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राजा

औरंगज़ेब जीवनी - Biography of Aurangzeb in Hindi Jivani

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        अबुल मुज़फ्फर मुहिउद्दीन मुहम्मद औरंगज़ेब आलमगीर जिसे आमतौर पर औरंगज़ेब या आलमगीर के नाम से जाना जाता था भारत पर राज्य करने वाला छठा मुग़ल शासक था। उसका शासन १६५८ से लेकर १७०७ में उसकी मृत्यु होने तक चला। औरंगज़ेब ने भारतीय उपमहाद्वीप पर आधी सदी से भी ज्यादा समय तक राज्य किया। वो अकबर के बाद सबसे ज्यादा समय तक शासन करने वाला मुग़ल शासक था। अपने जीवनकाल में उसने दक्षिणी भारत में मुग़ल साम्राज्य का विस्तार करने का भरसक प्रयास किया पर उसकी मृत्यु के पश्चात मुग़ल साम्राज्य सिकुड़ने लगा।


        औरंगज़ेब के शासन में मुग़ल साम्राज्य अपने विस्तार के चरमोत्कर्ष पर पहुंचा। वो अपने समय का शायद सबसे धनी और शातिशाली व्यक्ति था जिसने अपने जीवनकाल में दक्षिण भारत में प्राप्त विजयों के जरिये मुग़ल साम्राज्य को साढ़े बारह लाख वर्ग मील में फैलाया और १५ करोड़ लोगों पर शासन किया जो की दुनिया की आबादी का १/४ था। औरंगज़ेब ने पूरे साम्राज्य पर फतवा-ए-आलमगीरी (शरियत या इस्लामी कानून पर आधारित) लागू किया और कुछ समय के लिए गैर-मुस्लिमो पर अतिरिक्त कर भी लगाया। गैर-मुसलमान जनता पर शरियत लागू करने वाला वो पहला मुसलमान शासक था। उसने अनेक हिन्दू धार्मिक स्थलों को नष्ट किया और गुरु तेग बहादुर की हत्या करवा दी।


आरंभीक जीवन :


        औरंगजेब बाबर के खानदान के थे, जिन्हें मुग़ल साम्राज्य का संस्थापक माना जाता है. औरंगजेब के जन्म के समय उनके पिता शाहजहाँ गुजरात के गवर्नर थे. महज 9 साल की उम्र में ही औरंगजेब को उनके दादा जहांगीर द्वारा लाहोर में बंधक बना लिया गया था, इसकी वजह उनके पिता का एक युद्ध में असफल होना था. 2 साल बाद 1628 में जब शाहजहाँ आगरा के राजा घोषित किये गए, तब औरंगजेब व उनके बड़े भाई दारा शिकोह वापस अपने माता पिता के साथ रहने लगे.


        एक बार 1633 में आगरा में कुछ जंगली हाथियों ने हमला बोल दिया, जिससे प्रजा में भगदड़ मच गई, औरंगजेब ने बड़ी बहादुरी से अपनी जान को जोखिम में डाल, इन हाथियों से मुकाबला किया और इन्हें एक कोठरी में बंद किया. यह देख उनके पिता बहुत खुश हुए और उन्हें सोने से तोला और बहादुर की उपाधि दी. औरंगजेब पवित्र जीवन व्यतीत करता था।


        अपने व्यक्तिगत जीवन में वह एक आदर्श व्यक्ति था। वह उन सब दुर्गुणों से सर्वत्र मुक्त था, जो एशिया के राजाओं में सामान्यतः थे। वह यति के जैसा जीवन जीता था। खाने-पीने, वेश-भूषा और जीवन की अन्य सभी-सुविधाओं में वह बेहद संयम बरतता था। प्रशासन के कार्यों में व्यस्त रहते हुए भी वह अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए धार्मिक पुस्तक क़ुरान की नकल करके और टोपियाँ सीकर कुछ पैसा कमाने का समय निकाल लेता था.


        अपनी सूझ बूझ से औरंगजेब अपने पिता के चहिते बन गए थे, महज 18 साल की उम्र में उन्हें 1636 में दक्कन का सूबेदार बनाया गया. 1637 में औरंगजेब ने सफविद की राजकुमारी दिलरास बानू बेगम से निकाह किया, ये औरंगजेब की पहली पत्नी थी. 1644 में औरंगजेब की एक बहन की अचानक म्रत्यु हो गई, इतनी बड़ी बात होने के बावजूद औरंगजेब तुरंत अपने घर आगरा नहीं गए, वे कई हफ्तों बाद घर गए. यह वजह पारिवारिक विवाद का बहुत बड़ा कारण बनी, इस बात से आघात शाहजहाँ ने औरंगजेब को दक्कन के सुबेदारी के पद से हटा दिया.


