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कलाकार

भीमसेन जोशी जीवनी - Biography of Bhimsen Joshi in Hindi Jivani

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        कर्नाटक के 'गड़ग' में 4 फ़रवरी, 1922 ई. को भीमसेन जोशी का जन्म हुआ था। उनके पिता 'गुरुराज जोशी' स्थानीय हाई स्कूल के हेडमास्टर और कन्नड़, अंग्रेज़ी और संस्कृत के विद्वान थे। उनके चाचा जी.बी जोशी चर्चित नाटककार थे तथा उन्होंने धारवाड़ की मनोहर ग्रन्थमाला को प्रोत्साहित किया था। उनके दादा प्रसिद्ध कीर्तनकार थे।पंडित भीमसेन जोशी किराना घराने के महत्त्वपूर्ण शास्त्रीय गायक थे।


        उन्होंने 19 साल की उम्र से गायन शुरू किया था और वे सात दशकों तक शास्त्रीय गायन करते रहे। भीमसेन जोशी ने कर्नाटक को गौरवान्वित किया है। भारतीय संगीत के क्षेत्र में इससे पहले एम. एस. सुब्बुलक्ष्मी, उस्ताद बिस्मिल्ला ख़ान, पंडित रविशंकर और लता मंगेशकर को 'भारत रत्न' से सम्मानित किया जा चुका है। उनकी योग्यता का आधार उनकी महान संगीत साधना है। देश-विदेश में लोकप्रिय हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के महान गायकों में उनकी गिनती होती थी।


        अपने एकल गायन से हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत में नए युग का सूत्रपात करने वाले पंडित भीमसेन जोशी कला और संस्कृति की दुनिया के छठे व्यक्ति थे, जिन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्‍न' से सम्मानित किया गया था। 'किराना घराने' के भीमसेन गुरुराज जोशी ने गायकी के अपने विभिन्‍न तरीकों से एक अद्भुत गायन की रचना की।


        पंडित भीमसेन जोशी को बचपन से ही संगीत का बहुत शौक था। वह किराना घराने के संस्थापक अब्दुल करीम खान से बहुत प्रभावित थे। 1932 में वह गुरु की तलाश में घर से निकल पड़े। अगले दो वर्षो तक वह बीजापुर, पुणे और ग्वालियर में रहे। उन्होंने ग्वालियर के उस्ताद हाफिज अली खान से भी संगीत की शिक्षा ली। लेकिन अब्दुल करीम खान के शिष्य पंडित रामभाऊ कुंडालकर से उन्होने शास्त्रीय संगीत की शुरूआती शिक्षा ली।


        घर वापसी से पहले वह कलकत्ता और पंजाब भी गए। इसके पहले सात साल पहले शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्ला खान को भारत रत्न से अलंकृत किया गया था। वर्ष 1936 में पंडित भीमसेन जोशी ने जाने-माने खयाल गायक थे। वहाँ उन्होंने सवाई गंधर्व से कई वर्षो तक खयाल गायकी की बारीकियाँ भी सीखीं। उन्हें खयाल गायन के साथ-साथ ठुमरी और भजन में भी महारत हासिल की है।


        भीमसेन ने दो शादियाँ की। उनकी पहली पत्नी उनके मातृक अंकल की बेटी सुनंदा कट्टी थी, उनकी पहली शादी 1944 में हुई थी। सुनंदा से उन्हें चार बच्चे हुए, राघवेन्द्र, उषा, सुमंगला और आनंद। 1951 में उन्होंने कन्नड़ नाटक भाग्य-श्री में उनकी सह-कलाकारा वत्सला मुधोलकर से शादी कर ली। उस समय बॉम्बे प्रान्त में हिन्दुओ में दूसरी शादी करना क़ानूनी तौर पे अमान्य था इसीलिए वे नागपुर रहने के लिए चले गए, जहाँ दूसरी शादी करना मान्य था।


