Deoxa Indonesian Channels

lisensi

Advertisement

" />
, 02:34 WIB
राजनेता

इन्द्र कुमार गुजराल जीवनी - Biography of Inder Kumar Gujral in Hindi Jivani

Advertisement


        इन्द्र कुमार गुजराल भारतीय गणराज्य के १३वें प्रधानमन्त्री थे। उन्होंने भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में सक्रिय रूप से हिस्सा लिया था और १९४२ के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान वे जेल भी गये। अप्रैल १९९७ में भारत के प्रधानमंत्री बनने से पहले उन्होंने केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल में विभिन्न पदों पर काम किया। वे संचार मन्त्री, संसदीय कार्य मन्त्री, सूचना प्रसारण मन्त्री, विदेश मन्त्री और आवास मन्त्री जैसे महत्वपूर्ण पदों पर रहे। राजनीति में आने से पहले उन्होंने कुछ समय तक बीबीसी की हिन्दी सेवा में एक पत्रकार के रूप में भी काम किया था. १९७५ में जिन दिनों वे इन्दिरा गान्धी सरकार में सूचना एवं प्रसारण मन्त्री थे.


आरंभिक जीवन :


        इंद्र कुमार गुजराल का जन्म 4 दिसंबर 1919 को झेलम के एक कस्बे में हुआ था। यह स्थान पहले अविभाजित पंजाब के अंतर्गत आता था, लेकिन वर्तमान में पाकिस्तान में है। वह अवतार निरंजन गुजराल और पुष्पा गुजराल के बड़े पुत्र थे। उनका जन्म स्वतंत्रा सेनानियों के परिवार में हुआ था और उनके अभिभावकों ने पंजाब में स्वतंत्रता की लड़ाई में सक्रियता से भाग लिया था। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान 1942 में उन्हें जेल जाना पड़ा। उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा कस्बे से ही पूरी की। आगे की पढ़ाई फोरमैन क्रिश्चियन कॉलेज और कॉलेज की पढ़ाई हैली कॉलेज ऑफ कॉमर्स से पूरी की। 26 मई 1945 को लाहौर में उन्होंने अपनी कॉलेज मित्र और कवि शीला भसीन से शादी कर ली। विशाल गुजराल और नरेश गुजराल उनके दो पुत्र हैं।


        गुजराल के पिता का नाम अवतार नारायण और माता का पुष्पा गुजराल था। उनकी शिक्षा दीक्षा डी.ए.वी. कालेज, हैली कॉलेज ऑफ कामर्स और फॉर्मन क्रिश्चियन कॉलेज लाहौर में हुई।[कृपया उद्धरण जोड़ें] अपनी युवावस्था में वे भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में शरीक हुए और १९४२ के "अंग्रेजो भारत छोड़ो" अभियान में जेल भी गये। हिन्दी, उर्दू और पंजाबी भाषा में निपुण होने के अलावा वे कई अन्य भाषाओं के जानकार भी थे और शेरो-शायरी में काफी दिलचस्पी रखते थे। गुजराल की पत्नी शीला गुजराल का निधन ११ जुलाई २०११ को हुआ। उनके दो बेटों में से एक नरेश गुजराल राज्य सभा सदस्य है और दूसरा बेटा विशाल है। गुजराल के छोटे भाई सतीश गुजराल एक विख्यात चित्रकार तथा वास्तुकार भी है।


        उन्होंने राजनीतिक जीवन की शुरुआत अपने कॉलेज के दिनों से की। वह लाहौर छात्रसंघ के सदस्य थे और संघ के अध्यक्ष भी बने। इसके साथ ही वह कम्यूनिस्ट पार्टी का हिस्सा बन गए। अपनी बेसिक शिक्षा पूरी करने तक वह कम्यूनिस्ट पार्टी कार्ड धारी सदस्य बन गए थे। 1976-1980 तक उन्होंने यूएसएसएसआर भारत के राजदूत के तौर पर सेवाएं दीं। 1980 में गुजराल कांग्रेस पार्टी छोड़कर जनता दल में शामिल हो गए। वीपी सिंह के कार्यकाल में वह 1989-1990 तक विदेश मंत्री बने। इसके बाद 1996 में एचडी देवगोड़ा सरकार में यही जिम्मेदारी फिर निभाई।


        इस दौरान भारत ने पड़ोसी देशों के साथ अपने रिश्ते बेहतर करने का प्रयास किया। इसके अलावा गुजराल को इंडियन काउंसिल ऑफ साउथ एशियन को-ऑपरेशन का अध्यक्ष भी बनाया गया तथा 1996 में राज्यसभा के नेता बने। उन्होंने राजनीतिक जीवन की शुरुआत अपने कॉलेज के दिनों से की। वह लाहौर छात्रसंघ के सदस्य थे और संघ के अध्यक्ष भी बने। श्री गुजरात ने परोक्ष रूप से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भी भाग लिया। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान 1942 में उन्हें जेल जाना पड़ा।


