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अलाउद्दीन खिल्जी (वास्तविक नाम अली गुरशास्प 1296-1316)दिल्ली सल्तनत के खिलजी वंश का दूसरा शासक था। वो एक विजेता था और उसने अपना साम्राज्य दक्षिण में मदुरै तक फैला दिया था। इसके बाद इतना बड़ा भारतीय साम्राज्य अगले तीन सौ सालों तक कोई भी शासक स्थापित नहीं कर पाया था। वह अपने मेवाड चित्तौड़ के विजय अभियान के बारे में भी प्रसिद्ध है। ऐसा माना जाता है कि अवधी में मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा लिखे पद्मावत में वर्णित रानी पद्मावती की सुन्दरता पर मोहित था।
उसके समय में उत्तर पूर्व से मंगोल आक्रमण भी हुए। उसने उसका भी डटकर सामना किया। अलाउद्दीन ख़िलजी के बचपन का नाम अली 'गुरशास्प' था। जलालुद्दीन ख़िलजी के तख्त पर बैठने के बाद उसे 'अमीर-ए-तुजुक' का पद मिला। मलिक छज्जू के विद्रोह को दबाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने के कारण जलालुद्दीन ने उसे कड़ा-मनिकपुर की सूबेदारी सौंप दी। भिलसा, चंदेरी एवं देवगिरि के सफल अभियानों से प्राप्त अपार धन ने उसकी स्थिति और मज़बूत कर दी।
इस प्रकार उत्कर्ष पर पहुँचे अलाउद्दीन ख़िलजी ने अपने चाचा जलालुद्दीन की हत्या धोखे से 22 अक्टूबर 1296 को खुद से गले मिलते समय अपने दो सैनिकों (मुहम्मद सलीम तथा इख़्तियारुद्दीन हूद) द्वारा करवा दी। इस प्रकार उसने अपने सगे चाचा जो उसे अपने औलाद की भांति प्रेम करता था के साथ विश्वास घात कर खुद को सुल्तान घोषित कर दिया और दिल्ली में स्थित बलबन के लाल महल में अपना राज्याभिषेक 22 अक्टूबर 1296 को सम्पन्न करवाया।
अलाउद्दीन की शिक्षा समुचित नहीं हो पायी, किन्तु उसने युद्धकला और सैनिक शिक्षा प्राप्त की थी । सुलतान जलालुद्दीन ने अलाउद्दीन द्वारा मलिक छज्जू के विद्रोह का दमन करने से प्रसन्न होकर उसे अपना हाकिम नियुक्त किया । अलाउद्दीन दिल्ली का सुलतान होने की महत्त्वाकांक्षा लिये हुए था । 1292 में उसने भेलसा {विदिशा} पर आक्रमण किया । वहां के मन्दिर, भवन व बाजारों तथा धनवानों को निर्ममतापूर्वक लूटकर अपार सम्पत्ति लेकर लौटा, तो सुलतान ने प्रसन्न होकर उसे अरज ए मुमालिक की उपाधि प्रदान की और अवध प्रदेश भी दे दिया ।
प्रशासनिक दृष्टि से सफल होकर वह पारिवारिक जीवन में परेशानियों से घिरा रहा । जलालुद्दीन की पुत्री, जो उसकी पत्नी थी, वह अपने पद एवं प्रभाव के कारण उस पर रौब जमाया करती थी । वह अलाउद्दीन द्वारा दूसरी पत्नी माहरू पर अधिक प्रेम प्रकट करने पर उससे ईर्ष्या करती थी । अलाउद्दीन की सास भी अपने दामाद से नाखुश थी और उस पर कड़ी नजर रखती थी । इधर जलालुद्दीन का प्रभाव कम हो रहा था और अलाउद्दीन का प्रभाव बढ़ रहा था ।
वे एक महत्व्कंशी और युद्धोंतेजक शासक थे। अलाउद्दीन खुद को “दूसरा एलेग्जेंडर” कहते थे। उन्हें “सिकंदर-ए-शाही” का औधा (की उपाधि) भी दिया गया था। अपने साम्राज्य में उन्होंने खुले में मदिरा के सेवन करने पर प्रतिबन्ध लगा दिया था। 1308 में अलाउद्दीन ने अपने सहायक मलिक काफूर को दक्षिण के अभियान पर भेजा, जिसका मुख्य उद्देश्य कृष्णा नदी के दक्षिण पर स्थापित होयसला साम्राज्य के वरंगल को हासिल करना और दक्षिण में मदुरा के व्यापार को बढ़ाना था। 1311 में मलिक काफूर दिल्ली वापिस आया। लेकिन इसके कुछ ही समय बाद 1316 में सुल्तान की मौत हो गयी। कहा जाता है की चित्तोड़ की रानी पद्मिनी को पाने के लिए उन्होंने 1303 CE में चित्तोड़ पर आक्रमण किया था। इस युद्ध का लेखक मलिक मुहम्मद जायसी ने अवधी भाषा में 1540 में अपनी कविता पद्मावत में उल्लेख किया है।
सबसे पहले खिलजी को सुल्तान जलालुद्दीन फिरुज के दरबार में आमिर-आई-तुजुक बनाया गया. 1291 में मालिक छज्जू ने सुल्तान के राज्य में विद्रोह कर दिया, इस समस्या को अलाउद्दीन ने बहुत अच्छे से संभाला, जिसके बाद उसे कारा का राज्यपाल बना दिया गया. 1292 में भिलसा में जीत के बाद सुल्तान ने अलाउद्दीन को अवध प्रान्त भी दे दिया. अलाउद्दीन ने सुल्तान से विश्वासघात करते हुए, उन्हें मार डाला और दिल्ली के सुल्तान की राजगद्दी में विराजमान हो गए. अपने चाचा को मारकर दिल्ली की गद्दी में बैठने के बावजूद, उसे 2 सालों तक कुछ विद्रोहीयों का सामना करना पड़ा. इस समस्या का सामना खिलजी ने पूरी ताकत के साथ किया.
