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फ़ारुख़ शेख़ (२५ मार्च १९४८ - २७ दिसम्बर २०१३) एक भारतीय अभिनेता, समाज-सेवी और एक टेलीविजन प्रस्तोता थे। उन्हें ७० और ८० के दशक की फ़िल्मों में अभिनय के कारण प्रसिद्धि मिली। वो सामान्यतः एक कला सिनेमा में अपने कार्य के लिए प्रसिद्ध थे जिसे समानांतर सिनेमा भी कहा जाता है। उन्होंने सत्यजित राय और ऋषिकेश मुखर्जी के निर्देशन में भी काम किया। फ़ारुख़ का जन्म मुम्बई के एक वकील मुस्तफ़ा शेख और फ़रिदा शेख के एक मुसलमान परिवार में जो बोडेली कस्बे के निकट नसवाडी ग्राम के निकट बड़ोदी गुजरात के अमरोली में हुआ। उनके परिवार वाले ज़मिंदार थे और उनका पालन पोषण शानदार परिवेश में हुआ। वो अपने घर के पाँच बच्चो में सबसे बड़े थे। वो सेंट मैरी स्कूल, मुंबई में पढ़ने गये और बाद में सेंट जेवियर्स कॉलेज, मुंबई गये। उन्होंने कनून की पढ़ाई सिद्धार्थ कॉलेज ऑफ़ लॉ में पूर्ण की।
फारुख शेख भारतीय अभिनेता, समाजसेवी और एक टेलीविजन प्रस्तोता थे. उनका जन्म 25 मार्च 1948 को हुआ था. उन्होंने 1977 से 1989 तक बॉलीवुड में काम किया और 1988 से 2002 के बीच टेलीविजन में काम किया. यह उनका सर्वश्रेष्ठ दौर था. 2008 में वह फिर एक्टिंग की ओर लौटे और 27 दिसंबर 2013 को निधन के वक्त तक काम करते रहे. उन्होंने समानांतर सिनेमा हो या न्यू इंडियन सिनेमा, दोनों में अपना महत्वपूर्ण योगदान किया. उन्होंने सत्यजित रे, मुजफ्फर अली, ऋषिकेश मुखर्जी और केतन मेहता जैसे निर्देशकों के साथ काम किया.
फारुख का जन्म मुम्बई के एक वकील मुस्तफा शेख और फरीदा शेख के यहां बड़ोदा, गुजरात के अमरोली में हुआ. उनके परिवार वाले जमींदार थे और उनका पालन पोषण शानदार परिवेश में हुआ. वह पांच भाई-बहनों में सबसे बड़े थे. उनकी पढ़ाई सेंट मैरी स्कूल, मुंबई और फिर सेंट जेवियर्स कालेज, मुंबई में हुई. उन्होंने कानून की पढ़ाई सिद्धार्थ कालेज आफ लाॅ में पूर्ण की. उनका निधन 27 दिसंबर 2013 के हुआ.
