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कलाकार

जावेद अख्तर जीवनी - Biography of Javed Akhtar in Hindi Jivani

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        राज्यसभा सदस्य जावेद अख्तर एक चर्चित हस्ती हैं. ये शायर, हिंदी फिल्मों के गीतकार और पटकथा लेखक के साथ-साथ सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं. भारत सरकार ने 2007 में जावेद अख्तर को पद्मभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया था. जावेद अख्तर को सर्वश्रेष्ठ गीतकार, डायलाॅग्स और लिरिक्स के लिए कई बार फिल्मफेयर अवाॅर्ड से भी नवाजा गया है. जावेद अख्तर ने ‘दिल चाहता है’, ‘लक्ष्य’ और ‘राॅक आॅन’ में बेटे फरहान के साथ काम किया है.


जन्म 17 जनवरी 1945 को ग्वालियर में हुआ था। वह एक ऐसे परिवार के सदस्य हैं जिसके ज़िक्र के बिना उर्दु साहित्य का इतिहास अधुरा रह जायगा। शायरी तो पीढियों से उनके खून में दौड़ रही है।


पिता जान निसार अखतर प्रसिद्ध प्रगतिशील कवि और माता सफिया अखतर मशहूर उर्दु लेखिका तथा शिक्षिका थीं। ज़ावेदजी प्रगतिशील आंदोलन के एक और सितारे लोकप्रिय कवि मजाज़ के भांजे भी हैं। अपने दौर के प्रसिद्ध शायर मुज़्तर ख़ैराबादी जावेद जी के दादा थे। पर इतना सब होने के बावजूद जावेद का बचपन विस्थापितों सा बीता. छोटी उम्र में ही माँ का आंचल सर से उठ गया और लखनऊ में कुछ समय अपने नाना नानी के घर बिताने के बाद उन्हें अलीगढ अपने खाला के घर भेज दिया गया जहाँ के स्कूल में उनकी शुरूआती पढाई हुई। अपनी आत्मकथा तरकश में कॉल्विन तालुकेदार्स कालेज का जिक्र करते हुये जावेद अख्तर ने लिखा है - ″"मेरा दाख़िला लखनऊ के मशहूर स्कूल कॉल्विन ताल्लुक़ेदार कॉलेज में छटी क्लास में करा दिया जाता है। पहले यहाँ सिर्फ़, ताल्लुक़ेदारों के बेटे पढ़ सकते थे, अब मेरे जैसे कमज़ातों को भी दाख़िला मिल जाता है। अब भी बहुत महँगा स्कूल है।.. मेरी फ़ीस सत्रह रुपये महीना है (यब बात बहुत अच्छी तरह याद है, इसलिए की रोज... जाने दीजिए)। मेरी क्लास में कई बच्चे घड़ी बाँधते हैं। वो सब बहुत अमीर घरों के हैं। ............ मैंने फैसला कर लिया है कि बड़ा होकर अमीर बनूँगा... ″"" वालिद ने दूसरी शादी कर ली और कुछ दिन भोपाल में अपनी सौतेली माँ के घर रहने के बाद भोपाल शहर में उनका जीवन दोस्तों के भरोसे हो गया। यहीं कॉलेज की पढाई पूरी की और जिन्दगी के नए सबक भी सीखे।


