Advertisement
मंच की दुनिया के लीजेंड, प्रख्यात नाटककार, निर्देशक, पटकथा-लेखक ,गीतकार और शायर हबीब अहमद खान को हबीब तनवीर के नाम से जाना जाता है । वो रायपुर में पैदा हुए और अपने करियर की शुरुआत पत्रकारिता से की । आल इंडिया रेडियो से भी जुड़े रहे। इंग्लैंड में ड्रामा का तकनीकी प्रशिक्षण प्राप्त किया । आगरा बाज़ार और चरण दास चोर उनके प्रसिद्ध नाटक हैं । आगरा बाजार में नज़ीर अकबर आबादी की शायरी, उनके व्यक्तित्व और उनके युग को प्रस्तुत किया गया है । इसमें प्रशिक्षित कलाकारों के बजाय सड़कों और गलियों में संगीत वाद्ययंत्र और तमाशा दिखाने वालों ने अपनी कला के जौहर दिखाए हैं । कहते हैं ये ड्रामा इसलिए भी यादगार है कि इसमें नया थिएटर के कलाकारों ने अपनी स्थानीय भाषा यानी छत्तीस गढ़ी में संवाद अदा किए थे । उन्होंने अपनी पत्नी मोनिका मिश्रा के साथ 'नया थिएटर 'के नाम से एक थिएटर कंपनी की स्थापना की थी । गांधी, ब्लैक एंड व्हाइट और मंगल पांडे सहित हबीब ने नौ फिल्मों में अभिनय किया । राज्य सभा के सदस्य भी बनाए गए । चरण दास चोर हबीब का सबसे लोकप्रिय नाटक था । ये ड्रामा तीन दशकों तक भारत और यूरोप में स्टेज किया गया । पदम श्री और पदम भूषण सहित कई सम्मान उनको दिये गए । । प्रसिद्ध संगीतकार और अभिनेत्री नगीन तनवीर उन्हीं की बेटी हैं ।
हबीब तनवीर का जन्म 1 सितम्बर,1932 को रायपुर में हुआ था। जो अब छत्तीसगढ़ की राजधानी है। उनके बचपन का नाम हबीब अहमद खान था। उन्होंने लॉरी म्युनिसिपल हाईस्कूल से मैट्रीक पास की, म़ॉरीस कॉलेज, नागपुर से स्नातक किया (1944) और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से एमए की। बचपन से हीं कविता लिखने का शौक चढ़ा। पहले तनवीर के छद्मनाम नाम से लिखना शुरू किया जो बाद में उनका पुकार नाम बन गया।
कार्यक्षेत्र
50 वर्षों की लंबी रंग यात्रा में हबीब जी ने 100 से अधिक नाटकों का मंचन व सर्जन किया। उनका कला जीवन बहुआयामी था। वे जितने अच्छे अभिनेता, निर्देशक व नाट्य लेखक थे उतने ही श्रेष्ठ गीतकार, कवि, गायक व संगीतकार भी थे। फ़िल्मों व नाटकों की बहुत अच्छी समीक्षायें भी की। उनकी नाट्य प्रस्तुतियों में लोकगीतों, लोक धुनों, लोक संगीत व नृत्य का सुन्दर प्रयोग सर्वत्र मिलता है। उन्होंने कई वर्षों तक देश भर ग्रामीण अंचलों में घूम-घूमकर लोक संस्कृति व लोक नाट्य शैलियों का गहन अध्ययन किया और लोक गीतों का संकलन भी किया।
नया थियेटर की स्थापना
छठवें दशक की शुरुआत में नई दिल्ली में हबीब तनवीर की नाट्य संस्था ‘नया थियेटर’ और राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय की स्थापना लगभग एक समय ही हुई। यह उल्लेखनीय है कि देश के सर्वश्रेष्ठ नाट्य संस्था राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के पास आज जितने अच्छे लोकप्रिय व मधुर गीतों का संकलन है उससे कहीं ज्यादा संकलन ‘नया थियेटर’ के पास मौजूद हैं। एच.एम.वी. जैसी बड़ी संगीत कंपनियों ने हबीब तनवीर के नाटकों के गीतों के कई आडियो कैसेट भी तैयार किये जो बहुत लोकप्रिय हुए।
हिन्दी रंगमंच का विकास
आजादी से पहले हिन्दी रंगकर्म पर पारसी थियेटर की पारम्परिक शैली का गहरा प्रभाव था। साथ ही हिन्दुस्तान के नगरों और महानगरों में पाश्चात्य रंग विधान के अनुसार नाटक खेले जाते थे। आजादी के बाद भी अंग्रेज़ी और दूसरे यूरोपीय भाषाओं के अनुदित नाटक और पाश्चात्य शैली हिन्दी रंगकर्म को जकड़े हुए थी। उच्च और मध्य वर्ग के अभिजात्यपन ने पाश्चात्य प्रभावित रुढिय़ों से हिन्दी रंगमंच के स्वाभाविक विकास को अवरुद्ध कर रखा था और हिन्दी का समकालीन रंगमंच नाट्य प्रेमियों की इच्छाओं को संतुष्ट करने में अक्षम था।
यूरोप में रहें
1955 में, जब वह 30 के दशक में था, हबीब इंग्लैंड में चले गए वहां, उन्होंने रॉयल अकादमी ऑफ नाटक कला (राडा) (1 9 55) में अभिनय और ब्रिस्टल पुरानी विक्ट थियेटर स्कूल (1 9 56) में निर्देशन में काम किया। अगले दो वर्षों में, उन्होंने यूरोप के माध्यम से यात्रा की, विभिन्न थियेटर गतिविधियों को देखकर। इस अवधि के मुख्य आकर्षण में से एक, उनकी आठ महीने बर्लिन में 1 9 56 में रहना था, जिसके दौरान उन्हें बर्टोल्ट ब्रेक के कई नाटकों को बर्लिनर एन्सेबल द्वारा तैयार किया गया था, जो ब्रेक्ट की मौत के कुछ महीने बाद आया था। आने वाले वर्षों में, उन्होंने अपने नाटकों में स्थानीय मुहावरों का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया, ताकि पार सांस्कृतिक कहानियों और विचारधाराओं को व्यक्त किया जा सके। यह वर्षों में, 'जड़ों के थिएटर' को जन्म दिया, जिसे शैली, प्रस्तुति और तकनीक में एकदम सरलता से चिह्नित किया गया था, फिर भी प्रशंसनीय और शक्तिशाली अनुभवात्मक रूप से शेष नहीं।
भारत पर लौटें
एक गहराई से प्रेरित हबीब 1 9 58 में भारत लौट आए और पूर्णकालिक निर्देशन करने लगे। उन्होंने शीतक के संस्कृत के काम पर आधारित 'मित्ती की गादी' का निर्माण किया, लंदन के बाद का एक खेल, मृणाकाकटिका यह छत्तीसगढ़ी में अपना पहला महत्वपूर्ण उत्पादन बन गया छत्तीसगढ़ के छह लोक कलाकारों के साथ काम करने के बाद से वह उनकी वापसी के बाद काम कर रहे थे। उन्होंने 1 959 में थिएटर कंपनी 'नया थियेटर' पाया।
अपने खोज चरण में, अर्थात् 1970-173 में, उन्होंने एक और थियेटर प्रतिबंध से मुक्त कर दिया- वह अब लोक कलाकार नहीं बना पाए, जो अपने सभी नाटकों में प्रदर्शन कर रहे थे, हिंदी बोलते हैं इसके बजाय, कलाकारों को छत्तीसगढ़ी में बदल दिया गया, एक स्थानीय भाषा वे ज्यादा आदी थे। बाद में, उन्होंने 'पांडवानी', क्षेत्र और मंदिर के रस्में से लोक गायन शैली के साथ भी प्रयोग करना शुरू कर दिया।
पुरस्कार और सम्मान
हबीब तनवीर को संगीत नाटक एकेडमी अवार्ड (1969), पद्मश्री अवार्ड (1983) संगीत नाटक एकादमी फेलोशीप (1996), पद्म विभूषण(2002) जैसे सम्मान मिले। वे 1972 से 1978 तक संसद के उच्च सदन यानि राज्यसभा में भी रहे। उनका नाटक चरणदास चोर एडिनवर्ग इंटरनेशनल ड्रामा फेस्टीवल (1982) में पुरस्कृत होने वाला ये पहला भारतीय नाटक गया।