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अन्यवैज्ञानिकSCIENTIST

बैंगलोर पुट्टैया राधाकृष्णा की जीवनी - Biography of Bangalore Puttaiah Radhakrishna in hindi jivani

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नाम : बैंगलोर पुट्टैया राधाकृष्णा

जन्म दि : 30 अप्रैल 1918 आयू 101

ठिकाण : बैंगलोर, ब्रिटीश भारत

व्यावसाय : भूवैज्ञानिक

मृत्यू : 26 जनवरी 2012


प्रांरभिक जीवनी :


        बी पी राधाकुष्णा का जन्म 30 अप्रैल 1918 को बैंगलोर मे हुआ था जो मैसूर राजया के प्रसिध्दा सार्वजनिक वयक्ति श्री बैंगलोर पुतैया के तिसरे प्रुत्र के रुप मे थै | बीपीआर ने सेंट्रल कॉलेज बैंगलोर से वर्षे 1937 मे प्रथम श्रेणी मे भूविज्ञान मे बीएससी ऑनर्स की डिग्री प्रापता कि थी | और स्वर्ण पदक हासिल किया था | स्त्रातक होने के तुरंत बाद, वह 19 वर्षे कि आयु मे एक क्षैत्र सहायक के रुप मे मैसूर भूवैज्ञानिक विभाग एमजीडी मे शामिल हो गए थे |


कार्य :


        बैंगलोर पुट्टैया राधाकृष्णा जिनहें बीपीआर के रुप मे भी जाना जाता है | भारत के प्रमूख भूवैज्ञानिकों मे से एक थे | उन्हें अक्सर भारतीय भूविज्ञान का सिध्दांत कहा जाता है | वे बैंगलोर के निवासी थे | और नियमित रुप से जर्नल ऑफ द जियोलॉजिकल सोसाईटी ऑफ इंडिया मे संपादकिय लिखेते थे | जो कि भारतीय भूवैज्ञानिक सोसायटी व्दारा प्रकाशित किया जाता है |


        बीपीआर ने विभाग को 37 वर्षो तक सेवा दी थि | 1974 मे सेवा से सेवानिवृत्ती हुए | वह विभाग के निदेशक के रुप मे उनके कार्यकाल ने गतिविधीयों मे विशैष रुप से खनिज संसाधन विकास और राजया के भूजल संसाधनों के उपयोग मे बहूत विस्तार देखा था | बीपीआर को भारत मे भूविज्ञान के कारण उनकी सेवा के लिए याद किया जाएगा |


        परिणामों के त्वरीत प्रकाशनों और व्यापक प्रसार के लिए विचारों और मिडिया के मुक्त आदान प्रदान के लिए मंच प्रदान किया था | भूवैज्ञानिक अनुसंधान के मानक मे सुधार के लिए किया था | 1958 मे भारतीय भूवैज्ञानिक सोसायटी के गठन के विचार कि कल्पना करने वाले समूह का एक प्रमूख सदस्या होने के अलावा ज्ञान का उन्होंने पंद्रह वर्षा के लिए पहले सचिव और बाद मे 1974: 92 के बीच संपादक के रुप मे कार्य किया था |


        सोसाइटी के प्रकाशनों ने भारत मे पृथ्वी विज्ञान अध्यायन के विकास पर लाभकारी प्रभाव डाला है | सोसायटी केंद्र मे बडी है | और इसके रोल पर लगभग 2000 सदस्या है | बी पी आर कि गहरी भागीदारी और निस्वार्थ सेवा समाज के लिए केंद्रीय है | भूवैज्ञानिक समस्याओं के अध्यायन के लिए बहू अनूशासनात्माक प्रयासों को प्रोत्साहित किया था |


        उनके दृष्ठिकोण का विशिष्ट चरित्र उनकी उल्लेखनीय स्वतंत्रता थी | वह सोसायटी के लिए सरकारी समर्थन प्रापता करने के लिए अनिच्छूक थै | इसके विपरित, वह व्याक्तिगत रुप से वित्तीय योगदानों के बजाय अपने साथियों के बैध्दिक श्रम को शामिल करने के लिए व्याक्तिगत प्रतिबध्दता मे विश्वास करने थे |


पूरस्कार और सम्मान :


1) 1956 मे चुने गए भारतीय विज्ञान अकादमी के साथि|

2) राष्ट्रीय खनिज पूरस्कार भारत का 1971|

3) 1972 मे चुने गए भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी के साथी|

4) जियोलॉजिकल सोसायटी ऑफ लंदन के मानद फेलो, 1986 मे चुने गए |

5) 1988 मे चुने गए जियोलॉजिकल सोसायटी ऑफ अमेरिका के मानद फेलो |

6) वर्ष 1990 के लिए एशियाटिक सोसायटी, कलकत्ता का प्रथम नाथ बोस पदक|

7) इंडियन स्कूल ऑफ माइनसा व्दारा मानद डॉक्टर ऑफ साइस 1992|

8) उत्कृष्टता के लिए खनिज पुरस्कार ऑफ इंडिया 2000|


पुस्तके :


1) जियोलॉजी ऑफ कर्नाटका|

2) मिनरल सिर्सोस ऑफ कर्नाटका|

3) भारत मे स्वर्ण|

4) मैसूर राजया भारत का क्लोजेट ग्रेनाइट|

5) जल विज्ञान संबंधी अध्यायन |

6) रैंडम हार्वेस्ट: एनथोलॉजी ऑफ एडिटोरियल्सा संस्मारण 51|

7) जल विज्ञानीय अध्यायन एथोलॉजी|

8) गोल्उ द इंडियन सीन|

9) नेलदा नीरु कन्ना डमे |

10) रामानुजन दुसरा संस्कारण