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वास्को द गामा जीवनी - Biography of Vasco Da Gama in Hindi Jivani

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Vasco Da Gama का जन्म पोर्तुगाल में साईनेस इस गाव में इ.स. 1469 को हुआ। भारत के अभियान की जिम्मेदारी आगे वास्को – द – गामा के तरफ जब सौपी गयी तब वास्को के साथ साओ ग्रॅबिएल, साओ राफाएल, बोरिओ ये तीन जहाज और तीन सालो तक चलेंगी इतनी महत्वपूर्ण चिजों से भरा एक जहाज दिया गया। इस जहाज पर तोफ और अद्ययावद शिपिंग के साधन और सुधारित नक्षे दिये गये। इन चार जहाजो पर मिलकर 170 नाविक थे।


        इन सब के साथ वास्को द गामा 8 जूलै 1497 के शनिवार को सुबह लिस्बन से चार मील दूर के रेस्टोलो के किनारे से भारत के अभियान पर निकला। आफ्रीका के पश्चिम किनारे के मोरोघड़ो से आगे जाके कॅनरी बेंट पार करके आगे वास्को द गामा ने दक्षिण – पश्चिम का रास्ता पकड़ा। और तीन महीनो के सफर के बाद उन्हें 4 नवंबर को दक्षिण आफ्रिका का किनारा दिखा। और 4 दिन बाद वो सेट हेलेना समुद्र्धुनी के पास के किनारे पर उतरे।


        यहाँ उन्हें दक्षिण आफ्रिका के आदिवासी देखने को मिले। आठ दिन वहा रुक के, जहाज ठिक करके और पिने का पानी भरकर उन्होंने किनारा छोड़ा। आगे उन्हें केप ऑफ गुड़ होप के पास तूफान का सामना करना पड़ा। उसमे उनके चार दिन गये। उस वजह से केप ऑफ गुड़ होप के किनारे पे न उतरके 25 नवंबर को 300 मील पूर्व को मोसेल बे यहाँ किनारे पे उतरे।


प्रथम समुद्र यात्रा :


        8 जुलाई 1497 को वास्को द गामा चार जहाज़ों के एक बेड़े के साथ लिस्बन से निकले थे। उनके पास दो मध्यम आकार के तीन मस्तूलों वाले जहाज़ थे। प्रत्येक का वज़न लगभग 120 टन और नाम सॉओ गैब्रिएल तथा सॉओ रैफ़ेल था। इनके साथ 50 टन का बैरिओ नामक कैरावेल (छोटा, हल्का और तेज़ जहाज़) और एक 200 टन का सामान रखने वाला जहाज़ था। केप वर्डे द्वीप तक उनके साथ बार्तोलोम्यू डिआस के नेतृत्व में एक और जहाज़ भी गया था।


        बार्तोलोम्यू एक पुर्तग़ाली नाविक थे, जिन्होंने कुछ वर्ष पहले केप ऑफ़ गुड होप को खोजा था और वह गोल्ड कोस्ट (वर्तमान घाना) पर सॉओ ज़ोर्गे डा मीना के पश्चिम अफ़्रीकी क़िले की यात्रा कर रहे थे। वास्को द गामा के बेड़े के साथ तीन दुभाषिए भी थे दो अरबी बोलने वाले और एक कई बंटू बोलियों का जानकार था। बेड़े अपनी खोज और जीते गए ज़मीनों को चिह्नित करने के लिए अपने साथ पेड्राओ भी ले गए थे।


        15 जुलाई को केनेरी द्वीप से गुज़रते हुए यह बेड़ा 26 जुलाई को केप वर्डे द्वीप के सॉओ टियागो पर पहुँचा और 3 अगस्त तक वहीं रुका रहा। इसके बाद गुयाना की खाड़ी की तेज़ जलधाराओं से बचने के लिए वास्को द गामा ने केप ऑफ़ गुड होप के दक्षिणी अटलांटिक से होते हुए एक घुमावदार रास्ता अपनाया और 7 नवम्बर को सांता हैलेना खाड़ी (आधुनिक दक्षिण अफ़्रीका में) पहुँचे थे।

        

        ऐसा कहा जाता है कि वास्को डा गामा पहले सीधे दक्षिण अफ्रीका पहुंचे थे, वहां पर उन्होंने कई भारतीयों को देखा। उनके जरिए वास्को डा गामा ने अनुमान लगाया कि भारत अभी काफी आगे है। आगे जाकर वह हिंद महासागर पहुंच गए, खाना कम पड़ने पर उनके अधिकतर साथी बीमार पड़ गए। अपने साथियों की जान बचाने के लिए वह मोजाम्बिक में रुके।


