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कलाकार

गुलशन बावरा जीवनी - Biography of Gulshan Bawra in Hindi Jivani

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गुलशन बावरा का नाम से मशहूर फिल्म गीतकार गुलशन मेहता से हैं (जन्मः 12 अप्रैल 1938 - मत्युः 7 अगस्त 2009) उन्होंने हिन्दी फिल्म उद्योग के 49 वर्ष के सेवा काल में 250 गीत लिखे। अविभाजित भारत शैखुपुरा (अब पाकिस्तान) में जन्मे गुलशन मेहता को बावरा का उपनाम फिल्म वितरक शांतिभाई पटेल ने दिया था। बाद में पूरा फिल्म उद्योग उन्हें इसी नाम से पुकारने लगा। फिल्मों में काम शुरू करने के पहले बावरा भारतीय रेल में काम करते थे। फिल्म उद्योग में उन्हें पहला गीत लिखने का अवसर 1959 में फिल्म चंद्रसेना में मिला था।


उनका हिट गीत फिल्म 'सट्टा बाजार' के लिए 'चांदी के चंद टुकडे के लिए' था। उन्होंने कल्याणजी-आनंदजी के संगीत निर्देशन में 69 गीत लिखे। जबकि, आर॰ डी॰ बर्मन के साथ 150 गीत लिखे थे। उन्होंने फिल्म 'सनम तेरी कसम', 'अगर तुम न होते', 'सत्ते पे सत्ता', 'यह वादा रहा', 'हाथ की सफाई' और 'रफू चक्कर' को अपने गीतों से सजाया था। बावरा को फिल्म 'उपकार' में 'मेरे देश की धरती' और फिल्म 'जंजीर' में 'यारी है ईमान मेरा' गीत के लिए फिल्म फेयर पुरस्कार मिला था। पिछले सात साल से वह बोर्ड ऑफ इंडियन परफार्मिंग राइट सोसायटी के निदेशक पद पर कार्यरत थे।


7 अगस्त को गुलशन बावरा का निधन मुंबई के पालीहिल स्थित निवास में लंबी बीमारी के बाद दिल का दौरा पड़ने के बाद निधन हो गया। उनके इच्छानुसार उनके मृतदेह को जेजे अस्पताल को दान दिया जाएगा।


प्रसिद्धि


इसके बाद के आगामी कुछ साल गुलशन जी के लिए मशक्कत वाले रहे और इन सालों में वे कई फ़िल्मों में अभिनय कर अपना गुजारा चलाते रहे। उनके जिस गीत ने पूरे भारत में उनके नाम का सिक्का जमा दिया, उसके लिए सारा श्रेय उनकी गुड्स क्लर्क की नौकरी को देना उचित जान पड़ता है। दरअसल रेलवे के मालवाहक विभाग में गुलशन बावरा अक्सर पंजाब से आई गेहूँ से लदी बोरियाँ देखा करते थे और वहीं उनके मन कभी न भुलाई जा सकने वाली वे पंक्तियाँ बन पड़ीं जो हिन्दी सिनेमा के इतिहास में अमर हो गईं। मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे-मोती, मेरे देश की धरती। जब उन्होंने अपने मित्र मनोज कुमार को ये पंक्तियाँ सुनाईं तो उसी समय मनोज जी ने इसे अपनी फ़िल्म 'उपकार' के लिए चुन लिया। इस गीत ने ही उन्हें सन 1967 में सर्वश्रेष्ठ गीत का 'फ़िल्मफेयर पुरस्कार' दिला गया। कहते हैं कि गुलशन बावरा ने यह गीत राज कपूर की फिल्‍म 'जिस देश में गंगा बहती है' के लिए लिखा था। यह गीत राज कपूर को पसंद भी आया था, लेकिन तब तक वे शैलेंद्र के गीत "होंठों पे सच्‍चाई रहती है, जहां दिल में सफाई रहती है" को फाइनल कर चुके थे। आखिरकार मनोज कुमार ने 'उपकार' में इसका प्रभावशाली उपयोग किया।


सही माएने में फ़िल्म 'उपकार' के इस गीत ने गुलशन बावरा को भारत की जनता से जोड़ दिया। सत्तर की शुरुआत में सबसे पहले 1974 में फ़िल्म 'हाथ की सफाई' में लता मंगेशकर द्वारा गाए उनके गीत "तू क्या जाने बेवफ़ा.." और "वादा कर ले साजना..." बेहद लोकप्रिय रहे। फिर 1975 में आई फ़िल्म 'जंजीर' में उनके गीतों- "दीवाने हैं दीवानों को ना घर चाहिए..." और "यारी है ईमान मेरा यार मेरी ज़िदगी....


