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अलेक्जेंडर ग्राहम बेल को पूरी दुनिया आमतौर पर टेलीफोन के आविष्कारक के रूप में ही ज्यादा जानती है। बहुत कम लोग ही यह जानते हैं कि ग्राहम बेल ने न केवल टेलीफोन, बल्कि कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में कई और भी उपयोगी आविष्कार किए हैं। ऑप्टिकल-फाइबर सिस्टम, फोटोफोन, बेल और डेसिबॅल यूनिट, मेटल-डिटेक्टर आदि के आविष्कार का श्रेय भी उन्हें ही जाता है।
ये सभी ऐसी तकनीक पर आधारित हैं, जिसके बिना संचार-क्रंति की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। ग्राहम बेल की विलक्षण प्रतिभा का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वे महज तेरह वर्ष के उम्र में ही ग्रेजुएट हो गए थे। यह भी बेहद आश्चर्य की बात है कि वे केवल सोलह साल की उम्र में एक बेहतरीन म्यूजिक टीचर के रूप में मशहूर हो गए थे।
आरंभीक जीवन :
ग्राहम का जन्म 3 मार्च 1847 में स्कॉटलैंड में हुआ था. इनके पिता अलेक्जेंडर मेलविल्ले बेल एक प्रोफेसर थे, जबकि माता एलिजा ग्रेस सिमोंड्स बेल गृहणी थी, जो सुन नहीं सकती थी. ग्राहम के 2 भाई थे, मेलविल्ले जेम्स बेल एवं एडवर्ड चार्ल्स बेल. लेकिन इनकी बीमारी के चलते कम उम्र में ही मौत हो गई थी. ग्राहम के पिता गूंगे और बहरे (Deaf) लोगों को पढ़ाया करते थे, इन्होने बहरे बच्चों के लिए ‘विज़िबल सिस्टम’ बनाया था, जिससे वे बोलना सीख सकें.
ग्राहम की पहली गुरु उनकी माँ थी, वे बहरी जरुर थी, लेकिन वे एक बहुत अच्छी पियानोवादक और पेंटर थी. ग्राहम ने स्कूल में ज्यादा शिक्षा ग्रहण नहीं की थी, वे एडिन्बुर्ग रॉयल हाई स्कूल में जाते थे, लेकिन उन्होंने इसे 15 साल की उम्र में छोड़ दिया था. कॉलेज की पढाई के लिए ग्राहम ने पहले यूनिवर्सिटी ऑफ़ एडिन्बुर्ग में गए, इसके बाद लन्दन, इंग्लैंड की भी युनिवेर्सिटी गए लेकिन ग्राहम का यहाँ पढाई में मन नहीं लगा.
1872 में अलेक्जेंडर ने बोस्टन में ‘स्कूल ऑफ़ वोकल फिजियोलोजी एंड मिकेनिक ऑफ़ स्पीच’ का निर्माण किया. जहाँ वे बच्चों को बोलने एवं समझने की काला सिखाते थे. 1873 में अलेक्जेंडर को बोस्टन के एक विश्वविद्यालय में वोकल फिजियोलोजी के लिए प्रोफेसर चुना गया. कॉलेज में पढ़ाने के साथ साथ अलेक्जेंडर अपनी खोज में भी लगे रहे. उस समय वे ‘हार्मोनिक टेलीग्राफ़’ पर रिसर्च कर रहे थे, उसे और बेहतर बनाने के लिए वे लगातार कड़ी मेहनत कर रहे थे.
उन्होंने एक ही तार पर एक ही समय में एक साथ कई टेलीग्राफ सन्देश भेजे. इसके साथ ही इन्हें एक और विचार आया कि वे दुसरे तार पर मानव आवाज द्वारा सन्देश भेजें. अपंगता किसी भी व्यक्ति के लिए एक अभिशाप से कम नहीं होती, लेकिन ग्राहम बेल ने अपंगता को अभिशाप नहीं बनने दिया. दरअसल, ग्राहम बेल की माँ बधिर थीं माँ के सुनने में असमर्थता से ग्राहम बेल काफी दुखी और निराश रहते थे, लेकिन अपनी निराशा को उन्होंने कभी सफलता की राह में रूकाबट नहीं बनने दिया.उन्होंने अपनी निराशा को एक सकारात्मक मोड़ देना ही बेहतर समझा यही कारण था कि वे ध्वनि विज्ञान की मदद से न सुन पाने में असमर्थ लोगों के लिए ऐसा यंत्र बनाने में कामयाब हुए, जो आज भी बधिर लोगों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है.
