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राजा

बाबर जीवनी - Biography of Babur in Hindi Jivani

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        ज़हिर उद-दिन मुहम्मद बाबर जो बाबर के नाम से प्रसिद्ध हुआ, एक मुगल शासक था जिसका मूल मध्य एशिया था। वह भारत में मुगल वंश का संस्थापक था। वो तैमूर लंग का परपोता था और विश्वास रखता था कि चंगेज़ ख़ान उसके वंश का पूर्वज था। मुबईयान नामक पद्य शैली का जन्मदाता बाबर को माना जाता है!


आरंभिक जीवन :


        बाबर का जन्म फ़रगना घाटी के अन्दीझ़ान नामक शहर में हुआ था जो अब उज्बेकिस्तान में है। वो अपने पिता उमर शेख़ मिर्ज़ा, जो फरगना घाटी के शासक थे तथा जिसको उसने एक ठिगने कद के तगड़े जिस्म, मांसल चेहरे तथा गोल दाढ़ी वाले व्यक्ति के रूप में वर्णित किया है, तथा माता कुतलुग निगार खानम का ज्येष्ठ पुत्र था।


        हालाँकि बाबर का मूल मंगोलिया के बर्लास कबीले से सम्बन्धित था पर उस कबीले के लोगों पर फारसी तथा तुर्क जनजीवन का बहुत असर रहा था, वे इस्लाम में परिवर्तित हुए तथा उन्होने तुर्केस्तान को अपना वासस्थान बनाया। बाबर की मातृभाषा चग़ताई भाषा थी पर फ़ारसी, जो उस समय उस स्थान की आम बोलचाल की भाषा थी, में भी वो प्रवीण था। उसने चगताई में बाबरनामा के नाम से अपनी जीवनी लिखी।


        14 फ़रवरी, 1483 ई. को फ़रग़ना में 'ज़हीरुद्दीन मुहम्मद बाबर' का जन्म हुआ। बाबर अपने पिता की ओर से तैमूर का पाँचवा एवं माता की ओर से चंगेज़ ख़ाँ (मंगोल नेता) का चौदहवाँ वंशज था। उसका परिवार तुर्की जाति के 'चग़ताई वंश' के अन्तर्गत आता था। बाबर अपने पिता 'उमर शेख़ मिर्ज़ा' की मृत्यु के बाद 11 वर्ष की आयु में शासक बना।


        उसने अपना राज्याभिषेक अपनी दादी ‘ऐसान दौलत बेगम’ के सहयोग से करवाया। बाबर ने अपने फ़रग़ना के शासन काल में 1501 ई. में समरकन्द पर अधिकार किया, जो मात्र आठ महीने तक ही उसके क़ब्ज़े में रहा। 1504 ई. में क़ाबुल विजय के उपरांत बाबर ने अपने पूर्वजों द्वारा धारण की गई उपाधि ‘मिर्ज़ा’ का त्याग कर नई उपाधि ‘पादशाह’ धारण की।


        बाबर पर अपने परिवार की ज़िम्मेदारी बहुत कम उम्र में ही आ गई थी| अपने पैतृक स्थान फरगना को वे जीत तो गए थे, लेकिन ज्यादा दिन तक वहां राज नहीं कर पाए, वे इसे कुछ ही दिनों में हार गए| जिसके बाद उसे बहुत कठिन समय देखना पड़ा, और उन्होंने बहुत मुश्किल से जीवन यापन किया| लेकिन इस मुश्किल समय में भी वे उनके कुछ वफादारों ने उनका साथ नहीं छोड़ा|


        कुछ सालों बाद जब उसके दुश्मन एक दुसरे से दुश्मनी निभा रहे थे, तब इस बात का फायदा बाबर ने उठाया और वे 1502 में अफगानिस्तान के काबुल को जीत लिए| इसके साथ ही उन्होंने अपना पैतृक स्थान फरगना व समरकंद को भी जीत लिया| बाबर की 11 बेगम थी, जिससे उसको 20 बच्चे हुए थे| बाबर का पहला बेटा हुमायूँ था, जिसे उसने अपना उत्तराधिकारी बनाया था|


        बाबर का भारत के विरुद्व किया गया प्रथम अभियान 1519 ई. में 'युसूफजाई' जाति के विरुद्ध था। इस अभियान में बाबर ने ‘बाजौर’ और ‘भेरा’ को अपने अधिकार में किया। यह बाबर का प्रथम भारतीय अभियान था, जिसमें उसने तोपखाने का प्रयोग किया था। 1519 ई. के अपने दूसरे अभियान में बाबर ने ‘बाजौर’ और ‘भेरा’ को पुनः जीता साथ ही ‘स्यालकोट’ एवं ‘सैय्यदपुर’ को भी अपने अधिकार में कर लिया।


