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कलाकार

सतीश गुजराल जीवनी - Biography of Satish Gujral in Hindi Jivani

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        सतीश गुजराल बहुमुखी प्रतिभा के धनी एक प्रसिद्ध भारतीय चित्रकार, मूर्तिकार, लेखक और वास्तुकार हैं। वे भारत के पूर्व प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल के छोटे भाई हैं। भारत सरकार ने कला के क्षेत्र में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए सन 1999 में उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया। जब सतीश मात्र आठ साल के थे तब पैर फिसलने के कारण इनकी टांगे टूट गईं और सिर में भी काफी चोट आई जिसके कारण इन्हें कम सुनाई पड़ने लगा और लोग उन्हें लंगड़ा, बहरा और गूंगा समझने लगे। हाल में ही सतीश गुजराल ने अपनी आत्मकथा लिख कर लेखक के रूप में अपनी नयी पहचान बनायी है।


प्रारंभिक जीवन :

                

        सतीश गुजराल का जन्म 25 दिसम्बर, 1925 को ब्रिटिश इंडिया के झेलम (अब पाकिस्तान) में हुआ था। आठ साल की उम्र में चोट लगने के कारण इन्हें कम सुनाई पड़ने लगा। उन्होंने लाहौर स्थित मेयो स्कूल आफ आर्ट में पाँच वर्षों तक अन्य विषयों के साथ-साथ मृत्तिका शिल्प और ग्राफिक डिज़ायनिंग का अध्ययन किया। इसके पश्चात सन 1944 में वे बॉम्बे चले गए जहाँ उन्होंने प्रसिद्ध सर जे जे स्कूल आफ आर्ट में दाखिला लिया पर बीमारी के कारण सन 1947 में उन्हें पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी।


        सन 1952 में उन्हें एक छात्रवृत्ति मिली जिसके बाद उन्होंने मैक्सिको के पलासियो नेशनेल डि बेलास आर्ट में अध्ययन किया। यहाँ पर उन्हें डिएगो रिवेरा और डेविड सेक़ुएइरोस जैसे प्रसिद्ध कलाकारों के अंतर्गत कार्य करने और सीखने का अवसर मिला। इसके बाद उन्होंने यू.के. के इंपीरियल सर्विस कालेज विंडसर में भी कला का विधिवत अध्ययन किया।


        मेयो स्कूल आफ आर्ट, लाहौर में पाँच वर्षों तक उन्होंने अन्य विषयों के साथ साथ मृत्तिका शिल्प और ग्राफिक डिज़ायनिंग का विशेष अध्ययन किया। जे जे स्कूल आफ आर्ट बाम्बे, पलासियो नेशनेल डि बेलास आर्ट, मेक्सिको तथा इंपीरियल सर्विस कालेज विंडसर, यूके में कला की विधिवत शिक्षा प्राप्त करने वाले सतीश गुजराल ने अपनी रचना यात्रा में कभी भी सीमाएँ नहीं खींचीं और माध्यमों के क्षेत्र में व्यापक प्रयोग किये। रंग और कूची के साथ साथ सिरामिक, काष्ठ, धातु और पाषाण— उन्होंने हर जगह अपनी कलात्मक रचनाशीलता का परिचय दिया। 


        उन्होंने राष्ट्रीय व अंतर्राट्रीय अनेक पुरस्कार प्राप्त किये जिनमें भारत के राष्ट्रपति द्वारा प्रदत्त पद्मविभूषण, मेक्सिको का 'लियो नार्डो द विंसी' और बेल्जियम के राजा का 'आर्डर आफ क्राउन' पुरस्कार शामिल हैं। १९८९ में उन्हें 'इंडियन इंस्टीट्यूट आफ आर्किटेक्चर' तथा 'दिल्ली कला परिषद' द्वारा सम्मानित किया गया। उन्होंने अनेक होटलों, आवासीय भवनों, विश्वविद्यालयों, उद्योग स्थलों और धार्मिक इमारतों की मोहक वास्तु परियोजनाएँ तैयार की हैं।


        नयी दिल्ली में बेल्जियम दूतावास के भवन की परियोजना के लिये वास्तुरचना के क्षेत्र में उन्हें अंतर्राट्रीय ख्याति मिली है। इस इमारत को 'इंटरनेशनल फोरम आफ आर्किटेक्ट्स' द्वारा बीसवीं सदी की १००० सर्वश्रेष्ठ इमारतों की सूची में स्थान दिया गया है। वे तीन बार कला का राष्ट्रीय पुरसकार प्राप्त कर चुके हैं- दो बार चित्रकला के लिये और एक बार मूर्तिकला के लिये। दिल्ली व पंजाब की राज्य सरकारों ने भी उन्हें पुरस्कृत किया है। उनके ऊपर अनेक वृत्त चित्रों का निर्माण किया गया है तथा संपूर्ण जीवन पर एक फीचर फिल्म बनाई गयी है।


