Deoxa Indonesian Channels

lisensi

Advertisement

" />
, 08:18 WIB
कलाकार

एम.एस. सुब्बालक्ष्मी जीवनी - Biography of M. S. Subbulakshmi in Hindi Jivani

Advertisement


एम.एस. सुब्बालक्ष्मी का जन्म 16 सितम्बर 1916 को मदुरै तमिलनाडु के मन्दिर में हुआ था और उन्हें इस नाते देवकन्या रूप में कुजम्मा कहा जाता था । उनको भक्ति गायन के संस्कार वहीं से मिले थे । सुब्बालक्ष्मी का पहला जन कार्यक्रम आठ वर्ष की उम्र में कुम्बाकोनम में महामहम उत्सव के दौरान हुआ था । इसी कार्यक्रम के बाद उनका सार्वजनिक दौर शुरू हुआ ।


सुब्बालक्ष्मी ने सेम्मानगुडी श्रीनिवास अय्यर से कर्नाटक संगीत की शिक्षा ली । पण्डित नारायण राव व्यास उनके हिन्दुस्तानी संगीत में गुरु रहे । सुब्बालक्ष्मी का पहला भक्ति संगीत का एलबम तब आया जब उनकी उम्र केवल दस वर्ष की थी । उसी के बाद वह मद्रास संगीत अकादमी में आ गईं । उनकी मातृभाषा कन्नड़ थी लेकिन उनका गायन विविध भाषाओं में हुआ । एम.एस. सुब्बालक्ष्मी ने जिस दौर में गायन शुरू किया और अपना स्थान बनाया, उसमें पुरुष गायकों का ही दबदबा था लेकिन सुब्बालक्ष्मी ने उस परम्परा को तोड़ा ।


सुब्बालक्ष्मी ने फिल्मों में अभिनय भी किया । 1945 में उनकी यादगार फिल्म ‘भक्त मीरा’ आई । इस फिल्म में मीरा के भजन लिए गए थे, जिन्हें सुब्बालक्ष्मी ने ही गाया था । वह भजन आज भी लोकप्रिय हैं । इनकी अन्य फिल्मों में ‘सेवा सदनम’, ‘सावित्री’ तथा तमिल में ‘मीरा’ आई, लेकिन बाद में इन्हें लगा कि वह गायन के क्षेत्र में ही काम करना ज्यादा पसन्द करेंगी ।


कर्नाटक संगीत की इस गायिका के सुरीली आवाज के लाखों प्रशंसक हैं. आपने छोटी आयु से संगीत का सिक्षण आरंभ किया, और दस साल की उम्र में ही अपना पहला डिस्क रेकौर्ड किया। इसके बाद आपने शेम्मंगुडी श्रीनिवास अय्यर से कर्णाटक संगीत में, तथा पंडित नारायणराव व्यास से हिंदुस्तानी संगीत में उच्च शिक्षा प्राप्त की। आपने सत्रह साल की आयु में चेन्नै की विख्यात म्यूज़िक अकैडेमी में संगीत कार्यक्रम पेश किया।


संगीत के इलावा श्रीमती सुब्बुलक्ष्मी ने कई फ़िल्मों में भी अभिनय किया। इनमें सबसे यादगार है 1945 की मीरा फ़िल्म, जिसमें आपकी मुख्य भूमिका थी। उनका मीराबाई का किरदार हमेशा यादगार रहेगा। वो साक्षात कृष्ण की मीरा लगती थी. उनके मीरा भजन आज भी कानो में गूँजते है: मोरे तो गिरिधर गोपाल, दूसरो ना कोई...


      लता मंगेशकर ने आपको 'तपस्विनी' कहा, उस्ताद बडे ग़ुलाम अली ख़ां ने आपको 'सुस्वरलक्ष्मी' पुकारा, तथा किशोरी आमोनकर ने आपको 'आठ्वां सुर' कहा, जो संगीत के सात सुरों से ऊंचा है। महात्मा गांधी और पंडित नेहरु भी आपके संगीत के प्रशंसक थे। एक अवसर पर, महात्मा गांधी ने कहा कि अगर श्रीमती सुब्बुलक्ष्मी 'हरि, तुम हरो जन की भीर' मीरा भजन को गाने के बजाय बोल भी दें, तब भी उनको वह भजन किसी और के गाने से अधिक सुरीला लगेगा।


साल 1938 में फिल्म 'सेवासदानम' से अपना करियर शुरू करने वाली सुब्बुलक्ष्मी को उनके सामाजिक और मानवीय कार्यो के लिए भी जाना जाता था। सुब्बुलक्ष्मी का निधन 2004 में 88 साल की उम्र में हुआ था। कुछ समय पहले खबर आई थी कि विज्ञापन एवं फिल्म निर्माता और सिनेमेटोग्राफर राजीव मेनन सुब्बुलक्ष्मी की जीवनी पर फिल्म बनाने पर विचार कर रहे हैं और अभिनेत्री विद्या बालन को फिल्म में सुब्बुलक्ष्मी की भूमिका का प्रस्ताव दिया गया है।


