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प्लेटो जीवनी - Biography of Plato in Hindi Jivani

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Plato प्लेटो , यूनान के प्रसिद्ध दार्शनिक , गणितज्ञ और सुकरात के शिष्य एवं अरस्तु के गुरु थे | पश्चिमी जगत की दार्शनिक पृष्ठभूमि को तैयार करने में इन तीन दार्शनिको की त्रयी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी | Plato प्लेटो को अफलातून के नाम से भी जाना जाता है | पश्चिमी जगत में उच्च शिक्षा के लिए पहली संस्था “एकेडमी ” की स्थापना का श्रेय भी प्लेटो को ही जाता है | उन्हें दर्शन और गणित के साथ साथ तर्कशास्त्र एवं नीतिशास्त्र का भी अच्छा ज्ञान था |


        Plato प्लेटो ने कई विषयों पर विस्तार से कलम चलाई है लेकिन सामान्य दर्शन और निति शाश्त्र में उनकी दिलचस्पी उद्घाटित हुयी है | प्लेटो लिखते है कि वे शरीर और आत्मा में भेद देखते है | वे यह भी लिखते है कुछ लोग भौतिक दुनिया को तुच्छ मानते है और कुछ लोग इसी को अहमियत देते है | Plato प्लेटो का मानना था कि दार्शनिक मत वाले व्यक्ति बाहरी सीमाओं और सौन्दर्य . सत्य .एकता और न्याय के सर्वोच्य आदर्श के बीच भेद कर सकते है | उनका यह दर्शन भौतिक और मानसिक सीमाओं का संकेत देता है और उच्च आदर्श के प्रोत्साहन हेतु प्रेरित करता है |


आरंभिक जीवन :


        Plato के प्रारंभिक जीवन और शिक्षा के बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है। कहा जाता है की इस दर्शनशास्त्री का जन्म एथेंस के एक समृद्ध और राजनैतिक परिवार में हुआ था। प्लाटो के जन्म स्थान और जन्म तारीख से संबंधित सही जानकारी प्राप्त नही हुई है। प्राचीन सूत्रों के अनुसार महान विद्वानों का मानना है की उनका जन्म एथेंस में 429 या 423 BCE में हुआ था। उनका पिता अरिस्टों थे।


        विविध संस्कृतियों के अनुसार उनक परिवार बहुत समृद्ध और एथेंस के राजा से भी उनके मधुर संबंध थे। प्राचीन सूत्रों के अनुसार प्लाटो बचपन से ही हुशार थे और बचपन से ही उनमे दर्शनशास्त्र के गुण थे। उनके पिता ने उन्हें वो सारी सुविधाये भी प्रदान की जो उन्हें चाहिये थी। उस समय के कुछ महान शिक्षको ने प्लाटो को ग्रामर, म्यूजिक, जिमनास्टिक और दर्शनशास्त्र की शिक्षा दे रखी थी।


        प्लेटो का जन्म एथेंस के समीपवर्ती ईजिना नामक द्वीप में हुआ था। उसका परिवार सामन्त वर्ग से था। उसके पिता 'अरिस्टोन' तथा माता 'पेरिक्टोन' इतिहास प्रसिद्ध कुलीन नागरिक थे। 404 ई. पू. में प्लेटो सुकरात का शिष्य बना तथा सुकरात के जीवन के अंतिम क्षणों तक उनका शिष्य बना रहा। सुकरात की मृत्यु के बाद प्रजातंत्र के प्रति प्लेटो को घृणा हो गई। उसने मेगोरा, मिस्र, साएरीन, इटली और सिसली आदि देशों की यात्रा की तथा अन्त में एथेन्स लौट कर अकादमी की स्थापना की। प्लेटो इस अकादमी का अन्त तक प्रधान आचार्य बना रहा।


        बचपन से ही प्लेटो को दर्शनशास्त्र पसंद था और इसके अलावा वें दूसरे विषयो में भी होशियार थे। अमीर परिवार होने की वजह से प्लेटो को घर से सब कुछ मिलता था और उनके पिता अरिस्टो ने उसे पढाई के लिए उस समय की अच्छी अकादमी में भेज दिया था, जहा पर प्लेटो को दर्शनशास्र, तर्कशास्त्र और नीतिशास्त्र के साथ साथ कुछ और विषय भी अच्छे से पढाये गए थे।


