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साहिर लुधियानवी, वह जादूगर जो शब्दों को इस तरह से लिखता था, पिरोता था की वह सीधे दिल में उतर जाते थे | बल्कि आज भी उनके शायरी के लाखो दीवाने है | साहिर फिल्म इंडस्ट्री से करीब ३ दशक तक जुड़े रहे इस वक़्त में आपने सेकड़ो मशहूर गीत लिखे जो की आज भी हिन्दुस्तानी लोगो के दिलो पर राज़ कर रहे है | आपके कुछ गाने तो इस कदर मशहूर हुए की उन्हें आज भी गया और गुनगुनाया जाता है | वैसे भी पुराने गीतों की बात ही कुछ और है |
साहिर लुधियानवी का जन्म मुस्लिम गुज्जर परिवार में ८ मार्च, १९२१ को लुधियाना, पंजाब में हुआ | आपका जन्म नाम था अब्दुल हयी ( Abdul Hayee). सन १९३४ में जब आप १३ वर्ष के थे तब आपके पिताजी ने दूसरी शादी कर ली | तब आपकी माँ ने एक बड़ा कदम उठाकर अपने पति को छोड़ने का फैसला किया साहिर अपनी माँ के साथ रहे |
वह घर जहा साहिर जन्मे थे लाल पत्थर की हवेली है जो लुधियाना के पास में करीमपुर में स्थित है | इस पर मुग़ल स्थापत्य की छाप है और यह यहाँ का मुग़ल दरवाजा बताता है |
साहिर ने अपनी पढाई लुधियाना के खालसा हाई स्कुल से की और मेट्रिक के आगे की पढाई के लिए आपको लुधियाना के चंदर धवन शासकीय कॉलेज में दाखिल करवाया गया | यही पर आप काफी प्रसिद्द हुए अपनी शायरी और ग़ज़लो के कारण | साहिर सारी उम्र कुवारे ही रहे अपितु आपकी जिन्दगी में दो व्यक्ति काफी महत्वपूर्ण थे जिनसे आपको प्रेम हुआ जिनमे लेखिका और पत्रकार अमृता प्रीतम और गायिका और अभिनेत्री सुधा मल्होत्रा प्रमुख थे |
बचपन में एकबार एक मौलवी ने कहा कि ये बच्चा बहुत होशियार और अच्छा इंसान बनेगा। ये सुनकर मां के मन में सपने जन्म लेने लगे कि वह अपने बेटे को सिविल सर्जन या जज बनायेंगी। जाहिर है अब्दुल का जन्म जज या सिविल सर्जन बनने के लिये नही हुआ था। विधी ने तो कुछ और ही लिखा था। बचपन से ही वो शेरो-शायरी किया करते थे और उनका शौक दशहरे पर लगने वाले मेलों में नाटक देखना था। साहिर अपनी मां को बहुत मानते थे और तहे दिल से उनकी इज्जत करते थे। उनकी कोशिश रहती थी कि मां को कोई दुःख न हो।
उस समय के मशहूर शायर मास्टर रहमत की सभी शायरी उस दौरान उन्हे पूरी याद थी। बचपन से ही किताबे पढने का और सुनने का बहुत शैक था और यादाश्त का आलम ये था कि किसी भी किताब को एक बार सुन लेने या पढ लेने पर उन्हें वो याद रहती थी। बड़े होकर साहिर खुद ही शायरी लिखने लगे। शायरी के क्षेत्र में साहिर, खालसा स्कूल के शिक्षक फैयाज हिरयानवी को अपना उस्ताद मानते थे। फैयाज ने बालक अब्दुल को उर्दु तथा शायरी पढाई। इसके साथ ही उन्होने अब्दुल का तवारुफ साहित्य और शायरी से भी कराया।
शिक्षा