        28 मई 1633 में जब मुग़ल साम्राज्य युद्ध कर रहा था तभी अचानक एक लड़ाकू हाथी ने उनके शरीर पर प्रहार किया, जिससे उन्हें कई दिनों तक चोटिल रहने के बाद भी वे युद्ध में लड़ते रहे, युद्ध का लगभग पूरा क्षेत्र हाथियों से भरा पड़ा था और लड़ते-लड़ते ही अंत में उन्हें मृत्यु प्राप्त हुई और उनकी इसी बहादुरी से प्रेरित होकर उन्हें बहादुर का शीर्षक दिया गया।अंतिम युद्ध में कमजोर पड़ने के बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी थी। वे मुग़ल साम्राज्य के एक निडर योद्धा थे ।उनका हमेशा से ऐसा मानना था कि अगर आप बिना लड़े ही शत्रु की ताकत देखकर ही हार मान लेते हो तो फिर आपसे बुरा कोई नहीं।


        इसमें संदेह नहीं कि औरंगजेब मुगल सल्तनत के महान सम्राट थे और उनका समय मुग़ल-साम्राज्य की समृध्दि की समृध्दि का स्वर्णिम युग था । औरंगज़ेब के शासन काल में युद्ध-विद्रोह-दमन-चढ़ाई इत्यादि का तांता लगा रहा। पश्चिम में सिक्खों की संख्या और शक्ति में बढ़ोत्तरी हो रही थी। दक्षिण में बीजापुर और गोलकुंडा को अंततः उसने हरा दिया पर इस बीच शिवाजी की मराठा सेना ताकत बढ़ा रही थी । शिवाजी को औरंगज़ेब ने गिरफ़्तार कर लिया पर शिवाजी और सम्भाजी के भाग निकलने पर उसके लिए बेहद फ़िक्र का सबब बन गया। भारत में मराठो ने पुरे देश में अपनी ताकत बढाई शिवाजी की मृत्यु के बाद भी मराठों ने औरंग़जेब को परेशान किया।


बुंदेला का युद्ध :


        15 दिसम्बर 1634, औरंगजेब नें अपनी पहली सेना तैयार की जिसमे कुल 10000 घोड़े और 4000 लोग थे। औरंगजेब कि सेना लाल तम्बुओं का इस्तेमाल करती थी। शाहजहाँ द्वारा बुंदेलखंड भेजी गयी सेना का दायित्व औरंगजेब के हाँथ में रखा गया था। यह युद्ध ओरछा के शासक झुझार सिंह के खिलाफ लड़ा गया और इसमें जुझार सिंह को वहाँ से हटा दिया गया। औरंगजेब का शासन कल दो बराबर भागों में गिर पड़ा लगभग 1680 तक। वह एक मिश्रित हिन्दू-मुस्लिम साम्राज्य का सक्षम मुस्लिम सम्राट था। लोग खासकर उसके बेरहमी स्वभाव कि वजह से उसे पसंद नहीं करते थे परन्तु उसकी ताकत और कौशल के लिए उसे सम्मानित भी किया जा चूका था।


मेवाड़ के प्रति नीति :


        मारवाड़ पर औरंगज़ेब की निगाहें काफ़ी दिन से गड़ी थीं। 20 दिसम्बर, 1678 ई. को ‘जामरुद्र’ में महाराजा यशवंतसिंह की मृत्यु के बाद औरंगज़ेब ने उत्तराधिकारी के अभाव में मुग़ल साम्राज्य का बहुत बड़ा कर्ज़ होने का आरोप लगाकर उसे ‘खालसा’ के अन्तर्गत कर लिया। औरंगज़ेब ने यशवंतसिंह के भतीजे के बेटे इन्द्रसिंह राठौर को उत्तराधिकार शुल्क के रूप में 36 लाख रुपये देने पर जोधपुर का राणा मान लिया। कालान्तर में महाराजा यशवंतसिंह की विधवा से एक पुत्र पैदा हुआ, जिसका नाम अजीत सिंह रखा गया।


