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अभिनेताकलाकार

गुरु दत्त जीवनी - Biography of Guru Dutt in Hindi Jivani

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गुरु दत्त का जन्म 9 जुलाई, 1925 को बैंगलोर में हुआ था। उनकी माँ वसंती पादुकोण के अनुसार 'बचपन से गुरु दत्त बहुत नटखट और जिद्दी था। प्रश्न पूछना उसका स्वभाव था। कभी कभी उसके प्रश्नों का उत्तर देते हुए वे पागल हो जाती थीं, किसी की बात नहीं मानता था। अपने दिल में अगर ठीक लगा तो ही वो मानता था। गुस्से वाला बहुत था। मन में आया तो करेगा ही..


वर्ष 1943 में, नौकरी की तलाश में, वह कोलकाता चले गए, जहां उन्होंने लीवर ब्रदर्स कारखाने में टेलीफोन ऑपरेटर के रूप में कार्य करना शुरू किया। कई महीनों तक वहां कार्य करने के बाद, उन्हें वह कार्य पसंद नहीं आया और उन्होंने नौकरी छोड़ दी।


वर्ष 1944 में, उनके चाचा गुरु दत्त के लिए एक उपयुक्त नौकरी खोजने के लिए पुणे पहुंचे। जिसके चलते बहुत जल्द उन्हें प्रभात फिल्म कंपनी में एक सहायक निर्देशक के रूप में तीन साल के अनुबंध के तौर पर नौकरी मिल गई।


गुरु दत्त के चचेरे भाई श्याम बेनेगल ने भी दत्त के साथ एक सहायक निर्देशक के रूप में कार्य किया और उनके प्रोडक्शन हाउस के तहत फिल्म निर्देशन करना सीखा।


परिवार


गुरु दत्त के पिता का नाम 'श्री शिवशंकर राव पादुकोण' और माता का नाम 'श्रीमती वसंती पादुकोण' है। गुरु दत्त ने गायिका गीता दत्त से सन् 1953 में विवाह किया। गुरु दत्त के बेटे अरुण दत्त के अनुसार ‘प्यासा’ और ‘काग़ज़ के फूल’ जैसी क्लासिक फ़िल्मों के सर्जक गुरुदत्त चुप और गंभीर रहते थे। लेकिन उनके भीतर एक मस्ती करने वाला बच्चा भी था। वे पतंग उड़ाते, मछली पकड़ते और फोटोग्राफी भी करते थे। गुरु दत्त को खेती करना भी काफ़ी सुहाता था। लोनावला में फार्म हाउस था जहां वो हर साल जाकर खेती करते थे। उन्हें फिशिंग में भी दिलचस्पी थी। पवई झील में जॉनी वॉकर और गुरु दत्त खूब मछली पकड़ा करते थे। एक बार उन्हें एक स्कूटर पसंद आ गया। वे उसे चलाते हुए स्टूडियो जा रहे थे तभी सिग्नल के पास गाड़ी रुकी तो लोगों ने उन्हें पहचान लिया। वे किसी तरह से गाड़ी से वहां से निकले। एक दिलचस्प किस्सा है कि कश्मीर में उन्होंने एक शिकारा देखा तो वे उस शिकारा को कश्मीर से खुलवाकर पवई झील ले आए।


प्रारम्भिक प्रेरणा


गुरु दत्त की दादी नित्य शाम को दिया जलाकर आरती करतीं और चौदह वर्षीय गुरु दत्त दिये की रौशनी में दीवार पर अपनी उँगलियों की विभिन्न मुद्राओं से तरह तरह के चित्र बनाते रहते। यहीं से उनके मन में कला के प्रति संस्कार जागृत हुए। हालांकि वे अप्रशिक्षित थे, गुरु दत्त प्रेरित आवर्तनों का उत्पादन कर पाते और इसी तरह उन्होंने अपने उसे उत्तरार्द्ध से एक पेंटिंग पर आधारित है, एक साँप नृत्य प्रदर्शन फोटोग्राफ, उनके चाचा, बी बी बेनेगल राजी जब वह था के रूप में , वह कर सकता.उनकी यह कला परवान चढ़ी और उन्हें सारस्वत ब्राह्मणों के एक सामाजिक कार्यक्रम में पाँच रुपये का नकद पारितोषक प्राप्त हुआ।


