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लेखक

रमेश चन्द्र दत्त जीवनी - Biography of Romesh Chunder Dutt in Hindi Jivani

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रमेश चन्द्र दत्त अंग्रेज़ी और बंगला भाषा के प्रसिद्ध लेखक थे। वे धन के बहिर्गमन की विचारधारा के प्रवर्तक तथा महान् शिक्षाशास्त्री थे। 1899 ई. में 'भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस' के लखनऊ अधिवेशन की अध्यक्षता इन्होंने की थी। इनकी रचनाओं में 'ब्रिटिश भारत का आर्थिक इतिहास', 'विक्टोरिया युग में भारत' और 'प्राचीन भारतीय सभ्यता का इतिहास' आदि शामिल हैं। ऐतिहासिक उपन्यासकार के रूप में रमेश चन्द्र दत्त को विशेष ख्याति प्राप्त हुई थी।


अंग्रेज़ी और बंगला भाषा के प्रसिद्ध लेखक रमेश चन्द्र दत्त का जन्म 13 अगस्त, 1848 ई. में कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम 'इसम चन्द्र दत्त' और माता 'ठकमणि' थीं। इनके पिता बंगाल के डिप्टी कलेक्टर थे। एक दुर्घटना में पिता की मृत्यु हो जाने के बाद रमेश चन्द्र दत्त की देखभाल उनके चाचा शशी चन्द्र दत्त ने की।


1899 में वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष बने और राजनीतिक रूप से जागरुक शिक्षित लोगों द्वारा उन्हें प्रभावशाली वक्ताओं में से एक बताया गया। सिविल सर्विस से रिटायर होने के कुछ ही समय बाद वह यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन में भारतीय इतिहास के प्रोफेसर नियुक्ति किए गए। हालांकि वह 1904 में तीन साल के लिए स्टेट ऑफ बड़ौदा के राजस्व मंत्री के तौर पर अपनी सेवाएं देने के लिए भारत लौट आए। वो एक बार फिर 1908 में विकेंद्रीकरण कमीशन के सदस्य के रूप में भारत लौटे।


किसानों की आर्थिक समस्याओं पर उनकी पहली किताब ‘’पीसैंट्री ऑफ बंगाल’’ साल 1875 में लिखी गई। इस किताब में जो विचार व्यक्त किए गए उन्हें पूरी तरह 1900 में छपी ‘’फैमिन्स इन इंडिया’’ में समावेशित किया गया, जिसमें उन्होंने भू राजस्व के अधिक मूल्यांकन और रैयतवारी इलाके के स्थायी निपटारे के लिए याचिका के समय को बढ़ाने की वकालत की, इसके अलावा उन्होंने, रैयत्स द्वारा बिचौलियों को देने वाला किराया स्थायी और निर्धारित करने की भी वकालत की।


1901 में ‘’इंडियन अंडर अर्ली ब्रिटिश रूल’’ (1757-1837) और 1902 में ‘’इक्नॉमिक्स हिस्ट्री ऑफ इंडिया इन द विक्टोरियन ऐज’’ किताब के छपने के साथ ही उनका महानतम कार्य शुरु हो गया। जमीन राजस्व पर उनके लेख प्रसिद्ध ‘’ओपन लेटर्स‘’ में समाहित किए गए, जिन पर साल 1902 के प्रस्ताव में लॉर्ड कर्जन सरकार ने आधिकारिकरूप से जवाब दिया।


शिक्षा :


        रमेश चन्द्र ने सन 1864 में 'कलकत्ता विश्वविद्यालय' में प्रवेश लिया। अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद इन्होंने इंग्लैंड जाकर 'आई.सी.एस.' की परीक्षा पास की और अनेक उच्च प्रशासनिक पदों पर कार्य किया। लेकिन रमेश चन्द्र दत्त की ख्याति मौलिक लेखक और इतिहासवेत्ता के रूप में ही अधिक है।


योगदान : 


ब्रिटिश आर्थिक नीतियों की आलोचना :


 अपने गहन अनुसंधान और विश्लेषण से दत्त ने दिखाया कि ब्रिटिश शासन न केवल भारत की भौतिक स्थिति सुधारने में विफल रहा, बल्कि उसके काल में भारत का वि-उद्योगीकरण हुआ। ब्रिटिश आर्थिक नीति के परिणामस्वरूप भारत के दस्तकारी उत्पादन में ज़बरदस्त गिरावट आयी और उसकी भरपाई के रूप में औद्योगिक उत्पादन में बढ़ोतरी नहीं हुई। न ही भारतीय उद्योगों को किसी भी तरह का संरक्षण प्रदान किया गया। नतीजे के तौर पर भारतीय अर्थव्यवस्था पहले से कहीं ज़्यादा खेती पर निर्भर होने के लिए मजबूर हो गयी। भारतीय समाज का देहातीकरण होता चला गया। 