        जिस समय उनका जन्म हुआ, देश के चारों ओर अंग्रेजों का भीषण दमनचक्र चल रहा था। जैसे-जैसे श्री गुजरात बड़े होते गए उनकी आंखे अंग्रेजों के देशवासियों पर होने वाले अत्याचारों को देख-देखकर व्याकुल होती रही। उनके ह्रदय में अपने देशवासियों के प्रति कोमल भावनाएं समय-समय पर प्रस्फुटित होती रहती थी, जिनका वे अक्सर प्रकतिकरण भी करते रहते थे।


        श्री गुजराल ने भारत के राजदूत के रूप में भी सफलता पूर्वक कार्य किया। वे 1976 से लेकर 1980 तक सोवियत संघ में भारत के राजदूत के पद पर कार्यरत रहे। जब 1989-90 में श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह की केंद्र में सरकार बनी तो श्री इंद्र कुमार गुजराल को देश का विदेशी प्रभार सौंपा गया। विदेश मंत्री के रूप में उन्होंने उल्लेखनीय कार्य किए। 1996-97 में श्री एच.डी देवगौड़ा के नेतृत्व वाले केंद्र सरकार में भी श्री गुजराल को विदेश मंत्री का कार्यभार सौंपा गया। श्री इंद्र कुमार गुजराल ने भारतीय विदेश नीति का सही अर्थों में उत्तरदायित्व निभाया। इसके अलावा गुजराल को इंडियन काउंसिल ऑफ साउथ एशियन को-ऑपरेशन का अध्यक्ष भी बनाया गया तथा 1996 में राज्यसभा के नेता बने।


शिक्षा :


        श्री गुजराल बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के थे. उनकी शिक्षा भी उच्च ही रही . उन्होंने डी. ए.व्ही. कॉलेज जो, कि अब गवर्नमेंट इस्लामिन कॉलेज से प्रसिद्ध है, कॉमर्स हैली कॉलेज और फॉर्मर क्रिस्चियन कॉलेज लाहौर से अपनी पढाई पूरी की. गुजराल कला प्रेमी तथा कला के धनि व्यक्ति थे. उन्हें कविता लिखने का शौक था. जितनी अच्छी वे हिंदी जानते थे, उतनी ही अच्छी उर्दू भी बोलते एवं समझते थे. वे मौलाना आज़ाद यूनिवर्सिटी में चांसलर के पद पर भी रहे, जहां उन्हें उनके भाषा प्रेम के लिए उनकी मृत्यु के बाद भी सराहा गया. श्री गुजराल ने ” मैटर्स ऑफ़ डिस्क्रेशन: एक आत्मकथा” (Matters of Discretion:an Autobiography”) लिखी , जिसमें उन्होंने अपनी जन्म से ले कर भारत विभाजन तथा उनके भारत आने एवं उनके राजनीतिक सफर को चित्रित किया है .


        1992 में लालू प्रसाद के सहयोग से वे फिर राज्य सभा में दाखिल हुए. जब 1996 में जनता दल की सरकार केंद्र में आई, तब श्री गुजराल पुनः बाह्य मंत्री नियुक्त किये गए. वे इस पद पर 1997 तक रहे. 1996 के चुनाव के बाद जनता दल , समाजवादी पार्टी, डीएमके, टीडीपी, एजीपी, INC , बाएं दल (4 पार्टी) ,तमिलनाडु कांग्रेस और maharashtrawadi gomantak पार्टी ने मिलकर यूनाइटेड फ्रंट (UF ) बनाया . UF 13 पार्टियों का संयोजन था. इस दौरान श्री एच.डी.देवे गौड़ा प्रधानमंत्री थे. अप्रैल 1997 में देवे गौड़ा सरकार लोक सभा में 158 मत के साथ विश्वास मत हासिल करने में असफल हो गई. इसके बाद श्री आई .के.गुजराल को सरकार का जिम्मा सौंपा. फिर कांग्रेस की सरकार आने पर उन्होंने सबसे पहली बार 21 अप्रैल 1997 को प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली.