1296 से 1308 के बीच मंगोल लगातार दिल्ली पर अपना कब्ज़ा करने के लिए, बार बार अलग अलग शासकों द्वारा हमला करते रहे. अलाउद्दीन ने जालंधर (1296), किली (1299), अमरोहा (1305) एवं रवि (1306) की लड़ाई में मंगोलियों के खिलाफ सफलता प्राप्त की. बहुत सारे मंगोल दिल्ली के आस पास ही बस गए और इस्लाम धर्म को अपना लिया. इन्हें नए मुस्लमान कहा गया. खिलजी को उन पर विश्वास नहीं था, वो इसे मंगोलियों की एक साजिश का हिस्सा मानता था. अपने साम्राज्य को बचाने के लिए खिलजी ने 1298 में एक दिन उन सभी मंगोलियों जो लगभग 30 हजार के तादाद में थे, मार डाला. जिसके बाद उन सभी के पत्नी और बच्चों को अपना गुलाम बना लिया.
अल्लाउद्दीन की अगली मुख्य चढ़ाई रणथम्बोर में हम्मीर देवा के खिलाफ थी, जिसने अल्लाउदीन के बाग़ी सेनानायक मुहम्मद शाह को पनाह दी थी। 1299 में एक असफल प्रयास के बाद, 1301 ईसवी में अलाउद्दीन ने किले और हम्मीर के खिलाफ स्वयं एक विजयी अभियान का नेतृत्व किया, जिसमे हम्मीर को उसी के सेनानायकों रतिपाल और रणमल ने धोखा दिया। साथ ही साथ, 1297 से 1305 ईस्वी में खिलजी वंश ने सफलतापूर्वक कई मंगोल हमलों को नाकाम किया, लेकिन 1299 ईस्वी में जफर खान नमक एक समर्पित सेनानायक को खो दिया, जिसकी वीरता निष्कलंक थी।
1303 ईसवी गवाह थी रानी पद्मिनी में अपनी दिलचस्पी की वजह से अल्लाउद्दीन के लड़ाई में संलग्न होने की, जिसके फलस्वरूप रानी की पति और तत्कालीन चित्तौड़ के शासक राणा रतन सिंह की हार हुई। तदुपरांत अल्लाउद्दीन ने 1305 में मालवा और 1308 में राजस्थान के सिवाना किले सहित उत्तर में कई साम्राज्यों पर कब्ज़ा किया। इस प्रकार, अपने साम्राज्य के विस्तार की चाह के साथ, खिलजी ने दक्षिण का रुख किया। अपने सेनानायक मालिक काफूर की सहायता से खिलजी ने आगे प्रस्थान किया। प्रायद्वीपीय भारत गवाह रहा मदुरै के विनाश का, 1310 ईसवी में द्वारासमुद्र के होयसला साम्राज्य और 1311 ईसवी में पंड्या साम्राज्य पर आक्रमण का और साथ ही साथ 1313 ईस्वी में दिल्ली के लिए देवगिरी अनुबंध का।
तख्तापलट के इस काम में मुहम्मद शाह ने उसक काफी साथ दिया था और इसके लिए उसे इनाम भी मिला था | अलाउदीन खिलजी ने उसे अपने हरम में आने की इजाजत दे दी थी | मुहम्मद शाह ने इस मौके का फायदा उठाकर उसने अलाउदीन की बेवफा बेगम चिमना से अपने रिशत बढ़ा लिए | इस जोड़ी ने मिलकर अलाउदीन खिलजी की हत्या की साजिश रची ताकि वो दोनों खुद सुल्तान और बेगम बन सके | अलाउदीन को उनकी इस साजिश का पता चल गया और मुहम्मद शाह अपने भाई के साथ दिल्ली भाग गया |
मुहम्मद शाह ने उसके बाद रणथम्भोर के राजपूत राजा हम्मीर देव के यहा शरण ले ली जिसके कारण अलाउदीन की नजरे हम्मीर देव पर पड़ गयी | रणथम्भोर के किले पर धावा बोल दिया गया और बनास नदी के किनारे अलाउदीन और हम्मीर देव की सेना के बीच संग्राम हुआ जिसमे राजपूत सेना विजयी हुयी लेकिन अचानक किसी तरह से हम्मीर देव की सेना बिखर गयी थी इसका कारण था सेनापति गुर्दन सैनी की प्रधान के साथ आपसी कलह के कारण सेनापति ने प्रधान की जानबुझकर हत्या कर दी |
