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नन्दलाल बोस का जन्म दिसंबर 1882 में बिहार के हवेली खडगपुर, जिला मुंगेर में हुआ। उनके पिता पूर्णचंद्र बोस ऑर्किटेक्ट तथा महाराजा दरभंगा की रियासत के मैनेजर थे। 16 अप्रैल 1966 कोलकाता में उनका देहांत हुआ। उन्होंने 1905 से 1910 के बीय कलकत्ता गवर्नमेंट कॉलेज ऑफ़ आर्ट में अबनीन्द्ननाथ ठाकुर से कला की शिक्षा ली, इंडियन स्कूल ऑफ़ ओरियंटल आर्ट में अध्यापन किया और 1922 से 1951 तक शान्तिनिकेतन के कलाभवन के प्रधानाध्यापक रहे।
प्रसिद्ध चित्रकार नंदलाल बोस का जन्म 3 दिसम्बर 1882 ई. में मुंगेर ज़िला, बिहार में हुआ था। उनके पिता पूर्णचंद्र बोस ऑर्किटेक्ट तथा महाराजा दरभंगा की रियासत के मैनेजर थे। शिक्षा प्राप्त करने के लिए उन्हें अनेक विद्यालयों में भर्ती कराया गया, पर वे पढ़ाई में मन न लगने के कारण सदा असफल होते।
उनकी रुचि आरंभ से ही चित्रकला की ओर थी। उन्हें यह प्रेरणा अपनी माँ क्षेत्रमणि देवी से मिट्टी के खिलौने आदि बनाते देखकर मिली। अंत में नंदलाल को कला विद्यालय में भर्ती कराया गया। इस प्रकार 5 वर्ष तक उन्होंने चित्रकला की विधिवत शिक्षा ली। उन्होंने 1905 से 1910 के बीच कलकत्ता गवर्नमेंट कॉलेज ऑफ़ आर्ट में अबनीन्द्ननाथ ठाकुर से कला की शिक्षा ली, इंडियन स्कूल ऑफ़ ओरियंटल आर्ट में अध्यापन किया और 1922 से 1951 तक शान्तिनिकेतन के कलाभवन के प्रधानाध्यापक रहे।
प्रथम गुरु कुम्भकार
बिहार में प्राथमिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद 15 साल की आयु में नंदलाल उच्च शिक्षा के लिए बंगाल गए। उस समय बिहार, बंगाल से अलग नहीं था। कला के प्रति बालसुलभ मन का कौतुक उन्हें जन्मभूमि पर ही पैदा हुआ। यहाँ के कुम्भकार ही उनके पहले गुरु थे। बाद में वे बंगाल स्कूल के छात्र बने और फिर शांतिनिकेतन में कला भवन के अध्यक्ष। स्वतंत्रता आंदोलन में भी इन्होंने खूब हिस्सा लिया। गांधीजी और सुभाष चंद्र बोस, जवाहरलाल नेहरू के अत्यंत प्रिय थे। यह बिहार की माटी से उनकी बाबस्तगी थी कि कला जगत् के आकाश में दैदीप्यमान नक्षत्र जैसी ऊंचाई पाने के बाद, अपने व्यस्ततम जीवनचर्या के बावजूद वे बार-बार अपनी जन्मभूमि को देखने आते रहे। छात्रों के साथ राजगीर और भीमबाध की पहाड़ियों में हर साल वे दो-तीन बार एक्सकर्सन के लिए आया करते थे। राज्य सरकार के स्तर पर इनकी स्मृति को संरक्षित करने का कोई प्रयास आज तक नहीं हुआ।
शिक्षा :
नंदलाल बोस का मन पढाई में कम लगता था जिसके कारण वे पढाई में सदा असफल होते रहते थे. शिक्षा प्राप्त करने के लिए दाखिला कई विद्यालयों में कराया गया.
किसी तरह बिहार से अपनी प्राथमिक शिक्षा पूर्ण करने के बाद 15 साल की आयु में आगे की पढाई करने के लिए 1898 में हाई स्कूल की पढ़ाई करने के लिए कोलकाता (बंगाल) गए. और वह उनका दाखिला हाई स्कूल में सेंट्रल कॉलेजिएट स्कूल में हुआ.