करियर  


जावेद ने अपने करियर की शुरुआत फिल्म सरहदी लुटेरा से की थी. इस फिल्म में जावेद क्लैपर ब्वॉय के तौर पर काम कर रहे थे. सेट पर उनकी मुलाकात सलीम खान से हुई जो कि उस फिल्म में छोटी सी भूमिका निभा रहे थे. इस फिल्म के निर्देशक एस.एम. सागर को काफी कोशिशों के बावजूद भी संवाद लेखक नहीं मिल रहा था और उनकी यह तलाश अंत में जावेद पर जाकर खत्म हुई. जावेद जो कि पहले भी कुछ फिल्मों के लिए संवाद लिख चुके थे, उन्होंने तुरंत हां कर दी और इस तरह उनके फिल्मों में लेखन की शुरुआत हो गई. इस फिल्म में साथ काम करते-करते सलीम खान और जावेद की दोस्ती गहरी हो गई. सलीम, जावेद को नए-नए सुझाव दिया करते थे और जावेद उन पर संवाद लिखा करते थे. सलीम को भी लेखन का अनुभव था, वह निर्देशक अबरार अल्वी के सहायक के तौर पर काम करते थे, वहीं जावेद कवि कैफी आजमी के सहायक हुआ करते थे. यह भी एक इत्तेफाक ही था कि अबरार और कैफी पड़ोसी थे और उनके घर लगातार जाते रहने से सलीम और जावेद की दोस्ती पनपने लगी. अकेले सफलता न मिलते देख उन दोनों ने जोड़ी के रूप में काम करना शुरू किया. बस फिर क्या था, यह जोड़ी लगातार सफलता की सीढिय़ा चढ़ती गई. जावेद उर्दू में स्क्रिप्ट लिखते थे और बाद में उसका हिन्दी में रुपांतरण किया जाता था. यह पहली लेखक जोड़ी थी, जिसे स्टार का दर्जा दिया गया.


ज़ंजीर से बदली क़िस्मत


वर्ष 1973 में उनकी मुलाकात निर्माता-निर्देशक प्रकाश मेहरा से हुई जिनके लिए उन्होंने फ़िल्म “ज़ंजीर” के लिए संवाद लिखे। फ़िल्म ज़ंजीर में उनके द्वारा लिखे गए संवाद दर्शकों के बीच इस कदर लोकप्रिय हुए कि पूरे देश में उनकी धूम मच गई। इसके साथ ही फ़िल्म के जरिए फ़िल्म इंडस्ट्री को अमिताभ बच्चन के रूप में सुपर स्टार मिला। इसके बाद जावेद अख़्तर ने सफलता की नई बुलंदियों को छुआ और एक से बढ़कर एक फ़िल्मों के लिए संवाद लिखे। जाने माने निर्माता-निर्देशक रमेश सिप्पी की फ़िल्मों के लिए जावेद अख़्तर ने जबरदस्त संवाद लिखकर उनकी फ़िल्मों को सफल बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके संवाद के कारण ही रमेश सिप्पी की ज्यादातार फ़िल्में आज भी याद की जाती हैं। इन फ़िल्मों में ख़ासकर “सीता और गीता”( 1972), “शोले” (1975), “शान” (1980), “शक्ति” (1982) और “सागर” (1985) जैसी सफल फ़िल्में शामिल हैं। रमेश सिप्पी के अलावा उनके पसंदीदा निर्माता-निर्देशकों में यश चोपड़ा, प्रकाश मेहरा प्रमुख रहे हैं


सम्मान और पुरस्कार


फ़िल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ गीतकार पुरस्कार


वर्ष 1994 में प्रदर्शित फ़िल्म “1942 ए लव स्टोरी” के गीत एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा.. के लिए


वर्ष 1996 में प्रदर्शित फ़िल्म 'पापा कहते हैं' के गीत घर से निकलते ही..(1997) के लिए


फ़िल्म 'बार्डर' के गीत संदेशे आते हैं…2000) के लिए


फ़िल्म 'रिफ्यूजी' के गीत पंछी नदिया पवन के झोंके.. (2001) के लिए


फ़िल्म 'लगान' के सुन मितवा.. (2003) के लिए


 फ़िल्म 'कल हो ना हो' (2004) कल हो ना हो के लिए


फ़िल्म 'वीर जारा' के तेरे लिए…के लिए


नागरिक सम्मान


 पद्मश्री (1999)


 पद्मभूषण (2007)


राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार (सर्वश्रेष्ठ गीतकार)


 वर्ष 1996 में फ़िल्म 'साज'


वर्ष 1997 में 'बार्डर'


वर्ष 1998 में 'गॉड मदर'


वर्ष 2000 में फ़िल्म 'रिफ्यूजी'


 वर्ष 2001 में फ़िल्म 'लगान'