अपनी महती भूमिका निभायी । वे भारत, जर्मनी क्रान्तिकारी षड्यन्त्र के सूत्रधार थे । 1907 में कलकत्ता के पास चिंगरीपोड़ा रेलवे स्टेशन डकैती के राजनीतिक अपराधी घोषित किये गये ।


भारत में क्रान्तिकारी आन्दोलन के लिए शस्त्र जुटाने जर्मनी भेजे गये । वहां से अंग्रेज गुप्तचरों से बचते-बचाते चीन, जापान व अमेरिका पहुंचे । यहां लाला लाजपतराय से आर्थिक सहायता प्राप्त कर एक अमेरिकन महिला एवलिन से विवाह किया । वे भारत को जर्मनी से सहायता लेकर स्वतन्त्र कराना चाहते थे । गुप्तचरों ने उन्हें ढूंढ़कर गिरफ्तार कर लिया ।


जमानत से छूटते ही वे मैक्सिको पहुंचे । वहां एक विचारक, लेखक तथा साम्यवादी नेता के रूप में नया जीवन प्रारम्भ किया । वहां से रूस चले गये । रूस में वे लेनिन के अन्तरंग शिष्य और प्रशंसक बन गये । उनकी निर्भीकता और योग्यता से प्रभावित होकर लेनिन ने उन्हें अफगानिस्तान में रूस का राजूदत बनाना चाहा । रूस में रहकर वे लेनिन के दो महान शिष्य-टाटस्की और स्टालिन से अपनी घनिष्ठता बनाने में सफल रहे । यहां रहकर एशिया के साम्यवादी नेता के रूप में प्रतिष्ठत हो गये ।


भौतिक वस्तुवाद


अधिकतर भारतीय दार्शनिकों के विपरीत राय पूर्णत: भौतिकवादी तथा निरीश्वरवादी दार्शनिक थे। उनका यह दृढ़ विश्वास था कि सम्पूर्ण जगत् की व्याख्या भौतिकवाद के आधार पर ही की जा सकती है। इसके लिए ईश्वर जैसी किसी इन्द्रियातीत शक्ति के अस्तित्व को स्वीकार करने की कोई आवश्यकता नहीं है। प्राकृतिक घटनाओं के समुचित प्रेक्षण तथा सूक्ष्म विश्लेषण द्वारा ही उनके वास्वतिक स्वरूप और कारणों को समझा जा सकता है। विश्व का मूल तत्व भौतिक द्रव्य अथवा पुद्गल है और सभी वस्तुएँ इसी पुद्गल के विभिन्न रूपांतरण हैं, जो निश्चित प्राकृतिक नियमों के द्वारा नियंत्रित होते हैं। जगत् के मूल आधार इस पुद्गल के अतिरिक्त अन्य किसी वस्तु की अंतिम सत्ता नहीं है। अपने दर्शन को परम्परागत भौतिकवाद से पृथक् करने के लिए राय उसे भौतिकवाद के स्थान पर 'भौतिक वस्तुवाद' की संज्ञा देते हैं। वे मानवीय प्रत्यक्ष को ही सम्पूर्ण ज्ञान का मूल आधार मानते हैं। इस सम्बन्ध में उनका स्पष्ट कथन है कि 'मनुष्य द्वारा जिस वस्तु का प्रत्यय सम्भव है, वास्तव में उसी का अस्तित्व है और मानव के लिए जिस वस्तु का प्रत्यक्ष ज्ञान सम्भव नहीं है उसका अस्तित्व भी नहीं है।'


भौतिकवाद की प्राचीनता


भौतिकवाद की सुदीर्घ परम्परा का उल्लेख करते हुए राय कहते हैं कि भौतिकवादी विचारधारा उतनी ही प्राचीन है, जितना स्वयं मानवीय चिंतन। भारतीय तथा यूनानी विचारक बहुत प्राचीन काल से इस विचारधारा का समर्थन करते रहे हैं। हमारे वेदों तथा उपनिषदों में भी भौतिकवाद के मूल तत्व विद्यमान हैं, अपने इसी मत की पुष्टि के लिए राय 'उपनिषद सूत्र-2' से निम्नलिखित वाक्य उद्धृत करते हैं-


'कोई अवतार नहीं होता, न ईश्वर है, न स्वर्ग और न नरक, समस्त पारम्परिक धर्मशास्त्र का साहित्य दम्भी मूर्खों की कृति है।'


