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लेखक

बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय जीवनी - Biography of Bankim Chandra Chattopadhyay in Hindi Jivani

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        बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय बंगला के प्रख्यात उपन्यासकार, कवि, गद्यकार और पत्रकार थे। भारत के राष्ट्रीय गीत 'वन्दे मातरम्' उनकी ही रचना है जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के काल में क्रान्तिकारियों का प्रेरणास्रोत बन गया था। रवीन्द्रनाथ ठाकुर के पूर्ववर्ती बांग्ला साहित्यकारों में उनका अन्यतम स्थान है। आधुनिक युग में बंगला साहित्य का उत्थान उन्नीसवीं सदी के मध्य से शुरु हुआ।


        इसमें राजा राममोहन राय, ईश्वर चन्द्र विद्यासागर, प्यारीचाँद मित्र, माइकल मधुसुदन दत्त, बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय, रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने अग्रणी भूमिका निभायी। इसके पहले बंगाल के साहित्यकार बंगला की जगह संस्कृत या अंग्रेजी में लिखना पसन्द करते थे। बंगला साहित्य में जनमानस तक पैठ बनाने वालों मे शायद बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय पहले साहित्यकार थे।

       

         बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय का जन्म २७ जून सन् १८३८ को उत्तरी चौबीस परगना के कन्थलपाड़ा में एक परंपरागत और समृद्ध बंगाली परिवार में हुआ था। उनकी शिक्षा हुगली कॉलेज और प्रेसीडेंसी कॉलेज, कोलकाता में हुई। १८५७ में उन्होंने बीए पास किया और १८६९ में क़ानून की डिग्री हासिल की। इसके बाद उन्होने सरकारी नौकरी कर ली और १८९१ में सरकारी सेवा से रिटायर हुए। उनका निधन अप्रैल १८९४ में हुआ। प्रेसीडेंसी कालेज से बी. ए. की उपाधि लेनेवाले ये पहले भारतीय थे।


        शिक्षासमाप्ति के तुरंत बाद डिप्टी मजिस्ट्रेट पद पर इनकी नियुक्ति हो गई। कुछ काल तक बंगाल सरकार के सचिव पद पर भी रहे। रायबहादुर और सी. आई. ई. की उपाधियाँ पाईं।अत: बंकिम की प्रारम्भिक शिक्षा वहीं पर हुई । बचपन से ही उनकी रुचि संस्कृत के प्रति थी । अंग्रेजी के प्रति उनकी रुचि तब समाप्त हो गयी, जब उनके अंग्रेजी अध्यापक ने उन्हें बुरी तरह से डांटा था । पढ़ाई से अधिक खेलकूद में उनकी विशेष रुचि थी । वे एक मेधावी व मेहनती छात्र थे । 1858 में कॉलेज की परीक्षा पूर्ण कर ली । बी०ए० की परीक्षा में वे प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुए । पिता की आज्ञा का पालन करते हुए उन्होंने 1858 में ही डिप्टी मजिस्ट्रेट का पदभार संभाला ।


        सरकारी नौकरी में रहते हुए उन्होंने 1857 का गदर देखा था, जिसमें शासन प्रणाली में आकस्मिक परिवर्तन हुआ । शासन भार ईस्ट इण्डिया कम्पनी के हाथों में न रहकर महारानी विक्टोरिया के हाथों में आ गया था । सरकारी नौकरी में होने के कारण वे किसी सार्वजनिक आन्दोलन में प्रत्यक्ष भाग नहीं ले सकते थे । अत: उन्होंने साहित्य के माध्यम से स्वतन्त्रता आन्दोलन के लिए जागृति का संकल्प लिया ।


        ‘वंदेमातरम’ इस भारतीय राष्ट्रगीत के निर्माण कर्ता के रूप जाने वाले बंकिमचंद्र चटर्जी / Bankim Chandra Chatterjee आधुनिक बंगाली साहित्य के प्रवर्तक के रूप में भी जाना जाता है. बंकिमचंद्र ने ‘आंनदमठ’ जैसी ग्रंथ लिखकर स्वातंत्र लढाई को ताकद दी. बहोत बुद्धिमान ऐसी पहचान वाले बंकिमचंद्र का समावेश कोलकता के विश्वविद्यालय के पहले पद्विधर में होता है. बंकिमचंद्र इन्होंने बंगाली उपन्यास को नया रूप दिया. फिर भी उनकी पहला उपन्यास ‘रायमोहन्स वाईफ’ अंग्रेजी में था.