        औरंगज़ेब ने यशवंतसिंह के पुत्र और उत्तराधिकारी पृथ्वी सिंह को ज़हर की पोशाक पहनाकर चालाकी से मरवा दिया। औरंगज़ेब ने अजीत सिंह और यशवंतसिंह की रानियों को नूरगढ़ के क़िले में क़ैद करा दिया। औरंगज़ेब की शर्त थी कि, यदि अजीत सिंह इस्लाम धर्म ग्रहण कर ले तो, उसे मारवाड़ सौंप दिया जायगा। राठौर नेता दुर्गादास किसी तरह से अजीत सिंह एवं यशवंतसिंह की विधवाओं को साथ लेकर जोधपुर से भागने में सफल रहा। राठौर दुर्गादास की अपने देश के प्रति निःस्वार्थ भक्ति के लिए कहा जाता है कि, ‘उस स्थिर हृदय को मुग़लों का सोना सत्यपथ से डिगा न सका, मुग़लों के शस्त्र डरा नहीं सके।’


धार्मिक नीति :


• यह कुरान के नियमों का पूर्णत: पालन करता था

• औरंगजेब को जिंदा पीर भी कहा जाता है

• औरंगजेब ने राजपूतों (हिंदुओं में) के अतिरिक्त अन्य किसी हिंदू जाति को पालकी का उपयोग करने तथा अच्छे हथियार रखने पर रोक लगा दी

• इसने इसने भांग का उत्पादन बंद करवा दिया व वेश्याओं को देश से बाहर निकलने को कहा व सती प्रथा पर रोक लगवाई

• औरंगजेब की धार्मिक नीति के विरूध्द सबसे पहले जाटों ने विरोध किया 1669 ई. में स्थानीय जाटों ने गोकुल के नेतृत्व में विद्रोह किया तिलपत के युध्द मे जाट परास्त हो गये


इस्लाम का समर्थक :


• औरंगजेब कट्टर सुन्नी मुसलमान था

• औरंगजेब ने मुद्राओं पर कलमा खुदवाना बंद करवा दिया

• उसने नौरोज त्यौहार मनाना, तुलादान एवं झरोखा दर्शन बंद कर दिया

• उसने दरबार में होली, दीपावली मनाना बंद करवा दिया

• उसने 1679 ई. में हिंदुओं पर पुन: जजिया तथा तीर्थ यात्रा कर लगाया


        औरंगज़ेब के शासन में मुग़ल साम्राज्य अपने विस्तार के चरमोत्कर्ष पर पहुंचा| वो अपने समय का शायद सबसे धनी और शक्तिशाली, शातिर व्यक्ति था, जिसने अपने जीवनकाल में मुग़ल साम्राज्य को साढ़े बारह लाख वर्ग मील में फैलाया और 15 करोड़ लोगों पर शासन किया जो उस समय दुनिया की आबादी का 1/4 भाग था| पूरे हिन्दुस्तान को एक करने वाला अकेला औरंज़ेब ही हुआ उसने अशोक और अकबर से भी बड़ा साम्राज्या विस्तार किया था|


        इतने विशाल साम्राज्य को चलाने के लिए धन की भी ज़रूरत होती है, धन एकत्रित करने के लिए उसको बहुत से कठोर कदम उठाने पड़े थे| पूरे साम्राज्य पर फतवा-ए-आलमगीरी (शरियत या इस्लामी कानून पर आधारित) लागू किया और कुछ समय के लिए गैर-मुस्लिमो पर अतिरिक्त कर भी लगाया| गैर-मुसलमान जनता पर शरियत लागू करने वाला वो पहला मुसलमान शासक था| औरंगज़ेब ने जज़िया कर फिर से आरंभ करवाया, जिसे अक़बर ने खत्म कर दिया था।


मृत्यु :


        औरंगज़ेब के अन्तिम समय में दक्षिण में मराठों का ज़ोर बहुत बढ़ गया था। उन्हें दबाने में शाही सेना को सफलता नहीं मिल रही थी। इसलिए सन् 1683 में औरंगज़ेब स्वयं सेना लेकर दक्षिण गये। वह राजधानी से दूर रहते हुए, अपने शासन−काल के लगभग अंतिम 25 वर्ष तक उसी अभियान में रहे। वही युद्ध के दौरान एक हाथी के प्रहार से चोटिल हो गये। जिससे उन्हें कई दिनों तक चोटिल रहने के बाद भी वे युद्ध में लड़ते रहे, युद्ध का लगभग पूरा क्षेत्र हथियो से भरा पड़ा था और लड़ते-लड़ते ही अंत में 3 मार्च सन् 1707 ई. को मृत्यु हो गई। और उनकी इसी बहादुरी से प्रेरित होकर उन्हें बहादुर का शीर्षक दिया गया। अंतिम युद्ध में कमजोर पड़ने के बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी थी। वे मुगल साम्राज्य के एक निडर योद्धा थे। औरंगजेब इतिहास के सबसे सशक्त और शक्तिशाली राजा माने जाते थे