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अभिनेता

सुनील दत्त जीवनी - Biography Of SunilDutt in Hindi Jivani

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सुनील दत्त एक प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता और राजनीतिज्ञ थे. इनका जन्म 6 जून 1929 को अविभाजित पंजाब के झेलम जिले में हुआ था. उनकी शिक्षा मुंबई के जय हिन्द कॉलेज में हुई. उन्होंने अपने करियर की शुरुआत रेडियो सीलोन में एक उद्घोषक के रूप में की. रेडियो सीलोन साउथ एशिया का सबसे पुराना रेडियो स्टेशन है. एक उद्घोषक के रूप में दत्त साहब बहुत लोकप्रिय हुये. अभिनय में इनकी काफी रूचि थी. इस क्षेत्र में इन्होने शीघ्र ही अपनी पहचान बना ली. उनकी पहली फिल्म रेलवे स्टेशन थी जो 1955 में बनी थी. सन 1957 में बनी फिल्म मदर इंडिया बहुत बड़ी हिट फिल्म थी. इस फिल्म ने उन्हें बॉलीवुड का स्टार बना दिया. उन्होंने 50 से भी ज्यादा फिल्मों में काम किया और कई फिल्मों का निर्माण और निर्देशन भी किया.


सन 2003 में बनी फिल्म मुन्ना भाई एम बी बी एस उनकी बतौर अभिनेता अंतिम फिल्म थी. इस फिल्म में उन्होंने अपने ही पुत्र संजय दत्त के पिता की भूमिका निभाई थी. पद्मश्री सहित कई सम्मानों से नवाजा गया. 2005 में उनको हिंदी cinema का सबसे बड़े पुरस्कार दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया. सुनील दत्त एक कुशल सामाजिक कार्यकर्ता भी थे. महाराष्ट्र सरकार ने उन्हें 1975 में जस्टिस ऑफ़ पीस और 1981 में शैरिफ बनाया. 1962 में चीन से युद्ध के दौरान उन्होंने एक लाख का चंदा राष्ट्रीय सुरक्षा कोष में दिया.


सैनिकों के मनोरंजन के लिए अजंता आर्ट दल का गठन किया. युद्ध के दौरान सैनिकों का न सिर्फ मनोबल बढाया बल्कि उनकी मदद भी की. नितिन नारायण राव को इंग्लिश चैनल पार करने के लिए स्पोन्सर किया. उनकी शादी नरगिस के साथ हुई जिनकी मौत कैंसर के कारण हो गई. दत्त साहब ने एक कैंसर हॉस्पिटल नरगिस स्मारक फाउंडेशन की स्थापना की.


फ़िल्म निर्माण


सुनील दत्त ने 1963 में प्रदर्शित फ़िल्म 'यह रास्ते है प्यार के' के ज़रिए फ़िल्म निर्माण के क्षेत्र में भी क़दम रख दिया। यह फ़िल्म टिकट खिड़की पर ज़्यादा सफल नहीं रही। इस फ़िल्म के बाद सुनील दत्त ने फ़िल्म 'मुझे जीने दो' का निर्माण किया। यह फ़िल्म डाकुओं के जीवन पर आधारित थी। यह फ़िल्म सुपरहिट साबित हुई। इसके बाद उन्होंने अपने भाई सोम दत्त को बतौर मुख्य अभिनेता फ़िल्म 'मन का मीत' में लांच किया। सोम दत्त का फ़िल्मी सफर बहुत सफल नहीं रहा। सुनील दत्त ने 1971 में अपनी महत्वकांक्षी फ़िल्म 'रेशमा और शेरा' का निर्माण और निर्देशन किया। इस फ़िल्म में उन्होंने भूमिका भी निभाई। यह एक पीरियड और बड़े बजट की फ़िल्म थी जिसे दर्शकों ने नकार दिया। निर्माता और निर्देशक बनने के बाद भी सुनील दत्त अभिनय से कभी ज़्यादा समय के लिए दूर नहीं रहे। सुनील दत्त की सत्तर और अस्सी के दशक में बनी फ़िल्में 'प्राण जाए पर वचन ना जाए' (1974), 'नागिन' (1976), 'जानी दुश्मन' (1979) और 'शान' (1980) में उनकी भूमिकाएँ पसंद की गयी। इस समय में सुनील दत्त धार्मिक पंजाबी फ़िल्मों से भी जुड़े रहे। जिनमें 'मन जीते जग जीते' (1973), 'दुख भंजन तेरा नाम' (1974 ), 'सत श्री अकाल' (1977) प्रमुख हैं।


राजनीति में


सुनील दत्त ने फ़िल्मों में कई भूमिकाएँ निभाने के बाद समाज सेवा के लिए राजनीति में प्रवेश किया और कांग्रेस के सहयोग से लोकसभा के सदस्य बने। साल 1968 में वह पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किए गए। सुनील दत्त को 1982 में मुंबई का शेरिफ नियुक्त किया गया। हिन्दी फ़िल्मों के अलावा सुनील दत्त ने कई पंजाबी फ़िल्मों में भी अपने अभिनय का जलवा दिखाया। इनमें 'मन जीते जग जीते' 1973, 'दुख भंजन तेरा नाम' 1974 और 'सत श्री अकाल' 1977 जैसी सुपरहिट फ़िल्में शामिल है


लोक कल्याण के कार्य


सुनील दत्त और नरगिस - दोनों पति पत्नी ने मिलकर "अजन्ता आर्ट्स कल्चरल ट्रुप" नाम से एक सांस्कृतिक संस्था का निर्माण बहुत पहले ही कर लिया था। इस संस्था के माध्यम से वे फिल्म निर्माण से लेकर राष्ट्र् व लोक कल्याण के कार्य निरन्तर करते रहे। 1981 में यकृत कैंसर से हुई उनकी पत्नी नरगिस दत्त की मृत्यु के बाद सुनील दत्त ने "नरगिस दत्त मैमोरियल कैंसर फाउण्डेशन" की स्थापना की। इतना ही नहीं, प्रति वर्ष उनकी स्मृति में "नरगिस अवार्ड" भी देना प्रारम्भ किया। अब ये दोनों कार्य उनकी बेटियाँ व बेटा मिलकर देखते हैं।


सम्मान और पुरस्कार


o 1964 - फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार - मुझे जीने दो


o 1966 - फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार - खानदान


o 1967 - बंगाल फिल्म जर्नलिस्ट ऐसोसिएशन का सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार - मिलन


o 1968 - पद्म श्री


o 1982 - बम्बई के शेरिफ़


o 1995 - फिल्म फेयर का लाइफटाइम अचीवमेण्ट अवार्ड


o 1997 - स्टार स्क्रीन का लाइफटाइम अचीवमेण्ट अवार्ड


o 1998 - राजीव गान्धी राष्ट्रीय सद्भावना सम्मान[


o 2005 - दादा साहब फाल्के अकादमी का फाल्के अवार्ड


o 2005 - आईआईएफएस लन्दन का भारत गौरव सम्मान


रोचक जानकारियां


(1) सुनील दत्त ने अपने कैरियर की शुरूआत साउथ एशिया के सबसे पुराने रेडियो स्टेशन सीलोन पर एक उद्घोषक के रूप में की। इससे इन्हें काफी लोकप्रियता हासिल हुई।


(2) इसके बाद सुनील दत्त ने फिल्म क्षेत्र में अभिनय करने का निर्णय लिया और मुुंबई आकर इस कार्य में जुट गए।


(3) इनकी सबसे पहली फिल्म रही,सन् 1955 में बनी फिल्म”रेलवे स्टेशन”।


(4) इन्हें बॉलीवुड का स्टार बनाने वाली फिल्म रही,सन् 1957 में बनी फिल्म “मदर इंडिया”।


(5) सन् 1964 में इनकी आने वाली फिल्म रही “मुझे जीने दो”। यह फिल्म इतनी सुुपर हिट रही कि इसनेे सुनील दत्त को फिल्म फेयर का सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार दिला दिया।


(6) फिल्म “खानदान” जो कि इस फिल्म के ठीक दो वर्ष बाद रिलीज हुई,पुन: इनको फिल्म फेयर का सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार दिला गई।


(7) सन् 1957 में बनी फिल्म “मदर इंडिया” मे एक दिन शूटिंग के दौरान सैट पर आग लग गई। नर्गिस दत्त को चारों तरफ आग से घिरा देख उन्हें बचाने के चक्कर मे खुद झुलस गए।


(8) यह घटना नर्गिस को प्रभावित कर गई और इन्होंने अपनी माँ को राजी कर 11 मार्च सन् 1958 को सुनील दत्त से विवाह रचा लिया।


(9) 60 के दशक मे इनकी एक से एक बेेहतरीन फिल्में आईं,जिनमें प्रमुख हैं – गुमराह,सुजाता,मुझे जीने दो, पड़ोसन, हमराज,खानदान इत्यादि।


(10) पहली बार इन्हें उत्तर पश्चिमी लोकसभा सीट से सन् 1984 में कांग्रेस पार्टी से टिकिट मिला और सांसद बने और लगातार पाँच बार यहाँ से साँसद चुने जाते रहे।


(11) इनकी मृत्यु के बाद इनकी पुत्री प्रिया दत्त यहीं से चुनाव जीतकर साँसद बनीं।


(12) अभिनेता,निर्माता,निर्देशक व राजनेता रहने वाले सुनील दत्त मुंबई से शेरिफ भी रहे।