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कलाकार

बिमल रॉय जीवनी - Biography of Bimal Roy in Hindi Jivani

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बिमल राय (बांग्ला: বিমল রায়) (जन्म: 12 जुलाई, 1909 निधन: 7 जनवरी, 1966) हिन्दी फ़िल्मों का एक प्रसिद्ध फ़िल्म निर्देशक थे।


बिमल रॉय (বিমল রায়) 12 जुलाई 1909 को जन्मे Suapur, ढाका जिले, पूर्वी बंगाल और असम, ब्रिटिश भारत (अब बांग्लादेश) और निधन: 8 जनवरी 1966 (56 साल की अवस्था में ) मुंबई, महाराष्ट्र, भारत फ़िल्म निर्माता और निर्देशक। उनकी धर्मपत्नी मनोबिना रॉय और बच्चे रिंकी भट्टाचार्य यशोधरा रॉय अपराजिता सिन्हा जोय बिमल रॉय बिमल रॉय (बंगाली: বিমল রায়) (12 जुलाई 1909—8 जनवरी 1966) एक भारतीय फिल्म निर्देशक थे। उन्होंने विशेष रूप से दो बीघा जमीन, परिणीता, बिराज बहू, मधुमती, सुजाता, बंदिनी और की तरह अपने यथार्थवादी और समाजवादी फिल्मों के लिए विख्यात है, उसे हिंदी सिनेमा का एक महत्वपूर्ण निदेशक बना रही है। इतालवी नव-यथार्थवादी सिनेमा से प्रेरित होकर, वह विटोरियो डी सिका की साइकिल चोर (1948) देखने के बाद दो बीघा ज़मीन बनाया है। उनका काम विशेष रूप से उनके मीस एन स्केन के लिए जाना जाता है, जो उन्होंने यथार्थवाद को चित्रित करने के लिए नियोजित किया था। उन्होंने पूरे करियर में कई पुरस्कार जीते, जिनमें ग्यारह फिल्मफेयर पुरस्कार, दो राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार और कान फिल्म समारोह का अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार शामिल था। मधुमती ने 1958 में 9 फिल्मफेयर पुरस्कार जीते, जो 37 साल तक रिकॉर्ड था।


बंग्ला साहित्य के महान लेखक शरतचंद्र के उपन्यास “परिणीता” पर “बिराज बहु” और “देवदास” उनकी वह सिनेमाई तस्वीर है जो आज के फिल्मकारों के लिए प्रेरणास्त्रोत का कार्य करती है | “देवदास” ने तो अभिनय सम्राट दिलीप कुमार को रातो रात ट्रेजेडी किंग बना दिया | इसके बाद बिमल रॉय ने 1958 में पुनर्जन्म पर आधारित “मधुमति” और “यहूदी” जैसी फिल्मे बनाई जो हिट रही |


“मधुमति” के लिए संगीतकार सलिल चौधरी ने ऐसी धुनें रची जो आज भी लोगो की जुबान पर है | इस तरह बिमल दा एक के बाद एक बेमिसाल सिनमाई तस्वीर फिल्म जगत को देते जा रहे थे | इसी कड़ी में सामजिक ताने बाने में छुआछुत जैसी विभीषिका को पर्दे पर लाने का साहस बिमल रॉय (Bimal Roy) की “सुजाता” ने कर दिखाया | फिल्म में सुजाता नाम की दलित कन्या चुप रहने वाली , गुणी ,सुशील और त्यागी सेविका बनी है जबकि उसी परिवार-परिवेश की असली बेटी एक प्रतिभावान मंचीय नर्तकी ,आधुनिका ,वाचाल और अपनी मर्जी की इज्जत करने वाली शख्सियत बनती है | साथ ही समाज में अपने स्थान को तय करती है |


इस बीच सिनेमा के चाहने वाले लोगो को ऐसा लगने लगा कि बिमल रॉय एक तरह से पैरेलेल सिनेमा के साथ ही कमाल कर सकते है | 1963 में नूतन के साथ “बंदिनी” बनाकर उन्होंने दुनिया को दिखा कि वह क्या क्या कर सकते है साथ ही उनकी फिल्मो की रेंज कहा तक है | यह फिल्म सहज और सेंसिटिव होने के साथ ही मनोरंजन के हर पैमाने और दर्शको की कसौटी पर खरी उतरी थी |


