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नाम : अदिति पंत
ठिकाण : नागपूर
व्यावसाय : समुद्र विज्ञानी
प्रारंभिक जीवनी :
अदिति पंत का जन्म भारत के नागपूर मे एक मराठी देशस्या ब्राम्हाण परिवार मे हुआ था | उसने कम उम्रा मे विज्ञान मे रुचि लेना शुरु कर दिया | उनकी जिज्ञासा स्वाभाविक रुप से उनके माता पिता व्दारा उनके साथ अपने जीवन से बढ कर डाईनर्टटाइम बातचीत और बाहरी गतिविधियों के रुप मे हुई | जिस समय पंत बडे हो रहे थे, उस समय महिलाओं के लिए उन्नात डिग्री हासिल करना असामान्या था | इसने अपने परिवार की खराब स्थिति के साथ, पंत को यह विश्वास दिलाया कि उच्चा शिक्षा असंभव थी |
पंत ने पुणे विश्वाविदयालय मे बीएससी पूना विश्वाविदयालय के रुप मे भी जाना जाता है | पूरा किया जब वह एक परिवारिक मित्र से एलिस्टार हार्डी की किताब द ओपन सी मे आई तो उन्हें एक पेशे के रुप मे समुद्रशास्त्र के लिए प्रेरित किया गया था | हवाई विश्वाविदयालय मे एक समुद्री विज्ञान मे मास्टार की उपाधी प्राप्ता करने के लिए उन्हे उमेरिकी सरकार की छात्रवृत्ती से सम्मानित किया गया | उनकी शैक्षणिक रुचि प्लैंकटन समुदायों व्दारा प्रकाश संश्लेषण पर उष्णा कटिबंधिय प्रकाश की तीव्रता के प्रभाव पर अपनी थीसिस लिखी और फाइटोप्लांकटन से बैक्टीरिया तक फम कार्बन प्रवाह की प्रकृति और मात्रा | खुले समुद्र मे इस लक्ष्या जीव का अध्यायन करना बहूत ही समस्याजनक और कठिन साबित हुआ और अपने गुरु डॉ. एमएस डोटी की मदद से, पंत ने एक बडे समुदाय मे जाने से पहले एकल जीवाणू मॉडल पर ध्यान केंद्रित करने का निर्णय लिया |
इसके बाद पंत वेस्टाकिल्डा कॉलेज लंदन विश्वाविदयालय मे मरीन एल्गी मे फिजियोलॉजी मे पीएचडी करने के लिए आगे बढे | उसकी थीसिस ने समुद्री शैवाल के शरीर विज्ञान के विषय से निपटा | वह अपनी जांच के लिए एकारसईआरसी पूरस्कार और एक वजीफा अर्जित करने के लिए चली गई |
कार्य :
वित्तीय बाधाओं के कारण विदेश मे उसकी उन्नत शिक्षा प्राप्ता करना आसान नही था, इसलिए यह एक खुशी की घटना थी जब उसे हवाई विश्वाविदयालय मे अमेरिकी सरका अनुदान मिला | उसका प्रस्ताव छोटे मछली नेटवर्क मे प्रकाश संश्लेषण पर निर्भर था क्योकी उसे पहली बाद द ओपन सी पुस्तक के इस समुद्री संरचना के लिए प्रस्तुत किया गया था | जब वह पीउचडी के लिए अपने काम के खत्म होने के करीब पहूंची, तो उनके पास दो या तीन प्रयोगशालाओं मे उनकी जगहे थी | जहां वह काम करना चाहती थी | लेकिन इस बीच उनकी मुलाकात सीएसआईआर के वरिष्ठा शोधकर्ता प्रोफेसर एनके पाणिक्क्र से हुई, जो लेखक के निर्देशक थे |
राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान NIO गोवा 1973:76 के बीच NIO मे वे समुद्र तट के सामने की जाँच करने के लिए हमारी परिस्थिती की पश्चिम से बंधे हुए थे और शायद वेरावल से कन्याकूमारी और मन्नार की खाडी तक पूरे पश्चिमी तट को सुरक्षित कर लिया | एन आईओ ने अंटार्कटीका महासागर मे इस तरह के विषयों पर अध्यायन के लिए 10 साल का कार्यक्रम रखा था | इसके बजाय, वह संस्थान के संस्थापक एनके पणिक्क्र से प्रेरित होने के बाद गोवा मे राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान एनआईओ मे शामिल होने के लिए भारत लौट आई |
1990 मे NIO के साथ काम करने के 17 साल बाद पंत राष्ट्रीय रासायनिक प्रयोगशाला मे काम करने के लिए पुणे चले गए | वहाँ उन्होने खाघ श्रृखंला मे शामिल नम साहिष्णू और नमक प्यार करने वाले रोगाणुओं के एंजाइमोलॉजी का अध्यायन किया |
वह 2003 से 2007 तक पूणे वनस्पती विज्ञान विभाग मे प्रोफेसर एमेरिटस भी थी |
अदिती पंत एक भारतीय समुद्र विज्ञानी है वह अंटार्कटीका की पहली भारतीय महिला थी, उन्होंने 1983 मे भारतीय अंटार्कटिक कार्यक्रम के हिस्से के रुप मे भूविज्ञानी सुदीप्ता सेनागुप्ता के साथ मुलाकात की | इस समय महिलाओं को एक सम्मानित शिक्षा प्राप्ता करने की अनुमति नही थी डॉ.अनीता पंत ने इन बाधाओं को पार कर लिया और सभी महत्वाकांक्षी महिला वैाज्ञानिको की भूमिका मॉडल बन गई उन्होंने राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान, राष्ट्रीय रासायनिक प्रयोगशाल पुणे विश्वाविदयालय ओर महाराष्ट्रा विज्ञान अकादमी सहित संस्थानों मे प्रमुख पदों पर कार्य किया है |
पूरस्कार और सम्मान :
1) भारतीय अंटार्कटीक कार्यक्रम मे उनके योगदान के लिए उन्हे भारत सरकार व्दारा अंटार्कटिका पुरस्कार से सम्मानित किया गया |
2) सहकर्मियो सुदीप्ता सेनगुप्ता , जया नैथानी और कंवल विल्कू के साथ सम्मन साझाा किया
3) वह एसईआरसी पूरस्कार की प्राप्ताकर्ता थी और अपने शोध के क्षेत्र मे उसकी जांच के लिए वजीका देती थी |
4) वह महाराष्ट्रा सोसायटी फॉर द कालर्टवेशन ऑफ साइंस जनरल बाँडी ऑफ महाराष्ट्रा एसोसिएशन फॉर द कल्टिवेशन ऑफ साइंस बायोफयूल कमेटी जैव प्रोघोगिकी विभाग सीजीओ कॉम्प्लेक्सा, नई दिल्ली की सदस्या है | वह महाराष्ट्रा एकेडमी ऑफ साइंस की साथी सदस्या भी है |
5) पंत जांच पेटेंट के मालिक है और अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका ओ मे से उनके 67 से अधिक प्रकाशन है |