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मनजीत बावा का जन्म भारत में, पंजाब के एक गांव ढुरी में हुआ। दिल्ली के कालेज ऑफ आर्ट्स और लंदन स्कूल ऑफ प्रिंटिंग से शिक्षा प्राप्त बावा पहले ऐसे कलाकार थे, जिन्होंने पाश्चात्य कला में बहुलता रखने वाले धूसर और भूरे रंग के वर्चस्व को तोड़कर चटक भारतीय रंगों (बैंगनी और लाल) को प्रमुखता दी। बांसुरी और गायों के प्रति बावा का आकर्षण बचपन से ही था, जो आजीवन साथ रहा। देशज रंगों और रूपाकारों के कुशल चितेरे बावा की कृतियों में ये आकर्षण विद्यमान है। लाल रंग उन्हें बेहद प्रिय था। वे नीले आकाश को भी लाल रंग से उकेरना चाहते थे। विलक्षण रंग प्रयोग की विशेषता के बावजूद सीमित रंगों का प्रयोग और व्यापक रंगानुभव, सूफीयना तबीयत के कलाकार बावा के कला संसार की पहचान है।कला समीक्षक उमा नायर के अनुसार बावा, कला में नव आंदोलन का हिस्सा थे। रंगों की उनकी समझ अद्भुत थी। उन्होंने भारतीय समकालीन कला को अंतरराष्ट्रीय मंच पर ख्याति दिलाने का जो काम किया है, उसे कला जगत में हमेशा याद किया जाएगा।
जब वे दिल्ली में रहते हुए कला की शिक्षा ले रहे थे तब उनके गुरु थे सोमनाथ होर और बीसी सान्याल, लेकिन उन्होंने अपनी पहचान बनाई अबानी सेन की छत्रछाया में। श्री सेन ने उनसे कहा था कि रोज पचास स्कैच बनाओ। मनजीत बावा रोज पचास स्कैच बनाते और उनके गुरु इनमें से अधिकांश को रद्द कर देते थे। यहीं से मनजीत बावा के रेखांकन का अभ्यास शुरू हुआ। उन्होंने अपने उन दिनों को याद करते हुए कहीं कहा भी था कि तब से मेरी लगातार काम करने की आदत पड़ गई। जब सब अमूर्त की ओर जा रहे थे मेरे गुरुओं ने मुझे आकृतिमूलकता का मर्म समझाया और उस ओर जाने के लिए प्रेरित किया।
गहरी आध्यात्मिकता
वे आकृतिमूलकता की ओर आए तो सही लेकिन अपनी नितांत कल्पनाशील मौलिकता से उन्होंने नए फॉर्म्स खोजे, अपनी खास तरह की रंग योजना ईजाद की और मिथकीय संसार में अपने आकार ढूँढ़े। यही कारण है कि उनके चित्र संसार में ठेठ भारतीयता के रंग आकार देखे जा सकते हैं। वहाँ आपको हीर-राँझा भी मिलेंगे, कृष्ण, गोवर्धन भी मिलेंगे, देवी भी मिलेंगी तथा कई मिथकीय और पौराणिक प्रसंग-संदर्भ भी। और सूफी संत भी मिलेंगे। इसके साथ ही उनके चित्रों में जितने जीव-जंतु मिलेंगे उतने शायद किसी अन्य भारतीय कलाकार में नहीं। उनकी माँ नहीं चाहती थीं कि वे कलाकार बनें। उनकी माँ कहती थीं कि कला के बल पर जीवन नहीं जिया जा सकता लेकिन ईश्वर में गहरी आस्था और विश्वास की बदौलत मंजीत बावा मानते थे कि रोजी-रोटी तो ईश्वर दे देगा बाकी चीजें वे खुद हासिल कर लेंगे। उनके मनोहारी कैनवास ये बताते हैं कि इस कलाकार ने यूरोपीय कला के असर से मुक्त होकर अपने लिए एक कठिन राह खोजी, बनाई और उस पर दृढ़ता से चलकर दिखाया। कुछ समय के लिए उनके चित्रों को लेकर विवाद भी हुआ था।
व्यक्तिगत जीवन
मंजीत बावा का विवाह शारदा बावा से हुआ था और वे भारत की राजधानी दिल्ली में रहते थे। बावा दंपत्ति को एक पुत्र (रवि) और एक पुत्री (भावना) है। उनकी मृत्यु 29 दिसम्बर 2009 में दिल्ली में हो गई। अपनी मृत्यु से पहले दिल का दौरा पड़ने के कारण वे तीन साल तक कोमा में थे।
निधन
प्रसिद्ध चित्रकार मंजीत बावा का 29 दिसम्बर, 2008 सोमवार को दिल्ली में निधन हो गया। 67 वर्षीय बावा ब्रेन हैमरेज के बाद से क़रीब तीन साल से कोमा में रहे थे। बावा के परिजनों और मित्रों के अनुसार दक्षिण दिल्ली के ग्रीन पार्क इलाक़े में स्थित अपने आवास पर सोमवार सुबह उन्होंने आखिरी सांस ली। मंजीत बावा के परिवार में एक पुत्र और एक पुत्री है। उनकी पत्नी का कुछ वर्ष पहले ही निधन हो गया था। उनकी पेंटिंग्स के कद्रदान पूरी दुनिया में हैं। मंजीत बावा की एक पेंटिंग तो क़रीब एक करोड़ 73 लाख रुपये में बिकी थी।
पुरस्कार और सम्मान
· सन 2005-06 में मंजीत को प्रतिष्ठित कालिदास सम्मान दिया गया
· बुद्धदेब दासगुप्ता द्वारा उनके जीवन पर बनाये गए वृत्तचित्र ‘मीटिंग मंजीत’ को सन 2002 में ‘नेशनल अवार्ड फॉर बेस्ट डाक्यूमेंट्री’ का पुरस्कार दिया गया
· सन 1963 में उन्हें सैलोज़ पुरस्कार दिया गया
· सन 1980 में उन्हें ललित कला अकादमी द्वारा राष्ट्रिय पुरस्कार दिया गया
रोचक जानकारियां
· 1941: मंजीत बावा का जन्म पंजाब के धूरी में हुआ
· 1958: दिल्ली पॉलिटेक्निक के स्कूल ऑफ़ आर्ट्स में अध्ययन प्रारंभ किया
· 1963: कला की पढ़ाई पूरी हुई
· 1964: सिल्क स्क्रीन प्रिंटिंग सीखने के लिए ब्रिटेन गए
· 1967: एसेक्स के लन्दन स्कूल ऑफ़ प्रिंटिंग से सिल्क स्क्रीन पेंटिंग में डिप्लोमा ग्रहण करने के बाद एक सिल्क स्क्रीन प्रिंटर के तौर पर कार्य करने लगे
· 2005: दिल का दौरान पड़ने के बाद कोमा में चले गए
· 2008: 67 साल की उम्र में मृत्यु