गुलशन बावरा की मां विद्यावती धार्मिक कार्यकलापों के साथ साथ संगीत में भी काफी रूचि रखती थी। गुलशन बावरा अक्सर मां के साथ धार्मिक कार्यक्रमों में जाया करते थे।


देश के विभाजन के समय हुये सांप्रदायिक दंगों में गुलशन के माता-पिता की पिता की हत्या उनकी नजरों के सामने ही हो गयी। इसके बाद वह अपनी बड़ी बहन के पास दिल्ली आ गये। उन्होंने स्नातक की शिक्षा दिल्ली विश्वविद्यालय में ली। अपने परिवार की घिसी पिटी परंपरा को निभाते हुए उन्होंने वर्ष 1955 में अपने कैरियर की शुरुआत मुंबई में रेलवे में लिपिक की नौकरी से की। उनका मानना था कि सरकारी नौकरी करने से उनका भविष्य सुरक्षित रहेगा। लिपिक की नौकरी उनके स्वभाव के अनुकूल नहीं थी। बाद में नौकरी छोड़ दी और नजरें फिल्म इंडस्ट्री की ओर मोड़ दीं।


शुरू के दौर में फिल्म इंडस्ट्री में गुलशन बावरा को तरह-तरह की कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। उन्होंने अपना संघर्ष जारी रखा और कई छोटे बजट की फिल्में भी कीं, जिनसे उन्हें कुछ खास फायदा नहीं हुआ। उसी दौरान गुलशन की मुलाकात संगीतकार जोड़ी कल्याण जी, आनंद जी से हुई, जिनके संगीत निर्देशन में उन्होंने फिल्म सट्टा बाजार के लिये- 'तुम्हें याद होगा कभी हम मिले थे', गीत लिखा लेकिन इस फिल्म के जरिये वह कुछ खास पहचान नहीं बना पाये। लेकिन उस गीत को सुनकर फिल्म के वितरक शांतिभाई दबे काफी खुश हुए। उन्हें विश्वास नहीं हुआ कि इतनी छोटी सी उम्र में कोई व्यक्ति इतना डूबकर लिख सकता है। उसी दौरान पहली बार शांति भाई ने उनको 'बावरा' कहकर संबोधित किया। उसके बाद वह गुलशन मेहता से गुलशन बावरा हो गये।


कृतियाँ

उन्होंने कल्याणजी-आनंदजी के संगीत निर्देशन में 69 गीत लिखे। जबकि, राहुल देव बर्मन|आर.डी. बर्मन के साथ 150 गीत लिखे थे। उन्होंने फिल्म 'सनम तेरी कसम', 'अगर तुम न होते', 'सत्ते पे सत्ता', 'यह वादा रहा', 'हाथ की सफाई' और 'रफू चक्कर' को अपने गीतों से सजाया था। बावरा को फिल्म 'उपकार (1967 फ़िल्म)|उपकार' में 'मेरे देश की धरती' और फिल्म 'ज़ंजीर (1973 फ़िल्म)|जंजीर' में 'यारी है ईमान मेरा' गीत के लिए फिल्म फेयर पुरस्कार मिला था। पिछले सात साल से वह बोर्ड ऑफ इंडियन परफार्मिंग राइट सोसायटी के निदेशक पद पर कार्यरत थे।


निधन

7 अगस्त को गुलशन बावरा का निधन मुंबई के पालीहिल स्थित निवास में लंबी बीमारी के बाद दिल का दौरा पड़ने के बाद निधन हो गया। उनके इच्छानुसार उनके मृतदेह को जेजे अस्पताल को दान दिया जाएगा