Advertisement
जन्म : 23 अक्टूबर 1921, मैसूर, भारत
व्यवसाय : व्यंग-चित्रकार
रासीपुरम कृष्णस्वामी लक्ष्मण (जन्म: २३ अक्टूबर १९२१, मैसूर), संक्षेप में आर. के. लक्ष्मण, भारत के एक प्रमुख व्यंग-चित्रकार हैं। आम आदमी की पीड़ा को अपनी कूँची से गढ़कर, अपने चित्रों से तो वे पिछले अर्द्ध शती से लोगों को बताते आ रहे हैं; समाज की विकृतियों, राजनीतिक विदूषकों और उनकी विचारधारा के विषमताओं पर भी वे तीख़े ब्रश चलाते हैं। लक्ष्मण सबसे ज़यादा अपने कॉमिक स्ट्रिप "द कॉमन मैन" जो उन्होंने द टाईम्स ऑफ़ इंडिया में लिखा था, के लिए प्रसिद्ध है।
लक्ष्मण शुरू से ही अपने स्कूल में ड्राइंग बनाने के लिए मशहूर थे । वह बहुत सी आकृतियां कहीं भी, घर की दीवारों, दरवाजों पर या इधर-उधर बनाया करते थे और उनके मास्टर उन आकृतियों को पसन्द किया करते थे । उन आकृतियों में कभी-कभी अपने टीचर्स के व्यंग्य चित्र भी होते थे । एक बार लक्ष्मण ने एक पीपल के पेड़ का चित्र बनाया था, जो बहुत पसन्द किया गया था । लक्ष्मण पर एक ब्रिटिश कार्टूनिस्ट सर डेविड लो का बहुत प्रभाव था । लक्षण उनकी चर्चा करते थे और काफी समय तक उनके हस्ताक्षरों के आधार पर उन्हें लो की जगह ‘काऊ’ समझते थे, जैसा कि उन्होंने अपनी आत्मकथा ‘द टनल टु टाइम’ में स्वयं लिखा ।
निरन्तर चित्र बनाते रहने का उनका स्वभाव बचपन से था । कमरे की खिड़की के बाहर देखते हुए, पेड़ों की बेडौल, झुकी टहनी, सूखे पत्ते, जमीन पर रेंगते हुए छिपकलीनुमा जीव ईंधन की लकड़ी काटते नौकर यहाँ तक कि सामने की इमारत की छत पर अलग-अलग मुद्रा में बैठे कौए, यह सब उनकी चित्रकला में जगह बनाता था ।
हाई स्कूल पास करने तक आर.के. लक्ष्मण यह मन बना चुके थे कि वह कार्टून तथा कला के क्षेत्र में जाना चाहते हैं । उन्होंने जेजे स्कूल ऑफ आर्ट्स, बम्बई में प्रवेश के लिए आवेदन किया । उसके उत्तर में लक्ष्मण को स्कूल के डीन का पत्र मिला कि उनकी कला उस स्कूल के स्तर पर प्रवेश पाने भर नहीं है, इसलिए उन्हें वहाँ प्रवेश देना सम्भव नहीं हो सकेगा । इस उत्तर के बाद लक्षण ने बी.ए. के लिए मैसूर यूनिवर्सिटी में प्रवेश ले लिया ।
देश के प्रमुख व्यंग्य-चित्रकार आरके लक्ष्मण ने आम आदमी की पीड़ा को अपनी कूची से व्यक्त किया। इसके साथ ही उन्होंने समाज की विकृतियों, राजनीतिक विचारधारा की विषमताओं को भी व्यक्त किया। कई जाने-माने कार्टूनिस्टों ने उन्हें ऐसी उत्कृष्ट हस्ती बताया जिनकी अंगुली हमेशा देश की नब्ज पर रही। 5 दशक से अधिक समय तक उनके प्रशंसकों ने हर सुबह उनके बनाए कार्टूनों में आम आदमी ‘कॉमन मैन’ की प्रतीक्षा की। उनका किरदार आम आदमी अपनी धोती, जैकेट, गांधी-चश्मा आदि से सहज ही पहचाना जा सकता था। उनके कार्टूनों से कई बार नेताओं को झेंप का सामना करना पड़ा।