दत्त का कहना था कि ब्रिटिश उपनिवेशवाद के कथित रचनात्मक कदमों से भी भारत को लाभ नहीं हुआ। अंग्रेज़ों द्वारा शुरू किये गये रेल- परिवहन के कारण पारम्परिक परिवहन सेवाएँ मारी गयीं और ट्रेनों का इस्तेमाल ब्रिटिश कारख़ानों में बने माल की ढुलाई के लिए होता रहा। दत्त का निष्कर्ष था कि भारतीय अर्थव्यवस्था अविकसित नहीं है, बल्कि उसका विकास अवरुद्ध कर दिया गया है। उनके द्वारा लिखा गया इतिहास विद्वानों के एक हिस्से में प्रचलित उस मार्क्सवादी धारणा को झुठलाता है जिसके मुताबिक ब्रिटिश उपनिवेशवाद की भूमिका प्रगतिशील ठहरायी जाती है।


आर्थिक इतिहासकार के अलावा रमेश चंद्र दत्त एक प्रतिभाशाली और कुशल सांस्कृतिक इतिहासकार भी थे। बंगीय साहित्य परिषद् के संस्थापक अध्यक्ष रहने के साथ-साथ उन्होंने महाभारत और रामायण का अंग्रेज़ी में संक्षिप्त कव्यानुवाद भी किया।  संस्कृत साहित्य के प्रमाणों के आधार पर दत्त ने भारत की प्राचीन सभ्यता के इतिहास की रचना भी की।


साहित्य से लगाव और प्रमुख रचनाएं :


वे आर्थिक इतिहासकार के अलावा एक प्रतिभाशाली और कुशल सांस्कृतिक इतिहासकार भी थे. इन्होंने ‘बंगीय साहित्य परिषद्’ के संस्थापक अध्यक्ष रहने के साथ-साथ महाभारत और रामायण का अंग्रेज़ी में संक्षिप्त अनुवाद भी किया था. प्रारम्भ में आर.सी. दत्त ने अंग्रेज़ी भाषा में भारतीय संस्कृति और इतिहास पर स्तरीय ग्रंथों की रचना की. बाद में बंकिमचंद्र चटर्जी के प्रभाव में आने के बाद ये अपनी मातृ-भाषा बंगला में रचनाएं करने लगे. इनके चार प्रसिद्ध ऐतिहासिक उपन्यास हैं- (1) बंग विजेता (1874), (2) माधवी कंकण (1877), (3) महाराष्ट्र जीवन प्रभात (1878) (4) राजपूत जीवन संध्या (1879).


कुछ विद्वान इनके ऐतिहासिक उपन्यासों से अधिक महत्त्व दो सामाजिक उपन्यासों ‘संसार’ (1886) तथा ‘समाज’ (1894) को देते हैं. ग्राम्य जीवन का चित्रण इन उपन्यासों की प्रमुख विशेषता है. इसके अलावा इनके द्वारा लिखित अन्य रचनाएं निम्न हैं - ‘ए हिस्ट्री ऑफ सिविलाइज़ेशन इन एन्शिएन्ट इंडिया’ (तीन खंड), ‘लेटर हिंदू सिविलाइज़ेशन’, ‘एकोनॉमिक हिस्ट्री ऑफ ब्रिटिश इंडिया’, ‘इंडियंस इन द विक्टोरियन एज’, ‘ए हिस्ट्री ऑफ द लिटरेचर ऑफ बंगाल’, ‘द महाभारत ऐंड द रामायण’, ‘लेज़ ऑफ एन्शिएन्ट इंडिया’, ‘ग्रेट एपिक्स ऑफ एन्शिएन्ट इंडिया’, ‘शिवाजी’ (अंग्रेजी और बंगला), ‘लेक ऑफ पाम्स’, ‘द स्लेव गर्ल ऑफ आगरा’, ‘थ्री ईयर्स इन इंग्लैंड’, ‘दि पेजैंट्री ऑफ बंगाल’, ‘ऋग्वेद’ (बंगला अनुवाद), तथा ‘इंग्लैड ऐंड इंडिया’


निधन :


        30 नवम्बर, 1909 को आर.सी. दत्त का देहान्त बड़ौदा (गुजरात) में हुआ.