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अमर्त्य सेन जीवनी - Biography of Amartya Sen in Hindi Jivani

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अमर्त्य सेन अर्थशास्त्र के लिये 1998 का नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाले पहले एशियाई हैं। शांति निकेतन में जन्मे इस विद्वान् अर्थशास्त्री ने लोक कल्याणकारी अर्थशास्त्र की अवधारणा का प्रतिपादन किया है। उन्होंने कल्याण और विकास के विभिन्न पक्षों पर अनेक पुस्तकें तथा पर्चे लिखे हैं। प्रो. अमर्त्य सेन आम अर्थशास्त्रियों के सम्मान के समान नहीं हैं। वह अर्थशास्त्री होने के साथ-साथ, एक मानववादी भी हैं। इन्होंने अकाल, ग़रीबी, लोकतंत्र, स्त्री-पुरुष असमानता और सामाजिक मुद्दों पर जो पुस्तकें लिखीं हैं, वे अपने आप में बेजोड़ हैं। अमर्त्य सेन हार्वड विश्वविद्यालय में प्राध्यापक हैं। वे जादवपुर विश्वविद्यालय, दिल्ली स्कूल ऑफ इकानामिक्स और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में भी शिक्षक रहे हैं। अमर्त्य सेन ने एम.आई.टी, स्टैनफोर्ड, बर्कली और कॉरनेल विश्वविद्यालयों में अतिथि अध्यापक के रूप में भी शिक्षण कार्य किया है।


डॉ. सेन के ‘कल्याणकारी अर्थशास्त्र’ के क्षेत्र में किए गए कार्यों की महत्ता को देखते हुए 1998 में उन्हें अर्थशास्त्र के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया | उन्हें पुरस्कार देने वाली समिति ने उनके बारे में टिप्पणी की थी, “प्रोफेसर सेन ने ‘कल्याणकारी अर्थशास्त्र’ की बुनियादी समस्याओं के शोध में महत्वपूर्ण योगदान दिया है | “डॉ. सेन की उपलब्धियों को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें 1999 में ‘भारत रत्न’ देकर सम्मानित किया | यह पुरस्कार कला, साहित्य और विज्ञान को आगे बढ़ाने के लिए की गई विशिष्ट सेवा और जन-सेवा में उत्कृष्ट योगदान को सम्मानित करने के लिए प्रदान किया जाता है | भारत सरकार विश्व-प्रसिद्ध प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के पुनरुद्धार में उनका सहयोग ले रही है | उन्हें विश्व के कई विश्वविद्यालय ने मानद उपाधियां देकर सम्मानित किया है |


डॉ. अमर्त्य सेन ने ‘कल्याणकारी अर्थशास्त्र’ में महिलाओं और वंचित वर्ग के कल्याण का सपना देखा है | आज वैश्वीकरण की प्रक्रिया जोरों पर है, इस संदर्भ में उनका मत है कि विकासशील राष्ट्रों को पर्याप्त सामाजिक सुरक्षा व्यवस्था सुनिश्चित करने के पश्चात ही वैश्वीकरण की दिशा में कदम उठाने चाहिए | भारत और पाकिस्तान जैसे देशों की मौजूदा परिस्थितियों को देखते हुए वे इन दोनों देशों के वैश्वीकरण की अंधी दौड़ में शामिल होने के पक्षधर नहीं हैं | इस समय वे अमेरिका के हावर्ड विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं | उनका अर्थचिंतन ही नहीं उनका संपूर्ण जीवन भी मानव समुदाय के लिए कल्याणकारी साबित हुआ है | अपने देश के आर्थिक विकास के लिए अपने प्रयासों को मूर्त रूप देने के लिए वे हर वर्ष यहां आते हैं |


शिक्षा


अमर्त्य सेन का जन्म कोलकाता शहर के शांति निकेतन नामक स्थान में हुआ था। जहाँ उनके नाना 'क्षिति मोहन सेन' शिक्षक थे। उनके पिता 'आशुतोष सेन' ढाका विश्वविद्यालय में रसायन शास्त्र के अध्यापक थे। कोलकाता के शांति निकेतन और 'प्रेसीडेंसी कॉलेज' से शिक्षा पूर्ण करके उन्होंने कैम्ब्रिज के ट्रिनीटी कॉलेज से शिक्षा प्राप्त की। अपने जीवन के कुछ वर्ष अमर्त्य सेन ने बर्मा (वर्तमान म्यांमार) में स्थित मांडले नामक स्थान पर भी बिताए। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा ढाका में हुई। अमर्त्य सेन को 1999 में भारत रत्‍न से सम्मानित किया गया।


केनेथ ऐरो नाम के एक अर्थशास्त्री ने असंभाव्यता सिद्धांत नाम की अपनी खोज में कहा था कि व्यक्तियों की अलग-अलग पसन्द को मिलाकर समूचे समाज के लिए किसी एक संतोषजनक पसन्द का निर्धारण करना सम्भव नहीं हैं। प्रो. सेन ने गणितीय आधार यह सिद्ध किया है कि समाज इस तरह के नतीजों के असर को कम करने के उपाय ढूँढ सकता है।


