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कलाकार

पंडित जसराज जीवनी - Biography of Pandit Jasraj in Hindi Jivani

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        पंडित जसराज क जन्म २८ जनवरी १९३० को एक ऐसे परिवार में हुआ जिसे ४ पीढ़ियों तक हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत को एक से बढ़कर एक शिल्पी देने का गौरव प्राप्त है। उनके पिताजी पंडित मोतीराम जी स्वयं मेवाती घराने के एक विशिष्ट संगीतज्ञ थे। जैसा कि आपने पहले पढ़ा कि पं० जसराज को संगीत की प्राथमिक शिक्षा अपने पिता से ही मिली परन्तु जब वे मात्र ३ वर्ष के थे, प्रकृति ने उनके सर से पिता का साया छीन लिया। पंडित मोतीराम जी का देहांत उसी दिन हुआ जिस दिन उन्हें हैदराबाद और बेरार के आखिरी निज़ाम उस्मान अलि खाँ बहादुर के दरबार में राज संगीतज्ञ घोषित किया जाना था। उनके बाद परिवार के लालन-पालन का भार संभाला उनके बडे़ सुपुत्र अर्थात् पं. जसराज के अग्रज, संगीत महामहोपाध्याय पं० मणिराम जी ने। 


        इन्हीं की छत्रछाया में पं० जसराज ने संगीत शिक्षा को आगे बढ़ाया तथा तबला वादन सीखा। मणिराम जी अपने साथ बालक जसराज को तबला वादक के रूप में ले जाया करते थे। परंतु उस समय सारंगी वादकों की तरह तबला वादकों को भी क्षुद्र माना जाता था तथा १४ वर्ष की किशोरावस्था में इस प्रकार के निम्न बर्ताव से अप्रसन्न होकर जसराज ने तबला त्याग दिया और प्रण लिया कि जब तक वे शास्त्रीय गायन में विशारद प्राप्त नहीं कर लेते, अपने बाल नहीं कटवाएँगे। इसके पश्चात् उन्होंने मेवाती घराने के दिग्गज महाराणा जयवंत सिंह वाघेला से तथा आगरा के स्वामि वल्लभदास जी से संगीत विशारद प्राप्त किया। बचपन से ही आदर्शों के पक्के पंडित जसराज के पक्के सुरों की चर्चा आगे बढ़ाने से पहले लीजिये सुनें उनके द्वारा प्रस्तुत राग गुर्जरी तोड़ी।


अंटार्कटिका में गायन :


        दिग्गज शास्त्रीय गायक पंडित जसराज ने अनूठी उपलब्धि हासिल की है। 82 वर्षीय शास्त्रीय गायक ने हाल में अंटार्कटिका के दक्षिणी ध्रुव पर अपनी प्रस्तुति दी। इसके साथ ही वह सातों महाद्वीपों में कार्यक्रम पेश करने वाले पहले भारतीय बन गए हैं। पद्म विभूषण से सम्मानित पंडित जसराज ने बीती 8 जनवरी को अंटार्कटिका तट पर 'सी स्प्रिट' नामक क्रूज पर गायन कार्यक्रम पेश किया। शनिवार को यहां जारी एक बयान में यह जानकारी दी गई। मेवाती घराना से ताल्लुक रखने वाले पंडित जसराज रविवार को स्वदेश लौट रहे हैं। जसराज ने इससे पहले वर्ष 2010 में पत्नी मधुरा के साथ उत्तरी ध्रुव का दौरा किया था


फ़िल्म में गायन :


        मशहूर शास्त्रीय गायक पंडित जसराज ने पहली बार सन 2008 में रिलीज़ किसी हिंदी फ़िल्म के एक गीत को अपनी आवाज दी है। विक्रम भट्ट निर्देशित फ़िल्म ‘1920’ के लिए उन्होंने अपनी जादुई आवाज में एक गाना गाया है। पंडित जसराज ने इस फ़िल्म के प्रचार के लिए बनाए गए वीडियो के गीत ‘वादा तुमसे है वादा’ को अपनी दिलकश आवाज दी है। गाने की शूटिंग मुम्बई के जोगेश्वरी स्थित विसाज स्टूडियो में हुई। इस गाने को संगीत से सजाया अदनान सामी ने और बोल लिखे हैं समीर ने। वीडियो के गानों की कोरियोग्राफी की है राजू खान ने। ए.एस.ए. प्रोडक्शन एंड एंटरप्राइजेज लिमिटेड के निर्माण में बनाई जा रही फ़िल्म ‘1920’ में नए कलाकार काम कर रहे हैं। वर्ष 1920 के दौर में सजी यह फ़िल्म एक भारतीय लड़के और एक अंग्रेज लड़की की प्रेम कहानी है।