        सतीश गुजराल के चित्रों में आकृतियाँ प्रधान हैं। जब वे विशेष रूप से निर्मित खुरदुरी सतह पर एक्रेलिक से चित्रांकन करते हैं, तब ये आकृतियाँ एक दूसरे में विलीन होती हैं और विभिन्न ज्यामितीय आकारों में स्थित हो जाती हैं। रंगों का परस्पर सौजन्य और फिल्टर से झरते हुए विभिन्न बिम्बों का आकर्षण उनके चित्रों की मोहकता तो बढ़ाता ही है, बिना हस्ताक्षर के अपने चितेरे की पहचान भी स्पष्ट करता है। बाइबिल के एक प्रसंग पर आधारित चित्र में उनकी इस कला शैली को देखा जा सकता है।


        अपने वैविध्यपूर्ण रचना जीवन में उन्होंने अमूर्त चित्रण भी किये हैं और चटकीले रंगों के सुंदर संयोजन बनाए हैं। पशु और पक्षियों को उनकी कला में सहज स्थान मिला है। इतिहास, लोककथा, पुराण, प्राचीन भारतीय संस्कृति और विविध धर्मों के प्रसंगों को उन्होंने अपने चित्रों में सँजोया है। आज उनकी कलाकृतियाँ हिरशर्न कलेक्शेन वाशिंगटन डी. सी., हार्टफोर्ड म्यूज़ियम यू. एस. ए. तथा द म्यूज़ियम ऑफ़ मार्डन आर्ट न्यू यार्क जैसे अनेक विश्व विख्यात संग्रहालयों में प्रदर्शित की गयी हैं। सतीश गुजराल का घर गुलाब, गुलदाउदी और चमेली के फूलों से महकता है जबकि भीतर की दीवारों पर पेंटिंग्ज़ बातें करती हैं।


        दक्षिण दिल्ली का दिल लाजपत नगर में देश के बंटवारे के बाद इधर सरहद पार पंजाब से शरणार्थी आकर बसे थे। वर्तमान में ये पॉश क्षेत्र माना जाता है। यहीं पर प्रख्यात चित्रकार सतीश गुजराल का आशियाना ही है। यहां एक छत के नीचे तीन सफल लोग रहते हैं। घर के बाहर खड़े होने पर गुलों की महक आपको तरोताजा कर देती है। क़रीब 800 गज की विशाल कोठी के अगले भाग में गुलाब, गुलदाउदी और चमेली के फूलों की महक से सारा वातावरण सुगंधमय रहता है।


        गुजराल और उनके अभिभावकों ने विभाजन के समय कई लोगों की सहायता की थी। उनकी पूर्व की कलाकृतियां उनके जीवंत अनुभवों की ही देन हैं। सीमा के दोनों ओर से अपहृत महिलाओं को बचाने और उनके पुनर्वास में भी गुजराल ने अहम भूमिका निभाई थी। प्रदर्शनी में घूम रहे एक कलाकार ने कहा कि यहां गुजराल की कलाकृतियों को क्रम में सजाया गया है। इन्हें देख कर कोई भी महसूस करता है कि सचमुच गुजराल ही केवल ऐसे आधुनिक भारत के कलाकार हैं जिनकी कला में विविधता है।


        इसके लिए लाहौर के मेयो स्कूल ऑफ आर्ट्स ध्न्यवाद का पात्र है जहां वह प्रशिक्षित हुए थे। सीखने की ललक उनमें इतनी है कि 80 वर्ष की आयु में कमजोर श्रवण शक्ति होने पर भी वे अध्ययन के लिए मैक्सिको गए और वहां प्लेसिया नेशनल डी बेल्लास आर्ट्स में प्रसिद्ध कलाकार दिएगो रिवेरा और डेविड एलफेरो सिक्वि रो के साथ काम किया।


        इतना ज्यादा काम करने के बाद भी सतीश गुजराल का मन भरा नहीं है। वह कहते हैं कि आज भी उनको यह लगता है कहीं कुछ है, जो बाकी है। यह पूछने पर कि क्या करने का मन है, जो अब तक नहीं कर पाए? वह कहते हैं कि उनको खुद नहीं पता क्या रह गया है। बस उनका मन खोज रहा है। फिरोज गांधी रोड स्थित आवास पर सतीश रहते हैं और सुबह नाश्ता करने के बाद घर के पीछे वाले हिस्से में पहुुंच जाते हैं। यहीं पर कृतियों के निर्माण की दुनिया बसी है। यहां पर 2-3 घंटे काम करने के बाद वह फिर लंच करने के लिए कमरे में लौटते हैं।