        1524 ई. के चौथे अभियान के अन्तर्गत इब्राहीम लोदी एवं दौलत ख़ाँ लोदी के मध्य मतभेद हो जाने के कारण दौलत ख़ाँ, जो उस समय लाहौर का गवर्नर था, ने पुत्र दिलावर ख़ाँ एवं आलम ख़ाँ (बहलोल ख़ाँ का पुत्र) को बाबर को भारत पर आक्रमण करने के लिए आमंत्रित करने के लिए भेजा। सम्भवतः इसी समय राणा सांगा ने भी बाबर को भारत पर आक्रमण करने के लिए निमत्रंण भेजा था।


पानीपत की लड़ाई :


        आलम खान और दौलत खान ने बाबर को पानिपत की लड़ाई के लिए बुलाया था| बाबर ने लड़ाई में जाने से पहले 4 बार पूरी जांच पड़ताल की थी| इसी दौरान कुछ गुस्से में बैठे अफगानी लोगों ने बाबर को अफगान में आक्रमण करने के लिए बुलाया| मेवार के राजा राना संग्राम सिंह ने भी बाबर को इब्राहीम लोधी के खिलाफ खड़े होने के लिए बोला, क्यूंकि राना जी की इब्राहीम से पुराणी रंजिश थी| इन्ही सब के चलते बाबर ने पानीपथ में इब्राहीम लोधी को युध्य के लिए ललकारा|


        अप्रैल 1526 में बाबर पानीपत की लड़ाई जीत गया, अपने को हारता देख इस युद्ध में इब्राहीम लोधी ने खुद को मार डाला | सबको ये लगा था कि बाबर इस लड़ाई के बाद भारत छोड़ देगा लेकिन इसका उल्टा हुआ| बाबर ने भारत में ही अपना साम्राज्य फ़ैलाने की ठान ली| भारत के इतिहास में बाबर की जीत पानीपत की पहली जीत कहलाती है इसे दिल्ली की भी जीत माना गया| इस जीत ने भारतीय राजनीती को पूरी तरह से बदल दिया, साथ ही मुगलों के लिए भी ये बहुत बड़ी जीत साबित हुई|


        बादशाह की उपाधि इससे पहले किसी तैमूर शासक ने धारण नहीं की थी. बाबर ने भारत पर पहला आक्रमण 1519 ई० में युसूफ जाई जाति के विरुद्ध था. बाबर ने भारत पर पॉच बार आक्रमण किया था. बाबर काेे भारत पर आक्रमण करने का निमंत्रण पंजाब के शासक दौलत खॉ लोदी एवं मेवाड के शासक राणा सॉगा ने दिया था. पानीपत की पहली लडाई 21 अप्रैल 1526 ई० बाबर और इब्रा्हीम लोदी केे बीच लडी गयी थी. इस लडाई में दो प्रमुख तोप निशानेबाज उस्‍ताद अली एवं मुस्‍तफा ने भाग लिया था.


        बाबर को अपनी उदारता के कारण कलन्‍दर की उपाधि दी गई थी. बाबर दिल्‍ली की राजगद्दी पर 27 अप्रैल 1526 को बैठा था. बाबर ओर राणा सांगा के बीच खानवा की लडाई 16 मार्च 1527 ई० को हुई थी. इस लडाई काेे जीतने के बाद बाबर ने गाजी की उपाधि धारण की थी. बाबर को मोदिनी राय के बीच लडाई 20 जनवरी 1528 ई० को हुई थी. बाबर की मातृभाषा तुर्की थी. बाबर द्वारा लिखित आत्‍मकथा का नाम तुजुक-ए-बाबरी है.


        यह आत्‍मकथा तुर्की भाषा में लिखी गई थी.इस आत्‍मकथा को अब्‍दुल रहीम खानखाना ने फारसी भाषा में अनुुवाद किया था.बाबर की मृत्‍यु 48 बर्ष की आयुु में 26 दिसम्‍बर 1530 ई० को आगरा में हुई थी. बाबर के शव काेे प्रारम्‍भ में आगरा के आरामबाग में दफनाया गया बाद मेंं काबुल में उसके उसके द्वारा चुने हुऐ स्‍थान पर दफनाया गया था. बाबर को मुबईयान नामक पद्य शैली का जन्‍मदाता माना जाता है. बाबर के चार पुत्र थे - 1-हुमायूॅ 2-कानरान 3-असकरी 4-हिन्‍दाल.


