Deoxa Indonesian Channels

lisensi

Advertisement

" />
, 12:45 WIB
प्रेरणादायकसैनिक

मेजर रामास्वामी परमेश्वरन जीवनी - Biography of Ramaswamy Parameshwaran in Hindi Jivani

Advertisement

रामास्वामी परमेश्वरन परमवीर चक्र से सम्मानित भारतीय व्यक्ति है। इन्हे यह सम्मान सन १९८७ मे मरणोपरांत मिला।


13 सितंबर 1946 को जन्मे मेजर रामास्वामी परमेश्वरन ने 1972 में भारतीय सेना में महार रेजीमेंट में प्रवेश किया। श्रीलंका व भारत के बीच हुए अनुबंध के तहत भारतीय शांति सेना में वे श्रीलंका गए। 25 नवंबर 1987 की बात है, जब अपनी बटालियन के साथ एक गांव में गोला-बारूद की सूचना पर वे घेराबंदी के पहुंचे, लेकिन रात के वक्त किए गए इस सर्च ऑपरेशन में वहां कुछ नहीं मिला।


वापसी के समय एक मंदिर की आड़ लेकर दुश्मनों ने सैनिक दल पर फायरिंग शुरू कर दी और उनका सामना तमिल टाइगर्स से हुआ। तभी दुश्मन की एक गोली मेजर रामास्वामी परमेश्वर के सीने में लगी, लेकिन घायल होने के बावजूद मेजर लड़ाई में डटे रहे और बटालियन को निर्देश देते रहे। इस लड़ाई में मेजर के दल ने 6 उग्रवादियों को मार गिराया और गोला-बारूद भी जब्त किया, लेकिन सीने में लगी गोली के कारण वे वीरगति को प्राप्त हो गए। इस बहादुरी के लिए उन्हें परमवीर सम्मान दिया गया।


सैन्य कार्रवाई


25 नवंबर 1 9 87 को, जब मेजर रामस्वामी परमान्स्वरन श्रीलंका में देर रात में खोज अभियान से लौट रहा था, उसके स्तंभ पर आतंकवादियों के एक समूह ने हमला किया। मन की अच्छी उपस्थिति के साथ, उन्होंने पीछे से उग्रवादियों को घेर लिया और उन पर आरोप लगाया, उन्हें पूरी तरह आश्चर्यचकित किया। हाथ से हाथ से निपटने के दौरान, एक आतंकवादी ने उसे छाती में गोली मार दी। निर्विवाद, मेजर परमान्स्वरन ने आतंकवादी से राइफल को छीन लिया और उसे मार डाला। गंभीर रूप से घायल होकर, वह आदेश जारी रखता था और जब तक वह मर गया तब तक उसका आदेश प्रेरित था। पांच आतंकवादी मारे गए और तीन राइफलें और दो रॉकेट लांचर बरामद किए गए और हमला किया गया।


टाइगर्स ऑफ़ तमिल ईलम (LTTE)


      इस IPKF अर्थात् भारतीय शांति सेना ने सभी उग्रवादीयों से हथियार डालने का दवाब वनाया, जिसमें वह काफ़ी हद तक सफल भी हुई लेकिन तमिल ईलम का उग्रवादी संगठन LTTE अर्थात् टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम इस काम में कुटिलता बरत गया। उसने पूरी तरह से हथियार न डाल कर अपनी नीति बदल ली और उन्होंने आत्मघाती दस्तों का गठन करके गोरिल्ला युद्ध शिल्प अपना लिया


ऑपरेशन पवन


इसी शांति सेना की भूमिका में 8 महार बटालियन से मेजर रामास्वामी परमेस्वरन् श्रीलंका पहुँचे थे। उनके साथ 91 इंफेंटरी ब्रिगेड तथा 54 इंफेंटरी डिविजन था और उनके इस लक्ष्य का नाम 'ऑपरेशन पवन' दिया गया था। यह ग्रुप 30 जुलाई, 1987 को ही, यानी अनुबंध होने के अगले ही दिन श्रीलंका पहुँचा था और जाफ़ना पेनिनसुला में तैनात हुआ था वहाँ पहुँचते ही इन्हें कई मोर्चों पर टाइगर्स का सामना करना पड़ा था, जिनमें मरुथनामादास, तथा कंतारोदाई प्रमुख कहे जा सकते हैं। 24 नवम्बर, 1987 को इस बटालियन को, जिसकी अगुवाई मेजर रामास्वामी कर रहे थे, सूचना मिली कि कंतारोताई के एक गाँव में शस्त्र तथा गोलाबारूद का एक जखीरा किसी घर में उतारा गया है। सूचना मिलते ही कैप्टन डी. आर. शर्मा के साथ 20 सैनिकों का एक दल इस सूचना की सत्यता और उससे जुड़े तथ्य पता करने रवाना कर दिया गया। इस गस्ती दल पर, उस संदिग्ध घर के पास एक मन्दिर के परिसर से गोली बरसाई गई जिससे इस दल को भी गोलियां चलानी पड़ीं। उस समय भारत की बटालियन उडूविल में थी। वहाँ इस दल ने सूचना भेजी कि संदिग्य मकान में टाइगर्स का अड्डा है और वहाँ इनकी गिनती हमारे अनुमान से कहीं ज्यादा है। इस सूचना के आधार पर मेजर रामास्वामी तथा 'सी' कम्पनी के कमाण्डर ने यह तय किया कि इस स्थिति का मुकाबला नियोजित ढंग से किया जाना चाहिए। उन्होंने मजबूर गश्ती दल के साथ-साथ साढ़े 8 बजे कैप्टन शर्मा के दल के साथ मिलने के लिए कूच किया ताकि उस संदिग्ध मकान पर कार्यवाही की जा सके। मेजर रामास्वामी का पूरा दल उस मकान के पास रात को डेढ़ बजे 25 नवम्बर 1987 को पहुँच गया। वहाँ कोई हलचल उन्हें नजर नहीं आई, सिवाय इसके कि एक ख़ाली ट्रक घर के पास खड़ा हुआ था।


आईपीकेएफ स्मारक त्रुटि


15 अगस्त 2012 को आर.के. राधाकृष्णन, द हिन्दू के कोलंबो संवाददाता ने आईपीकेएफ ट्रांसक्रिप्शन पर एक गलती की त्रुटि की सूचना दी:


"शिलालेख पढ़ा: आईसी 32 9 7 एफ MAJ। पीआर रामसावमी एमवीसी 25 नवंबर 1987 8 महाराष्ट्र। एमवीसी, भारत की दूसरी सबसे बड़ी सेना सजावट महा वीर चक्र के लिए खड़ा है। कोई भी पहले गलती पर ध्यान नहीं दिया था। इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि पत्थर पर लिखे गए 1200 सैनिकों के नाम और सम्मान सभी सही थे। आजादी के बाद से केवल 21 भारतीयों को पीवीसी के नाम से सम्मानित किया गया है। वह सम्मान दिया गया था। वह एकमात्र महार रेजिमेंट सैनिक भी पीवीसी को सम्मानित करने के लिए भारत की सबसे बड़ी सेना सजावट प्रदान करता है। इसका मतलब 1 9 41 के बाद से एक रेजिमेंट में सक्रिय होना चाहिए। "