एक वर्ष आराम करने के बाद 1871 में बेल (Graham Bell) अमेरिका के बोस्टन शहर में चले आए। यहां गूंगे-बहरों के लिए चलाए जाने वाले ‘बोस्टन स्कूल ऑफ द डैफ‘ में उन्हें नौकरी मिल गई। बधिरों को पढ़ाते हुए बेल के दिमाग में अपने पिता के ‘विजिबल स्पीच सिस्टम‘ को उन्नत बनाने का विचार आया। वह एक ऐसा यंत्र बनाने के प्रयास में जुट गए जिसमें मुंह से बोली हुई आवाज की तरंगों स एक चुम्बकीय सुई कम्पित होने लगे ताकि उसके कम्पनों को देखकर यह समझा जा सके कि क्या कहा गया है।
बोस्टन स्कूल में पढ़ाने के दौरान ही बेल की मुलाकात एक धनी वकील गार्डनर ग्रीन हब्बार्ड से हुई। उसकी बेटी मेबल चार साल की आयु में ही स्कार्लेट ज्वर के कारण बहरेपन का शिकार हो गई थी। अब उसकी उम्र पंद्रह वर्ष थी। दूसरों का बोलना सुनाई न पड़ने के कारण उसे बोलने में बड़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था।
मेबल के पिता से बेल की कुछ घनिष्ठता बढ़ी तो उनके यहां बेल का आना-जाना शुरू हुआ। इन दिनों बेल अपने ‘मल्टीपल टेलीग्राफ‘ नामक आविष्कार, जिसके द्वारा टेलीग्राफ के कई संदेशों को इकट्ठे ही तार के जरिए भेजा जा सकता था, में जुटे हुए थे। मेबल बेल के कार्य में रूचि लेने लगी। वह न केवल बेल के काम में हाथ बटाती बल्कि उन्हें प्रोत्साहित भी करती।
मेबल के पिता भी बेल का उत्साह बढ़ाते तथा जरूरत पड़ने पर आविष्कारों के लिए उन्हें धन की सहायता भी जुटाते। थामस सैंडर्स नामक एक व्यक्ति, जिसके मकान में बेल रहते थे, से भी बेल को आर्थिक सहायता प्राप्त होती। सैंडर्स चमड़े का एक धनी व्यापारी था जिसके गूंगे बेटे को बेल ने चमत्कारी ढंग से ठीक कर दिया था।
शिक्षा :
युवा बालक के रूप में बेल अपने भाइयो की ही तरह थे, उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही अपने पिता से ही ग्रहण की थी। अल्पायु में ही उन्हें स्कॉटलैंड के एडिनबर्घ की रॉयल हाई स्कूल में डाला गया था और 15 साल की उम्र में उन्होंने वह स्कूल छोड़ दी थी। उस समय उन्होंने पढाई के केवल 4 प्रकार ही पुरे किये थे। उन्हें विज्ञान में बहुत रूचि थी, विशेषतः जीवविज्ञान में, जबकि दुसरे विषयो में वे ज्यादा ध्यान नही देते थे।
स्कूल छोड़ने के बाद बेल अपने दादाजी एलेग्जेंडर बेल के साथ रहने के लिये लन्दन चले गये थे। जब बेल अपने दादा के साथ रह रहे थे तभी उनके अंदर पढने के प्रति अपना प्यार जागृत हुए और तभी से वे घंटो तक पढाई करते थे। युवा बेल ने बाद में अपनी पढाई में काफी ध्यान दिया था। उन्होंने अपने युवा छात्र दृढ़ विश्वास के साथ बोलने के लिये काफी कोशिशे भी की थी। और उन्होंने जाना की उनके सभी सहमित्र उन्होंने एक शिक्षक की तरह देखना चाहते है और उनसे सीखना चाहते है।
16 साल की उम्र में ही बेल वेस्टन हाउस अकैडमी, मोरे, स्कॉटलैंड के वक्तृत्वकला और संगीत के शिक्षक भी बने। इसके साथ-साथ वे लैटिन और ग्रीक के विद्यार्थी भी थे। इसके बाद बेल ने एडिनबर्घ यूनिवर्सिटी भी जाना शुरू किया, और वही अपने भाई मेलविल्ले के साथ रहने लगे थे। 1868 में अपने परिवार के साथ कनाडा शिफ्ट होने से पहले बेल ने अपनी मेट्रिक की पढाई पूरी कर ली थी और फिर उन्होंने लन्दन यूनिवर्सिटी में एडमिशन भी ले लिया था।
टेलीफोन की खोज :
बेल ने सिर्फ 29 साल की उम्र में ही सन 1876 में टेलीफोन की खोज कर ली थी | इसके एक साल बाद ही सन 1877 में उन्होंने बेल टेलीफोन कम्पनी की स्थापना की | इसके बाद वह लगातार विभिन्न प्रकार की खोजो में लगे रहे | बेल टेलीफोन की खोज के बाद उसमे सुधार के लिए प्रयासरत रहे और सन 1915 में पहली बार टेलीफोन के जरिये हजारो किमी की दूरी से बात की | न्यूयॉर्क टाइम्स ने इस घटना को काफी प्रमुखता देते हुए इसका ब्योरा प्रकाशित किया था |
इससे न्यूयॉर्क में बैठे बेल ने सेन फ्रांसिस्को में बैठे अपने सहयोगी वाटसन से बातचीत की थी | बेल शुरू से ही जिज्ञासु प्रवृति के थे और अपने विभिन्न विचारों को अमली जामा पहनाने के लिए लगे रहे थे | इसके अलावा उनकी विभिन्न खोजो पर उनके निजी अनुभवो का प्रभाव था | उदाहरण के तौर पर जब उनके नवजात पुत्र की साँस की समस्याओं के कारण मौत हो गयी, तो उन्होंने एक Metal Vacuum Jacket तैयार किया जिससे साँस लेने में आसानी होती थी | उनका यह उपकरण सन 1950 तक काफी लोकप्रिय रहा और बाद के दिनों में इसमें काफी सुधार किया गया |
“वॉट्सन, यहाँ आओ, मुझे तुम्हारी ज़रुरत है” – ये शब्द विश्व में किसी ने पहली बार टेलीफोन पर कहे थे. उस दिन 10 मार्च 1876 को बेल अपने कमरे में और उनका सहायक वॉट्सन बिल्डिंग के ऊपरी तल पर अपने कमरे में यंत्रों पर काम कर रहे थे. बहुत दिनों से लगातार यंत्रों को जोड़ने पर भी उन्हें ध्वनि के संचारण में सहायता नहीं मिल रही थी. उस दिन पता नहीं तारों का कैसा संयोग बन गया. वे दोनों इससे अनभिज्ञ थे. काम करते-करते बेल की पैंट पर अम्ल गिर गया और उन्होंने वॉट्सन को मदद के लिए पुकारा. वॉट्सन ने उनकी आवाज़ को अपने पास रखे यंत्र से आते हुए सुना और… बाकी तो इतिहास है.
1915 में अंतरमहाद्वीपीय टेलीफोन लाइन बिछ गई और उसके उदघाटन के लिए बेल को बुलाया गया. बेल पूर्वी तट पर थे और उन्हें कहा गया कि वे कुछ कहकर लाइन का औपचारिक उदघाटन करें. दूसरे छोर पर वॉट्सन थे. जानते हैं बेल ने फोन पर क्या कहा!? “वॉट्सन, यहाँ आओ, मुझे तुम्हारी ज़रुरत है”. वॉट्सन का जवाब था – “सर, मैं आपसे 3000 किलोमीटर दूर हूँ और मुझे वहां आने में कई दिन लग जायेंगे!” और “हैलो” शब्द किसने गढा? थॉमस एडिसन ने. बेल चाहते थे कि फोन उठाने या सुनने वाला व्यक्ति “अहोय” कहे लेकिन थॉमस एडिसन का “हैलो” लोगों की जुबां पर चढ़ गया.
टेलीफोन बन जाने पर बेल ने अनेक देशों में अपने इस यंत्र के सफल प्रदर्शन किए। इससे बेल का नाम सारी दुनिया में फैल गया। अगस्त 1877 में बेल ने हाउस ऑफ कॉमंस की गैलरी में एक टेलीफोन लगाया और संसद में चल रही बस का कुछ भाग अखबार के दफ्तर में बैठे हुए स्टेनोग्राफर को बोला गया। नवम्बर, 1877 में पहली स्थाई टेलीफोन लाइन बर्लिन में लगाई गई। सन 1878 में जब बेल लौटकर अमेरिका पहुंचे तो उन्होंने पाया कि इस क्षेत्र में काफी काम हो चुका था और यहां तक कि टेलीफोन एक्सचेंज बनने लगे थे। टेलीफ़ोन क्षेत्र में थॉमस अल्वा एडिसन ने भी बहुत कार्य किए।
मृत्यु :
बेल एक बहुत ही नम्र व्यक्ति थे। उन्हें अपने इस महान आविष्कार का कभी अभिमान नहीं हुआ। 2 अगस्त 1922 को 75 साल की उम्र में अपनी व्यक्तिगत जगह बेंन भ्रेअघ, नोवा स्कॉटिया में डायबिटीज की वजह से उनकी मृत्यु हुई थी। बेल एनीमिया से भी ग्रसित थे। उनकी मृत्यु की खबर सुनकर समस्त अमरीका में उनकी स्मृति में एक मिनट तक टेलीफोन बंद रखा गया था।