        प्रारंभिक 1500 के आसपास तैमूरी राजवंश के राजकुमार बाबर के द्वारा उमैरिड्स साम्राज्य के नींव की स्थापना हुई, जब उन्होंने दोआब पर कब्जा किया और खोरासन के पूर्वी क्षेत्र द्वारा सिंध के उपजाऊ क्षेत्र और इन्डस नदी के निचले घाटी को नियंत्रित किया। 1526 में, बाबर ने दिल्ली के सुल्तानों में आखिरी सुलतान, इब्राहिम शाह लोदी, को पानीपत के पहले युद्ध में हराया। अपने नए राज्य की स्थापना को सुरक्षित करने के लिए, बाबर को खानवा के युद्ध में राजपूत संधि का सामना करना पड़ा जो चित्तौड़ के राणा साँगा के नेतृत्व में था।


        विरोधियों से काफी ज़्यादा छोटी सेना द्वारा हासिल की गई, तुर्क की प्रारंभिक सैन्य सफलताओं को उनकी एकता, गतिशीलता, घुड़सवार धनुर्धारियों और तोपखाने के इस्तेमाल में विशेषता के लिए ठहराया गया है। 1530 में बाबर के बेटे हुमायूँ उत्तराधिकारी बने लेकिन पश्तून शेर शाह सूरी के हाथों प्रमुख उलट-फेर सहे और नए साम्राज्य के अधिकाँश भाग को क्षेत्रीय राज्य से आगे बढ़ने से पहले ही प्रभावी रूप से हार गए। 1540 से हुमायूं एक निर्वासित शासक बने, 1554 में साफाविद दरबार में पहुँचे जबकि अभी भी कुछ किले और छोटे क्षेत्र उनकी सेना द्वारा नियंत्रित थे।


         लेकिन शेर शाह सूरी के निधन के बाद जब पश्तून अव्यवस्था में गिर गया, तब हुमायूं एक मिश्रित सेना के साथ लौटे, अधिक सैनिकों को बटोरा और 1555 में दिल्ली को पुनः जीतने में कामयाब रहे। हुमायूं ने अपनी पत्नी के साथ मकरन के खुरदुरे इलाकों को पार किया, लेकिन यात्रा की निष्ठुरता से बचाने के लिए अपने शिशु बेटे जलालुद्दीन को पीछे छोड़ गए। जलालुद्दीन को बाद के वर्षों में अकबर के नाम से बेहतर जाना गया।


        बाबर ने भारत पर पहला आक्रमण 1519 ई० में युसूफ जाई जाति के विरुद्ध था. बाबर ने भारत पर पॉच बार आक्रमण किया था. बाबर काेे भारत पर आक्रमण करने का निमंत्रण पंजाब के शासक दौलत खॉ लोदी एवं मेवाड के शासक राणा सॉगा ने दिया था. पानीपत की पहली लडाई 21 अप्रैल 1526 ई० बाबर और इब्रा्हीम लोदी केे बीच लडी गयी थी.


        इस लडाई में दो प्रमुख तोप निशानेबाज उस्‍ताद अली एवं मुस्‍तफा ने भाग लिया था. बाबर को अपनी उदारता के कारण कलन्‍दर की उपाधि दी गई थी. बाबर दिल्‍ली की राजगद्दी पर 27 अप्रैल 1526 को बैठा था. बाबर ओर राणा सांगा के बीच खानवा की लडाई 16 मार्च 1527 ई० को हुई थी. इस लडाई काेे जीतने के बाद बाबर ने गाजी की उपाधि धारण की थी. बाबर को मोदिनी राय के बीच लडाई 20 जनवरी 1528 ई० को हुई थी. बाबर की मातृभाषा तुर्की थी.


        बाबर द्वारा लिखित आत्‍मकथा का नाम तुजुक-ए-बाबरी है. यह आत्‍मकथा तुर्की भाषा में लिखी गई थी. इस आत्‍मकथा को अब्‍दुल रहीम खानखाना ने फारसी भाषा में अनुुवाद किया था. बाबर की मृत्‍यु 48 बर्ष की आयुु में 26 दिसम्‍बर 1530 ई० को आगरा में हुई थी. बाबर के शव काेे प्रारम्‍भ में आगरा के आरामबाग में दफनाया गया बाद मेंं काबुल में उसके उसके द्वारा चुने हुऐ स्‍थान पर दफनाया गया था.


मृत्यु :


        उन्होंने अपनी मृत्यु से पहले अपने आप को पंजाब, दिल्ली और गंगा के मैदानों के साथ साथ बिहार का भी शासक बना दिया था। उन्होंने भारत के जीवंत वर्णन के ऊपर एक आत्मकथा लिखी थी। यह तुज़ुक-ऐ-बाबरी के रूप में जाना जाती है और इसको तुर्की भाषा में लिखा गया है। इनकी 26 दिसम्बर 1530 में मृत्यु हो गई थी और इनके बाद इनका बेटा बेटे हुमायूं दिल्ली के सिंहासन पर विराजमान हो गया था।