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पतञ्जलि योगसूत्र के रचनाकार है जो हिन्दुओं के छः दर्शनों में से एक है। भारतीय साहित्य में पतञ्जलि के लिखे हुए ३ मुख्य ग्रन्थ मिलते हैः योगसूत्र, अष्टाध्यायी पर भाष्य और आयुर्वेद पर ग्रन्थ। कुछ विद्वानों का मत है कि ये तीनों ग्रन्थ एक ही व्यक्ति ने लिखे; अन्य की धारणा है कि ये विभिन्न व्यक्तियों की कृतियाँ हैं। पतञ्जलि ने पाणिनि के अष्टाध्यायी पर अपनी टीका लिखी जिसे महाभाष्य का नाम दिया (महा+भाष्य (समीक्षा, टिप्पणी, विवेचना, आलोचना))। इनका काल कोई २०० ई पू माना जाता है।
पतञ्जलि काशी में ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी में विद्यमान थे। इनका जन्म गोनार्ध (गोण्डा, उत्तर प्रदेश) में हुआ था पर ये काशी में नागकूप पर बस गये थे। ये व्याकरणाचार्य पाणिनी के शिष्य थे। काशीवासी आज भी श्रावण कृष्ण ५, नागपंचमी को छोटे गुरु का, बड़े गुरु का नाग लो भाई नाग लो कहकर नाग के चित्र बाँटते हैं क्योंकि पतञ्जलि को शेषनाग का अवतार माना जाता है।
भारतीय दर्शन साहित्य में पातंजलि के लिखे हुए 3 प्रमुख ग्रन्थ मिलते है- योगसूत्र, अष्टाध्यायी पर भाष्य और आयुर्वेद पर ग्रन्थ। विद्वानों में इन ग्रथों के लेखक को लेकर मतभेद हैं कुछ मानते हैं कि तीनों ग्रन्थ एक ही व्यक्ति ने लिखे, अन्य की धारणा है कि ये विभिन्न व्यक्तियों की कृतियाँ हैं।
पतंजलि ने पाणिनी के अष्टाध्यायी पर अपनी टीका लिखी जिसे महाभाष्य कहा जाता है। इनका काल लगभग 200 ईपू माना जाता है। पतंजलि ने इस ग्रंथ की रचना कर पाणिनी के व्याकरण की प्रामाणिकता पर अंतिम मोहर लगा दी थी। महाभाष्य व्याकरण का ग्रंथ होने के साथ-साथ तत्कालीन समाज का विश्वकोश भी है।
पतंजलि एक महान चकित्सक थे और इन्हें ही कुछ विद्वान 'चरक संहिता' का प्रणेता भी मानते हैं। पतंजलि रसायन विद्या के विशिष्ट आचार्य थे- अभ्रक, विंदास, धातुयोग और लौहशास्त्र इनकी देन है। पतंजलि संभवत: पुष्यमित्र शुंग (195-142 ईपू) के शासनकाल में थे। राजा भोज ने इन्हें तन के साथ मन का भी चिकित्सक कहा है।
द्रविड़ देश के सुकवि रामचन्द्र दीक्षित ने अपने 'पतंजलि चरित' नामक काव्य ग्रंथ में उनके चरित्र के संबंध में कुछ नए तथ्यों की संभावनाओं को व्यक्त किया है। उनके अनुसार शंकराचार्य के दादागुरु आचार्य गौड़पाद पतंजलि के शिष्य थे किंतु तथ्यों से यह बात पुष्ट नहीं होती है।
पतंजलि एक महान नर्तक थे, वे भारतीय नर्तकों द्वारा उनके संरक्षक के रूप में पूजनीय हैं। संदेहास्पद स्थिति यहाँ उत्पन्न होती है कि क्या नर्तक पतंजलि वही पतंजलि हैं जिन्होंने प्रसिध्द योग -सूत्र की रचना की थी? योग -सूत्र के उपरांत उनकी प्रसिध्द रचना थी महान संस्कृत व्याकरण “अष्टाध्यायी” को आधार बनाकर उसके ऊपर टिप्पणी करना उनसे संबंधित साक्ष्यों को और अधिक विवाद के घेरे में डालती है। संस्कृत व्याकरण्ा अष्टाध्यायी को आधार बनाकर पतंजलि ने संस्कृत व्याकरण “महाभाष्य” (Great Commentary) प्रस्तुत की। आयुर्वेदिक औषधियों के ऊपर भी इनकी अनेक रचनाएँ उपलब्ध थीं परंतु इसे विद्वानों द्वारा पूर्णत: स्वीकृत और स्थापित नहीं किया गया । इसी प्रकार यह भी विवाद का विषय रहा है कि क्या संस्कृत व्याकरण महाभाष्य के रचयिता वही पतंजलि हैं जिन्होंने योग -सूत्र को स्थापित किया था, अथवा कोई अन्य पतंजलि है? यहाँ योग -सूत्र और महाभाष्य के दर्शन में एक विरोध की व्याप्ति है।