        मोजाम्बिक के सुल्तान को वास्को डा गामा ने कुछ उपहार दिए, तोहफें मिलने पर सुल्तान खुश हुए और फिर उन्होंने भारत का रास्ता खोचने में उनकी मदद की।20 मई 1498 को वास्को डा गामा कालीकट तट पहुंचे और वहां के राजा से कारोबार के लिए हामी भरवा ली। कालीकट में 3 महीने रहने के बाद वास्को पुर्तगाल लौट गए। वर्ष 1499 में भारत की खोज की यह खबर फैलने लगी। इसके बाद भारत पर कब्जा जमाने के लिए कई राजाओं ने कोशिश की।


        1503 में वास्को पुर्तगाल लौट गए और बीस साल वहां रहने के बाद वह भारत वापस चले गए। 24 मई 1524 को वास्को डी गामा की मृत्यु हो गई और फिर उनके अवशेषों को पुर्तगाल लाया गया। लिस्बन में वास्को के नाम का एक स्मारक है, इसी जगह से उन्होंने भारत की यात्रा शुरू की थी।


        Vasco da Gama वास्कोडीगामा ने भारत में व्यापार करने के लिए जामोरिन से गुजारिश की तो जामोरिन ने उसे मेहमान समझकर व्यापार करने की इजाजत दे दी | अब व्यापार के लिए जामोरिन ने वास्कोडीगामा से कस्टम ड्यूटी के तौर पर सोने चान्दी की माग की लेकिन वास्कोडीगामा के पास उस समय कुछ नही था और वो भारत में व्यापार करना चाहता था | उसने कही से सुना था कि भारत सोने की चिड़िया कहलाता है और यहा सोने के अपार भंडार है | वो इस मौके को गवाना नही चाहता था इसलिए उसने जामोरिन की हत्या करवा दी | जामोरिन की हत्या के बाद वो खुद कालीकट का मालिक बन गया जो उस समय भारत का सबसे बड़ा बन्दरगाह हुआ करता था |


        अब कालीकट में उसने बन्दरगाह पर अरब देशो में व्यापार करने वाले जहाजो पर टैक्स लगाना शुरू कर दिया | अगर कोई भी उस समय वास्कोडीगामा को टैक्स नही देता तो वो उसके जहाज को समुद्री लुटेरो को कहकर तबाह करवा देता था | उसका खौफ इतना छा गया था कि उसकी इजाजत के बिना बन्दरगाह से एक जहाज नही हिल सकता था | लगभग 3 महीने बाद जब वो वापस अपने देश लौटा तो सात जहाज भरकर सोने की अशर्फिया लेकर अपने देश चला गया | उसको अब भारत जाने के लिए समुद्री रास्ते का पता चल चूका और दुबारा भारत को लुटने के लिए एक साल बाद फिर भारत आया |


महत्व :


        पुर्तगाली राजकुमार और अन्वेषक हेनरी के बाद वास्तो द गामा सबसे महत्वपूर्ण सामुद्रिक खोजकर्ताओं में था। तीन महादेशों और दो महासागरों को पार करने के बाद भी अरब सागर में अरब व्यापारियों और अफ्रीकी साम्राज्यों से लड़ने और फिर भारत आकर अपने साथ लाए पुर्तगाली राज-संदेश तथा उसकी हिफाजत के लिए राजा (ज़ामोरिन) से युद्ध और सफलता उसके दृढ़-निश्चय को दिखाती है। वास्को को वापस पहुँचने के बाद पुर्तगाल में एक सफल सैनिक की तरह नवाजा गया। अपने समकालीन कोलम्बस के मुकाबले उसकी लम्बी यात्रा में भी बग़ावत नहीं हुई और थकने के बाद भी अपने लक्ष्य पर जमे रहा।


        वास्को द गामा के भारत पहुँचने पर अरब और मूर व्यापारियों के मसाले के व्यापार को बहुत धक्का लगा। इस व्यापार को हथियाने के लिए वास्को द गामा ने न सिर्फ खतरनाक और परिश्रमी यात्रा की, बल्कि कई युद्ध भी लड़ा। अपने बेहतर बंदूकों (या छोटे तोपों) की मदद से वो अधिकांश लड़ाईयों में सफल रहा। इससे अदन (अरब)-होरमुज (ईरान)-कालीकट जल-व्यापार मार्ग टूट या कमज़ोर पड़ गया।


        उसकी सफलता को देखते हुए पुर्तगाल के राजा मैनुएल ने भारत और पूर्व के कई मिशन चलाए। अल्बुकर्क, जो उसकी तासरी यात्रा से पहले पुर्तगाल से भेजा गया था, ने अरब सागर में अरबों के व्यापार और सामुद्रिक सेना और संपत्ति को तहस-नहस कर दिया और खोजी मलेशिया (मलाका) और फिर चीन (गुआंगजाउ, पुर्तगालियों का रखा नाम - कैंटन) तक पहुँच गए। सोलहवीं सदी के अत तक अरबी भाषा की जगह टूटी-फूटी पुर्तगाली व्यापार की भाषा बन गई।