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कलाकार

मन्ना डे जीवनी - Biography of Manna Dey in Hindi Jivani

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रबोध चन्द्र डे (मन्ना डे) का जन्म पश्चिम बंगाल में हुआ था. कोलकाता से ही मन्ना डे ने अपनी शुरुआती शिक्षा पूरी की और उसके बाद स्काटिस कॉलेज में दाखिला लिया. कॉलेज के समय में मन्ना डे कुश्ती और मुक्केबाजी खेलो में भाग लेते थे. मन्ना डे के पिता उन्हें एक वकील बनाना चाहते थे जिस कारण उन्होंने उनका नाम विद्यासागर कॉलेज में लिखाया था.


बंगाल में सबसे ज्यादा खेला जाने वाला खेल फुटबाल है और मन्ना डे को भी फुटबाल खेलने का काफी शौक था. उसके बाद मन्ना डे संगीत के क्षेत्र में भी आने लगे थे. वे सोचते थे की कोन से क्षेत्र में जाया जाय, संगीत या फिर वकील के क्षेत्र में. मन्ना डे के चाचा भी एक गायक थे. फिर वही से मन्ना डे के अंदर चाचा की तरह संगीत की ओर झुकाव आ गया.


यादगार बातें


1943 में फिल्म तमन्ना में बतौर प्लेबैक सिंगर उन्हें सुरैया के साथ गाने का मौका मिला। हालांकि इससे पहले वह फिल्म रामराज्य में कोरस के रूप में गा चुके थे। दिलचस्प बात है कि यही एक एकमात्र फिल्म थी, जिसे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने देखा था। मन्ना डे केवल शब्दो को ही नहीं गाते थे, बल्कि अपने गायन से शब्द के पीछे छिपे भाव को भी खूबसूरती से सामने लाते थे। शायद यही कारण है कि प्रसिद्ध हिन्दी कवि हरिवंश राय बच्चन ने अपनी अमर कृति मधुशाला को स्वर देने के लिये मन्ना डे का चयन किया। सन् 1961 में संगीत निर्देशक सलिल चौधरी के संगीत निर्देशन में फिल्म काबुलीवाला की सफलता के बाद मन्ना डे शोहरत की बुलन्दियों पर जा पहुँचे।


आवारा में उनके द्वारा गया गीत "तेरे बिना चाँद ये चाँदनी!" बेहद लोकप्रिय हुआ। इसके बाद उन्हें बड़े बैनर की फिल्मों में अवसर मिलने लगे। "प्यार हुआ इकरार हुआ" (श्री 420), "ये रात भीगी-भीगी" (चोरी-चोरी), "जहाँ मैं जाती हूँ वहीं चले आते हो" (चोरी-चोरी), "मुड़-मुड़ के ना देख मुड़-मुड़ के!" (श्री 420) जैसे अनेक सफल गीतों में उन्होंने अपनी आवाज दी।


व्यक्तिगत जीवन


18 दिसम्बर 1953 को केरल की सुलोचना कुमारन से उनकी शादी हुई। उनकी दो बेटियाँ हैं: शुरोमा और सुमिता। शुरोमा का जन्म 19 अक्टूबर 1956 तथा सुमिता का जन्म 20 जून 1958 को हुआ। उनकी पत्नी सुलोचना, जो कैंसर से पीड़ित थी, की मृत्यु बंगलोर में 18 जनवरी 2012 को हुई। अपने जीवन के पचास वर्ष से ज्यादा मुम्बई में व्यतीत करने के बाद मन्ना डे अन्तत: कल्याण नगर बंगलोर में जा बसे। इसी शहर में उन्होंने अन्तिम साँस ली।


मन्ना डे पर आत्मकथा :


मन्ना डे एक पार्श्व गायक तो थे ही साथ ही मन्ना डे ने बंगला भाषा में अपनी एक आत्मकथा लिखी थी. उसके बाद उनकी यह आत्मकथा अन्य भाषाओं छपी थी. बहुत से अन्य कवियों ने उनके जीवनी के बारे में काफी पुस्तकें भी लिखे थे, जो की इस प्रकार हैं :


* जिबोनेरे जलासोघरे (बंगला में), आनंदा प्रकाशन, कोलकाता पश्चिम बंगाल में प्रकाशित,


* मेमोरीज कम अलाइव (अंग्रेजी में)


* यादें जी उठी (हिंदी में)


* मन्ना डे (बंगला में मन्ना डे की एक जीवनी) अंजलि प्रकाशक, कोलकाता द्वारा प्रकाशित, लेखक डॉ गौतम राय.


आज भले ही मन्ना डे हमारे बीच में नहीं है लेकिन उनके संगीत को दिया गया योगदान आज भी हमें याद है. ऐसे महान हस्ती बहुत ही कम मिलते है और हमें गर्व है की उन्होंने हमारे देश में जन्म लिया.


मन्ना डे के बारे में


1) मन्ना डे का वास्तविक नाम प्रबोध चन्द्र डे है। मन्ना उनका निक नेम है, जो उनके अंकल ने उन्हें दिया।


2) कलकत्ता के स्कॉटिश कॉलेज में उन्होंने संगीत प्रतियोगिता तीन वर्ष लगातार जीती तो आयोजकों ने उन्हें चाँदी का तानपुरा देकर कहा कि वे आगे से प्रतियोगिता में भाग नहीं लें।


3) मन्ना डे के सामने दो विकल्प थे। या तो उन्हें बैरिस्टर बनना था या सिंगर। मन्ना डे ने सिंगर बनना पसंद किया और अपने अंकल केसी डे के साथ 1943 में मुंबई आ गए।


4) केसी डे दृष्टिहीन थे और उन्हें संगीत की गहरी समझ थी। उन से ही मन्ना डे संगीत की शिक्षा ली।


5) 23 वर्षीय मन्ना डे को विजय भट्ट की फिल्म राम राज्य में पहला गाने का अवसर संगीतकार शंकर राव व्यास ने दिया। यह एक धार्मिक गाना था। इसके बाद मन्ना डे को धार्मिक गानों के ही ऑफर मिलने लगे जिससे मन्ना डे खफा हो गए।        


6) ऐसे वक्त एसडी बर्मन ने उनकी मदद की। बर्मन के संगीत निर्देशन में मन्ना डे ने 'ऊपर गगन विशाल' फिल्म मशाल के लिए गया जो हिट रहा और मन्ना डे के लिए नई राह खुली।


7) मन्ना डे ने हमेशा एस डी बर्मन के प्रोत्साहन का अहसान माना। दूरदर्शन को दिए एक इंटरव्यू में मन्ना डे कहा मैं उनके गाने गाकर धन्य हो गया हूं।


8) धार्मिक फिल्मों के गायक की इमेज तोड़ने में मन्ना डे को लगभग सात वर्ष लगे।


9) काबुलीवाला के गाने 'ऐ मेरे प्यारे वतन' से मन्ना डे लोकप्रियता की बुलंदियों को छू लिया।


10) क्लासिकल नंबर्स गाने में मन्ना डे का मुकाबला फिल्म इंडस्ट्री का कोई गायक नहीं कर सकता था। जब भी कोई कठिन गीत होता था, संगीतकार मन्ना डे को ही याद करते थे।