अलाउद्दीन ने ही घोडो को दागने की तथा सैनिको का हुलिया रखने की प्रणाली चलाई वह प्रत्येक सैनिक को 234 टंका प्रतिवर्ष देता था. अलाउद्दीन ने पुलिस व्यवस्था को ठोस रुप संगठित किया पुलिस का मुख्य अधिकारी कोतवाल कहलाता था. अलाउद्दीन ने कर प्रणाली मे सुधार किये व मकान पर तथा चराई पर कर लगाये इसने दोआब गंगा यमुना के मध्य के क्षेत्र पर कर की बृद्धि की किसानो को उपज के 50% लगान के रुप मे देने का आदेश दिया. युध्द से प्राप्त धन साम्रगी जिसे गनिमा या खम्स कहा जाता है उसको राज्य के लिए 80% व सैनिको के लिए 20%निर्धारित किया इससे पहले खम्स राज्य के लिए 20% और सैनिको के लिए 80% होता था.
अलाउद्दीन ने कुछ कर्मचारी नियुक्त किये गुप्तचर विभाग का अधिकारी जिसे ‘बरीद-ए-‘ममालिक’ कहा जाता था दूसरा ‘हरकार्य’ था जिसे शहर मे नियुक्त किया जाता था तीसरा ‘मुनहियन’ या ‘वमुन्ही’ जो सूचना देता था. अलाउद्दीन ने लगान वसूली के कार्यो के दोषों को दूर करने के लिए नए विभाग दीवान-ए-मुस्तखराज की स्थापना की. अलाउद्दीन खिलजी ने डाक व्यवस्था का भी प्रारम्भ किया तथा राशनिंग प्रणाली भी प्रारम्भ की. अलाउद्दीन ने दिल्ली में अलाई दरवाजा, सीरी का किला, हौसखास, जमातखाना मस्जिद आदि का निर्माण कराया. अलाउद्दीन ने ‘यामिन-उल-खिलाफत-अमीर-उल-मोमिनीन, अमीर-ए-तुनुक, सिकंदर-ए-सानी की उपाधि ग्रहण की व उसे विश्व का सुल्तान, युग का विजेता, जनता का चरवाहा जैसी उपाधिया भी दी गई.
अलाउद्दीन खिलजी ने सफलतापूर्वक मंगोलों के आक्रमण का सामना किया. मंगोलों ने कुतलुग ख्वाजा जोकि कुबलाई खान का पोता था ने करीब 200000 लाख की सेना के साथ दिल्ली सल्तनत पर आक्रमण किया. अलाउद्दीन खिलज़ी मंगोलों से सीरी दुर्ग के पास मिला और युद्ध के मैदान में मंगोलों से मुलाकात की और आसानी से उन्हें हरा दिया. इसके अलावा मंगोलों के और भी आक्रमण तर्घी के नेतृत्व में हुए. हालांकि, मंगोलों को प्रत्येक बार पराजय का सामना करना पड़ा लेकिन उन्होंने अपने हमले को जारी रखा. अन्य मंगोल आक्रमण मंगोल सेनापति किबाक, इक़बाल मंद खान और तार्ताक के नेतृत्व में हुए लेकिन अलाउद्दीन खिलज़ी के लौह नीति ने उनकी प्रत्येक इच्छा को नेस्तनाबूत कर दिया.
अलाउद्दीन खिलजी के मंगोलों के प्रति कठोर नीति ने उनके उत्साह और हिम्मत को नष्ट कर दिया. अलाउद्दीन ने अपने शासन के दौरान कुछ बिंदुओ पर, हज़रत मुहम्मद की नकल करने का प्रयास किया था और एक नए धर्म की स्थापना की भी कोशिश की थी. उसने अपने विजय अभियानों के माध्यम से दूसरा सिकंदर बनने का भी प्रयास किया था और प्रत्येक मुशलमानो से नमाज़ में अपने नाम को शामिल करने का निर्देश भी दिया था. अलाउद्दीन एक महान युद्ध विजेता था. इसलिए, उसके विजय अभियानो पर एक नजर डालनी अत्यावश्यक है