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नाम : सुनीता माइकल जे. विलियम( विवाहपूर्व – सुनीता दीपक पांड्या)
जन्म : 19 सितम्बर 1965 युक्लिड, ओहियो राज्य
पिता : डॉ. दीपक एन. पांड्या
माता : बानी जालोकर पांड्या
विवाह : माइकल जे. विलियम
सुनीता विलियम्स अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के माध्यम से अंतरिक्ष जाने वाली भारतीय मूल की दूसरी महिला है। यह भारत के गुजरात के अहमदाबाद से ताल्लुक रखती है। इन्होंने एक महिला अंतरिक्ष यात्री के रूप में १९५ दिनों तक अंतरिक्ष में रहने का विश्व किर्तिमान स्थापित किया है। उनके पिता दीपक पाण्डया अमेरिका में एक डॉक्टर हैं।
प्रारंभिक जीवन :
सुनीता लिन पांड्या विलियम्स का जन्म 19 सितम्बर 1965 को अमेरिका के ओहियो राज्य में यूक्लिड नगर (स्थित क्लीवलैंड) में हुआ था। मैसाचुसेट्स से हाई स्कूल पास करने के बाद 1987 में उन्होंने संयुक्त राष्ट्र की नौसैनिक अकादमी से फिजिकल साइन्स में बीएस की परीक्षा उत्तीर्ण की। तत्पश्चात 1995 में उन्होंने फ़्लोरिडा इंस्टिट्यूट ऑफ़ टैक्नोलॉजी से इंजीनियरिंग मैनेजमेंट में एम.एस. की उपाधि हासिल की। उनके पिता डॉ. दीपक एन. पांड्या एक जाने-माने तंत्रिका विज्ञानी हैं, जिनका संबंध भारत के गुजरात राज्य से हैं।
उनकी माँ बॉनी जालोकर पांड्या स्लोवेनिया की हैं। उनका एक बड़ा भाई जय थॉमस पांड्या और एक बड़ी बहन डायना एन, पांड्या है। जब वे एक वर्ष से भी कम की थी तभी पिता 1958 में अहमदाबाद से अमेरिका के बोस्टन में आकर बस गए थे। हालाँकि बच्चे अपने दादा-दादी, ढेर सारे चाचा-चाची और चचेरे भाई-बहनों को छो़ड़ कर ज्यादा खुश नहीं थे, लेकिन परिवार ने पिता दीपक को उनके चिकित्सा पेशे में प्रोत्साहित किया।
सूनिता ने ये घोषित किया की वे हिन्दू भगवान् गणेश को बहोत मानती है और जब वे अंतरिक्ष गयी थी तो वे अपने साथ हिन्दू धार्मिक ग्रन्थ भगवद गीता भी ले गयी थी। इसके साथ ही सुनीता सोसाइटी ऑफ़ एक्सपेरिमेंटल टेस्ट पायलट की सदस्य भी है। उनका विवाह माइकल जे. विलियम से हुआ, वे नौसेना पोत चालक, हेलीकाप्टर पायलट, परिक्षण पायलट, पेशेवर नौसैनिक और गोताखोर भी है।
सितम्बर 2007 में विलियम भारत आयी थी। भारत में वह साबरमती आश्रम भी गयी और अपने गाव झुलसान (गुजरात) भी गयी। वहा गुजरात सोसाइटी ने उन्हें सरदार वल्लभभाई पटेल विश्व प्रतिभा अवार्ड से सम्मानित किया। और वह पहली ऐसी महिला बनी जिन्होंने विदेश में रहते हुए एक पुरस्कार को हासिल किया। 4 अक्टूबर 2007 को विलियम ने अमेरिकी एम्बेसी स्कूल में भाषण दिया और वही उनकी मुलाकात भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से हुई।
सन 1987 में सुनीता विलियम्स को अमेरिकी सेना में कमीशन प्राप्त हुआ। लगभग 6 महीने की अस्थायी नियुक्ति के बाद उन्हें ‘बेसिक डाइविंग ऑफिसर’ का पद दिया गया। सन 1989 में उन्हें ‘नेवल एयर ट्रेनिंग कमांड भेज दिया गया जहाँ ‘नेवल एविएटर नियुक्त किया गया। इसके पश्चात उन्होंने ‘हेलीकाप्टर कॉम्बैट सपोर्ट स्क्वाड्रन’ में ट्रेनिंग ली और कई विदेशी स्थानों पर तैनात हुईं। भूमध्यसागर, रेड सी और पर्शियन गल्फ में उन्होंने ‘ऑपरेशन डेजर्ट शील्ड’ और ‘ऑपरेशन प्रोवाइड कम्फर्ट’ के दौरान कार्य किया।