        प्लेटो अपने शिक्षको की बाते बड़ी जल्दी से याद कर लेते थे। वें बचपन से ही स्वस्छ और उमदा विचारों वाले थे। उस अकादमी में प्लेटो महान गुरु सुकरात(Socrates) के शिष्य बने, जो उनके लिए बड़े सौभाग्य की बात थी। अपने जीवन में प्लेटो ने जितने लेख लिखे है उनमे ज्यादातर लेखों में उनके अपने विचार और गुरु सुकरात के विचार ही लिखे है। सुकरात के पुरे जीवन की जानकारी सिर्फ प्लेटो के लेख से ही मिलती है उसके अलावा वो कही पर भी नहीं रही।


        प्लेटो ने कई विषयो पर बड़े बड़े लेख लिखे जिनमे सामान्य दर्शन और निति शाश्त्र के लेख सबसे लोकप्रिय बने। उनके लेख के मुताबित वे शरीर और आत्मा के भेद को भी देख सकते थे। उनके नजरिये से कुछ लोग भौतिक दुनिया को तुच्छ तो सामने कुछ लोग इसको अहमियत देते है और दार्शनिक मतो वाले इंसान बाहरी सीमाओं और सौन्दर्य के साथ सत्य, एकता और न्याय के बीच अच्छे से भेद कर सकते है।


        अपने शिक्षक सोक्रेटस और अपने सबसे प्रसिद्ध विद्यार्थी एरिस्टोटल के साथ प्लाटो ने पश्चिमी दर्शनशास्त्र और विज्ञान की भी स्थापना की थी। एक बार अल्फ्रेड ने कहा था की, ‘यूरोपियन दर्शनशास्त्र परंपरा का सबसे साधारण चित्रीकरण हमें प्लाटो की पादटिपण्णी में दिखायी देता है।‘ पश्चिमी विज्ञान, दर्शनशास्त्र और गणित में पश्चिमी दुनिया में प्रसिद्ध होने के साथ ही ही पश्चिमी धर्म और साहित्य, विशेषतः क्रिस्चियन धर्म के संस्थापक भी थे। प्लाटो ने क्रिस्चियन धर्म पर अपने विचारो से काफी प्रभाव डाला था। प्लाटो क्रिस्चियन इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण दर्शनशास्त्रियो और विचारको में से एक थे।


        प्लेटो के समय में कवि को समाज में आदरणीय स्थान प्राप्त था। उसके समय में कवि को उपदेशक, मार्गदर्शक तथा संस्कृति का रक्षक माना जाता था। प्लेटो के शिष्य का नाम अरस्तू था। प्लेटो का जीवनकाल 428 ई.पू. से 347 ई.पू. माना जाता है। उसका मत था कि "कविता जगत की अनुकृति है, जगत स्वयं अनुकृति है; अतः कविता सत्य से दोगुनी दूर है। वह भावों को उद्वेलित कर व्यक्ति को कुमार्गगामी बनाती है। अत: कविता अनुपयोगी है एवं कवि का महत्त्व एक मोची से भी कम है।"


पुस्तके :


        द एपोलॉजी, द रिपब्लिक, फेडो, द क्रिटो, लाचेस, लिसिस, चार्माइड्स, युथीफ्रो, हिप्पीअस माईनर एंड मेजर, प्रोटागोरस, गोर्जिअस, आयॉन आदि.


तथ्य :


        ।431 ईसा पूर्व से लेकर 404 ईसा पूर्व तक एथेंस और स्पार्टा के बीच हुआ था. विपरीत परिस्थितियों में बच्चों को भी कठोर शारीरिक शिक्षा से गुजरना अनिवार्य हो गया था. प्लेटो को भी इस कठोर शारीरिक शिक्षा से गुजरना पड़ा था. प्लेटो सुकरात के शिष्य व अरस्तु के गुरु थे. सुकरात के विचारों और सिद्धांतों को प्रचलित करने श्रेय प्लेटो को जाता है. जिन्होंने गुरु सुकरात की शिक्षाओं को समझाया व उनके मतों को नए आयाम भी दिये. सुकरात और अरस्तु के साथ प्लेटो पश्चिमी सभ्यता की संपूर्ण बौद्धिक परम्पराओं के रचनाकार थे.