        लेकिन अपनी पहली पत्नी को ना ही उन्होंने तलाक दिया था और ना ही वे अलग हुए थे। वत्सला से भी उन्हें तीन बच्चे हुए, जयंत, शुभदा और श्रीनिवास जोशी। समय के साथ-साथ कुछ समय बाद उनकी दोनों पत्नियाँ एक साथ रहने लगी और दोनों परिवार भी एक हो गए, लेकिन जब उन्हें लगा की यह ठीक नही है तो उनकी पहली पत्नी अलग हो गयी और लिमएवाडी, सदाशिव पेठ, पुणे में किराये के मकान में रहने लगी।


        अपनी संगीत शिक्षा से संतुष्ट न हो कर भीमसेन ग्वालियर भाग आये और वहाँ के 'माधव संगीत विद्यालय' में प्रवेश ले लिया। ग्वालियर के 'करवल्लभ संगीत सम्मेलन' में उनकी मुलाकात में विनायकराव पटवर्धन से हुई। मिले। विनायकराव को आश्चर्य हुआ कि सवाई गन्धर्व उसके घर के बहुत पास रहते हैं। सवाई गन्धर्व ने भीमसेन को सुनकर कहा, "मैं इसे सिखाऊँगा यदि यह अब तक का सीखा हुआ सब भुला सके।” इसी तरह अनेक ज्ञानियों का जिनमें इनायत खान, स्यामाचार्या जोशी आदि है के सहयोग व सीख से उन्हें जो ज्ञान मिला उसके फलस्वरूप वे एक महान संगीतकार के रूप में ख्यातिप्राप्त हुए।


        वर्ष 1941 में भीमसेन जोशी ने 19 वर्ष की उम्र में मंच पर अपनी पहली प्रस्तुति दी। उनका पहला एल्बम 20 वर्ष की आयु में निकला,जिसमें कन्नड़ और हिन्दी में कुछ धार्मिक गीत थे। इसके दो वर्ष बाद वह रेडियो कलाकार के तौर पर मुंबई में काम करने लगे। विभिन्‍न घरानों के गुणों को मिलाकर भीमसेन जोशी अद्भुत गायन प्रस्तुत करते थे।


        जोशी जी किराना घराने के सबसे प्रसिद्ध गायकों में से एक माने जाते थे। उन्हें उनकी ख़्याल शैली और भजन गायन के लिए विशेष रूप से जाना जाता है। पंडित भीमसेन जोशी ने कई फ़िल्मों के लिए भी गाने गाए। उन्होंने ‘तानसेन’, ‘सुर संगम’, ‘बसंत बहार’ और ‘अनकही’ जैसी कई फ़िल्मों के लिए गायिकी की।


        पंडित भीमसेन जोशी ने अपनी विशिष्ट शैली विकसित करके किराना घराने को समृद्ध किया और दूसरे घरानों की विशिष्टताओं को भी अपने गायन में समाहित किया। उनको इस बात का श्रेय जाता है कि उन्होंने कई रागों को मिलाकर कलाश्री और ललित भटियार जैसे नए रागों की रचना की। उन्हें खयाल गायन के साथ-साथ ठुमरी और भजन में भी महारत हासिल की है। पंडित भीमसेन जोशी का देहान्त २४ जनवरी २०११ को हुआ।


        किराना घराना के 86 वर्षीय शास्त्रीय गायक पंडित भीमसेन जोशी ने 19 वर्ष की आयु में पहली बार किसी सार्वजनिक मंच से अपनी गायन कला का प्रदर्शन किया था। उन्होंने पहली बार अपने गुरु सवाई गंधर्व के 60वें जन्मदिवस पर जनवरी 1946 में पुणे अपना गायन प्रस्तुत किया था। उनके द्वारा गाए गए गीत पिया मिलन की आस, जो भजे हरि को सदा और मिले सुर मेरा तुम्हारा बहुत प्रसिद्ध हुए।