अपमान ने मोड़ा गाने की ओर :


        पंडित जसराज ने कहा कि संगीत की राह पर मेरी शुरुआत तबले से हुई थी। 14 बरस की उम्र में अपमानित करने वाली एक घटना ने मुझे गायकी की ओर मोड़ दिया। 1945 में लाहौर में कुमार गंधर्व के साथ मैं एक कार्यक्रम में तबले पर संगत कर रहा था। कार्यक्रम के अगले दिन कुमार गंधर्व ने मुझे डांटा था, 'जसराज तुम मरा हुआ चमड़ा पीटते हो, तुम्हे रागदारी के बारे में कुछ नहीं पता।' उस दिन के बाद से मैंने तबले को कभी हाथ नहीं लगाया और तबला वादक की जगह गायकी ने ले ली। इंदौर का होलकर घराना काफी प्रसिद्ध रहा है। उस्ताद अमीर खां, पंडित कुमार गंधर्व, लता मंगेशकर, किशोर कुमार सहित इतनी हस्तियां यहां से हैं। कई बार लगता है कि कहां मैं हरियाणा में पैदा हो गया। ईश्वर इंदौर में ही जन्म दे देता तो इन सभी की सोहबत मिलती।


  क्रिकेट में मेरी रुचि है :


        संगीत से इतर मैं कुछ सोच नहीं सकता लेकिन क्रिकेट में मेरी रुचि है। 1986 से ही क्रिकेट का शौक है। उस समय रेडियो पर अक्सर लंदन से क्रिकेट कॉमेंट्री आती थी। सिग्नल साफ हो ना हो...आवाज़ आ रही हो या नहीं, लेकिन पूरे समय रेडियाे कान से लगाकर कॉमेंट्री सुनता था। भारत की टीम में सचिन और कुंबले यदि होते तो किसी में दम नहीं था कि 10-15 सालों तक हमें कोई हरा सकता था। क्रिकेट का ये शौक आज भी बरकरार है


एक बातचीत :


        भारतीय शास्त्रीय संगीत के विश्वविख्यात गायक, पण्डित जसराज ८० वर्ष के हो गए हैं। भारतीय शास्त्रीय संगीत को उनका योगदान पिछले छह दशकों से भी ज़्यादा समय से मिल रहा है। २९ जनवरी २००५ को दिल्ली में मेवाती घराने के इस कलाकार का ७५वाँ जन्मदिन मनाया गया। इसी अवसर पर आयोजित एक सम्मान समारोह में पाणिनी आनंद ने उनसे ख़ास बातचीत की। 7प्रस्तुत है इस बातचीत के कुछ प्रमुख अंश-


        जीवन के 75 बसंत पार करके आज कैसा अनुभव कर रहे हैं? बहुत ही सुंदर अनुभूति हो रही है पर कई लोगों के न होने का दुख भी है। ख़ासकर उन लोगों के बिछुड़ने का, जिनसे सीखकर और जिनके सानिध्य से ही आज इस मुकाम तक पहुँचा हूँ। संगीत के क्षेत्र को आपका बहुत बड़ा योगदान है। आज इस अवस्था तक आकर आप को क्या लगता है, जीवन में संगीत यात्रा कहाँ तक पहुँची है?


        कई बार ऐसा होता है कि गाते-गाते स्वरों को खोजने लगता हूँ, ढूँढने लगता हूँ कि कहीं से कोई सुर मिल जाए. उस दिन लोग कहते हैं कि आपने तो आज ईश्वर के दर्शन करा दिए। यह कह पाना बहुत कठिन है कि कितनी साँसें लेनी हैं, कितने कार्यक्रम करने हैं। मैं नहीं मानता कि संगीत के क्षेत्र में मेरा कोई योगदान है। मैं कहाँ गाता हूँ। मैंने कुछ नहीं किया है। मैं तो केवल माध्यम मात्र हूँ। सब ईश्वर और मेरे भाईजी की कृपा और लोगों का प्यार है।