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भिलाई के गाँव गनियारी में जन्मी इस कलाकार के पिता का नाम हुनुकलाल परधा और माता का नाम सुखवती था। नन्हीं तीजन अपने नाना ब्रजलाल को महाभारत की कहानियाँ गाते सुनाते देखतीं और धीरे धीरे उन्हें ये कहानियाँ याद होने लगीं। उनकी अद्भुत लगन और प्रतिभा को देखकर उमेद सिंह देशमुख ने उन्हें अनौपचारिक प्रशिक्षण भी दिया। १३ वर्ष की उम्र में उन्होंने अपना पहला मंच प्रदर्शन किया। उस समय में महिला पंडवानी गायिकाएँ केवल बैठकर गा सकती थीं जिसे वेदमती शैली कहा जाता है। पुरुष खड़े होकर कापालिक शैली में गाते थे। तीजनबाई वे पहली महिला थीं जो जिन्होंने कापालिक शैली में पंडवानी का प्रदर्शन किया। एक दिन ऐसा भी आया जब प्रसिद्ध रंगकर्मी हबीब तनवीर ने उन्हें सुना और तबसे तीजनबाई का जीवन बदल गया। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी से लेकर अनेक अतिविशिष्ट लोगों के सामने देश-विदेश में उन्होंने अपनी कला का प्रदर्शन किया।
प्रदेश और देश की सरकारी व गैरसरकारी अनेक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत तीजनबाई मंच पर सम्मोहित कर देनेवाले अद्भुत नृत्य नाट्य का प्रदर्शन करती हैं। ज्यों ही प्रदर्शन आरंभ होता है, उनका रंगीन फुँदनों वाला तानपूरा अभिव्यक्ति के अलग अलग रूप ले लेता है। कभी दुःशासन की बाँह, कभी अर्जुन का रथ, कभी भीम की गदा तो कभी द्रौपदी के बाल में बदलकर यह तानपूरा श्रोताओं को इतिहास के उस समय में पहुँचा देता है जहाँ वे तीजन के साथ-साथ जोश, होश, क्रोध, दर्द, उत्साह, उमंग और छल-कपट की ऐतिहासिक संवेदना को महसूस करते हैं। उनकी ठोस लोकनाट्य वाली आवाज़ और अभिनय, नृत्य और संवाद उनकी कला के विशेष अंग हैं।
तीजन बाई को अपनी उपलब्धियों का जरा सा भी गुरूर नहीं है। वह कहती हैं मैं आज भी गांव की औरत हूं। दिल में कुछ नहीं है …ऊंच-नीच, गरीब-अमीर कुछ नहीं, मैं सभी से एक जैसे ही मिलती हूं। बात करती हूं। बच्चों बूढ़ों के बीच बैठ जाती हूं। इससे दुनियादारी की कुछ बातें सीखने तो मिलती है। ऎसे में कोई कुछ-कह बोल भी दे तब भी बुरा नहीं लगता। मैं आज भी एक टेम बोरे बासी (रात में पका चावल पानी में डालकर) और टमामर की चटनी खाती हूं।
पदमश्री मिलने का दिन आज भी मोर सुरता में है, वेंकटरमनजी ने दिया था। उसी दिन इंदिरा गांधी से भी मिली थी बहुत अच्छी लगी, उन्होंने मेरी पंडवानी सुनी थी। मुझे बुलाकर बोली- छत्तीसगढ़ की हो ना। मैने हाँ कहा तो इंदिरा बोली महाभारत करती हो तो मैं बोली पंडवानी सुनाती हूं महाभारत नहीं कराती, सुनकर इंदिराजी खुश हुई और मेरी पीठ थपथपाई थीं।
व्यक्तिगत जीवन
हालांकि 12 साल की उम्र में वह शादी कर चुकी थीं, इसलिए उन्हें पांडवानी गायन के लिए, एक महिला होने के नाते 'पारधी' जनजाति ने समुदाय से निष्कासित कर दिया। उसने खुद को एक छोटी सी झोपड़ी बना ली और अपने आप ही, पड़ोसियों से उधार लेने वाले बर्तन और भोजन करना शुरू कर दिया, फिर भी उसने अपना गायन कभी नहीं छोड़ा, जो अंततः उसके लिए भुगतान किया। वह कभी अपने पहले पति के घर नहीं गए और बाद में विभाजित (तलाक)। निम्नलिखित वर्षों में, वह दो बार शादी की थी, हालांकि उसके विवाह में से कोई भी सफल नहीं हुआ। बाद में वह तुकका राम के साथ प्यार में गिर गई, जो उसके मंडली में एक हार्मोनियम खिलाड़ी था, और उनके तीन बच्चे थे।
