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ईदी अमीन दादा का जन्म 1925 के आसपास कोबोको या फिर कंपाला में हुआ था कम उम्र में ही इसके पिता ने इसका परित्याग कर दिया था। अमीन 1946 में एक सहायक रसोईये के रूप में ब्रिटिश औपनिवेशिक सेना में भर्ती हुआ था और 1959 तक यह वारंट अधिकारी बन गया यह अपने शक्तिशाली डील डौल की बदोलत 1951 से 1960 तक युगांडा का लाइट हैवीवेट बॉक्सिंग चैम्पियन व तैराक भी था। इसने जनवरी 1971 के सैन्य तख्तापलट द्वारा मिल्टन ओबोटे को पद से हटाने से पूर्व युगांडा की सेना में अंततः मेजर जनरल और कमांडर का ओहदा हासिल किया। अमीन के शासनकाल में मानव अधिकारों का दुरूपयोग, राजनीतिक दमन, जातीय उत्पीड़न व हिंसा, गैर कानूनी हत्या जैसी वरदातों को अंजाम दिया गया। अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के अनुसार इसके शासनकाल में लगभग 1 लाख से 5 लाख लोग मारे गये।
ब्रिटिश औपनिवेशिक सेना
अमीन 1946 में एक सहायक रसोईये के रूप में ब्रिटिश औपनिवेशिक सेना की किंग्स अफ्रीकन राइफल्स में शामिल हुआ। उसने दावा किया कि द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान उसे सेना में भर्ती होने के लिए मजबूर किया गया था तथा यह कि वह बर्मा अभियान में शामिल था, किन्तु दस्तावेज़ों से पता चलता है कि सूची में उसका नाम युद्ध के समाप्त होने के पश्चात् लिखा गया था। 1947 में उसे पैदल सेना में एक निजी सैनिक के रूप में केन्या भेजा गया था और उसने 1949 तक गिलगिल, केन्या में 21वीं केएआर (KAR) इन्फैन्ट्री बटालियन के लिए काम किया। उस वर्ष, सोमाली शिफ्टा विद्रोहियों से लड़ने के लिए उसकी टुकड़ी को सोमालिया में तैनात किया गया। 1952 में उसकी ब्रिगेड को केन्या में मऊ मऊ विद्रोहियों के खिलाफ तैनात किया गया था। उसी वर्ष उसे कॉर्पोरेल तथा इसके बाद 1953 में सार्जेंट के रूप में पदोन्नत किया गया।
1959 में अमीन को इफेन्डी (वारंट अधिकारी) बनाया गया, जो कि उस समय औपनिवेशिक ब्रिटिश सेना में किसी अश्वेत अफ़्रीकी के लिए सबसे बड़ा ओहदा था। उसी वर्ष अमीन युगांडा लौटा और 1961 में उसे लेफ्टिनेंट के पद पर पदोन्नत किया गया जिससे वह युगांडा के कमीशन प्राप्त करने वाले पहले दो अधिकारियों में से एक बन गया। उसके बाद उसे युगांडा के कार्मोजोंग तथा केन्या के टरकाना खानाबदोशों के बीच पशुओं के कारण होने वाले झगड़ों को कुचलने के लिए नियुक्त किया गया। 1962 में ग्रेट ब्रिटेन से युगांडा को आजादी मिलने के बाद, अमीन को कैप्टन तथा फिर 1963 में मेजर के पद पर पदोन्नत किया गया। अगले वर्ष, उसे सेना के उप कमांडर पद पर नियुक्त किया गया।
तख्तापलट की शुरुवात
Idi Amin ईदी अमीन ने सैन्य सरकार पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए कहा कि सरकार आर्थिक कुप्र्ब्धं का शिकार है तथा लोकतंत्र एवं कानून व्व्यव्स्था को बनाए रखने में नाकाम है | ईदी अमीन के इस आरोप पर पलटवार करते हुए ओबोट ने ईदी को अफ़्रीकी माँ द्वारा लाया सबसे बड़ा जानवर बताया | तख्तापलट शूरू हो गया | युगांडा वासी ईदी अमीन के समर्थन में आ गये तथा ओबोट की गुप्त पुलिस को समाप्त कर दिया गया | ईदी अमीन ने युगांडा में आर्थिक सुधारों का वायदा किया | सभी राजनीतक कैदियों की रिहाई कर दी | इसके साथ ही असैनिक शाषन लौटाने को भी ईदी अमीन ने कहा हालांकि यह साफ़ हो गया था कि ईदी अमीन के शाषनकाल में चुनाव नही होंगे |
सैन्य कमांड में Idi Amin ईदी अमीन के अध्यक्ष तथा सशत्रबलों का प्रमुख होने की घोषणा कर दी गयी | सत्तारूढ़ होते ही ईदी अमीन ने तुंरत ओबोट के वफादार सैनिको और अधिकारियों को सामूहिक रूप से फाँसी पर चढाने का काम किया | उसी समय कम्पाला की जेल में 32 सैन्य अधिकारी डायनामाईट विस्फोट में मारे गये | अमीन की सत्ता के प्रथम वर्ष में मरने वाले सैनिको की संख्या 9000 थी | जहा तक विदेशी मामलों की बात है इसमें ईदी अमीन पश्चिम समर्थक था उसका झुकाव ब्रिटेन और इजराइल की तरफ था |
किंग ऑफ़ स्कॉटलैंड'
फिर उन्होंने यूगांडा में अपनी तानाशाही का दौर शुरु किया और अपने विरोधी बहुत से सैनिकों को मरवा दिया.इसके बाद उन्होंने एशियाई मूल के हज़ारों लोगों को देश से निकाल दिया, उनकी संपत्ति ज़ब्त कर ली और अपने दोस्तों में बाँट दी.उनके शासन के दौरान यूगांडा में जहाँ एक ओर अराजकता फैलने लगी वहीं उन्होंने ख़ुद को नए ख़िताब देने भी शुरु किए और 'जीवन भर के लिए राष्ट्रपति', 'ब्रिटिश साम्राज्य के विजेता' और 'किंग ऑफ़ स्कॉटलैंड' बन बैठे.
तंज़ानिया पर हमला
1978 तक ईदी अमीन के कुछ ही दोस्त रह गए थे और देश की अंदरूनी समस्याओं से ध्यान हटाने के लिए उन्होंने पड़ोसी देश तंज़ानिया के ख़िलाफ़ युद्ध छेड़ दिया.
लेकिन उनकी योजना ख़ुद उन पर भी भारी पड़ गई और तंज़ानिया की सेना ने यूगांडा के निर्वासित लोगों के साथ मिलकर एक साल के भीतर उनकी फ़ौजों को हरा दिया. 1979 में ईदी अमीन को निर्वासन में जाने के लिए मजबूर होना पड़ा.
सऊदी अरब में दस साल काटने के बाद जब वे वापस यूगांडा जा रहे थे तो ज़ायर में उन्हें पहचान लिया गया और दोबारा सऊदी अरब पहुँचा दिया गया.
2003 में हुई थी ईदी की मौत
1979 में तंजानिया और अमीन विरोधी युगांडा सेना ने अमीन के शासन को जड़ से उखाड़ फेंका।अमीन की क्रूरता और तानाशाही का किस्सा अब समाप्त हो चुका था। 2003 में उसकी मौत हो गई लेकिन आज भी इसकी क्रूरता की कहानियां सुन लोग सहम जाते हैं।