दर्शन एवं चिन्तन


मानवेन्द्र नाथ राय का आधुनिक भारतीय राजनीतिक चिंतन में विशिष्ट स्थान है। राय का राजनीतिक चिंतन लम्बी वैचारिक यात्रा का परिणाम है। वे किसी विचारधारा से बंधे हुए नहीं रहे। उन्होंने विचारों की भौतिकवादी आधार भूमि और मानव के अस्तित्व के नैतिक प्रयोजनों के मध्य समन्वय करना आवश्यक समझा। जहाँ उन्होंने पूँजीवादी व्यवस्था की कटु आलोचना की, वहीं मार्क्सवाद की आलोचना में भी पीछे नहीं रहे। राय ने सम्पूर्ण मानवीय दर्शन की खोज के प्रयत्न के क्रम में यह निष्कर्ष निकाला कि विश्व की प्रचलित आर्थिक और राजनीतिक प्रणालियाँ मानव के समग्र कल्याण को सुनिश्चित नहीं करतीं। पूँजीवाद, मार्क्सवाद, गाँधीवाद तथा अन्य विचारधाओं में उन्होंने ऐसे तत्वों को ढूँढ निकाला जो किसी न किसी रूप में मानव की सत्ता, स्वतंत्रता, तथा स्वायत्तता पर प्रतिबन्ध लगाते हैं।


राय ने अपने नवीन मानववादी दर्शन से मानव को स्वयं अपना केन्द्र बताकर मानव की स्वतंत्रता एवं उसके व्यक्तित्व की गरिमा का प्रबल समर्थन किया है। वस्तुतः बीसवीं सदी में फासीवादी तथा साम्यवादी समग्रतावादी राज्य-व्यवस्थाओं ने व्यक्ति की स्वतन्त्रता एवं व्यक्तित्व का दमन किया और उदारवादी लोकतन्त्र में मानव-कल्याण के नाम पर निरन्तर बढ़ती केन्द्रीकरण की प्रवृत्ति से सावधान किया। राय ने व्यक्ति की स्वतन्त्रता एवं व्यक्तित्व की गरिमा के पक्ष में जो उग्र बौद्धिक विचार दिये हैं, उनका आधुनिक युग के लिए विशिष्ट महत्व है।


व्यक्तिगत स्वतंत्रता


राय मनुष्य की व्यक्तिगत स्वतंत्रता को विशेष महत्त्व देते हैं, क्योंकि उनके विचार में इस स्वतंत्रता के बिना व्यक्ति वास्तव में सुखी नहीं हो सकता। उनके राजनीतिक दर्शन का मूल आधार मनुष्य की व्यक्तिगत स्वतंत्रता ही है। व्यक्तिगत स्वतंत्रता से उनका तात्पर्य यह है कि मनुष्य के कार्यों तथा विचाराभिव्यक्ति पर राज्य एवं समाज द्वारा अनुचित तथा अनावश्यक प्रतिबंध न लगाये जाएं और समाज को उन्नति का साधन मात्र न मानकर उसके विशेष महत्त्व को स्वीकार किया जाये। इस सम्बन्ध में राय का मार्क्सवादियों से तीव मतभेद है, क्योंकि मार्क्सवाद में मनुष्य की व्यक्तिगत स्वतंत्रता का कोई स्थान नहीं है। अपनी युवावस्था में वे मार्क्सवाद से बहुत प्रभावित हुए थे, किन्तु बाद में उनके विचारों में परिवर्तन हुआ और वे इस विचारधारा को एकांगी तथा दोषपूर्ण मानने लगे।


कृतियाँ


(1) दी वे टू डयूरेबिल पीस


(2) वन ईयर ऑफ नॉन-कोऑपरेशन


(3) दी रिवोल्यूशन एण्ड काउण्टर रिवोल्यूशन इन चाइना


(4) रीज़न, रोमाण्टिसिज़्म एण्ड रिवोल्यूशन


(5) इण्डियान इन ट्रांज़ीशन


(6) इंडियन प्रॉबलम्स एण्ड देयर सोल्यूशन्स


(7) दी फ्यूचर ऑफ इण्डियन पॉलिटिक्स


(8) हिस्टोरिकल रोल ऑफ इस्लाम


(9) फासिज्म : इट्स फिलॉसफी, प्रोफेशन्स एण्डप्रैक्टिस


(10) मैटिरियलिज़्म


(11) न्यू ओरियन्टेशन


(12) बियोन्ड कम्यूनिस्म टू ह्यूमेनिज्म


(13) न्यू ह्यूमेनिज्म एण्ड पॉलिटिक्स


(14) पॉलिटिक्स, पावर एण्ड पार्टीज़


(15) दी प्रिंसिपल्स ऑफ रेडिकल डेमोक्रेसी


(16) कॉन्स्टीट्यूशन ऑफ फ्री इण्डिया


(17) रेडिकल ह्यूमेनिज्म


(18) अवर डिफरेन्सेज़


(19) साइन्स एण्ड फिलॉसफी


(20) ट्वेण्टि टू थीसिस