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कर्नल होशियार सिंह दहिया, पीवीसी (5 मई 1937 - 6 दिसंबर 1998) का जन्म चौधरी हिरा सिंह को हरियाणा के सोनापत जिले के सिसान गांव में हिंदू जाट परिवार में हुआ था। उन्होंने समर्पण के साथ भारतीय सेना में सेवा की, ब्रिगेडियर के रूप में काम पर रखा। उन्हें भारत के सर्वोच्च सैन्य सम्मान से सम्मानित किया गया
मेजर होशियारसिंह उन वीर सैनिकों में शामिल थे, जिन्हें अपने जीवनकाल में परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। 5 मई 1937 को हरियाणा के सोनीपत में जन्मे मेजर होशियारसिंह ने 1971 में हुए भारत-पाकिस्तान युद्ध में अद्भुत वीरता का प्रदर्शन किया था। होशियार वॉलीवॉल के खिलाड़ी और अपनी राष्ट्रीय स्तर की टीम के कप्तान थे। इस टीम का मैच जाट रेजीमेंटल सेंटर के एक उच्च अधिकारी ने देखा तो होशियार सिंह से वे प्रभावित हुए। इसके बाद 1957 में होशियार सिंह ने सेना की जाट रेजीमेंट में प्रवेश किया और 3 ग्रेनेडियर्स में कमीशन लेने के बाद वे ऑफिसर बन गए।
1965 में पाकिस्तान के खिलाफ जीत को आसान बनाने में होशियार सिंह की दी गई महत्वपूर्ण सूचना का खास योगदान था। 1971 में हुए भारत-पाक युद्ध के अंतिम 2 घंटे पूर्व तक, जब युद्ध विराम की घोषणा की गई और दोनों सेनाएं एक-दूसरे के सैनिकों को खत्म करने का भरसर प्रयास कर रही थीं, तब भी होशियारसिंह घायल अवस्था में भी डटे रहे और लगातार दुश्मन सिपाहियों को एक के बाद एक रास्ते से हटाते रहे। वे लगातार अपने साथियों का हौसला बढ़ाते रहे। मेजर होशियारसिंह की बटालियन जीत दर्ज करा चुकी थी। इसके लिए मेजर सिंह को परमवीर चक्र प्रदान किया गया।
भारत-पाकिस्तान युद्ध
स्वतन्त्र भारत ने अब तक पाँच युद्ध लड़े जिनमें से चार में उसका सामना पाकिस्तान से हुआ। यह युद्ध शुरू भले ही पाकिस्तान ने किया हो, उनका समापन भारत ने किया और विजय का सेहरा उसी के सिर बँधा। इन चार युद्धों में एक युद्ध जो 1971 में लड़ा गया वह महत्त्वपूर्ण कहा जा सकता है क्योंकि इस लड़ाई ने पाकिस्तान को पराजित करके एक ऐसे नए राष्ट्र का उदय किया, जो पाकिस्तान का हिस्सा था और वर्षों से पश्चिम पाकिस्तान की फौजी सत्ता का अन्याय सह रहा था। वही हिस्सा, पूर्वी पाकिस्तान, 1971 के युद्ध के बाद बांग्लादेश बना। जब से पाकिस्तान बना, तब से पश्चिम पाकिस्तान सत्ता का केंद्र बना रहा। वह मुस्लिम बहुल इलाका था। दूसरी ओर पूर्वी पाकिस्तान, पूर्वी बंगाल था जो विभाजन के बाद पाकिस्तान में आ गया था। यह हिस्सा बांग्ला भाषियों से भरा था। इस तरह पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान दो अलग-अलग भाषायों और संस्कृतियों का प्रतिनिधित्व करते थे। इसका नतीजा यह था कि पश्चिम पाकिस्तान की मुस्लिम बहुल सत्ता का व्यवहार, अपने ही देश के एक हिस्से से बेहद अन्यायपूर्णक तथा सौतेला होता था, भले ही देश का हिस्सा ख़ासा वैभव और सम्पदा सरकार को देता था। 