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कलाकार

राजा रवि वर्मा जीवनी - Biography of Raja Ravi Varma in Hindi Jivani

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        राजा रवि वर्मा भारत के विख्यात चित्रकार थे। उन्होंने भारतीय साहित्य और संस्कृति के पात्रों का चित्रण किया। उनके चित्रों की सबसे बड़ी विशेषता हिंदू महाकाव्यों और धर्मग्रन्थों पर बनाए गए चित्र हैं। हिन्दू मिथकों का बहुत ही प्रभावशाली इस्‍तेमाल उनके चित्रों में दिखता हैं। वडोदरा (गुजरात) स्थित लक्ष्मीविलास पैलेस के संग्रहालय में उनके चित्रों का बहुत बड़ा संग्रह है।


प्रारंभिक जीवन :


        राजा रवि वर्मा का जन्म २९ अप्रैल १८४८ को केरल के एक छोटे से शहर किलिमानूर में हुआ। पाँच वर्ष की छोटी सी आयु में ही उन्होंने अपने घर की दीवारों को दैनिक जीवन की घटनाओं से चित्रित करना प्रारम्भ कर दिया था। उनके चाचा कलाकार राजा राजा वर्मा ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और कला की प्रारम्भिक शिक्षा दी।


        चौदह वर्ष की आयु में वे उन्हें तिरुवनंतपुरम ले गये जहाँ राजमहल में उनकी तैल चित्रण की शिक्षा हुई। बाद में चित्रकला के विभिन्न आयामों में दक्षता के लिये उन्होंने मैसूर, बड़ौदा और देश के अन्य भागों की यात्रा की। राजा रवि वर्मा की सफलता का श्रेय उनकी सुव्यवस्थित कला शिक्षा को जाता है। उन्होंने पहले पारम्परिक तंजौर कला में महारत प्राप्त की और फिर यूरोपीय कला का अध्ययन किया।


        आधुनिक भारतीय चित्रकला को जन्म देने का श्रेय राजा रवि वर्मा को जाता है। उनकी कलाओं में पश्चिमी रंग का प्रभाव साफ नजर आता है। उन्होंने पारंपरिक तंजावुर कला और यूरोपीय कला का संपूर्ण अध्ययन कर उसमें महारत हासिल की थी। उन्होंने भारतीय परंपराओं की सीमाओं से बाहर निकलते हुए चित्रकारी को एक नया आयाम दिया। बेशक उनके चित्रों का आधार भारतीय पौराणिक कथाओं से लिए गए पात्र थे, लेकिन रंगों और आकारों के जरिए उनकी अभिव्यक्ति आज भी प्रासंगिक लगती है।


        उन्होंने उस समय में खुलेपन को स्वीकार किया, जब इस बारे में सोचना भी मुश्किल था। राजा रवि वर्मा ने इस विचारधारा को न सिर्फ आत्मसात किया, बल्कि अपने कैनवस पर रंगों के माध्यम से उकेरा भी। यही कारण रहा कि उनकी कलाकृतियों को उस समय के प्रतिष्ठित चित्रकारों ने स्वीकार करने से इनकार कर दिया था। फिर भी उन्होंने प्रयास नहीं छोड़ा और बाद में उन्हीं चित्रकारों को उनकी प्रतिभा का लोहा मानना पड़ा। उन्होंने अपनी चित्रकारी में प्रयोग करना नहीं छोड़ा और हमेशा कुछ अनोखा और नया करने का प्रयास करते रहे।


        रवि वर्मा पाश्चात्य चित्र कला तथा तैल चित्र निर्माण से तब परिचित हो गए जब 1868 ई. में तिरुवनन्तपुरम में थियडोर जेनसन नामक डच चित्रकार से राजमहल में भेंट की थी । रविवर्मा ने महाराजा और राज - परिवार के सदस्यों के चित्र नवीन शैली में उतारे । 1873 ईं. में चेन्नै में आयोजित 'मुल्लप्पू चूटिया नायर स्त्री' (चमेली से केशालंकार करती नायर स्त्री) नामक चित्र को प्रथम स्थान मिला जिससे रवि वर्मा प्रसिद्ध हो गए । ऑस्ट्रिया के वियन्ना में जो चित्र प्रदर्शनी हुई उसमें भी प्रस्तुत चित्र पुरस्कृत हुआ ।