जब गुरु दत्त 16 वर्ष के थे उन्होंने 1941 में पूरे पाँच साल के लिये 75 रुपये वार्षिक छात्रवृत्ति पर अल्मोड़ा जाकर नृत्य, नाटक व संगीत की तालीम लेनी शुरू। 1944 में जब द्वितीय विश्वयुद्ध के कारण उदय शंकर इण्डिया कल्चर सेण्टर बन्द हो गया गुरु दत्त वापस अपने घर लौट आये।


यद्यपि आर्थिक कठिनाइयों के कारण वे स्कूल जाकर अध्ययन तो न कर सके परन्तु रवि शंकर के अग्रज उदय शंकर की संगत में रहकर कला व संगीत के कई गुण अवश्य सीख लिये। यही गुण आगे चलकर कलात्मक फ़िल्मों के निर्माण में उनके लिये सहायक सिद्ध हुए।


अभिनेता, सह-निर्देशक व नृत्य निर्देशक


प्रभात फिल्म कम्पनी ने दत्त को नृत्य निर्देशक के तौर पर नौकरी दी थी, लेकिन उन्हें अभिनेता और निर्देशक के तौर पर भी वहां काम करना पड़ा. साल 1947 में जब प्रभात फिल्म कम्पनी बंद हुई तो दत्त बॉम्बे आ गए. बॉम्बे आने के बाद दत्त ने उस समय के दो बड़े निर्देशकों के साथ काम किया, जिनमें अमिया चक्रवर्ती और ज्ञान मुखर्जी शामिल थे. इस दौरान उन्होंने चक्रवर्ती की गल्र्स स्कूल और मुखर्जी की बॉम्बे टॉकीज फिल्म संग्राम में काम किया. इसके बाद अभिनेता देव आनंद ने दत्त के सामने अपनी प्रोडक्शन कम्पनी नवकेतन में निर्देशक के तौर पर काम करने का प्रस्ताव रखा.


गुरु दत्त ने देव आनंद के साथ जुडऩे के बाद पहली फिल्म बाजी बनाई जो कि 1951 में रिलीज हुई. यह फिल्म 1940 में हॉलीवुड में प्रचलित सस्पेंस थ्रिलर ड्रामा से प्रेरित थी. इस बीच देव आनंद और गुरु दत्त के बीच एक अनुबंध हुआ, जिसके तहत अगर दत्त कोई फिल्म बनाते हैं तो उन्हें देव आनंद को उसमें हीरो लेना होगा, वहीं अगर देव आनंद कोई फिल्म प्रोड्यूस करते हैं तो उन्हें निर्देशक के तौर पर दत्त को रखना होगा. इस अनुबंध के तहत जहां आनदं ने दत्त को फिल्म बाजी का निर्देशक बनाया, वहीं दत्त ने अपनी फिल्म सी.आई.डी. में आनंद को बतौर हीरो साइन किया. गुरु दत्त के निधन के बाद देव आनंद ने कहा था कि, गुरु दत्त एक युवा व्यक्ति थे और उन्हें ऐसी उदासीन फिल्में नहीं बनानी चाहिए थीं. दत्त और आनंद ने मिलकर हिन्दी सिनेमा को बाजी और जाल जैसी दो हिट फिल्में दीं. लेकिन देव आनंद के चेतन आनंद जो कि पेशे से निर्देशक थे, के इन दोनों के बीच में आ जाने से यह अनुबंध टूट गया.


मृत्यु


10 अक्टूबर 1964 की सुबह को गुरु दत्त पेढर रोड बॉम्बे में अपने बेड रूम में मृत पाये गये। ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने पहले खूब शराब पी उसके बाद ढेर सारी नींद की गोलियाँ खा लीं। यही दुर्घटना उनकी मौत का कारण बनी। इससे पूर्व भी उन्होंने दो बार आत्महत्या का प्रयास किया था। आखिरकार तीसरे प्रयास ने उनकी जान ले ली।