व्यक्तित्व
फ़ारुख़ एक बेहतरीन कलाकार तो थे ही लेकिन उससे कहीं आगे वह एक बेहतरीन इंसान थे। फ़ारुख़ शेख़ संपन्न परिवार से ज़रूर थे मगर पिता के निधन के बाद उन्होंने छोटे भाई-बहनों की जिम्मेदारी को अपने कंधों पर उठाया। उन्होंने रेडियो और टीवी पर कार्यक्रम किए, लेकिन सिर्फ पैसों की खातिर फ़िल्मों में काम करना उन्हें मंजूर न था। इसीलिए जिस जमाने में अभिनेता एक साथ दर्जनों फ़िल्में साइन करते थे, फ़ारुख़ शेख़ एक बार में दो से ज्यादा फ़िल्मों में काम नहीं करते थे। 1978 में ‘नूरी’ की कामयाबी के बाद कुछ ही महीनों में उनके पास क़रीब 40 फ़िल्मों के प्रस्ताव आए। लेकिन उन्होंने सारे के सारे ठुकरा दिए क्योंकि वे सब ‘नूरी’ की ही तरह थे। फ़ारुख़ शेख़ का नाम कभी किसी विवाद में नहीं आया। न ही किसी सह-अभिनेत्री या हिरोइन से उनका नाम जुड़ा। वे पूरी तरह से पारिवारिक इंसान थे। उनकी दो बेटियां हैं। उन्होंने ईश्वर में सदा विश्वास किया। वे कहते थे कि एक शक्ति है जो ऊपर से हमें संचालित कर रही है। धर्म और जाति के नाम पर बंटवारे या भेदभाव उन्हें कभी गवारा न थे। उन्होंने सदा कहा कि गुजर जाने के बाद दुनिया में याद किए जाने की ख्वाहिश उनमें नहीं है। वह कहते थे कि यह ज़िंदगी एक उत्सव है और अपने रियलिटी शो ‘जीना इसी का नाम है’ में मैं ज़िंदगी का ही जश्न मना रहा हूँ।
क्रिकेट प्रेमी
फ़ारुख़ स्कूली दिनों से न केवल क्रिकेट के दीवाने थे, बल्कि अच्छे क्रिकेटर भी थे। उन दिनों भारत के विख्यात टेस्ट क्रिकेटर वीनू मांकड़ सेंट मैरी स्कूल के दो सर्वश्रेष्ठ क्रिकटरों को हर साल कोचिंग देते थे और हर बार उनमें से एक फ़ारुख़ हुआ करते थे। जब वह सेंट जेवियर कॉलेज में पढ़ने गए तो उनका खेल और निखरा। सुनील गावस्कर का शुमार फ़ारुख़ के अच्छे दोस्तों मे होता है।
रोचक जानकारिया
1. फारुख का जन्म गुजरात के एक मुस्लिम परिवार में हुआ उनके पिता मुस्तफा शेख एक जाने माने वकील थे.
2. फारुख शेख लॉ के स्टूडेंट थे और उनके पिता चाहते थे कि फारुख भी उनकी तरह वकील के तौर पर नाम कमाएं लेकिन फारुख की रुचि इस पेशे से ज्यादा एक्टिंग में थी.
3. अपने कॉलेज के दिनों में फारुख थिएटर में काफी एक्टिव रहे. थिएटर में उनकी बेहतरीन परफॉर्मेंस की बदौलत ही उन्हें 1973 में रिलीज हुई फिल्म 'गर्म हवा' में ब्रेक मिला. इस फिल्म के लिए उन्हें 750 रुपये फीस के तौर अदा किए गए.
4. फारुख शेख ने एक्ट्रेस शबाना आजमी के साथ फिल्म 'लोरी', 'अंजुमन', 'एक पल' और 'तुम्हारी अमृता' जैसी कई बेहतरीन फिल्मों में अभिनय किया.
5. फारुख शेख के साथ दीप्ति नवल की ऑनस्क्रीन जोड़ी को दर्शकों ने बेहद पसंद किया. यह जोड़ी काफी हिट रही. दीप्ति नवल के साथ फारुख शेख ने करीब 7 फिल्मों में काम किया जिनमें 'चश्म-ए-बद्दूर' , 'कथा', 'साथ-साथ', 'किसी से ना कहना', 'रंग बिरंगी' जैसी फिल्में शामिल थीं.
6. एक अंग्रेजी अखबार को दिए गए इंटरव्यू में फारुख शेख ने कहा था कि उन्हें दर्शक पसंद करते थे. अपने जमाने में जब वह आम लोगों के बीच जाया करते थे लोग मुझे जानते थे, देखकर हाथ हिलाते थे और स्माइल पास करते थे. उन्होंने कहा, ' मुझे कभी खून से लिखे गए खत या शादी के ऑफर नहीं मिले जैसे कि राजेश खन्ना और बाकी एक्टर्स को मिलते थे.'