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डेविड ह्यूम जीवनी - Biography of David Hume in Hindi Jivani

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डेविड ह्यूम (१७११-१७७६) आधुनिक काल के विश्वविख्यात दार्शनिक थे। वे स्काटलैंड (एडिनबरा) के निवासी थे। आपके मुख्य ग्रंथ हैं - 'मानव प्रज्ञा की एक परीक्षा' (An Enquiry Concerning Human Understanding) और 'नैतिक सिद्धांतों की एक परीक्षा' (An Enquiry Concerning the Principles of Morals)


ह्यूम का दर्शन अनुभव की पृष्ठभूमि में परमोत्कृष्ट है। आपके अनुसार यह अनुभव (impression) और एकमात्र अनुभव ही है जो वास्तविक है। अनुभव के अतिरिक्त कोई भी ज्ञान सर्वोपरि नहीं है। बुद्धि से किसी भी ज्ञान का आविर्भाव नहीं होता। बुद्धि के सहारे मनुष्य अनुभव से प्राप्त विषयों का मिश्रण (संश्लेषण) एवं विच्छेदन (विश्लेषण) करता है। इस बुद्धि से नए ज्ञान की वृद्धि नहीं होती।


प्रत्यक्षानुभूत वस्तुओं में संबंध होते हैं, जो तीन प्रकार के हैं - सादृश्य सन्निकर्ष (साहचर्य या सामीप्य) तथा कारणता। समानता के आधार पर एक वस्तु से दूसरी का स्मरण होना, निकटता के कारण घोड़े से घुड़सवार की याद आना और सूर्य को प्रकाश का कारण समझना, इन विभिन्न संबंधों के उदाहरण हैं।


उपर्युक्त तीन संबंधों में कारणता संबंध ने दार्शनिकों का ध्यान अधिक आकृष्ट किया। 'कारणता' के संबंध में ह्यूम का विचार है कि 'कारणता' का आरोप करना व्यर्थ है। कारण और कार्य का संबंध वास्तविक नहीं है। बाह्य जगत् में हम दो घटनाओं को साथ घटते देखते हैं। ऐसा सदैव होने की अनुभूति के आधार पर हम एक को कार्य और दूसरे को कारण समझ लेते हैं। सूर्य के चमकने से प्रकाश की सदैव प्राप्ति है, अवश्य; परंतु इससे एक को कारण और दूसरे को कार्य कैसे कहा जा सकता है? वास्तव में दोनों के मध्य किसी भी 'कारण संबंध' का अनुभव नहीं होता। इसीलिए ह्यूम के मतानुसार कार्य पूर्णतया कारण से भिन्न है और उन्हें एक को दूसरे में सन्निहित समझना मूर्खता है। 'प्रकृति समरूपता' और 'कारणता' का उद्भव मनोवैज्ञानिक पृष्ठभूमि से होता है। दूसरे शब्दों में यों कहें कि इनका भावपक्ष ही प्रधान है, विषयपक्ष नहीं।


डेविड ह्यूम के सिद्धांत


डेविड ह्यूम के समय में एक प्रचलित धारणा यह थी कि ज्ञान दो प्रकार का होता है- साधारण और असाधारण। साधारण व्यक्तियों को साधारण तरीकों से होने वाले ज्ञान, अनुभव और प्रयोगों द्वारा मिलने वाले आम ज्ञान और उसके विकसित रूप विज्ञान को साधारण ज्ञान के अंतर्गत रखा जाता है। इसे निम्नकोटि का ज्ञान समझा जाता था। उसके विपरीत, बुद्धि से मिलने वाले ज्ञान को श्रेष्ठ तथा असाधारण ज्ञान माना जाता था। लोगों का विश्वास था कि बुद्धि एक प्रकार की दैवी शक्ति है और इससे मिला ज्ञान विश्व की अंतिम व्याख्या प्रस्तुत करता है, ऐसी व्याख्या जो असंदिग्ध होती है और कभी ग़लत नहीं सिद्ध हो सकती। डेविड ह्यूम के अनुसार ज्ञान के इस द्वैत में विश्वास निराधार ही नहीं बल्कि हानिकारक भी है, क्योंकि इससे अहंकार और हठ उत्पन्न होता है। इसके अतिरिक्त डेविड ह्यूम के अनुसार यह जानने के लिए कि किस प्रकार का ज्ञान मनुष्य के लिए सम्भव है, ज्ञानोपार्जन की शक्ति, ज्ञान की सीमा तथा अवबोध की योग्यता आदि की परीक्षा अपेक्षित है। बोधशक्ति का ही प्रयोग गणित, भौतिकी, मनोविज्ञान आदि विषयों में होता है। इसलिए बोध शक्ति की परीक्षा सबके लिए आधारिक है। अपनी दार्शनिक प्रणाली को डेविड ह्यूम प्रायोगिक कहते हैं, जिसका यह अर्थ यह है कि उसके निष्कर्षों की सत्यता की परीक्षा कोई भी अपने अनुभवों द्वारा कर सकता है।


ज्ञान मीमांसा


ह्यूम की ज्ञान मीमांसा इंद्रियानुभववादी है। वह मानता है कि ज्ञान के दो मूल घटक हैं- इंद्रियानुभव और (सरल) प्रत्यय। प्रत्यय इंद्रियानुभव से उत्पन्न उनकी नकल की तरह होते हैं और उनसे कम स्पष्ट, दुर्बल तथा धूमिल होते हैं। बिना किसी इंद्रियानुभव के कोई भी प्रत्यय नहीं उत्पन्न हो सकता। जिसे हम प्रत्यय समझते हैं, उसके मूल में यदि किसी इंद्रियानुभव का होना असिद्ध हो जाये तो हमें उसे प्रत्यय नहीं बल्कि धोखा या छलना मात्र कहना चाहिए।


अनमोल विचार


1. दुनिया के सबसे समझदार व्यक्ति की समझदारी को अगर सही दिशा न मिले तो वे जंगली पौधा बन जाता है।


2. एक समझदार व्यक्ति उन्हीं बातों पर विशवास करता है जिनके होने का कोई कारण या सबूत हो।


3.आपके जूनून जिस तरह के होते है, उसी के आधार पर आपकी रीजनिंग भी होती है।


4.खूबसूरती चीजो में नही होती, लेकिन दिमाग में होती है। दिमाग की खूबसूरती ही चीजो को सुन्दर बनाती है।


5. इससे ज्यादा हैरानी की बात और कोई नहीं हो सकती कि कितनी आसानी से मुट्ठीभर लोग, ज्यादा लोगो का संचालन करते है।


6. जो व्यक्ति हर तरह की परिस्थिति में खुद को ढाल लेते है, हकीकत में वही सबसे ज्यादा खुश रहते है।


7: कई बार विश्वास लोगो को बांटता है और संदेह उन्हें एक साथ ले आता है।


8.अगर आप मेहनत कर सकते है तो आपमें दुनिया की हर चीज खरीदने की ताकत भी है।


9.आपके और मेरे, हम दोनों के पास अभी भी वक़्त है कि हम अपने व्यवहार को पुराने अनुभवों से सबक लेकर व्यवस्थित करे।


10.जितना ज्यादा आजाद मनुष्य का दिमाग है, उतना ज्यादा आजाद दुनिया की कोई दूसरी चीज नहीं है।


11.: नसीब कुछ नहीं है, लेकिन मनुष्य का कॉमनसेंस ही उसका नसीब बनाते हैं।


12. जब सबसे अच्छी चीजो में भ्र्ष्टाचार होता है, तभी सबसे ज्यादा बुरी चीजें पैदा होती है।