मधुमती : बिमल राय के सिने सफर में नया मोड ।


बिमल राय की ‘मधुमती’ मधु (वैजयंतीमाला) और आनंद(दिलीप कुमार) की पुनर्जन्म कथा को बयान करती है ।, कथाक्रम को पूरा करने के लिए दिलीप कुमार और वैजयंतीमाला के पात्र एक से अधिक बार रचे गए हैं । इस अवधारणा में आनंद और मधु की प्रेमकथा का सुखातमक समापन देवेन्द्र और राधा में हुआ । मधु,माधवी और राधा के पात्रों से वैयजंतीमाला प्रमुखता से उभर कर आई हैं। उम्दा अभिनय के लिए उन्हें ‘फिल्मफेयर’ पुरस्कार मिला था । आनंद एवं मधु की रूहानी प्रेमकथा जो कभी प्रकृति की गोद में सांसे ले रही थी, त्रासद रुप से इन्ही फिजाओं में सिमट गई। हरित – नैसर्गिक प्रदेश में पल रहे प्रेम को विकास के ठेकेदार (पूंजीवादी खलनायक) की नज़र लगी । खलनायक को बर्दाश्त नहीं कि मधु उसे ना चाह कर किसी और को महत्त्व दे। वह पूंजीवादी व्यवस्था का प्रतिनिधि है, टिम्बर कंपनी का मालिक होने के नाते प्राकृतिक संपदा एवं भोले-भाले पहाडी संरक्षकों का शोषण करता है । पान राजा जैसे लोग कंपनी अनैतिक नीतियों के विरूध हैं। मधु पान राजा की सुंदर कन्या है, पूंजीवादी पाश से अनभिज्ञ प्रकृति की गोद में उन्मुक्त गुनगुनाती है। मधुमती को बिमल राय की बडी कमर्शियल ‘हिट’ फ़िल्म तौर पर देखा जाता है। हिन्दी सिनेमा में नैसर्गिक पर्यावरण की छ्टा( कैमरे में कैद दिलकश नैसर्गिक नज़ारे।) ‘मधुमती’ से निखर कर आई ।


सम्मान और पुरस्कार


बिमल राय को सर्वश्रेष्ठ निर्देशन के लिए सात बार फ़िल्मफेयर पुरस्कार मिले। इनमें दो बार तो उन्होंने हैट्रिक बनाई। उन्हें 1954 में 'दो बीघा ज़मीन' के लिए पहली बार यह पुरस्कार मिला। इसके बाद 1955 में 'परिणीता', 1956 में 'बिराज बहू' के लिए यह सम्मान मिला। तीन साल के अंतराल के बाद 1959 में 'मधुमती', 1960 में 'सुजाता' और 1961 में 'परख' के लिए उन्हें यह पुरस्कार मिला। इसके अलावा 1964 में 'बंदिनी' के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ निर्देशन का फ़िल्मफेयर का पुरस्कार मिला।


फ़िल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ निर्देशक (सात बार)


o 1954 में दो बीघा ज़मीन के लिए


o 1955 में परिणीता के लिए


o 1956 में बिराज बहू के लिए


o 1959 में मधुमती के लिए


o 1960 में सुजाता के लिए


o 1961 में परख के लिए


o 1964 में बंदिनी के लिए


राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार


o 1954 में योग्यता प्रमाणपत्र (Certificate of Merit) 'दो बीघा ज़मीन'


o 1955 में अखिल भारतीय योग्यता प्रमाणपत्र (All-India Certificate of Merit) 'बिराज बहू'


o 1959 में सर्वश्रेष्ठ हिन्दी फ़िल्म (Best Feature Film in Hindi) 'मधुमती'


o 1960 में अखिल भारतीय योग्यता प्रमाणपत्र (All-India Certificate of Merit) 'सुजाता'


o 1963 में सर्वश्रेष्ठ हिन्दी फ़िल्म (Best Feature Film in Hindi) 'बंदिनी'


निधन


बिमल राय 'चैताली' फ़िल्म पर काम कर ही रहे थे, लेकिन 1966 में 7 जनवरी को मुंबई, महाराष्ट्र में कैंसर के कारण इनका निधन हो गया। बिमल राय भले ही हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उन्होंने फ़िल्मों की जो भव्य विरासत छोड़ी है वह सिनेमा जगत् के लिए हमेशा अनमोल रहेगी।