विवाह :
और उन्होंने सन 1902 में हुए परीक्षा पास हुए तथा उसके बाद अपनी आगे की पढाई उसी संस्थान के कॉलेज में करते रहे. और उसी के एक साल बाद जून 1903 में एक पारिवारिक मित्र की बेटी सुधीरादेवी के साथ नंदलाल का विवाह सम्पन्न हुआ.
कला के प्रति प्रेम और पढ़ाई :
नंदलाल के ह्रदय में हमेशा से ही कला की पढाई करने का सौख था. लेकिन उनके परिवारवालों ने इसकी इज़ाज़त नहीं देते थे. अन्य शिक्षा के प्रति रूचि ना होने के कारण हमेशा वो अपनी कक्षा में हमेशा अनुत्तीर्ण होते रहते थे. और इसी के चलते एक के बाद एक विद्यालय बदलते रहे.
फिर उन्होंने वाणिज्य की पढ़ाई के लिए सन 1905 में कोलकता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया. लेकिन बार-बार असफल होने के कारण आखिरकार कला की पढाई के लिए उन्होंने अपने परिवार को मना लिया.
और फिर उन्होंने कोलकाता के स्कूल ऑफ़ आर्ट्स में दाखिला लिया. और इसी के साथ मन लगाके 5 सालों तक चित्रकला की विधिवत शिक्षा ली. कलकत्ता गवर्नमेंट कॉलेज ऑफ़ आर्ट में 1905 से लेकर 1910 तक अबनीन्द्ननाथ टैगोर से कला की शिक्षा ली.
करियर
एक युवा कलाकार के तौर पर नंदलाल बोस अजंता के भित्ति चित्रों से बहुत प्रभावित हुए थे। वे कलाकारों और लेखकों के उस अंतर्राष्ट्रीय समूह का हिस्सा बन गए जो ‘पारंपरिक भारतीय संस्कृति’ को पुनर्जिवित करना चाहते थे। इस समूह में शामिल थे ओकाकुरा ककुजो, विलियम रोथेन्स्तीं, योकोयामा तैकान, क्रिषतीअना हेर्रिन्ग्हम, लौरेंस बिन्यों, अबनिन्द्रनाथ टैगोर, एरिक गिल और जैकब एपस्टीन।
उनकी प्रतिभा और मौलिक शैली को गगनेन्द्रनाथ टैगोर, आनंद कुमारस्वामी और ओ.सी. गांगुली जैसे प्रख्यात कलाकारों और कला समीक्षकों ने माना।
सन 1922 में उन्हें शान्तिनिकेतन स्थित ‘कला भवन’ का प्रधानाध्यापक नियुक्त किया गया। वे इस पद पर सन 1951 तक रहे।
उन्होंने भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री पं. जवाहरलाल नेहरू के आमंत्रण पर भारतीय संविधान की मूल प्रति को अपनी चित्रकारी से सजाया। बोस ने भारतीय संविधान की मूल प्रति को कुल 22 चित्रों से सजाया। इन सभी चित्रों को बनाने में कुल चार साल का वक़्त लगा।
नंदलाल बोस ने राष्ट्रिय पुरस्कारों जैसे भारत रत्न और पद्म श्री के प्रतीक भी बनाये।
नयी दिल्ली स्थित ‘नेशनल गैलरी ऑफ़ मॉडर्न आर्ट’ में उनकी 7000 कृतियां संग्रहित हैं जिसमें सन 1930 में दांडी यात्रा के दौरान बनाया गया महात्मा गाँधी का लिनोकट और वे सात पोस्टर भी शामिल हैं जिन्हें उन्होंने महात्मा गाँधी के निवेदन पर कांग्रेस के सन 1938 के हरिपुरा अधिवेशन के लिए बनाया था।
नन्दलाल बोस ने अपनी चित्रकारी के माध्यम से तत्कालीन आंदोलनों के विभिन्न स्वरूपों, सीमाओं और शैलियों को उकेरा। उनकी चित्रकारी में एक मनमोहक जादू था जो सभी कला प्रेमियों को अपनी ओर आकर्षित कर लेता था। उनकी चित्रकारी को एशिया के साथ-साथ पश्चिम में भी काफ़ी तवज्जो मिला है।