शोध कार्य


सन 1960 और 1970 के दशक में अमर्त्य सेन ने अपने शोध पत्रों के माध्यम से ‘सोशल चॉइस’ के सिद्धांत को बढ़ावा दिया। अमेरिकी अर्थशाष्त्री केनेथ ऐरो ने इस सिद्धांत को अपने कार्यों के माध्यम से पहचान दिलाया था। सन 1981 में उन्होंने अपनी चर्चित पुस्तक ‘पावर्टी एंड फेमिंस: ऐन एस्से ऑन एनटाइटेलमेंट एंड डीप्राइवेशन’ प्रकाशित की। इस पुस्तक के माध्यम से उन्होंने यह बताया कि अकाल सिर्फ भोजन की कमी से नहीं बल्कि खाद्यानों के वितरण में असमानता के कारण भी होता है। उन्होंने यह तर्क दिया कि ‘सन 1943 का बंगाल अकाल’ अप्रत्याशित शहरी विकास (जिसने वस्तुओं की कीमतें बढ़ा दी) के कारण हुआ। इसके कारण लाखों ग्रामीण मजदूर भूखमरी का शिकार हुए क्योंकि उनकी मजदूरी और वस्तुओं के कीमतों में भीषण असमानता थी।


अकाल के कारणों पर उनके महत्वपूर्ण कार्यों के अलावा ‘डेवलपमेंट इकोनॉमिक्स’ के क्षेत्र में अमर्त्य सेन के कार्यों ने ‘संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम’ के ‘मानव विकास रिपोर्ट’ के प्रतिपादन में विशेष प्रभाव डाला। ‘संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम’ की ‘मानव विकास रिपोर्ट’ एक वार्षिक रिपोर्ट है जो विभिन प्रकार के सामाजिक और आर्थिक सूचकों के आधार पर विश्व के देशों को रैंक (स्थान) प्रदान करती है। डेवलपमेंट इकोनॉमिक्स और सामाजिक सूचकों में अमर्त्य सेन का सबसे महत्वपूर्ण और क्रन्तिकारी योगदान है ‘कैपबिलिटी’ का सिद्धांत, जो उन्होंने अपने लेख ‘इक्वलिटी ऑफ़ व्हाट’ में प्रतिपादित किया। अमर्त्य सेन ने अपने लेखों और शोध के माध्यम से गरीबी मापने के ऐसे तरीके विकसित किये जिससे गरीबों की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए उपयोगी जानकारी उत्पन्न किये गए।


व्यावसायिक कैरियर


सेन ने अपने कैरियर की शुरुआत एक शिक्षक और अनुसंधान विद्वान के तौर पर अर्थशास्त्र विभाग, जादवपुर विश्वविद्यालय से किया। 1960 और 1961 के बीच सेन, संयुक्त राज्य अमेरिका में मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में एक विजिटिंग प्रोफेसर थे, जहां उन्हें पॉल सैमुएलसन, रॉबर्ट सोलो, फ्रेंको मोडिग्लिनी, और नॉर्बर्ट वीनर के बारे में पता चला। वे यूसी-बर्कले और कॉर्नेल में भी विजिटिंग प्रोफेसर प्रोफेसर थे।


उन्होंने 1963 और 1971 के बीच दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर के रूप में पढ़ाया। सेन बहुत सारे प्रतिष्ठित अर्थशास्त्र के विद्वान् के सहयोगी भी रह चुके हैं जिनमे मनमोहन सिंह (भारत के पूर्व प्रधान मंत्री और भारतीय अर्थव्यवस्था को उदार बनाने के लिए जिम्मेदार एक अनुभवी अर्थशास्त्री) केएन राज (विभिन्न प्रधान मंत्रियों के सलाहकार और एक अनुभवी अर्थशास्त्री जो सेंटर फॉर डेवेलपमेंट स्टडीज के संस्थापक थे) और जगदीश भगवती है। 1987 में वे हार्वर्ड में इकॉनॉमिक्स के थॉमस डब्ल्यू. लैंट यूनिवर्सिटी प्रोफेसर के रूप में शामिल हो गए।


नालंदा प्रोजेक्ट


        नालंदा जो 5 वीं शताब्दी से लेकर 1197 तक उच्च शिक्षा का एक प्राचीन केंद्र था। इसको पुनः चालु किया गया एवं 19 जुलाई 2012 को, सेन को प्रस्तावित नालंदा विश्वविद्यालय (एनयू) के प्रथम चांसलर के तौर पर नामित किया गया था। इस विश्वविद्यालय में अगस्त 2014 में अध्यापन का कार्य शुरू हुआ था। 20 फरवरी 2015 को अमर्त्य सेन ने दूसरे कार्यकाल के लिए अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली।