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कलाकार

उदय शंकर जीवनी - Biography of Uday Shankar in Hindi Jivani

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जन्म- 8 दिसम्बर, 1900 ई., राजस्थान; मृत्यु- 26 सितम्बर, 1977 ई., कोलकाता) भारत के प्रसिद्ध नर्तक, नृत्य निर्देशक और बैले निर्माता थे। उन्हें भारत में 'आधुनिक नृत्य के जन्मदाता' के रूप में भी जाना जाता है।उनकी शिक्षा-दीक्षा भी वेदों के अध्ययन के साथ हुई। काशी में भी उन्होंने अध्ययन किया, जहां स्व. पं. चन्द्रशेखर शास्त्री ने उन्हें संस्कृत के स्थान पर हिन्दी पढ़ने और हिन्दी लिखने की ओर प्रेरित किया।


उन्होंने लिखा है कि भगत सिंह, सुखदेव, यशपाल, भगवतीचरण सबसे उनका सीधा संपर्क रहा। आजादी के बाद भट्टजी आकाशवाणी के परामर्शदाता एवं निर्देशक रहे। नाटक और एकांकी के क्षेत्र में अग्रणी गिने जाने वाले उदयशंकर भट्ट की मृत्यु सन्‌ 1966 को दिल्ली में हुई ।


शंकर ने 1917 में मुंबई में औपचारिक कला प्रशिक्षण शुरू किया और दो साल बाद लंदन के रॉयल कॉलेज ऑफ आर्ट में पढ़ाई की। 1920 के दशक के दौरान उन्होंने बैलेरिना अन्ना पावलोवा के साथ नृत्य किया और दो नृत्य, हिंदू वेडिंग और युगल राधा और कृष्ण को अपने कार्यक्रम ओरिएंटल इम्प्रेसेंस में शामिल करने के लिए बनाया। 1929 में भारत लौटना, शंकर ने अपनी ही नृत्य कंपनी का गठन किया उनके दल ने 1930 में यूरोप का दौरा किया और 1932 से 1960 तक संयुक्त राज्य अमेरिका में नियमित रूप से दिखाई दिया। 1 9 38 में उन्होंने उत्तर प्रदेश के अल्मोड़ा में उदय शंकर इंडिया संस्कृति केंद्र की स्थापना की। (द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान नृत्य, नाटक और संगीत के लिए विद्यालय बंद हुआ, लेकिन 1965 में कलकत्ता में फिर से खोल दिया गया।) अपने भाई के साथ, सितारिस्ट रविशंकर के साथ, उन्होंने शास्त्रीय और लोक नृत्य का पता लगाया और नृत्य नाटक बनाया जिसमें सामाजिक टिप्पणी शामिल थी। हालांकि पारंपरिक भारतीय नृत्य के अनुयायियों द्वारा शंकर के काम की आलोचना की गई थी, उनके समर्थकों में ऐसे प्रसिद्ध भारतीय शामिल थे जो कवि रबिंद्रनाथ टैगोर थे।


करियर


उदय शंकर ने भारतीय शास्त्रीय नृत्य के किसी भी स्वरूप में कोई औपचारिक प्रशिक्षण नहीं लिया था, उनकी प्रस्तुतियां रचनात्मक थीं। हालांकि कम उम्र से ही वे भारतीय शास्त्रीय और लोक नृत्य शैलियों के संपर्क में आते रहे थे, यूरोप में रहने के दौरान वे बैले से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने दोनों शैलियों के तत्वों को मिलाकर नृत्य की एक नयी शैली की रचना करने का फैसला कर लिया जिसे हाई-डांस (hi-dance) कहा गया। उन्होंने भारतीय शास्त्रीय नृत्य के स्वरूपों और उनके प्रतीकों को नृत्य रूप प्रदान किया; इसके लिए उन्होंने ब्रिटिश संग्रहालय में राजपूत चित्रकला और मुगल चित्रकला की शैलियों का अध्ययन किया था। इसके अलावा ब्रिटेन में अपने प्रवास के दौरान वे नृत्य प्रदर्शन करने वाले कई कलाकारों के संपर्क में आये, बाद में वे फ्रांसीसी सरकार के वजीफे 'प्रिक्स डी रोम' पर कला में उच्च-स्तरीय अध्ययन के लिए रोम चले गए।


शीघ्र ही इस तरह के कलाकारों के साथ उनका संपर्क बढ़ गया, साथ ही भारतीय नृत्य करने को एक समकालीन रूप देने का उनका विचार भी मजबूत हुआ। उनकी कामयाबी के रास्ते में क्रांतिकारी परिवर्तन प्रख्यात रूसी बैले नर्तकी अन्ना पावलोवा से एक मुलाक़ात के रूप में आया। वे भारत आधारित विषयों पर सहयोग के लिए कलाकारों की खोज में थीं। इसी के कारण हिन्दू विषयों पर आधारित बैले की रचना हुई जिसमें अन्ना के साथ एक युगल 'राधा-कृष्णा' और 'हिंदू विवाह' को अन्ना के प्रोडक्शन 'ओरिएंटल इम्प्रेशंस' में शामिल किया गया था।


योगदान


उदय शंकर ने 'भारतीय शास्त्रीय नृत्य' के स्वरूपों और उनके प्रतीकों को नृत्य रूप प्रदान किया। इसके लिए उन्होंने ब्रिटिश संग्रहालय में राजपूत चित्रकला और मुग़ल चित्रकला की शैलियों का गम्भीर अध्ययन किया। इसके अतिरिक्त ब्रिटेन में अपने प्रवास के दौरान वे नृत्य प्रदर्शन करने वाले कई कलाकारों के संपर्क में आये। बाद में वे फ़्राँसीसी सरकार के वजीफे 'प्रिक्स डी रोम' पर कला में उच्च-स्तरीय अध्ययन के लिए वे रोम चले गए। शीघ्र ही इस तरह के कलाकारों के साथ उदय शंकर का संपर्क बढ़ता चला गया। साथ ही भारतीय नृत्य करने को एक समकालीन रूप देने का उनका विचार भी मजबूत हुआ।


रूसी नर्तकी से मुलाकात


उनकी कामयाबी के रास्ते में क्रांतिकारी परिवर्तन प्रख्यात रूसी बैले नर्तकी अन्ना पावलोवा से एक मुलाक़ात के रूप में आया। अन्ना भारत आधारित विषयों पर सहयोग के लिए कलाकारों की खोज कर रही थीं। इसी कारण हिन्दू विषयों पर आधारित बैले की रचना हुई, जिसमें अन्ना के साथ एक युगल राधा-कृष्ण' और 'हिन्दू विवाह' को अन्ना के प्रोडक्शन 'ओरिएंटल इम्प्रेशंस' में शामिल किया गया। इस बैले का प्रदर्शन लंदन के कोवेंट गार्डन में स्थित रॉयल ओपेरा हाउस में किया गया था। वे स्वयं कृष्ण बने और पावलोवा ने राधा की भूमिका का रोल किया। बाद में भी वे बैले की रचना और कोरियोग्राफ़ी में जुटे रहे, जिनमें से एक अजन्ता की गुफाओं के भित्तिचित्रों पर आधारित थी।


कृतियाँ


उदयशंकर भट्ट की रचनाएं हैं - तक्षशिला, राका, मानसी, विसर्जन, अमृत और विष, इत्यादि, युगदीप, यथार्थ और कल्पना, विजयपथ, अन्तर्दर्शन : तीन चित्र, मुझमें जो शेष है(काव्य)।


वह जो मैंने देखा, नए मोड़, सागर, लहरें और मनुष्य, लोक-परलोक, शेष-अशेष (उपन्यास)


साहित्य के स्वर (निबंध)।


विक्रमादित्य, दाहर, सगर विजय, कमला, अंतहीन अंत, मुक्तिपथ, शक विजय, नया समाज, पार्वती, विद्रोहिणी अम्बा, विश्वामित्र, मत्स्यगंधा, राधा, अशोक-वन-बन्दिनी, विक्रमोर्वशीय, अश्वत्थामा, गुरु द्रोण का अन्तर्निरीक्षण, नहुष निपात, कालिदास, संत तुलसीदास, एकला चलो रे, क्रांतिकारी, अभिनव एकांकी नाटक, स्त्री का हृदय, आदिम युग, तीन नाटक, धूमशिखा, पर्दे के पीछे, अंधकार और प्रकाश, समस्या का अंत, आज का आदमी (नाट्य-साहित्य)


नाटक अम्बा


उदयशंकर भट्ट का नाटक अम्बा (डिजीटल लाइब्रेरी ऑफ इंडिया पर)


पुरस्कार व सम्मान


उदय शंकर ने 'भारतीय शास्त्रीय नृत्य' और यहाँ की संस्कृति को विश्व के हर कोने में पहुँचाने में विशेष योगदान किया। ये उनकी अथक लगन और कार्य के प्रति समर्पण की भावना ही थी कि भारत की संस्कृति से समूचा विश्व परिचित हो सका। उदय शंकर को उनके अतुलनीय योगदान के लिए कई पुरस्कारों और सम्मानों से नवाजा गया था