        अगले वर्ष उन्होंने 'तमिल महिला का संगीत अलाप' (1874) नाम से जो चित्र खींचा था वह भी चेन्नै की प्रदर्शनी में पुरस्कृत हुआ । यह चित्र दारिद्रय शीर्षक से तिरुवनन्तपुरम के श्री चित्र आर्ट गैलरी में प्रदर्शित है । 1876 ई. में 'शकुन्तला की प्रेम दृष्टि' चेन्नै प्रदर्शनी में पुरस्कृत हुई । पाँव में लगे (दर्भा) काँटे को निकालने का बहाना करती एवं दुष्यंत को पीछे मुड़कर देखती 'अभिज्ञानशाकुन्तलम्' की शकुन्तला का जो चित्र अंकित किया गया है वह उनके सर्वाधिक प्रशस्त चित्रों में एक है । ब्रिटिश प्राच्यविद् मोनियर विल्यंस ने अपने शकुन्तळानुवाद के मुखपृष्ठ पर इसी चित्र को प्रस्तुत किया था ।


        तिरुवितांकूर के दीवान सर टी. माधवराव रविवर्मा को जानते थे । माधवराव बडौदा (बडोदरा) के महाराजा के सलाहकार थे । सन् 1880 ईं. में माधव राव ने जब तिरुवनंन्तपुरम का संदर्शन किया तब उन्होंने बडौदा के लिए रवि वर्मा के कुछ चित्र खरीद लिए । बाद में रवि वर्मा के जीवन में बड़ौदा के राज परिवार ने जो योग दिया उसका बीजवपन इस समय हुआ था । रवि वर्मा चित्र का सबसे बडा़ निजी संग्रहण आज भी बडौदा राजपरिवार के पास है । 


        १८८० में बड़ौदा से राजा माधवराव जब तिरुवनन्तपुरम पधारे तब राजा रविवर्मा का उनसे परिचय हुआ। १८८१ में वे बडौदा के महाराजा सयाजि राव गायकवाड़ के राज्याभिषेक के अवसर पर बडौ़दा गये और वहाँ चार माह तक चित्रकारी की। इस कालावधि में उन्होंने अनेक ऐसे चित्र बनाए जो पुराणों के संदर्भों पर आधारित हैं। आज भी राजा रविवर्मा के चित्रों का सबसे बड़ा संग्रहालय इसी राज परिवार के पास है। १८८५ में मैसूर के महाराजा चामराजेन्द्रन ओडयार ने उन्हें आमंत्रित किया और चित्र बनवाए। १८८८ में एक बार फिर से रविवर्मा दो वर्ष के लिया बडौदा में रहे। चित्र बनाए। उत्तर भारत की व्यापक यात्राएँ कीं।


        और १८९३ में अमेरिका के शिकागो में आयोजित विश्व प्रदर्शनी में दस चित्र प्रदर्शित किये। अपने जीवन में वे भारतीय तथा विदेशी शासकों के लोकप्रिय चित्रकार बने रहे और अनेक प्रशासकों को उन्होंने अपनी तूलिका से चित्रित किया। उनके बनाए गए हिन्दू देवी देवताओं के चित्र हर भारतीय के घर में देखे जा सकते हैं। राजा रवि वर्मा की सफलता का श्रेय उनकी सुव्यवस्थित कला शिक्षा को जाता है। उन्होंने पहले पारंपरिक तंजावुर कला में महारत हासिल की और फिर यूरोपीय कला का अध्ययन किया। उनकी कलाकृतियों को तीन प्रमुख श्रेणियों में बाँटा जा सकता है- १–प्रतिकृति या पोर्टे्रट, २– मानवीय आकृतियों वाले चित्र तथा ३– इतिहास व पुराण की घटनाओं से संबंधित चित्र।