        जोशी जी खयाल, भजन तथा अभंग गाने के लिए जाने जाते हैं। श्रीमती केशर बाई केरकर, बेगम अख्तर और उस्ताद आमिर खान जैसे शास्त्रीय गायकों से प्रभावित पंडित जोशी किराना घराने से संबद्ध थे। सुधा कल्याण, मिया की तोड़ी, पुरिया धनश्री, मुल्तानी, भीमपलाश, दरवारी और रामकली राग उनकी विशिष्टता थी। सुनने वाले लयों-तालों-छंदो से सम्मोहित घंटो बैठे भारतीय शास्त्रीय संगीत का रसपान करते हैं। पंडित जोशी मुख्यतः कन्नड़, हिंदी और मराठी भजनों के लिए जाने जाते थे।


        उनकी ईश्वरीय आवाज पीड़ा और परमानंद के भिन्न धरातलों की परतें खोल देती है और समान सरलता के साथ खोलती है. वो जिस उत्साह के साथ ‘तोड़ी’ और ‘कल्याण’ जैसे बड़े राग को विविधता में पेश करते हैं, उसी उत्साह से उनके छोटे रूप, राग ‘भूप’ और ‘अभोगी’ का निर्वहन करते हैं. इन दोनों भिन्न स्थितियों में श्रोता उनके गायन की गहराई और शक्ति का अनुभव कर सकता है जो भीतर अपनी परतें जमाती चली जाती है. कहां गायन को उठाने के लिए क्या त्याग देना जरूरी है, ये उन्हें अच्छी तरह से पता था.


        इसीलिए वो कई बार निष्ठुर होकर बोल-तानों में माधुर्य से मुंह मोड़़ लेते हैं. उनके आलाप, बढ़त और बंदिश समानुपातित और नियंत्रित हैं. ख्याल गायन में जहां उनका रेंज समुद्र की तरह विशाल है वहीं भावगीत, ठुमरी, भजन और अभंग में वो सरलता से सुवासित हैं. नके कई भजनों और मराठी अभंगों में राम या सीताराम का उच्चारण मात्र विह्वल कर जाता है. ऐसा लगता है साक्षात विट्ठल ही उनके स्वरों में गा रहे हैं.


        देव विट्ठळ तीर्थ विट्ठल.. आता कोठे धावे मन तुझे चरण देखी लिया.. मन राम रंगी रंगले…सुमति सीताराम…काया ही पंढरी आत्मा हा विट्ठल.. चतुर्भुज झूलत श्याम हिंडोले..राजस सुकुमार मदनाचा पुतला जैसे अनेक भजनों को सुनते हुए ये अनुभव किया जा सकता है. जोशीजी शुद्धतावादी गायक थे लेकिन उन्होंने खुद को किसी सीमा में नहीं बांधा. उन्होंने सिनेमा के लिए गाया, पार्श्वगायकों के साथ गाया. जब लता और मन्ना डे जैसे गायकों ने उनके साथ गाने में हिचकिचाहट जताई तो उनका उत्साहवर्धन भी किया. बसंत बहार फिल्म में मन्ना डे उनके साथ गाने के लिए तैयार नहीं थे. गाना था, केतकी गुलाब जूही चंपक वन फूले. तब जोशीजी ने मन्ना दा का उत्साह बढ़ाया.


प्रसंग :


        कहानी धारवाड़ जिले के रोन की है. कर्नाटक में एक छोटी सी जगह. एक बच्चा रोज स्कूल से आने में देर करता था. पिता गुरुराज को फिक्र होती थी. उन्होंने कई बार पूछा. बच्चे ने टाल दिया. पिता चिंतित थे कि कहीं बेटा गलत संगत में तो नहीं पड़ गया. एक दिन वो बाजार गए. कुछ सामान खरीदने. बाजार में एक दुकान थी. ग्रामोफोन की. गुरुराज जी सामने से निकले, तो दुकानदार ने उन्हें बुलाया और कहा कि मास्टर, आपका बेटा बहुत अच्छा गाता है. गुरुराज जी चौंके.