        इसके बाद अगर कोई कृति पूरी होने की स्थिति में होती है तो उसे वापस जाकर पूरा करते हैं, नहीं तो अखबार पढ़ते हैं और टीवी पर न्यूज देखते हैं। सतीश गुजराल ने लाला लाजपत राय की एक आदमकद पेंटिंग बनाई थी, जो संसद के सेंट्रल में सुशोभित हुई। इस पेटिंग की कॉपी को भी प्रदर्शनी में लगाया गया है। गुजराल साहब का यह पहला बड़ा काम था। इसके बाद उनका काम बढ़ता गया और शोहरत आसमां पर चढ़ती गई।


        पाॢटशन पेंटिंग्स के नाम से उनकी कृतियां काफी चॢचत रहीं। उन कृतियों को विशेष रूप से इंदिरा गांधी नेशनल सेंटर फॉर आट्र्स की प्रदर्शनी में सजाया गया है। यह कृतियां विभिन्न विभूतियों के अधिकार में थीं लेकिन उनसे उधार मांग कर यहां पर लाया गया है, ताकि कला पारखियों को एक जगह पर सारी कृतियां देखने को मिल सकें।


        गुजराल का विवाह किरण गुजराल के साथ हुआ और दोनों भारत की राजधानी दिल्ली में रहते हैं। उनके पुत्र मोहित गुजराल एक प्रसिद्ध वास्तुकार हैं और भूतपूर्व मॉडल फिरोज गुजराल से विवाहित हैं। उनकी बड़ी बेटी अल्पना ज्वेलरी डिज़ाइनर और दूसरी बेटी रसील एक इंटीरियर डिज़ाइनर हैं। उनके बड़े भाई इन्दर कुमार गुजराल भारत के पूर्व प्रधानमंत्री थे। गुजराल ने अपनी आत्मकथा भी लिखी है। इसके अतिरिक्त गुजराल के कार्यों और जीवन पर तीन और पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।


        देश के पूर्व प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल अपने अनुज के घर नियमित रूप से आते थे। दीवाली, लोहड़ी, होली पर परिवार इकट्ठा होता था। लोहड़ी पर पंजाबी लोकगीत भी गाते थे। दोनों भाइयों के रिश्ते राम-लक्ष्मण की तरह रहे। अब दोनों भाइयों के परिवार यहां लगातार मिलते-जुलते रहते हैं। घर के ड्राइंग रूम में सतीश गुजराल की कुछ बेहतरीन पेंटिंग्स और परिवार की नई-पुरानी तस्वीरें टंगी हुई हैं। सतीश गुजराल के घर में बड़ी-सी लाइब्रेरी भी है। यहां भी कला के विभिन्न रंगों की ही किताबें करीने से सजी हैं।


पुरस्कार :


• विभिन कलाओं में अपनी नैसर्गिकता के लिए गुजराल कई राष्ट्रिय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है।

• सन 1999 में भारत सरकार ने इन्हें Padam Bhusan से सम्मानित कियामेक्सिको का ‘लियो नार्डो द विंसी’ पुरस्कार भी इन्हें मिल चुका हैसतीश गुजराल को बेल्जियम के King का ‘आर्डर ऑफ़ क्राउन’ सम्मान भी प्राप्त हैसन 1989 में इन्हें ‘इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ आर्किटेक्चर’ तथा ‘दिल्ली कला परिषद’ द्वारा सम्मानित किया गया।

• New Delhi स्थित बेल्जियम दूतावास के भवन की परियोजना के लिये वास्तुरचना के क्षेत्र में उन्हें अंतर्राट्रीय ख्याति मिली है। इस इमारत को ‘इंटरनेशनल फोरम आफ आर्किटेक्ट्स’ द्वारा बीसवीं सदी की 1000 सर्वश्रेष्ठ इमारतों की सूची में स्थान दिया गया है।सन 2014 में उन्हें ‘एन.डी.टी.वी. इंडियन ऑफ़ द इयर(N.D.T.V. Indian Of The Year)’ का सम्मान भी दिया गया,वे तीन बार कला का राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं – दो बार चित्रकला और एक बार मूर्तिकला के लियेदिल्ली व punjab की राज्य सरकारों ने भी उन्हें उनके कार्यों और उपलब्धियों के लिए सम्मानित किया है।