सितम्बर 1992 में उन्हें H-46 टुकड़ी का –ऑफिसर-इन-चार्ज बनाकर मिआमि (फ्लोरिडा) भेजा गया। इस टुकड़ी को ‘हरिकेन एंड्रू’ से सबंधित रहत कार्य के लिए भेजा गया था। सन 1993 के जनवरी महीने में सुनीता ने ‘यू.एस. नेवल टेस्ट पायलट स्कूल’ में अभ्यास प्रारंभ किया और दिसम्बर माह में कोर्स पूरा कर लिया। दिसम्बर 1995 में उन्हें ‘यू.एस. नेवल टेस्ट पायलट स्कूल’ में ‘रोटरी विंग डिपार्टमेंट’ में प्रशिक्षक और स्कूल के सुरक्षा अधिकारी के तौर पर भेजा गया। वहां उन्होंने यूएच-60, ओएच-6 और ओएच-58 जैसे हेलिकॉपटर्स को उड़ाया। इसके बाद उन्हें यूएसएस सैपान पर वायुयान संचालक और असिस्टेंट एयर बॉस के तौर पर भेजे गया। सन 1998 में जब सुनीता का चयन NASA के लिए हुआ तब वे यूएसएस सैपान पर ही कार्यरत थीं।
नासा कैरियर :
सुनीता विलियम्स का जून 1998 में नासा के द्वारा चयन हुआ तथा अगस्त 1998 से नासा के जॉन्सन अंतरिक्ष केन्द्र में उनका प्रशिक्षण प्रारम्भ हो गया। उनके प्रशिक्षण में शामिल चीजें थीं, विभिन्न प्रकारकी तकनीकी जानकारी एवं टूर्स, अनेक वैज्ञानिक और तकनीकी तंत्रों की ब्रीफिंग, स्पेश शटल और अन्तर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन की जानकारी, मनोवैज्ञानिक ट्रनिंग और टी-38 वायुयान के द्वारा ट्रेनिंग। इसके अलावा उनकी पानी के अंदर और एकांतवास परिस्थितियों में भी ट्रेनिंग हुई।
अपने प्रशिक्षण के दौरान विलियम्स ने रूसी अंतरिक्ष संस्था में भी कार्य किया तथा इस प्रशिक्षण में उन्हें अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन के रूसी भाग की जानकारी दी गयी। अंतरिक्ष स्टेशन के रोबोटिक तंत्र के ऊपर भी विलियम्स को प्रशिक्षित किया गया। प्रशिक्षण के दौरान वे मई 2002 में पानी के अंदर एक्वैरियस हैबिटेट में 9 दिन रहीं।
सुनीता विलियम्स दो बार अंतरिक्ष में जा चुकी हैं तथा दोनों बार वे अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन 'अल्फा' में गईं। पाठकों की जानकारी के लिए वर्ष 1998 से अंतरिक्ष में एक विशालकाय अंतरिक्ष स्टेशन का निर्माण कार्य चल रहा है, जिसका नाम स्टेशन 'अल्फा' है, जो 16 देशों की संयुक्त परियोजना है। इस स्टेशन का निर्माण कार्य समाप्त होने वाला है तथा इसमें अनेक प्रयोगशालाएं, आवासीय सुविधाएं, रोबोटिक भुजा और उडनशील प्लेटफार्म एवं जुडने वालेनोड लगे हैं। पूरा स्टेशन लगभग एक फुटबाल मैदान क्षेत्र में फैला हुआ है।
सुनीता विलियम्स की प्रथम अंतरिक्ष उड़ान 9 दिसम्बर 2006 को स्पेश शटल डिस्कवरी के द्वारा प्रारंभ हुई. सुनीता विलियम्स ने अंतरिक्ष में कुल 321 दिन 17 धन्टे 15 मिनट का समय बिताया है. अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन की कमांटर बनने वाली वे विश्व की द्वितीय महिला हैं. सुनीता विलियम्स ने 15 अगस्त, 2012 को भारत के 66 वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर तिरंगा झंडा अंतरिक्ष में फहराया था स्वतंत्रता दिवस के मौके पर पहली वार तिरंगा अतरिक्ष में फहराया गया था.
सुनीता विलियम्स को भारत सरकार द्वारा विज्ञान एवं अभियांत्रिकी के क्षेत्र में पद्म भूूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया. सुनीता विलियम्स सितम्बर 2007 में भारत की यात्रा की इस यात्रा के दौरा इन्हें विश्व गुजराती समाज के द्वारा उन्हें 'सरदार वल्लभ भाई पटेल विश्व प्रतिमा अवार्ड' से सम्मानित किया गया. सुनीता विलियम्स ने अभी तक कुल 30 अलग-अलग अंतरिक्ष यानों में 2770 उड़ानें भरी हैं.