7 अगस्त 1970 को हुए पाकिस्तान के चुनाव में जनमत का एक नया चेहरा से सामने आया, जिसमें शेख मुजीबुर्रहमान की पार्टी अवामी लीग ने बेहद भारी बहुमत से जीत हासिल की। स्थिति यह बनी कि आवामी लीग की सरकार सत्ता में आ जाए। इस बात के लिए पश्चिम पाकिस्तान का शासन कतई तैयार नहीं थ। उस समय जुल्फिकार अली भट्टो प्रधानमंत्री थे, तथा याहना खान राष्ट्रपति पद पर बैठे थे। बांग्ला बहुल अवामी लीग की सरकार बनने से रोकने के लिए इन दोनों ने नई विजेता असेंबली के गठन पर बंदिश लगा कर रोक दिया।
मेजर होशियार सिंह एवं उनके साथी
मेजर होशियार सिंह : इसी बटालियन में थे l उन्हें आदेश मिला कि वे अपने साथियों के साथ पाकिस्तान के जरपाल वाली चौकी पर कब्जा करें l जरपाल का यह पाकिस्तानी चौकी बहुत सुरक्षित स्थान पर था और इस चौकी पर पाकिस्तानी सैनिकों की संख्या अधिक थी l होशियार सिंह और उनके साथियों पर लगातार पाकिस्तानी मीडियम मशीनगन से गोलियों की बौछार सहनी पड़ी l स्वयं को बचाते आगे बढ़ रहे थे, सहसा उन्होने अपने चारों तरफ देखा और स्तब्ध रह गए. उनके चारों ओर उनके साथियों के शव ही शव दिखाई पड़ रहा थाl एक क्षण के लिए मेजर होशियार सिंह क्रोध, दुख और भय की स्थिति में थे l परन्तु उन्होनें अपने ऊपर इन सभी का असर पड़ने नहीं दिया l चिन्ता की स्थिति से निपटने की और भय रहित होकर आक्रमण करने के लिए स्वयं को तैयार कर लिया l इतना ही नहीं बल्कि उन्होनें अपने बचे साथियों से भी ज़ोरदर शब्दों में कहा कि वे बहादुरी से लड़ते रहें l मेजर होशियार सिंह ने कहा कि "बहादुर लोग केवल एक बार मरते हैं l तुम्हें युद्ध करना ही है l तुम्हें विजय प्राप्त करनी है l" उनके सैनिकों को उनकी बातों ने प्रेरित किया l इसके बाद तो फिर घमासान युद्ध होने लगा और Dec. 15, 1971 को वे अपने लक्ष्य में सफल हो गए l
परम वीर चक्र सम्मानित
1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान, तीसरे ग्रेनेडीर्स को 15 मार्च, 17, 1971 को शाकगढ़ सेक्टर में बसंतार नदी के किनारे एक पुल का निर्माण करने का कार्य दिया गया था। यह नदी दोनों तरफ गहरी खानों से ढकी हुई थी और अच्छी तरह से संरक्षित थी पाकिस्तानी सेना द्वारा रक्षात्मक रक्षा कमांडर 'सी' कंपनी मेजर होशियार सिंह को जारपाल की पाकिस्तानी इलाके पर कब्जा करने का आदेश दिया गया था। पाकिस्तानी सेना ने प्रतिक्रिया व्यक्त की और तेज मुठभेड़ों में डाल दिया। मेजर होशियार सिंह खाई से चोटी से चले गए, अपनी कमान को प्रेरित करते हुए और अपने लोगों को तेजी से खड़े होने और लड़ने को प्रोत्साहित करते हुए परिणामस्वरूप उनकी कंपनी ने पाकिस्तानी सेना पर भारी हताहत करने वाले सभी हमलों को खारिज कर दिया। गंभीर रूप से घायल होने के बावजूद, मेजर होशियार सिंह ने युद्ध विराम तक खाली करने से इनकार कर दिया। इस ऑपरेशन के दौरान, मेजर होशियार सिंह ने सेना की सर्वोच्च परंपराओं में सबसे विशिष्ट वीरता, अदम्य लड़ भावना और नेतृत्व का प्रदर्शन किया। उनकी बहादुरी और नेतृत्व के लिए उन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।