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मेजर धनसिंह थापा उन वीर गोरखा नायको में से है , जिन्होंने अपने जीवन को अनुशासन और शौय से भारतवर्ष को अतुलनीय योगदान दिया। 10 जून 1928 को शिमला में पी एस थापा के घर जन्मे धन सिंह ने अगस्त 1949 में भारतीय सेना के 8th गोरखा राईफल्स में कमीशन अधिकारी के रूप में अपनी सेवा प्रारम्भ की । धन सिंह थापा ने सन 1962 के भारत-चीन से युद्ध के दौरान कश्मीर सूबे के लद्दाख भूभाग में चीनी आक्रमणकारी सेना का सामना बहादुरी से किया । लद्दाख के उत्तरी सीमा पर पांगोंग झील के पास सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण चुशूल हवाई पट्टे को चीनी सेना से बचाने के लिए सिरिजाप घाटी में 1/8 गोरखा राईफल्स की कमान सँभालते हुए चीनी कब्ज़े को पीछे खदेड़ने का काम शुरू किया
12 अक्तूबर 1962 को सिरिजाप वन नामक सैन्य चौकी में प्लाटून सी में मेजर धन सिंह थापा ने दुश्मनों से ज़ोरदार युद्ध लड़ा . 20 अक्तूबर 1962 को अलसुबह 6 बजे को एक बार फिर पूरी ताक़त से चीनी सैनिको ने भारी हथियारों जैसे मोर्टार , तोप से सिरिजाप वन चौकी पर ताबड़तोड़ हमला कर दिया । दोनों और से गोलाबारी ढाई घंटे से अधिक चलती रही , भारतीय सेना का संचार तंत्र इस हमले में बुरी तरह नष्ट हो गया , इस हमले में भारतीय सैन्य चौकी पूरी तरह से तबाह हो गई और अनेको जवान शहीद हो गए . साथ ही मारे गए भारतीय सैनिको ने चीनी सेना को भी भारी नुकसान पहुँचाया , यहाँ तक की चीन की तीसरी पंक्ति के टैंको ने भी इस हमले में बड़ी भूमिका निभाई ।
धन सिंह थापा का जन्म पी। एस। थापा को शिमला में, नेपाली माता-पिता से हिमाचल प्रदेश में हुआ था। 28 अगस्त 1 9 4 9 को उन्हें 8 वें गोरखा राइफल्स में नियुक्त किया गया था।
वह चीन-भारतीय युद्ध के दौरान लद्दाख में एक बड़ी कार्रवाई में शामिल था लद्दाख में पैनगॉन्ग झील के उत्तर सिराजप घाटी को चुशुल एयरफील्ड की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण माना गया। क्षेत्र में किसी भी चीनी अतिक्रमण को विफल करने के लिए 1/8 गोरखा राइफल्स ने वहां चौकी लगाई है। मेजर थापा की कमान के तहत 'सी' कंपनी के एक प्लाटून द्वारा 20/2 अक्टूबर, 1 9 62 को चीनी पर हमला करने पर सिरिजीप -1 नामक एक चौकी का आयोजन किया गया था।
06 अक्तूबर, 1 9 62 को 06:00 बजे, चीनी ने सिरोंजैप -1 पद पर तोपखाने का एक बैराज और मोर्टार फायर खोला। गोलीबारी 08:30 तक जारी रही और पूरे क्षेत्र में आग लग गई। कुछ गोले कमांड पोस्ट पर गिर गए और वायरलेस सेट को क्षति पहुंचाई। इसने संचार के पद को बाहर कर दिया। चीनी ने भारी संख्या में हमला किया मेजर थापा और उनके पुरुषों ने हमले को खारिज कर दिया, भारी हताहतों की संख्या बढ़ाई। तोपखाने और मोर्टार फायर के साथ क्षेत्र को गोलाबारी के बाद चीनी ने अधिक संख्या में एक और हमला किया।
मेजर थापा ने एक बार फिर से हमले को खारिज कर दिया, चीनी पर भारी नुकसान पहुंचाया। थोड़ी देर बाद, तीसरे चीनी हमले में पैदल सेना के समर्थन में टैंक शामिल थे रक्षकों को पहले हमलों में पीड़ित हताहतों की संख्या में कमजोर पड़ गए थे, लेकिन गोला-बारूद के चलते ही आयोजित किया गया था।
शत्रु द्वारा बंदी
अब मेजर धनसिंह थापा के पास सिर्फ तीन सैनिक रह गए, बाकी चार हताहत हो गए। उनका यह हाल मेजर धनसिंह थापा के बंकर पर अग्नि बम गिरने से हुआ। इसके साथ ही चीनी फौज ने उस चौकी और बंकर पर कब्जा कर लिया और मेजर धनसिंह थापा शत्रु द्वारा बन्दी बना लिए गए। उसके बाद चीन की फौजों ने तीसरा हमला टैंक के साथ किया। इस बीच नाव लेकर बच निकला नायक रविलाल फिर बटालियन में पहुँचा और उसने सिरी जाप चौकी के पराजित होने, तथा सारे सैनिकों और मेजर धनसिंह थापा के मारे जाने की खबर वहाँ अधिकारियों को दी। उसने बताया कि वहाँ सभी सैनिक और मेजर थापा बहादुरी से, अपनी आखिरी सांस तक लड़े। बटालियन नायक द्वारा दी गई इस खबर को सच मान रही थी, जब कि सच यह नहीं था। मेजर थापा अपने तीन सैनिकों के साथ बंदी बना लिए गए थे। लेकिन भाग्य को अभी भी नया कुछ दिखाना था। पकड़े गए थापा सहित तीन बन्दियों में से राइफल मैन तुलसी राम थापा, चीनी सैनिकों की पकड़ से भाग निकलने में सफल हो गया। वह चार दिनों तक अपनी सूझ-बूझ से चीनी फौजों को चकमा देता रहा और किसी तरह भाग कर छिपता हुआ अपनी बटालियन तक पहुँच पाया। तब उसने मेजर धनसिंह थापा तथा दो अन्य सैनिकों के चीन के युद्धबन्दी हो जाने की सूचना दी, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। मेजर थापा लम्बे समय तक चीन के पास युद्धबन्दी के रूप में यातना झेलते रहे। चीनी प्रशासक उनसे भारतीय सेना के भेद उगलवाने की भरपूर कोशिश करते रहे। वह उन्हें हद दर्जे की यातना देकर तोड़ना चाहते थे, लेकिन यह सम्भव नहीं हुआ। मेजर धनसिंह थापा न तो यातना से डरने वाले व्यक्ति थे, न प्रलोभन से।