प्रदर्शन शैली
पांडवानी, शाब्दिक रूप से महाभारत के प्रसिद्ध भाइयों की पांडवों की कहानियों का अर्थ है, और इसमें एक हाथ में एक यंत्र या एक तम्बू बनाने और कभी-कभी एक दूसरे में कार्तल के साथ गठजोड़ और गायन करना शामिल है। दिलचस्प बात यह है कि प्रदर्शन की प्रगति के रूप में, तंबूरा अपने प्रदर्शन के दौरान केवल एकमात्र सहारा बन जाता है, कभी-कभी वह इसका उपयोग गदा, अर्जुन के गदा, या कभी-कभी उसके धनुष या रथ को व्यक्त करने के लिए करता है, जबकि अन्य यह रानी द्रौपदी के बाल बन जाता है, जिससे उसे प्रभावी चरित्र और स्पष्टता के साथ विभिन्न पात्रों को खेलने के लिए उनके प्रशंसित प्रदर्शन, द्रौपदी चेहररन, दुष्सन वाध और महाभारत युध्द, भीष्म और अर्जुन के बीच हैं।
प्रथम प्रस्तुति
तीजनबाई ने अपना जीवन का पहला कार्यक्रम सिर्फ 13 साल की उम्र में दुर्ग ज़िले के चंदखुरी गाँव में किया था। बचपन में तीजनबाई अपने नाना ब्रजलाल को महाभारत की कहानियाँ गाते हुए सुनती और देखतीं थी और धीरे धीरे उन्हें ये कहानियाँ याद होने लगीं। उनकी अद्भुत लगन और प्रतिभा को देखकर उमेद सिंह देशमुख ने तीजनबाई को अनौपचारिक प्रशिक्षण भी दिया, बाद में उनका परिचय हबीब तनवीर से हुआ। प्रसिद्ध रंगकर्मी हबीब तनवीर ने उन्हें सुना और उन्हें तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के सामने प्रदर्शन करने के लिए निमंत्रित किया। उस दिन के बाद से उन्होंने अनेक अतिविशिष्ट लोगों के सामने देश-विदेश में अपनी कला का प्रदर्शन किया और उसके बाद उनकी प्रसिद्धि आसमान छूने लगी।
अनेक पुरस्कारों द्वारा पुरस्कृत तीजनबाई मंच पर सम्मोहित करने वाले अद्भुत नृत्य नाट्य का प्रदर्शन करती हैं। नाट्य का प्रारम्भ होते ही पात्र के अनुसार उनका सज्जित तानपूरा भिन्न भिन्न रूपों का अवतार ले लेता है। उनका तानपूरा कभी महाभारत के पात्र दुःशासन की बाँह, कभी अर्जुन का रथ, कभी भीम की गदा और कभी द्रौपदी के बालों का रूप धरकर दर्शकों को इतिहास के उस काल में पहुँचा देता है और दर्शक तीजनबाई के साथ पात्र के मनोभावों और ऐतिहासिक पात्रों और घटनाओं की संवेदना को जीवंतता के साथ अनुभव करते हैं। तीजनबाई की विशेष प्रभावशाली लोकनाट्य के अनुरूप आवाज़, अभिनय, नृत्य और संवाद उनकी कला के विशेष अंग हैं।
विदेश यात्राएँ
सन् 1980 में उन्होंने सांस्कृतिक राजदूत के रूप में इंग्लैंड, फ्रांस, स्विट्ज़रलैंड, जर्मनी, टर्की, माल्टा, साइप्रस, रोमानिया और मारिशस की यात्रा की और वहाँ पर प्रस्तुतियाँ दीं।
पुरस्कार
1988 पद्म श्री
1995 संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार
2003 माननीय डी। लिट, बिलासपुर विश्वविद्यालय
2003 पद्म भूषण
2016 एम एस सुब्बलक्ष्मी शताब्दी पुरस्कार