अभिनय :


श्रीमती सुब्बुलक्ष्मी ने कई फ़िल्मों में भी अभिनय किया। इनमें सबसे यादगार है १९४५ के मीरा फ़िल्म में आपकी मुख्य भूमिका। यह फ़िल्म तमिल तथा हिन्दी में बनाई गई थी और इसमें आपने कई प्रसिद्ध मीरा भजन गाए।


संयुक्त राष्ट्र संघ में :


आप पहली भारतीय हैं जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ की सभा में संगीत कार्यक्रम प्रस्तुत किया, तथा आप पहली स्त्री हैं जिनको कर्णाटक संगीत का सर्वोत्तम पुरस्कार, संगीत कलानिधि प्राप्त हुआ। १९९८में आपको भारत का सर्वोत्तम नागरिक पुरस्कार, भारत रत्न प्रदान किया गया। संयुक्त राष्ट्र संघ सुब्बुलक्ष्मी की जन्म शताब्दी के उपलक्ष्य में, एक डाक टिकट जारी करेगा


पति का मार्गदर्शन :


सुब्बुलक्ष्मी को विश्व की एक सर्वोत्तम गायिका बनाने में उनके पति का मार्गदर्शन रहा है। उन्होंने स्वयं इस बात को स्वीकार किया है कि यदि मुझे अपने पति से मार्गदर्शन और सहायता नहीं मिली होती, तो मैं इस मुकाम तक नहीं पहुँच पाती। बीसवीं शताब्दी की महान् भक्ति गायिका होने के बावजूद वे सदैव नम्र बनी रहीं और संगीत में अपनी ख्याति के लिए अपने पति सदाशिवम का आभार मानती रहीं। 


सदाशिवम की विशेषता यह थी कि, गांधीवादी और स्वतंत्रता सेनानी होने के बावजूद जब से उन्होंने सुब्बुलक्ष्मी का हाथ थामा, ऐसा कोई प्रयत्न शेष नहीं छोड़ा, जिससे सुब्बुलक्ष्मी की ख्याति दिनों-दिन बढ़ती न रहे। उन्होंने सुब्बुलक्ष्मी की गायन सभाओं का इस प्रकार आयोजन किया कि, वे सफलताओं की सीढ़ियाँ चढ़ती ही गईं। इन्हीं के प्रयत्नों के कारण सुब्बुलक्ष्मी को ‘नाइटेंगेल ऑफ़ इंडिया’ कहा गया, जबकि इससे पहले यह खिताब केवल सरोजिनी नायडू को ही प्राप्त था। रामधुन और भक्ति संगीत को गाने की प्रेरणा भी उन्हें सदाशिवम् से ही मिली थी।


प्रशंसा :


अनेक मशहूर संगीतकारों ने श्रीमती सुब्बुलक्ष्मी की कला की तारीफ़ की है। लता मंगेशकर ने आपको 'तपस्विनी' कहा, उस्ताद बडे ग़ुलाम अली ख़ां ने आपको 'सुस्वरलक्ष्मी' पुकारा, तथा किशोरी आमोनकर ने आपको 'आठ्वां सुर' कहा, जो संगीत के सात सुरों से ऊंचा है। भारत के कई माननीय नेता, जैसे महात्मा गांधी और पंडित नेहरु भी आपके संगीत के प्रशंसक थे। एक अवसर पर महात्मा गांधी ने कहा कि अगर श्रीमती सुब्बुलक्ष्मी 'हरि, तुम हरो जन की भीर' इस मीरा भजन को गाने के बजाय बोल भी दें, तब भी उनको वह भजन किसी और के गाने से अधिक सुरीला लगेगा। एम.एस.सुब्बालक्ष्मी को कला क्षेत्र में पद्म भूषण से १९५४ में सम्मानित किया गया।


सुब्बुलक्ष्मी के बारे में कहा जाता है कि जो लोग उनकी भाषा नहीं समझते थे, वे भी उनकी गायकी सुनते थे। उनकी आवाज़ को परमात्मा की अभिव्यक्ति कहा जाता था और लोग प्रसन्नचित होकर उनका गायन सुनते थे। उनके प्रशंसकों की फेहरिस्त में महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू सरीखे कई प्रख्यात लोग थे। उनके बारे में गांधी जी का कहना था, वह किसी और का गायन सुनने की बजाय सुब्बुलक्ष्मी की आवाज़ सुनना पसंद करेंगे।


सम्मान और पुरस्कार :


1. 1954 में पद्म भूषण।


2. 1956 में संगीत नाटक अकादमी सम्मान।


3. 1974 में रैमन मैग्सेसे सम्मान।


4. 1975 में पद्म विभूषण।


5. 1988 में कैलाश सम्मान।


6. 1998 में भारत रत्न समेत कई सम्मानों से नवाजा गया। इसके अतिरिक्त कई विश्वविद्यालयों ने उन्हें मानद उपाधि से सम्मानित किया