        राजा रवि वर्मा की बनाई हुयी इन्सान और भगवान के चित्र एकदम सजीव जैसे प्रतीत होते थे | सूर्य की रोशनी में वो चित्र अपने पूर्ण प्रभाव पर रहते थे | राजा रवि वर्मा ने अपनी बनाई कृतियों के कपड़ो और उनके द्वारा पहने जाने वाले जवाहरातो पर विशेष ध्यान दिया जिससे चित्रों में एक अनोखा निखार आ गया था | अब उनके चित्रों की ख्याति ना केवल भारत बल्कि यूरोप में भी फ़ैल रही थी | 1873 में तो राजा रवि वर्मा की एक पेंटिंग को तो मद्रास पेंटिंग प्रदर्शनी में स्वर्ण पदक प्राप्त हुआ था और इसके दो साल बाद ही उन्हें वियेना के एक कला प्रतियोगिता में “Most Distinguished Award” जीता था |


        अब राजा रवि वर्मा की प्रसिधी के कारण उन्हें देश के अलग अलग कोनो से बुलाया जाने लगा और देश के कोने कोने में जाकर हिन्दू पौराणिक चित्रों को बनाते थे | उनके मशहूर चित्रों में से शकुंतला , दमयन्ती हंसा संवाद , जटायु वधम ,वसंतसेना ,रामपंचवतन ,अर्जुन और सुभद्रा शामिल है | 1894 में रवि वर्मा ने अपनी खुद की मुम्बई में एक प्रिंटिंग प्रेस खोल ली | उस प्रेस में ओलियोग्राफी तकनीक न इस्तेमाल किया जाता था जिससे उनकी पेंटिंग की हजारो प्रतिया निकाली जा सकती थी | जल्द ही उनकी सारी प्रतिया पुरे भारतवर्ष के घरो में पहुच गयी और उनके बनाये देवी देवताओ के चित्रों को लोग भगवान की तरह पूजने लगे |


रोचक तथ्य :


• सन 2007 में उनके द्वारा बनाई गई एक कलाकृति 1.24 मिलियन डॉलर में बिकी। इस पेंटिंग में त्रावणकोर के महाराज और उनके भाई को मद्रास के गवर्नर जनरल रिचर्ड टेम्पल ग्रेनविले को स्वागत करते हुए दिखाया गया है। ग्रेनविले 1880 में आधिकारिक यात्रा पर त्रावणकोर गए थे।

• सन 2014 में हिंदी फिल्मों के चर्चित निर्माता-निर्देशक केतन मेहता ने राजा रवि वर्मा के जीवन पर एक फिल्म बनायी जिसमें राजा रवि वर्मा की भूमिका अभिनेता रणदीप हुड्डा ने निभायी। इस फिल्म की अभिनेत्री है नंदना सेन। हिन्दी और अंग्रेजी भाषाओं में बनाई गयी इस फिल्म का अंग्रेजी नाम है ‘कलर ऑफ पैशन्स’ और हिन्दी में इसे ‘रंग रसिया’ नाम दिया गया।

• मलयालम फिल्म ‘मकरामंजू’ में भी राजा रवि वर्मा का जीवन दिखाया गया है। मशहूर चलचित्रकार संतोष सिवान ने इस फिल्म में राजा रवि वर्मा का किरदार निभाया है।

• मराठी बोर्ड की मराठी पुस्तक में एक अध्याय है ‘अपूर्व भेंट’ जिसमें राजा रवि वर्मा और स्वामी विवेकानंद की मुलाकात को दर्शाया गया है।