वह अंतरिक्ष स्टेशन पर पहुंचने के बाद एक्सपेडिशन 33 की कमांडर बन जाएंगी। सुनीता के पिता गुजरात राज्य से ताल्लुक रखते हैं। वर्ष 1998 में नासा ने सुनीता को अंतरिक्ष यात्री के तौर पर चुना था। उन्होंने एक्सपेडिशन 14 की सदस्य के तौर पर आईएसएस भेजा गया और उन्होंने एक्सपेडिशन 15 में भाग लिया था। सर्वाधिक लंबी यानी 195 दिन की अंतरिक्ष यात्रा करने वाली महिला का रिकॉर्ड सुनीता के नाम है।
उन्होंने वर्ष 2006 में छह महीने तक आईएसएस में रह कर काम किया था। सुनीता ने वर्ष 1995 में फ्लोरिडा इन्स्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से स्नातकोत्तर की डिग्री ली थी। अंतरिक्ष में सुनीता और उनके टीम सहयोगियों की योजना लंदन में होने जा रहे समर ओलंपिक के मौके पर ऑर्बिट में एक खेल आयोजन करने की है।
सुनीता ने अपने संदेश में कहा कि मैं अतंरिक्ष में ही भारत की आजादी का जश्न मना रही हूं। सुनीता रूस की यूरी मालेनचेंको और जापान के अकीहिको होशिदे के साथ 15 जुलाई को बैकानूर प्रक्षेपण स्थल से अंतरिक्ष के लिए रवाना हुई थीं। गौरतलब है कि नासा की 46 वर्षीय अंतरिक्षयात्री सुनीता, रूस के सोयूज के कमांडर यूरी मलेनचेनको और जापान एयरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी के फ्लाइट इंजीनियर अकिहिको होशिदे दो दिन तक अंतरिक्ष की कक्षा में रहने के बाद 17 जुलाई मंगलवार को आईएसएस पहुंची थी।
सुनीता विलियम्स दो बार अंतरिक्ष में जा चुकी हैं तथा दोनों बार वे अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन 'अल्फा' में गईं। पाठकों की जानकारी के लिए वर्ष 1998 से अंतरिक्ष में एक विशालकाय अंतरिक्ष स्टेशन का निर्माण कार्य चल रहा है, जिसका नाम स्टेशन 'अल्फा' है, जो 16 देशों की संयुक्त परियोजना है। इस स्टेशन का निर्माण कार्य समाप्त होने वाला है तथा इसमें अनेक प्रयोगशालाएं, आवासीय सुविधाएं, रोबोटिक भुजा और उडनशील प्लेटफार्म एवं जुडने वालेनोड लगे हैं। पूरा स्टेशन लगभग एक फुटबाल मैदान क्षेत्र में फैला हुआ है।
अपने द्वितीय अंतरिक्ष प्रवास के दौरान विलियम्स ने तीन स्पेस वॉक कीं। स्पेस वॉक का अर्थ है अंतरिक्ष में अंतरिक्षयान (जिसके अंदर का पर्यावरण मानव के लिए पृथ्वी जैसाहोता है) से बाहर निकलकर मुक्त अंतरिक्ष (जहां का पर्यावरण मानव के लिएखतरनाक होता है, वहां निर्वात होता है, विकिरणों से भरा होता है और उल्काओं का खतरा होता है) में आकर विभिन्न प्रकार के रिपेयर असेम्बली और डिप्लायमेंट के कार्यों को करने को स्पेसवॉक कहते हैं।
स्पेस वॉक पाने जाने के लिए अंतरिक्ष यात्री एक विशेष प्रकार का सूट पहलते हैं, जिसमें उ नका जीवन रक्षा तंत्र और अन्य सुविधाएं लगी रहती हैं। अपने अंतरिक्ष प्रवास के दौरान सुनीता विलियम्स ने अंतरिक्ष स्टेश् ान के अंदर अनेक परीक्षण किये। वे वहां पर लगी ट्रेडमिल में नियमित व्यायाम करतीथीं। उसी प्रवास के दौरान 16 अप्रैल 2007 को विलियम्स ने अंतरिक्ष से बोस्टन मैराथन दौड़ में हिस्सा लिया तथा उन्होंने 4 घंटे 24 मिनट में पूरा िकया। उसी मैराथन दौड़ में सुनीता की बहन डियना ने भी भाग लिया था। अपनी प्रथम उड़ान के सभी कार्य पूरा कर ने के बाद वे 22 जून 2007 को स्पेस शटल अटलांटिस के द्वारा पृथ्वी पर वापस आ गयीं।
पुरस्कार :
1. नेवी कमेंडेशन मेडल
2. नेवी एंड मैरीन कॉर्प एचीवमेंट मेडल
3. ह्यूमैनिटेरियन सर्विस मेडल
4. मैडल फॉर मेरिट इन स्पेस एक्स्पलोरेशन
5. सन 2008 में भारत सरकार ने पद्म भूषण से सम्मानित किया
6. सन 2013 में गुजरात विश्वविद्यालय ने डॉक्टरेट की मानद उपाधि प्रदान की
7. सन 2013 में स्लोवेनिया द्वारा ‘गोल्डन आर्डर फॉर मेरिट्स’ प्रदान किया गया