एक स्कूल शिक्षक के पुत्र लक्ष्मण देश के सर्वश्रेष्ठ राजनीतिक कार्टूनिस्टों में से थे और उनके द्वारा गढ़े गए किरदार ‘कॉमन मैन’ के चरित्र ने उन्हें प्रसिद्धि दी। उन्हें पद्मभूषण, पद्मविभूषण, रेमन मैगसेसे पुरस्कार भी दिया गया था। वे मधुमेह, उच्च रक्तचाप आदि बीमारी से भी ग्रसित थे। डॉक्टरों के अनुसार वे कई महीनों से बिस्तर पर थे और उन्हें सहायक की जरूरत थी। दिल का दौरा पड़ने से प्रख्यात कार्टूनिस्ट का 26 जनवरी 2015 को पुणे में निधन हो गया था।
'कॉमन मैन' कार्टून के निर्माता :
अपने कार्टूनों के जरिए आर.के. लक्ष्मण ने एक आम आदमी को एक ख़ास जगह दी। हाशिये पर पड़े आम आदमी के जीवन की मायूसी, अंधेरे, उजाले, खुशी और गम को शब्द चित्रों के सहारे दुनिया के सामने रखा। लक्ष्मण के कार्टूनों की दुनिया काफ़ी व्यापक है और इसमें समाज का चेहरा तो दिखता ही है, साथ ही भारतीय राजनीति में होने वाले बदलाव भी दिखाई देते हैं। भ्रष्टाचार, अपराध, अशिक्षा, राजनीतिक पार्टियों के छलावों से जो तस्वीर निकल कर आती है वो है आर. के लक्ष्मण का आम आदमी की। आम आदमी सिर्फ जिंदगी की मुश्किलों से लड़ता है, उसे चुपचाप झेलता है, सुनता है, देखता है, पर बोलता नहीं, यही वजह है कि आर. के. लक्ष्मण का आम आदमी ताउम्र खामोश रहा।
आर. के. लक्ष्मण का आम आदमी शुरू-शुरू में बंगाली, तमिल, पंजाबी या फिर किसी और प्रांत का हुआ करता था लेकिन काफ़ी कम समय में आम आदमी की पहचान बन गया ये कार्टून टेढा चश्मा, मुड़ी-चुड़ी धोती, चारखाना कोट, सिर पर बचे चंद बाल। लक्ष्मण का आम आदमी पूरी दुनिया में ख़ास बन गया था। 1985 में लक्ष्मण ऐसे पहले भारतीय कार्टूनिस्ट बन गए जिनके कार्टून की लंदन में एकल प्रदर्शनी लगाई गई। लंदन की उसी यात्रा के दौरान वो दुनिया के जाने-माने कार्टूनिस्ट डेविड लो और इलिंगवॉर्थ से मिले- ये वो शख्स थे जिनके कार्टून को देखकर लक्ष्मण को कार्टूनिस्ट बनने की प्रेरणा मिली थी।
व्यवसाय :
लक्ष्मण का प्रारम्भिक कार्य स्वराज्य और ब्लिट्ज़ नामक पत्रिकाओं सहित समाचार पत्रों में रहा। उन्होंने मैसूर महाराजा महाविद्यालय में पढ़ाई के दौरान अपने बड़े भाई आर॰के॰ नारायण कि कहानियों को द हिन्दू में चित्रित करना आरम्भ कर दिया तथा स्थानीय तथा स्वतंत्र के लिए राजनीतिक कार्टून लिखना आरम्भ कर दिया। लक्ष्मण कन्नड़ हास्य पत्रिका कोरवंजी में भी कार्टून लिखने का कार्य किया। यह पत्रिका १९४२ में डॉ॰ एम॰ शिवरम स्थापित की थी, इस पत्रिका के संस्थापक एलोपैथिक चिकित्सक थे तथा बैंगलोर के राजसी क्षेत्र में रहते थे। उन्होंने यह मासिक पत्रिका विनोदी, व्यंग्य लेख और कार्टून के लिए यह समर्पित की। शिवरम अपने आप में प्रख्यात कन्नड हास्य रस लेखक थे। उन्होंने लक्ष्मण को भी प्रोत्साहित किया।
लक्ष्मण ने मद्रास के जैमिनी स्टूडियोज में ग्रीष्मकालीन रोजगार आरम्भ कर दिया। उनका प्रथम पूर्णकालिक व्यवसाय मुम्बई की द फ्री प्रेस जर्नल के राजनीतिक कार्टूनकार के रूप में की थी। इस पत्रिका में बाल ठाकरे उनके साथी काटूनकार थे। लक्ष्मण ने द टाइम्स ऑफ़ इंडिया, बॉम्बे से जुड़ गये तथा उसमें लगभग पचास वर्षों तक कार्य किया। उनका "कॉमन मैन" चरित्र प्रजातंत्र के साक्षी के रूप में चित्रित हुआ