        एक आम सहमती वाले उम्मेदवार के रूप में गुजराल प्रधानमंत्री बने थे, जिस सूचि में लालू प्रसाद यादव और मुलायम सिंह यादव का भी साथ था, बाहर से गुजराल की सरकार को INC का सहारा था। अपने कार्यकाल के प्रारंभिक सप्ताहों में, सेंट्रल ब्यूरो ऑफ़ इन्वेस्टीगेशन ने राज्य मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव पर चारा घोटाले में मुक़दमा चलाने की भी उन्हें दी थी। गुजराल के अनुसार लालू प्रसाद यादव मुकदमे से भागने की कोशिश कर रहे थे जबकि अधिकारिक सूत्रों के अनुसार यादव मुक़दमे से नही भाग रहे थे।


        परिणामस्वरूप यादव के मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा देने की मांग जनता और दूसरी राजनीतिक पार्टियाँ करने लगी थी। यूनाइटेड फ्रंट और तेलगु देशम पार्टी के नेता चंद्रबाबू नायडू और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया के जनरल सेक्रेटरी हरिकिशन सिंह सुरजीत ने यादव और दुसरे RJD सदस्यों के इस्तीफे की मांग की, और ऐसा ही JD के सदस्य शरद यादव, एच.डी. देवे गोवडा और राम विलास पासवान का भी कहना था।


        उनकी सरकार का एक और वीवादग्रस्त निर्णय 1997 में उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन की अनुमति देना था। उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार को इस निर्णय से काफी हताशा हुई। जबकि राष्ट्रपति के.आर. नारायण ने भी उनकी इस राय पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया था और उन्होंने सरकार को भी वापिस पुनर्विचार करने के लिए भेज दिया। अलाहाबाद हाई कोर्ट ने भी उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन के खिलाफ ही निर्णय दिया था।


        इन्द्र कुमार गुजराल विदेश नीति के विशेषज्ञ थे. इसी कारण पड़ोसी देश पाकिस्तान के साथ संबंध सुधारने के लिए उन्होंने कड़े और महत्वपूर्ण कदम उठाए. प्रधानमंत्री गुजराल के कार्यकाल में देश आर्थिक संकट से जूझ रहा था. इन्होंने आर्थिक विकास के लिए सकारात्मक योजनाएं बनाईं. भले ही यह अपेक्षाकृत सफल ना हो पाए हों, लेकिन वह अपने उद्देश्य के प्रति पूरे ईमानदार थे जिसके परिणामस्वरूप यह प्रयास काफी हद तक असरदार रहे. केन्द्रीय सरकार अस्थिर होने के कारण नौकरशाही में भ्रष्टाचार अपने चरम पर था.


        इन्द्र कुमार गुजराल ने मुख्य रूप से नौकरशाहों पर अंकुश लगाने का काम किया. अपने राजनैतिक जीवन में वह पूर्णत: ईमानदार और अपने दायित्वों के प्रति समर्पित रहे. इनकी गिनती उन प्रधानमंत्रियों में की जाती है जिन्होंने प्रधानमंत्री पद की गरिमा को सदैव बनाए रखा. आज भले ही उन्होंने राजनीति से सन्यास ले लिया हो लेकिन साहित्यिक रूचि होने के कारण वह अकसर साहित्यिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में अपनी भागीदारी निभाते रहते हैं.


        इन्द्र कुमार गुजराल विदेश नीति के विशेषज्ञ थे. इसी कारण पड़ोसी देश पाकिस्तान के साथ संबंध सुधारने के लिए उन्होंने कड़े और महत्वपूर्ण कदम उठाए. प्रधानमंत्री गुजराल के कार्यकाल में देश आर्थिक संकट से जूझ रहा था. इन्होंने आर्थिक विकास के लिए सकारात्मक योजनाएं बनाईं. भले ही यह अपेक्षाकृत सफल ना हो पाए हों, लेकिन वह अपने उद्देश्य के प्रति पूरे ईमानदार थे जिसके परिणामस्वरूप यह प्रयास काफी हद तक असरदार रहे.


        केन्द्रीय सरकार अस्थिर होने के कारण नौकरशाही में भ्रष्टाचार अपने चरम पर था. इन्द्र कुमार गुजराल ने मुख्य रूप से नौकरशाहों पर अंकुश लगाने का काम किया. अपने राजनैतिक जीवन में वह पूर्णत: ईमानदार और अपने दायित्वों के प्रति समर्पित रहे. इनकी गिनती उन प्रधानमंत्रियों में की जाती है जिन्होंने प्रधानमंत्री पद की गरिमा को सदैव बनाए रखा. आज भले ही उन्होंने राजनीति से सन्यास ले लिया हो लेकिन साहित्यिक रूचि होने के कारण वह अकसर साहित्यिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में अपनी भागीदारी निभाते रहते हैं.


म्रुत्यु :


        इन्द्र कुमार गुजराल की मृत्यु 30 नवम्बर, 2012 में 93 वर्ष की आयु में हुई। वे अपने राजनैतिक जीवन में पूर्णत: ईमानदार और अपने दायित्वों के प्रति समर्पित रहे। इनकी गिनती उन प्रधानमंत्रियों में की जाती है जिन्होंने प्रधानमंत्री पद की गरिमा को सदैव बनाए रखा।