• विश्व की सबसे महँगी साड़ी इस महान चित्रकार के चित्रों की नकल से सुसज्जित है। 12 रत्नों व धातुओं से सुसज्जित, 40 लाख रुपये कीमत की यह साड़ी ‘लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रेकार्ड’ में ‘दुनिया की सबसे महँगी साड़ी’ के तौर पर शामिल है।

• राजा रवि वर्मा ही वो पहले चित्रकार थे. जिन्होंने देवी-देवताओं को आम इंसान जैसा दिखाया. भारतीय धर्मग्रंथों, पुराणों, महाकाव्यों में दिए गए पात्रों, देवी-देवताओं की कल्पना करके. उनको चित्रों की शक्ल में ढाला. मतलब आज जो हम सब फोटो, पोस्टर वगैरह में सरस्वती, लक्ष्मी, दुर्गा, राधा, कृष्ण देखते हैं. उन सब को चेहरा देने का काम राजा रवि वर्मा ने ही किया था.

• उन दिनों बंगाल स्कूल के चित्रकारों ने. रवि वर्मा को चित्रकार मानने से इंकार कर दिया था. क्योंकि वो भारतीय चरित्रों की पेंटिंग्स बनाते थे. पर पेंटिंग टेक्निक यूज करते थे अंग्रेजो की. उसके बाद भी आम पब्लिक के बीच रवि वर्मा के चित्र खासे पसंद किए जाते थे.

• वाटर कलर पेंटिंग में राजा रवि वर्मा को महारत हासिल थी. सिखाने वाले थे रामा स्वामी नायडू. अपने टाइम के जबर चित्रकार. वो उस समय त्रावणकोर महाराज के दरबार में रह रहे थे. साथ ही रवि वर्मा ने ऑइल पेंटिंग की ओर भी रुख किया. ऑइल पेंटिंग की बारीकियां इन्होनें डच चित्रकार थेओडॉर जेंसन से सीखी थी. जेंसन उस समय पोर्ट्रेट के मामले में एक नंबर हुआ करते थे. बाद में रवि वर्मा हुए.

• 25 साल की उम्र में राजा रवि वर्मा को पहला इनाम मिला. 1873 में चेन्नई के एक पेंटिंग एग्जीबीशन में रवि वर्मा की पेंटिंग ‘मुल्लप्पू चूटिया नायर स्त्री’ (चमेली के फूलों से केशालंकार करती नायर स्त्री) को पहला ईनाम मिला था. उसी साल इस पेंटिंग को वियना(आस्ट्रिया) के एग्जीबीशन में भी ईनाम मिला. इसके बाद से रवि वर्मा को विदेशों में भी पहचाने जाने लगा. 1893 में शिकागो में विश्व चित्र प्रदर्शनी लगी थी. विवेकानंद भी तब शिकागो में ही थे. प्रदर्शनी में रवि वर्मा की दस पेंटिंग्स लगाई गई थी.

• रवि वर्मा की ऑइल पेंटिंग्स को लोग खूब पसंद करते थे. अच्छी खासी मांग थी. इसी को ध्यान में रखते हुए. 1894 में इन्होने विदेश से एक कलर लिथोग्रफिक प्रेस खरीदकर. मुम्बई में कारखाना खोल दिया. यहां वो अपनी पेंटिंग्स की नकल बनाके. आम पब्लिक को सस्ते दामों में बेचते थे. अब असली चीज तो महंगी होती है न भाई. इनसे पहले किसी भी चित्रकार ने ऐसी शुरुआत नहीं की थी.

• अभिज्ञानशाकुंतलम की शकुंतला का चित्र. इनके बनाए हुए. सबसे जबर चित्रों में से एक है. विदेश के एक लेखक थे मेनियर विलियंस. जिन्होंने अभिज्ञानशाकुंतलम का अंग्रेजी अनुवाद किया था. उनने अपनी किताब के कवर पेज में राजा रवि वर्मा की बनाई हुई शकुंतला पेंटिंग ही लगवाई थी.