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कलाकार

सत्यदेव दुबे जीवनी - Biography of Satyadev Dubey in Hindi Jivani

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सत्यदेव दुबे देश के शीर्षस्थ रंगकर्मी और फ़िल्मकार थे। छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में 1936 में जन्मे सत्यदेव दुबे देश के उन विलक्षण नाटककारों में थे, जिन्होंने भारतीय रंगमंच को एक नई दिशा दी। उन्होंने फ़िल्मों में भी काम किया और कई पटकथाएं लिखीं. देश में हिंदी के अकेले नाटककार थे, जिन्होंने अलग-अलग भाषाओं के नाटकों में हिंदी में लाकर उन्हें अमर कर दिया। उनका निधन 25 दिसम्बर 2011 को मुंबई में हुआ।


सत्यदेव दुबे मुंबई आए थे क्रिकेटर बनने का सपना लेकर पर यहां आकर वे रंगमंच से जुड़ गए। संयोगवश उनका जुड़ाव उस नाट्य दल सह नाट्य विद्यालय से हुआ जिसे इब्राहिम अल्काजी चला रहे थे। हालांकि वे हिंदी क्षेत्र से आए थे पर उनकी मराठी और गुजराती रंगमंच में भी पर्याप्त रुचि थी। सातवें दशक में सत्यदेव दुबे ने श्याम बेनेगल की निशांत, अंकुर, जुनून, मंडी और भूमिका जैसी मशहूर फिल्मों के लिए पटकथा और संवाद लिखे तथा इसी दौर में एक विशिष्ट नाट्य निर्देशक और प्रशिक्षक के रूप में भी प्रसिद्ध हुए। आधुनिक भारतीय रंगमंच में एक नए युग का सूत्रपात करने वाले धर्मवीर भारती के नाटक ‘अंधायुग‘ के पहले मंचावतरण का श्रेय सत्यदेव दुबे को इसलिए दिया जाता है क्योंकि उन्होंने ही इब्राहिम अल्काजी को इस नाटक के मंचन के लिए प्रेरित किया था। दुबे ने ‘अपरिचय के विंध्याचल‘ (1965) और टंग इन चीक‘ (1968) नाम से दो लघु फिल्मों का निर्माण किया और ‘शांतता! कोर्ट चालू आहे‘ (विजय तेंडुलकर) पर 1971 में एक मराठी फिल्म भी बनाई। कड़ी मेहनत से रंगमंच को हमेशा अपना सबसे बेहतर उपलब्ध कराने की कोशिश करने वाले दुबे अपनी राजनीतिक विचारधारा की वजह से भी विवादों में रहे। अपनी पीढ़ी के अधिकांश रंगकर्मियों के विपरीत एक दौर में वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से भी संबद्ध रहे थे। भारतीय रंग-दृश्य को बुनियादी तौर पर बदल देने वाली साठ और सत्तर के दशक की उस गतिविधि में, जिसे रंगकर्म को एक उत्तेजक, अर्थपूर्ण और समकालीन जीवन से जुड़ी हुई सर्जनात्मक अभिव्यक्ति का दर्जा दिलाने के कारण नवजागरण के तौर पर याद किया जाता है, सत्यदेव दुबे का अतुलनीय और ऐतिहासिक योगदान रहा है। दुबे देश के उन गिने-चुने रंगकर्मियों में थे जिन्होंने रंगमंच को अपनी जातीय चेतना और कला-परंपरा से जोड़ने के काम का नेतृत्व किया।


उन्होंने गिरीश कर्नाड का पहला नाटक ययाती, और उनके प्रसिद्ध नाटक हयावदान, बादल सरकार की ईवम इंद्रजीत और पगला घोड़ा, चंद्रशेखर कंबारा के और तोटा बोला (मूल कन्नड़ में जोकुमारस्वामी), मोहन राकेश के आधे आधुर, विजय तेंदुलकर का निर्माण किया।


उन्हें धर्मवीर भारती के आधा युग की खोज के साथ श्रेय दिया जाता है, जो रेडियो के लिए लिखा गया एक नाटक था; दुबे ने अपनी क्षमता को देखा, इसे नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में इब्राहिम अल्काज़ी के पास भेज दिया। जब 1 9 62 में मंचन किया गया, तो आधा युग ने भारतीय थिएटर में एक नया प्रतिमान लगाया


उन्होंने दो लघु फिल्मों को अपरिचित के विंध्चल (1965) और टंगू इन चीक (1968) बनाया, और एक मराठी फीचर फिल्म, शांताता! कोर्ट चाला आह (1971), विजय तेंदुलकर के खेल पर आधारित है, जो बारीकी से फ्रेडरिक डी .रेनमैट की कहानी "डा पेने" पर आधारित है।


कार्यक्षेत्र


धर्मवीर भारती के नाटक अंधा युग को सबसे पहले सत्यदेव दुबे ने ही लोकप्रियता दिलाई. इसके अलावा गिरीश कर्नाड के आरंभिक नाटक ययाति और हयवदन, बादल सरकार के एवं इंद्रजीत और पगला घोड़ा, मोहन राकेश के आधे अधूरे और विजय तेंदुलकर के खामोश अदालत जारी है जैसे नाटकों को भी सत्यदेव दुबे के कारण ही पूरे देश में अलग पहचान मिली।


प्रसिद्ध नाटकों का मंचन


वे चर्चित नाटककार और निर्देशक थे। दुबे 'पगला घोड़ा', 'आधे अधूरे' और 'एवम इंद्रजीत' जैसे नाटकों के लिए प्रसिद्ध थे लेकिन उन्हें प्रसिद्धी 'अंधा युग' ने दिलाई। उन्होंने नाटकों के सौ से ज़्यादा शो किये। गिरीश कर्नाड के पहले नाटक 'यायाति और हयवदन', बादल सरकार के 'इवाम इंद्रजीत और पगला घोडा', चंद्रशेखर कंबारा की 'और तोता बोला', मोहन राकेश के 'आधे-अधूरे' और विजय तेंदुलकर के 'गिदहड़े, शांता और कोर्ट चालू आहे' जैसे नाटकों का मंचन कर भारतीय रंगमंच मे योगदान दिया। उन्हें धर्मवीर भारती के रेडियो के लिखे नाटक 'अंधा युग' को रंगमंच पर उतारने का श्रेय दिया जाता है।


दुबे ने दो लघु फ़िल्मों 'अपरिचय के विंध्याचल' और 'टंग इन चीक' का भी निर्माण किया और मराठी फ़िल्म 'शांताताई' का निर्देशन किया। मराठी थियेटर में किए गए उनके काम ने उन्हें काफ़ी ख्य़ाति दिलाई। इतना ही नहीं सत्यदेव दुबे को मराठी और हिंदी थियेटर में किए गए उनके व्यापक काम के लिए पद्मभूषण भी दिया गया था। अपने लंबे कार्यकाल के दौरान सत्यदेव दुबे ने आज़ादी के बाद लिखे गए सभी प्रमुख नाटकों का निर्देशन और प्रस्तुतिकरण किया था।


फ़िल्मी कैरियर


सत्यदेव दुबे ने श्याम बेनेगल की फ़िल्म 'भूमिका' के अलावा कुछ अन्य फ़िल्मों के लिए भी कहानी और संवाद लिखे थे। उनके द्वारा चलाए जाने वाले थियेटर कार्यशाला को पेशेवर और शौकिया तौर पर थियेटर करने वाले लोग एक समान पसंद किया करते थे। निर्देशक के रूप में उन्होंने 1956 में काम शुरू किया। वे अनेक मराठी व हिन्दी फ़िल्मों के निर्देशक रहे हैं। सत्यदेव ने कुछ फ़िल्मों में अभिनय भी किया और कुछ फ़िल्मों का निर्देशन भी किया है। उन्होंने निर्देशक श्याम बेनेगल और गोविंद निहलानी की फ़िल्मों के संवाद और पटकथा भी लिखी।


सम्मान और पुरस्कार


धर्मवीर भारती के नाटक अंधा युग को सबसे पहले सत्यदेव दुबे ने ही लोकप्रियता दिलाई. इसके अलावा गिरीश कर्नाड के आरंभिक नाटक ययाति और हयवदन, बादल सरकार के एवं इंद्रजीत और पगला घोड़ा, मोहन राकेश के आधे अधूरे और विजय तेंदुलकर के खामोश अदालत जारी है जैसे नाटकों को भी सत्यदेव दुबे के कारण ही पूरे देश में अलग पहचान मिली।


फिल्मोग्राफी


Shantata! कोर्ट चाला अहम - 1971 - निर्देशन


अंकुर - 1 9 74 - संवाद, पटकथा


मंज़िलिन और भी है - 1 9 74 वार्ता


निशांत - 1 9 75 - वार्ता


भूमिक 1 9 77 - वार्ता, पटकथा


जूनून - 1 9 78 – वार्ता


कल्यायुग - 1 9 80 - वार्ता


आकौश - 1 9 80 - वार्ता


विजता - 1 9 82 - संवाद, पटकथा


मंडी - 1 9 83 - पटकथा


भारत एक खोज (टी वी सीरीज) - 1 9 88 – अभिनय


निधन


        वयोवृद्ध नाटककार एवं निर्देशक सत्यदेव दुबे का निधन रविवार 25 दिसंबर, 2011 को सुबह मुम्बई में हुआ था। वह 75 वर्ष के थे और कई दिनो से बीमार थे। सत्यदेव के परिजनों ने बताया था कि वह पिछले कई दिनों से कोमा में थे। वह मस्तिष्क आघात से पीड़ित थे।