साहिर की शिक्षा लुधियाना के 'खालसा हाई स्कूल' में हुई। सन् 1939 में जब वे 'गवर्नमेंट कॉलेज' के विद्यार्थी थे अमृता प्रीतम से उनका प्रेम हुआ जो कि असफल रहा। कॉलेज़ के दिनों में वे अपने शेर और शायरी के लिए प्रख्यात हो गए थे और अमृता इनकी प्रशंसक थीं। अमृता के परिवार वालों को आपत्ति थी क्योंकि साहिर मुस्लिम थे। बाद में अमृता के पिता के कहने पर उन्हें कॉलेज से निकाल दिया गया। जीविका चलाने के लिये उन्होंने तरह तरह की छोटी-मोटी नौकरियाँ कीं।
यक्तित्व
उनके बारे में कहा जाता है कि उन्होंने जितना ध्यान औरों पर दिया उतना खुद पर नहीं। वे एक नास्तिक थे तथा उन्होंने आजादी के बाद अपने कई हिन्दू तथा सिख मित्रों की कमी महसूस की जो लाहौर में थे। उनको जीवन में दो प्रेम असफलता मिली - पहला कॉलेज के दिनों में अमृता प्रीतम के साथ जब अमृता के घरवालों ने उनकी शादी न करने का फैसला ये सोचकर लिया कि साहिर एक तो मुस्लिम हैं दूसरे ग़रीब और दूसरी सुधा मल्होत्रा से। वे आजीवन अविवाहित रहे तथा उनसठ वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया। उनके जीवन की तल्ख़ियां (कटुता) इनके लिखे शेरों में झलकती है।
फ़िल्मी सफ़र
1948 में फ़िल्म 'आज़ादी की राह पर' से फ़िल्मों में उन्होंने कार्य करना प्रारम्भ किया। यह फ़िल्म असफल रही। साहिर को 1951 में आई फ़िल्म "नौजवान" के गीत "ठंडी हवाएं लहरा के आए ..." से प्रसिद्धी मिली। इस फ़िल्म के संगीतकार एस डी बर्मन थे। गुरुदत्त के निर्देशन की पहली फ़िल्म "बाज़ी" ने उन्हें प्रतिष्ठित किया। इस फ़िल्म में भी संगीत बर्मन साहब का था, इस फ़िल्म के सभी गीत मशहूर हुए। साहिर ने सबसे अधिक काम संगीतकार एन दत्ता के साथ किया। दत्ता साहब साहिर के जबरदस्त प्रशंसक थे। 1955 में आई 'मिलाप' के बाद 'मेरिन ड्राइव', 'लाईट हाउस', 'भाई बहन',' साधना', 'धूल का फूल', 'धरम पुत्र' और 'दिल्ली का दादा' जैसी फ़िल्मों में गीत लिखे।
गीतकार के रूप में उनकी पहली फ़िल्म थी 'बाज़ी', जिसका गीत तक़दीर से बिगड़ी हुई तदबीर बना ले...बेहद लोकप्रिय हुआ। उन्होंने 'हमराज', 'वक़्त', 'धूल का फूल', 'दाग़', 'बहू बेग़म', 'आदमी और इंसान', 'धुंध', 'प्यासा' सहित अनेक फ़िल्मों में यादग़ार गीत लिखे। साहिर जी ने शादी नहीं की, पर प्यार के एहसास को उन्होंने अपने नग़मों में कुछ इस तरह पेश किया कि लोग झूम उठते। निराशा, दर्द, कुंठा, विसंगतियों और तल्ख़ियों के बीच प्रेम, समर्पण, रूमानियत से भरी शायरी करने वाले साहिर लुधियानवी के लिखे नग़में दिल को छू जाते हैं।
प्रसिद्ध गीत
"आना है तो आ" (नया दौर 1957), संगीतकार ओ पी नय्यर
"अल्लाह तेरो नाम ईश्वर तेरो नाम" (हम दोनो 1961), संगीतकार जयदेव
"चलो एक बार फिर से अजनबी बन जायें" (गुमराह 1963), संगीतकार रवि
"मन रे तु काहे न धीर धरे" (चित्रलेखा 1964), संगीतकार रोशन
"मैं पल दो पल का शायर हूं" (कभी कभी 1976), संगीतकार खय्याम
"यह दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है" (प्यासा 1957), संगीतकार एस डी बर्मन
"ईश्वर अल्लाह तेरे नाम" (नया रास्ता 1970), संगीतकार एन दत्ता