        1865 में उन्होंने ‘दुर्गेश नंदिनी’ ये पहली बंगाली उपन्यास लिखा. उस के बाद ‘कपालकुंडला’, ‘मृणालिनी’, ‘विषवृक्ष’, ‘चंद्रशेखर’, ‘कृष्ण कांतेर विल’, ‘आनंदमठ’, देवी चौधुराणी’, सीताराम’, इन जैसे ही ‘कमला कांतेर दप्तर’, विज्ञान रहस्य’, लोकरहस्य’, ‘धर्मतत्व’. इन जैसे ग्रंथ भी लिखे. अपने लेखन में बंकिमचंद्र ने शुद्ध और उच्च बंगाली भाषा का उपयोग किया और समय के अनुसार उन्होंने बोलीभाषा को स्थान दिया. वैचारिक लेखन के comedy वृत्ती दिखाने का पहला प्रयोग उन्होंने किया.


        बंकिमचंद्र की और एक मुख्य पहचान मतलब राष्ट्रवादी विचारो के लिये किये हुये काम भारतीय जनता में स्वातंत्र भावना जागृत करने के लिये 1872 में उन्होंने ‘वंगदर्शन’ ये पत्रिका शुरू किया. ‘वंगदर्शन’ ने बंगाली पत्रिका का नया पर्व शुरू किया. उन्हें बड़ी लोकप्रियता मिली. वैसे ही उसमे से बहोत अच्छे लेखक सामने आये. बंकिमचंद्र के साहित्य का प्रभाव स्वातंत्र्योत्तर समय में ही चलता रहा.


        बंकिम ने साहित्य के क्षेत्र में कुछ कविताएँ लिखकर प्रवेश किया। उस समय बंगला में गद्य या उपन्यास कहानी की रचनाएँ कम लिखी जाती थीं। बंकिम ने इस दिशा में पथ-प्रदर्शक का काम किया। 27 वर्ष की उम्र में उन्होंने 'दुर्गेश नंदिनी' नाम का उपन्यास लिखा। इस ऐतिहासिक उपन्यास से ही साहित्य में उनकी धाक जम गई। फिर उन्होंने 'बंग दर्शन' नामक साहित्यिक पत्र का प्रकाशन प्रारम्भ किया। रबीन्द्रनाथ ठाकुर 'बंग दर्शन' में लिखकर ही साहित्य के क्षेत्र में आए। वे बंकिम को अपना गुरु मानते थे। उनका कहना था कि, 'बंकिम बंगला लेखकों के गुरु और बंगला पाठकों के मित्र हैं'।


        “देवी चौधरानी” उनका एक अन्य उपन्यास और “कमलाकांत का रोजनामचा” गम्भीर निबन्धों का संग्रह है | एक ओर विदेशी सरकार की सेवा और देश के नवजागरण के लिए उच्च कोटि के साहित्य की रचना करना यह काम बंकिम (Bankim Chandra Chatterjee) के लिए ही सम्भव था | आधुनिक बंगला साहित्य के राष्ट्रीयता के जनक इस नायक का 8 अप्रैल 1894 को देहांत हो गया |


प्रसिद्ध उपन्यास :


        बंकिम के दूसरे उपन्यास 'कपाल कुण्डली', 'मृणालिनी', 'विषवृक्ष', 'कृष्णकांत का वसीयत नामा', 'रजनी', 'चन्द्रशेखर' आदि प्रकाशित हुए। राष्ट्रीय दृष्टि से 'आनंदमठ' उनका सबसे प्रसिद्ध उपन्यास है। इसी में सर्वप्रथम 'वन्दे मातरम्' गीत प्रकाशित हुआ था। ऐतिहासिक और सामाजिक तानेबाने से बुने हुए इस उपन्यास ने देश में राष्ट्रीयता की भावना जागृत करने में बहुत योगदान दिया। लोगों ने यह समझ लिया कि विदेशी शासन से छुटकारा पाने की भावना अंग्रेज़ी भाषा या यूरोप का इतिहास पढ़ने से ही जागी। इसका प्रमुख कारण था अंग्रेज़ों द्वारा भारतीयों का अपमान और उन पर तरह-तरह के अत्याचार। बंकिम के दिए ‘वन्दे मातरम्’ मंत्र ने देश के सम्पूर्ण स्वतंत्रता संग्राम को नई चेतना से भर दिया।


रबीन्द्रनाथ के शब्दों में :


        रबीन्द्रनाथ ने एक स्थान पर कहा है- राममोहन ने बंग साहित्य को निमज्जन दशा से उन्नत किया, बंकिम ने उसके ऊपर प्रतिभा प्रवाहित करके स्तरबद्ध मूर्ति का अपसरित कर दी। बंकिम के कारण ही आज बंगभाषा मात्र प्रौढ़ ही नहीं, उर्वरा और शस्यश्यामला भी हो सकी है।