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नाम :– चिन्तामणि द्वारकानाथ देशमुख ।
जन्म :– 14 जनवरी 1896, महाराष्ट्र, रायगढ़ ।
पिता :– द्वारिकानाथ गणेश देशमुख ।
माता :– भागीरथीबाई ।
पत्नी/पति :– दुर्गाबाई देशमुख ।
चिन्तामणि द्वारकानाथ देशमुख ब्रिटिश शासन के अधीन आई.सी.एस. अधिकारी और भारतीय रिज़र्व बैंक के तीसरे गवर्नर थे। ब्रिटिश राज ने उन्हें 'सर' की उपाधि दी थी। इसके पश्चात् उन्होंने केंद्रीय मंत्रिमंडल में भारत के तीसरे वित्तमंत्री के रूप में भी सेवा की। सी.डी. देशमुख 'विश्वविद्यालय अनुदान आयोग' के अध्यक्ष और दिल्ली विश्वविद्यालय के उपकुलपति बनाये गए थे। उनको 1975 में राष्ट्रपति ने 'पद्म विभूषण' के अलंकरण से सम्मानित किया था। उन्होंने कई पुस्तकें भी लिखीं।
प्रारम्भिक जीवन :
सी॰ डी॰ देशमुख का जन्म महाराष्ट्र के रायगढ़ ज़िले के नाता में एक चंद्रसेनिया कायस्थ प्रभु परिवार में प्रतिष्ठित वकील द्वारिकानाथ गणेश देशमुख के यहाँ 14 जनवरी 1896 ई. को हुआ। इनकी माता का नाम भागीरथीबाई था, जो एक धार्मिक महिला थी। इनका बचपन रायगढ़ ज़िले के रोहा में ही बीता। इनका परिवार अत्यंत समृद्ध था और भूमि जोत पृष्ठभूमि की सार्वजनिक सेवा की एक परंपरा से जुड़ा हुआ था।
देशमुख का एक शानदार अकादमिक कैरियर रहा है। उन्होने बंबई विश्वविद्यालय से 1912 में मैट्रिक परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की और संस्कृत में पहली बार छात्रवृत्ति प्राप्त किया। इसके पश्चात 1917 में उन्होने यीशु कॉलेज, कैम्ब्रिज, इंग्लैंड से वनस्पति विज्ञान, रसायन विज्ञान और भूविज्ञान के साथ स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की, जहां उन्हें वनस्पति विज्ञान में फ्रैंक स्मार्ट पुरस्कार प्राप्त हुआ। अंतत: वे 1918 में भारतीय सिविल सेवा परीक्षा में अव्वल रहे।
देशमुख ने 1912 में बंबई विश्वविद्यालय से मैट्रिक की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की । साथ ही उन्होंने संस्कृत की जगन्नाथ शंकर सेट छात्रवृत्ति भी हासिल की । 1917 में उन्होंने कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से नेचुरल साइंस से, वनस्पतिशास्त्र, रसायनशास्त्र तथा भूगर्भशास्त्र लेकर, ग्रेजुएशन पास किया । साथ ही उन्होंने वनस्पतिशास्त्र में फ्रैंक स्मार्ट प्राइस भी जीता । 1918 में लन्दन में आयोजित इण्डियन सिविल सर्विस की परीक्षा में वह बैठे और उन्हें सफल उम्मीदवारों में पहला स्थान मिला ।
1939 में देशमुख रिजर्व बैंक के लायजन ऑफिसर बने । इनका काम बैंक, व्यवस्था तथा सरकार के बीच तालमेल बनाए रखना था । तीन महीने के भीतर ही अपनी कार्य कुशलता के कारण देशमुख बैंक के सेन्ट्रल बोर्ड के सेक्रेटरी बना दिए गए । दो वर्ष बाद वह डिप्टी गवर्नर बने तथा 11 अगस्त 1943 को उन्हें गवर्नर बना दिया गया । यह पद उन्होंने 30 जून 1949 तक सम्भाला । 1939 में देशमुख रिज़र्व बैंक के लायजन ऑफिसर बने। इनका काम बैंक, व्यवस्था तथा सरकार के बीच तालमेल बनाए रखना था। तीन महीने के भीतर ही अपनी कार्य कुशलता के कारण देशमुख बैंक के सेन्ट्रल बोर्ड के सेक्रेटरी बना दिए गए। दो वर्ष बाद वह डिप्टी गवर्नर बने तथा 11 अगस्त 1943 को उन्हें गवर्नर बना दिया गया। यह पद उन्होंने 30 जून 1949 तक सम्भाला। अपने कार्यकाल में देशमुख एक बेहद प्रभावी गवर्नर सिद्ध हुए।
उन्होंने रिज़र्व बैंक को निजी शेषन धारकों के बैंक से एक राष्ट्रीय बैंक के रूप में बदले जाने में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। देशमुख ने बैंकों की गतिविधियों को संयोजित करने के लिए ऐसा कानूनी ढाँचा तैयार करके दिया जो बिना किसी, बाधा के लम्बे समय तक चल सके। इसी के आधार पर ऋण नीतियाँ स्थापित की गईं और इण्डस्ट्रियल फाइनेंस कारपोरेशन ऑफ इण्डिया का गठन हो सका।
वर्ष 1956 से 1960 के बीच जब चिन्तामन देशमुख विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के चेयरमैन थे, तब शिक्षा तथा समाज सेवाओं के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण सुधार सामने आए जिनसे विश्वविद्यालयों के कार्य स्तर में देशव्यापी विकास देखा जा सका। चिन्तामन मार्च 1960 से फरवरी 1967 तक दिल्ली विश्वविद्यालय के उपकुलपति भी रहे। उनके कार्यकाल में दिल्ली विश्वविद्यालय ने उच्चतर शिक्षा के क्षेत्र में बेजोड़ नाम कमाया। वित्तीय कार्यक्षेत्र तथा शिक्षा क्षेत्र के अतिरिक्त देशमुख विविध विभागों में कार्यरत रहे।
पुरस्कार :
कलकत्ता विश्वविद्यालय द्वारा 'डॉक्टर ऑफ़ साइंस' (1957) की उपाधि मिली। सन 1959 में रेमन मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित हुए। सन 1975 में भारत सरकार द्वारा पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया।