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सेकेंड लेफ़्टीनेंट राम राघोबा राणे परमवीर चक्र से सम्मानित भारतीय सैनिक हैं। इन्हें यह सम्मान सन् 1948 मे मिला था
राम राघोबा राणे का जन्म 26 जून 1 9 18 को कर्नाटक के धारवाड़ जिले में हावेरी गांव में हुआ था। वह कर्नाटक के उत्तरी कनारा जिले के चेन्डिया गांव से पुलिस कांस्टेबल आर पी। राणे का बेटा था। राणे की प्रारंभिक शिक्षा, ज्यादातर जिला स्कूल में, उनके पिता के लगातार स्थानान्तरण के कारण अराजक थीं। 1 9 30 में, वह असहयोग आंदोलन से प्रभावित हुआ, जो ग्रेट ब्रिटेन से भारतीय स्वतंत्रता के लिए चिंतित था। आंदोलन के साथ उनकी भागीदारी ने अपने पिता को चिंतित कर दिया, जिन्होंने परिवार को वापस चंदिया में अपने पैतृक गांव में ले जाया।
भारतीय सेना में भर्ती
1940 में दूसरा विश्व युद्ध तेज़ी पर था। राघोबा के भीतर भी कुछ जोश भरा जीवन जीने की चाह थी तो उन्होंने भारतीय सेना में जाने का मन बनाया। उनकी इच्छा रंग लाई और 10 जुलाई 1940 को वह बॉम्बे इंजीनियर्स में आ गए। वहाँ इनके उत्साह और दक्षता ने इनके लिए बेहतर मौक़े पैदा किए। यह अपने बैच के 'सर्वोत्तम रिक्रूट' चुने गए। इस पर इन्हें पदोन्नत करके नायक बना दिया गया तथा इन्हें कमांडेंट की छड़ी प्रदान की गई। ट्रेनिंग के बाद राघोबा 26 इंफेंट्री डिवीजन की 28 फील्ड कम्पनी में आ गए। यह कम्पनी बर्मा में जापानियों से लड़ रही थी। बर्मा से लौटते समय राघोषा राणे को दो टुकड़ियों के साथ ही रोक लिया गया और उन्हें यह काम सौंपा गया कि वह बुथिडांग में दुश्मन के गोला बारूद के जखीरे को नष्ट करें और उनकी गाड़ियों को बरबाद कर दें। राघोबा और उनके साथी इस काम को करने में कामयाब हो गए। योजना थी कि इसके बार नेवी के जहाज इन्हें लेकर आगे जाएंगे। दुर्भाग्य से यह योजना सफल नहीं हो पाई और उन लोगों को नदी खुद पार करनी पड़ी। यह एक जोखिम भरा काम था क्योंकि उस नदी पर जापान की जबरदस्त गश्त और चौकसी लगी हुई थी। इसके बावजूद राघोबा और उनके साथी, जापानी दुश्मनों की नज़र से बचते हुए उनको मात देते हुए इस पार आए और इन लोगों ने बाहरी बाज़ार में अपने डिवीजन के पास अपनी हाजिरी दर्ज की। यह एक बेहद हिम्मत तथा सूझबूझ का काम था, जिसके लिए इन्हें तुरंत हवलदार बना दिया गया।
दिसम्बर 1947 में दुश्मन ने झंगर पर कब्ज़ा कर लिया था। 18 मार्च 1948 को देश की आर्मी ने फिर से झंगर पर अपना काबू पा लिया। (मेजर आत्म सिंह की टुकड़ी के राजौरी पहुचने से पहले उन्होंने झंगर को पाकिस्तानी सेना को खदेड़ कर कब्ज़ा कर लिया)
इसी दौरान पाकिस्तानी सेना पीछे हटते हुए राजौरी और पूँछ के बीच के नेशनल हाईवे को नष्ट कर दिया।
रास्ता ना होने के कारण मेजर आत्म सिंह की आर्मी टुकड़ी ने नौशहरा से होकर राजौरी पहुचने की कोशिश की। यह बहुत ही पुराना मुग़ल काल का रास्ता था। 4th डोगरा रेजिमेंट की टुकड़ी ने 8 अप्रैल 1948 को राजौरी में बरवाली रिज पर हमला कर दिया और दुश्मनों को और पीछे खदेड़ दिया। यह जगह नौशहरा से 11 किलो मीटर दूर थी। परन्तु बरवाली के आगे काफ़ी ज्यादा रोड खराब थी साथ ही पाकिस्तानी सेना ने माइन फ़ील्ड्स (बारूदी सुरंग) भी काफ़ी थी, इस कारण भारतीय सेना के वाहनों और टैंक आगे बड़ने में काफ़ी परेशानी हो रही थी।
इस मुश्किल की घड़ी में 2nd लेफ्टिनेंट रमा राघोबा राणे और उनकी 37 असाल्ट फील्ड कंपनी साथ ही 4th डोगरा रेजिमेंट की टुकड़ी ने अधम्ये साहस का परिचय देते हुए 8 अप्रैल को पाकिस्तानी सेना द्वारा लगाई गई माइन फ़ील्ड्स (बारूदी सुरंग) को हटाने का काम शुरू किया। इधर पाकिस्तानी सेना इन पर फायरिंग भी लगातार कर रहे थे। इसमें अपनी सेना के दो सप्पेर्स (combat engineer / a military engineer who lays or detects and disarms mines) मरे गये और रामा राघोबा राणे सहित 5 जने बुरी तरह घायल हो गये।
घायल होने के बाद भी राणे अपने साथियों के साथ मिल कर उस दिन शाम तक बारूदी सुरंगों को हटाने का काम खत्म कर दिया, और सेना के वाहन व टैंकों के लिए आगे बड़ने का रास्ता बना दिया।
परम वीर चक्र
21 अप्रैल 1 9 48 को, रावण के राजौरी के लिए 8 अप्रैल, 1 9 48 को उनके कार्य के लिए परमवीर चक्र का राणे का पुरस्कार राजपत्रित किया गया था। आधिकारिक उद्धरण पढ़ता है:
युद्ध के बाद, 25 जून 1 9 58 को राणे प्रमुख पद के साथ, उनकी सेवानिवृत्ति तक भारतीय सेना में बने रहे। उनके सैन्य कैरियर के दौरान, राणे का पांच बार नामकरण में उल्लेख किया गया था। वह बाद में भारतीय सेना के नागरिक कर्मचारियों के सदस्य के रूप में कार्यरत थे। वह 7 अप्रैल 1 9 71 तक सेना के रोजगार में बने रहे और उस समय उन्होंने कर्मचारियों की संख्या में सेवानिवृत्त हुए। वह 1994 में पुणे में दक्षिणी कमान अस्पताल में मृत्यु हो गई, उसकी पत्नी, तीन बेटों और एक बेटी से बच गया।