विचार :


• समझदार व्यक्ति इसीलिए बोलता है क्योंकि उसके पास बोलने के लिए या दुसरो से बांटने के लिए कई अच्छी बाते होती है, लेकिन एक बेवकूफ व्यक्ति इसीलिए बोलता है क्योंकि उसे कुछ न कुछ बोलना होता है।

• तीन चीजो से बनता है मनुष्य का व्यवहार-चाहत,भावनाए और जानकारी।

• मनुष्य द्वारा किया अच्छा व्यवहार उसे ताकत देता है और दुसरो को उसी तरह से अच्छा व्यवहार करने के लिए प्रेरित करता है।

• मनुष्य में ऐसी ताकत है जो आपको आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित कर सकती है या आपके पंख काटकर आगे बढ़ने के रास्ते बंद भी कर सकती है। ये आप पर निर्भर करता है कि आप कौन सी ताकत अपनाते है।

• दो ऐसी चीजे है जिनके बारे में मनुष्य को कभी गुस्सा या खफा नहीं होना चाहिए। पहली, वह किन लोगो की मदद कर सकता है। दूसरी, वह किन लोगो की मदद नहीं कर सकता है।

• तीन किस्म के लोग होते है-पहला, जो बुद्धिमान बनना चाहता है। दूसरा, जिसे अपनी प्रतिष्ठा से प्यार है और तीसरा, जो जिंदगी में कुछ हासिल करना चाहता है।

• व्यक्ति दुसरो पर राज करना चाहता है वह कभी राज नहीं कर सकता। वैसे ही जैसे कोई व्यक्ति किसी को पढ़ाने का दबाव महसूस करके अच्छा शिक्षक नहीं बन सकता है।

• स्वयं को इस जन्म औए अगले जन्म में भी काम में लगाइए। बिना प्रयत्न के आप समृद्ध नहीं बन सकते। भले भूमि उपजाऊ हो, बिना खेती किये उसमे प्रचुर मात्र में फसले नहीं उगाई जा सकती।

• एक अच्छा निर्णय ज्ञान पर आधारित होता है नंबरों पर नहीं

• एक नायक सौ में एक पैदा होता है, एक बुद्धिमान व्यक्ति हज़ारों में एक पाया जाता है, लेकिन एक सम्पूर्ण व्यक्ति शायद एक लाख लोगों में भी ना मिले.

• सभी व्यक्ति प्राकृतिक रूप से सामान हैं, एक ही मिटटी से एक ही कर्मकार द्वारा बनाये गए;और भले ही हम खुद को कितना भी धोखें में रख लें पर भगवान को जितना प्रिय एक शश्क्त राजकुमार है उतना ही एक गरीब किसान.

• थोड़ा सा जो अच्छे से किया जाए वो बेहतर है,बजाये बहुत कुछ अपूर्णता से करने से

• किसी व्यक्ति के लिए स्वयं पर विजय पाना सभी जीतों में सबसे पहली और महान है.

• अगर हर एक व्यक्ति अपनी प्राकृतिक काबिलियत के अनुसार,बिना और चीजों में पड़े, सही समय पर और सिर्फ एक काम करता तो चीजें कहीं बेहतर गुणवत्ता और मात्रा में निर्मित होतीं.

• अच्छे लोगों को जिम्मेदारी से रहने के लिए कहने हेतु क़ानून की ज़रुरत नहीं पड़ती, और बुरे लोग क़ानून से बच कर काम करने का रास्ता निकाल लेते हैं.

• आदमी अपने भविष्य का निर्धारण अपनी शिक्षा के शुरुवात की दिशा से करता है.

• आप बातचीत से एक वर्ष की तुलना में खेलने के एक घंटे में किसी व्यक्ति के बारे में अधिक जान सकते हैं.

• केवल मरने वालों ने युद्ध का अंत को देखा है.

• साहस जनता है, डरो मत.

• काम करने का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा शुरुवात है.

• प्यार एक गंभीर मानसिक बीमारी है.

• हम अंधेरे से डरने वाले बच्चे को आसानी माफ कर सकते हैं; जीवन की असली त्रासदी तब है, जब लोग प्रकाश से डरते हैं.

• अकेली बुद्धि अन्य विज्ञानों का विज्ञान है.

• हम सीख नहीं रहे हैं, और जिसे हम सीखना कह रहे हैं वह केवल स्मरणशक्ति की एक प्रक्रिया है.

• कोई भी आदमी आसानी से दूसरे का नुकसान कर सकता है, लेकिन हर आदमी दूसरे के लिए अच्छा नहीं कर सकता है