        दुकानदार ने उनसे कहा कि अरे आपको नहीं पता कि आपका बेटा गाता है? गुरुराज जी को समझ नहीं आया कि दुकानदार क्या कह रहा है. उन्होंने पूछा कि तुमने मेरे बेटे को गाते हुए कब सुना? दुकानदार ने बताया कि स्कूल बंद होते ही वो दुकान पर आकर बैठ जाता है. मैं उसके लिए एक रिकॉर्ड बजा देता हूं. वो एक रिकॉर्ड कई बार सुन चुका है. उसे सब रट गया है. वो अब ठीक वैसे ही गाता है, जैसे रिकॉर्ड में गाया गया है. यह पहला मौका था जब गुरुराज जोशी को पता चला कि उनका बेटा भीमसेन गाता है.


निधन :


        हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के मशहूर गायक भारत रत्‍न पंडित भीमसेन जोशी (89) का सोमवार सुबह 8 बजे पुणे के सहयाद्री अस्‍पताल में निधन हो गया। वह दो साल से बीमार थे। पि‍छले कई दि‍नों से उनकी हालत गंभीर बनी हुई थी। जोशी खय्याल गायकी और भजन के लिए मशहूर थे। जोशी का जन्म कर्नाटक के गडक जिले में 4 फरवरी, 1922 को हुआ था। उनको 2008 में देश के सर्वोच्च नागरिक सम्‍मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। इसके अलावा उन्‍हें पद्म विभूषण, पद्म भूषण, पद्मश्री समेत कई अलंकरण और सम्मान दि‍ए जा चुके थे।


रोचक तथ्य :


• बचपन में स्कूल से लौटते समय पंडितजी ग्रामोफोन रेकार्ड की दुकान पर रुककर गाने सुनते थे।

• मात्र 11 वर्ष की उम्र में पंडितजी ने गुरु की खोज में घर छोड़ा।

• गायकी के अलावा पंडितजी ने अपने शरीर का भी खूब ख्याल वर्जिश के माध्यम से रखा है।

• सवई गंधर्व गायन सिखाने के मामले में काफी सख्त थे, जिसका असर पंडितजी के गायन में भी देखने को मिलता था।

• वे अपने आप में गुम होकर प्रस्तुति देते थे ताकि हरेक सुर बिलकुल कसा हुआ लगे।

• मात्र 19 वर्ष की उम्र में वे मंचीय प्रस्तुति देने लगे थे।

• अभोगी, पूरिया, दरबारी, मालकौंस, तोड़ी, ललित, यमन, भीमपलासी, शुद्ध कल्याण आदि पंडितजी के पसंदीदा राग थे।

• इसके अलावा अभंग में माझे माहेर पंढरी, पंढरी चा वास और भजन में जो भजे हरी को सदा ठुमरी पिया के मिलन की आस आदि काफी प्रसिद्ध है।

• पंडितजी तंबाकू वाला पान खाने का शौक रखते थे, साथ ही उन्हें कार चलाने का भी शौक था।

• ख्याल गायकी के सम्राट उ. अमीर खाँ साहब ने भी पंडितजी के बारे में कहा था कि मेरे बाद ये ख्याल गायकी को काफी आगे ले जाएगा।



अवार्ड :


• 1972 – पद्म श्री

• 1976 – संगीत नाटक अकादमी अवार्ड

• 1985 – पद्म भुषण

• 1985 – बेस्ट मेल प्लेबैक सिंगर के लिए नेशनल फिल्म अवार्ड

• 1986 – “पहली प्लैटिनम डिस्क”

• 1999 – पद्म विभूषण

• 2000 – “आदित्य विक्रम बिरला कलाशिखर पुरस्कार”

• 2002 – महाराष्ट्र भुषण

• 2003 – केरला सरकार द्वारा “स्वाथि संगीता पुरस्कारम”

• 2005 – कर्नाटक सरकार द्वारा कर्नाटक रत्न का पुरस्कार

• 2009 – भारत रत्न

• 2008 – “स्वामी हरिदास अवार्ड”

• 2009 – दिल्ली सरकार द्वारा “लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड”

• 2010 – रमा सेवा मंडली, बंगलौर द्वारा “एस व्ही नारायणस्वामी राव नेशनल अवार्ड”