अत: ऐसा माना जाता है कि अलग-अलग पतंजलि एक प्रसिध्द पहचान को प्राप्त करने हेतु अपने नाम और कार्य को इससे जोड़ते चले गए, जो किसी महत्त्वपूर्ण व्यक्ति के संघर्ष के संकलन से प्राप्त किया गया था।
योगसूत्र
लेकिन उपर्युक्त उल्लेख पतंजलि के अनन्तर कई सौ वर्षों के बाद लिखित ग्रन्थों में उपलब्ध होते हैं, जिससे वे प्रमाण नहीं माने जा सकते हैं। अंतरंग और बहिरंग साक्ष्य से यह ज्ञात होता है कि इन तीनों ग्रन्थों के रचयिताओं में सैकड़ों वर्षों का अन्तर है। व्याकरण महाभाष्य का रचना काल ईसा पूर्व द्वितीय शतक, चरक संहिता का संस्करण काल ईसवी द्वितीय शतक और योगसूत्र का ईसवी तृतीय व चतुर्थ शतक है। इस स्थिति में संदर्भित तीनों ग्रन्थों का कर्ता एक ही व्यक्ति है, यह मत असंगत लगता है। परन्तु नाम सादृश्य के कारण उपर्युक्त ग्रन्थों का एक ही पतंजलि कर्ता था, यह मत रूढ़ हो गया। भिन्न शतकों में तीन स्वतंत्र पतंजलि हुए, ऐसा इतिहास के नूतन शोधकों का मत है। योगसूत्रकार पतंजलि का काल निर्धारित करने के लिए अंतरंग सबूत उपलब्ध नहीं हैं। केवल तर्कसंमत बहिरंग सामग्री से उपलब्ध आधारों पर योगसूत्र और उनके रचयिता पतंजलि का काल ईसवीं तीसरा या चौथा शतक निश्चित किया गया है। योगसूत्रकार के माता, पिता तथा गुरु और शिष्य परम्परा आदि के संबंध में जानकारी उपलब्ध नहीं है। योगशास्त्र के आद्य प्रवर्तक हिरण्यगर्भ माने जाते हैं। हिरण्यगर्भ से प्रारम्भ हुई योगशास्त्र परम्परा गुरु और शिष्य के उपदेश द्वारा पतंजलि तक अखंड चलती रही। पतंजलि ने उस परम्परा को सूत्रबद्ध करके संग्रहीत किया। अत: योगशास्त्र की परम्परा अन्य शास्त्रों के समान अति प्राचीन काल से जारी है। इस बात की पुष्टि करने वाले अनेक प्रमाण प्राचीन वेद वाङ्मय में मिलते हैं। योगसूत्र के पहले ही सूत्र से यह स्पष्ट है। यह पहला सूत्र है 'अथ योगानुशासनम्'। इस सूत्र में अनुशासन शब्द का अर्थ है 'बाद में किया हुआ उपदेश'।
काल निर्धारण
पतञ्जलि के समय निर्धारण के संबंध में पुष्यमित्र कण्व वंश के संस्थापक ब्राह्मण राजा के अश्वमेध यज्ञों की घटना को लिया जा सकता है। यह घटना ई.पू. द्वितीय शताब्दी की है। इसके अनुसार महाभाष्य की रचना का काल ई.पू. द्वितीय शताब्दी का मध्यकाल अथवा १५० ई.पूर्व माना जा सकता है। पतञ्जलि की एकमात्र रचना महाभाष्य है जो उनकी कीर्ति को अमर बनाने के लिये पर्याप्त है। दर्शन शास्त्र में शंकराचार्य को जो स्थान 'शारीरिक भाष्य' के कारण प्राप्त है, वही स्थान पतञ्जलि को महाभाष्य के कारण व्याकरण शास्त्र में प्राप्त है। पतञ्जलि ने इस ग्रंथ की रचना कर पाणिनी के व्याकरण की प्रामाणिकता पर अंतिम मुहर लगा दी है।