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अन्यवैज्ञानिकSCIENTIST

भबतरक भटाचार्य की जीवनी - Biography of Bhabatarak Bhattacharya in hindi jivani

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नाम : भबतरक भटचार्य

जन्म दि: 2 दिसंबर 1944

ठिकाण : कोलकाता, पश्चिम बंगाल

व्यावसाय : जीवविज्ञानी


प्रारंभिक जीवनी :


        भबतरक भटचार्य का जन्म 2 सितंबर 1944 को कोलकता मे हुआ था | उनके माता पिता का नाम भबरंजन मलंचा था | भटाचार्य ने कलकत्ता विश्वाविदयालय से रसायन विज्ञान मे स्त्रातक किया था | और उसी विश्वाविघ्यालय से भौतिक रसायन विज्ञान मे अपनी मास्टार डिग्री प्राप्ता कि थी | इसके बाद, उन्होंने इंडियन एसोसिएशन ऑफ द कल्टिवेशन ऑफ साइंस, कोलकता मे प्रवेश किया था | और भारतीय विज्ञान संस्थान के उमा शंकर नंदी के मार्गदर्शन मे डिग्री हासिल करने के लिए डॉक्टरेट कि पढाई पूरी कि थी |


        अमेरिका मे जाकर, उन्होंने नेशनल इंस्टीटयूट ऑफ हेल्थ के जन बोल्फ कि प्रयोगशाला मे डॉक्टरेट कि पढाई पूरी कि थी | अमेरिका मे जाकर, उन्हेांने नेशनल इंस्टीटयूट ऑफ हेल्थ के जन वोल्फ कि प्रयोगशाला मे डॉक्टरेट कि पढाई परी कि थी | जहाँ उन्होंने 1978 मे एक व्याख्याता के रुप मे शिक्षाविदों को स्थानांतरति कर दिया था | और एक प्रोफेसर और जैव रसायन विभाग के प्रमूख के रुप मे अपनी सेवानिवृत्ती तक अपनी सेवा जारी रखि थी |


कार्य :


        भबातारक भटाचार्य को बबलु भटाचार्य के नाम से जाना जाता है | वह एक भारतीय संरचनात्मक जीवविज्ञानी जैव रसायनविदू और आकादमिक है | जो कि कोलिसीन टयूबूलिन इंटरैक्शन पर अपने अध्यायन के लिए जाने जात है | वह एक पूर्व प्रोफेसर और बोस संस्थान, कोलकता मे जैव रसायन विभाग के प्रमूख थे | और भारतीय विज्ञान अकादमी भारत राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी, राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी, भारत और विश्वा विज्ञान अकादमी के एक निर्वाचित साथी है |


        जॉन वोल्फ की प्रयोगशाला मे डॉक्टरेट के बाद अध्यायन के दौरान भटाचार्य का शुरुआती काम टयूबिलिन और एंटीमैटिक दवाओं के साथ इसके बाध्याकारी तंत्र पर था | बाद मे उन्होंने अपने शोधो को कोलीकिन टयूबलिन इंटरनेशन पर केंद्रीत किया था | और कोलोसिकिन के अपरिवर्तनीय बंधन मे बीरींग के साइड चेन पर कार्बोनिल समूह के प्रभाव के स्पष्ट किया था | उन्होंने कोलचिकन टयूबिलिन बॉध के प्रतिदिप्ती का प्रदर्शन किया जो औषधीय assays मे रेडियो लेबल वाले कोलचिकिन के विकल्प कि पेशकश करने कि रिपोर्ट करता है | कोलिसिन बंधन के कैनेटीक्सा के अध्यायन को आसान बनाता है |


        उन्होंने टयूबलिन और माइक्रोटयूब्यूल से जुडे प्रोटीनो के चैपरोन जैसी गतिविधिके तंत्र का अध्यायन किया और उनके अध्यायन से कैंसर के इलाज के लिए मुख्या यौगिको के डिजाइन के साथ साथ नई दवाओं के महत्वा का भी पता चला था | उन्होंने अपने शोध निष्कर्षो का विवरण देते हुए कई लेख प्रकाशित किए है | उन्हेाने अपने काम के लिए पेटेंट दर्ज किया है |


        और उन्होंने अपने डॉक्टरल अध्यायन मे कई विव्दानों का उल्लेख किया है | उनका वैज्ञानिक करियर एक लेख मे प्रकाशित किया गया डॉ.बबलू भटाचार्य एक जर्नी ऑफ फोर डिकेड बिद टयूबुलिन 2015 मे प्रकाशित है | वह वैज्ञानिक और औघोगिक अनुसंधान परिषद से भी जुडे रहे है | भारतीय विज्ञान अकादमी अपनी विभिन्ना तकनीकि समितीयों के सदस्या के रुप मे कार्य किया है | 


पूरस्कार और सम्मान :


1) वैज्ञानिक और औघोगिक अनुसंधान परिषद ने उन्हें शांति स्वरुप भटनागर पूरस्कार से सम्मानित किया जो 1988 मे सर्वोच्चा भारतीय विज्ञान पुरस्कारों मे से एक है |

2) भारतीय विज्ञान अकादमी नेशनल एकेडमी सहित कई विज्ञान अकादमियों के निर्वाचित साथी है |

3) वह पीएस शर्मा मेमोरियल अवार्ड फॉर द सोसाइटी फॉर बायोलॉजिकल केमिकल्सा , भारत और बोस इंस्टीटयूट के स्थापना दिवस पूरस्कार के प्राप्ताकर्ता भी है |