Deoxa Indonesian Channels

lisensi

Advertisement

" />
, 04:37 WIB
संत

शिवानी जीवनी - Biography of Shivani in Hindi Jivani

Advertisement


शिवानी का जन्म 19 मार्च, 1972 को पुणे शहर में हुआ। उन्होंने 1994 में पुणे विश्वविद्यालय से स्वर्ण पदक विजेता के रूप में अपनी इलेक्ट्रानिक्स इंजीनियरिंग स्नातक की डिग्री पूरी की, और फिर भारती विद्यापीठ कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, पुणे के एक प्राध्यापक के रूप में दो साल तक काम किया। एक साक्षात्कार में, उन्होंने अपने माता-पिता से बचपन में ब्रह्मा कुमारी में जाने की बात कही, लेकिन बाद में उनकी शादी विशाल वर्मा के साथ हो गयी। लेकिन 23 साल की उम्र में, वह स्वयं ब्रह्मकुमारी कार्यशालाओं में जाने के लिए फिर से जुट गई थी। शुरूआत में सोनी टीवी के लिए दिल्ली में ब्रह्मकुमारी टेलीविजन प्रस्तुतियों के पीछे काम करने के बाद, 2007 में शिक्षकों की अनुपलब्धता के कारण, उन्हें दर्शकों को स्वयं का सवाल पूछने को कहा गया था। इससे टीवी कार्यक्रम, “Awakening with Brahma Kumaris” नामक एक कार्यक्रम का नेतृत्व किय बीके शिवानी अब दिल्ली में इस्लामिक सांस्कृतिक केंद्र के माता-पिता कार्यक्रमों के लिए अंग दान को बढ़ावा देने से लेकर धर्मार्थ घटनाओं पर ब्रह्मकुमारी को बढ़ावा देने वाले भारत में यात्रा करती हैं। सुरेश ओबराय के साथ उनकी टीवी श्रृंखला “Happiness Unlimited” को बेस्टसेलर पुस्तक में रूपांतरित किया गया था। 2014 में, आध्यात्मिक चेतना सशक्त बनाने में उत्कृष्टता के लिए ऑल लेडीज़ लीग द्वारा दी डियाडे एचीवर्स अवॉर्ड की महिलाओं के साथ उन्हें सम्मानित किया गया।


हिंदी साहित्य जगत में शिवानी एक ऐसी श्ख्सियत रहीं जिनकी हिंदी, संस्कृत, गुजराती, बंगाली, उर्दू तथा अंग्रेजी पर अच्छी पकड रही और जो अपनी कृतियों में उत्तर भारत के कुमाऊं क्षेत्र के आसपास की लोक संस्कृति की झलक दिखलाने और किरदारों के बेमिसाल चरित्र चित्रण करने के लिए जानी गई। महज 12 वर्ष की उम्र में पहली कहानी प्रकाशित होने से लेकर 21 मार्च 2003 को उनके निधन तक उनका लेखन निरंतर जारी रहा। उनकी अधिकतर कहानियां और उपन्यास नारी प्रधान रहे। इसमें उन्होंने नायिका के सौंदर्य और उसके चरित्र का वर्णन बडे दिलचस्प अंदाज में किया


कहानी के क्षेत्र में पाठकों और लेखकों की रुचि निर्मित करने तथा कहानी को केंद्रीय विधा के रूप में विकसित करने का श्रेय शिवानी को जाता है।वह कुछ इस तरह लिखती थीं कि लोगों की उसे पढने को लेकर जिज्ञासा पैदा होती थी। उनकी भाषा शैली कुछ-कुछ महादेवी वर्मा जैसी रही पर उनके लेखन में एक लोकप्रिय किस्म का मसविदा था।


उनकी कृतियों से यह झलकता है कि उन्होंने अपने समय के यथार्थ को बदलने की कोशिश नहीं की।शिवानी की कृतियों में चरित्र चित्रण में एक तरह का आवेग दिखाई देता है। वह चरित्र को शब्दों में कुछ इस तरह पिरोकर पेश करती थीं जैसे पाठकों की आंखों के सामने राजारवि वर्मा का कोई खूबसूरत चित्र तैर जाए। उन्होंने संस्कृत निष्ठ हिंदी का इस्तेमाल किया। जब शिवानी का उपन्यास कृष्णकली [धर्मयुग] में प्रकाशित हो रहा था तो हर जगह इसकी चर्चा होती थी। मैंने उनके जैसी भाषा शैली और किसी की लेखनी में नहीं देखी। उनके उपन्यास ऐसे हैं जिन्हें पढकर यह एहसास होता था कि वे खत्म ही न हों। उपन्यास का कोई भी अंश उसकी कहानी में पूरी तरह डुबो देता था।


रह्माकुमारी प्रेरणादायक सुविचार


· शब्दों को कोई इंसान नहीं छु सकता लेकिन शब्द सब को छुते है .हम अपनी अनकही बातो के मालिक है और कही गई बातो के गुलाम. आज लोग इसलिए दुखी है क्योकि वह बोलते वक्त इस बात का ध्यान नहीं रखते की वो क्या बोल रहे है और बाद में पछताते है की काश हमने ऐसा नहीं कहा होता. इसलिए पहले सोचिये, फिर बोलिए


· हर कोई कहता है की गलती करना सफलता की ओर पहला कदम है लेकिन सच्चाई यह की उस गलती को सुधार कर आगे बढ़ना सफलता की एक शुरुआत है.


· अगर कोई इंसान आपको गुस्सा दिलाने में सफल होता है तो इसका अर्थ है की आप उस व्यक्ति के हाथों की कठपुतली है.


· आज ज्यादातर लोग इसलिए दुखी और असफल है क्योकि वह दुसरो की नक़ल ज्यादा और अपनी अकल का कम इस्तेमाल करते है.


· अगर मन कमजोर हो तो परिस्थितियां समस्याए बन जाती है, अगर मन संतुलित हो तो परिस्थितियां चुनौतीयां बन जाती है लेकिन अगर आपका मन मजबूत हो तो वही परिस्थितियां अवसर में बदल जाती है.


· अमीर बनने के दो तरीके है. पहला वो सब कुछ पाने की कोशिश करे जो आप चाहते है और दूसरा जो आप के पास है उसमे संतुष्ट रहिये.


· अच्छे रिश्ते वह है जिसमे कल के झगडे आज की बातचीत को नहो रोकते.


· विज्ञान और आध्यात्मिकता जुड़े हुए हैं। दोनों एक ही चीज कहते हैं- विश्वास मत करो, अनुभव करो।


· सफलता प्रसन्नता की चाभी नहीं है। प्रसन्नता सफलता की चाभी है। अगर आप उस चीज से प्यार करते हैं जो आप कर रहे हैं, आप सफल हो जायेंगे।


· हर बार जब हम कहते हैं कि हम ऐसा परिस्थितियों और लोगों की वजह से महसूस कर रहे हैं। हम अपनी मनोदशा के लिए उन्हें दोष दे रहे हैं।


· मंदिरों में आरती की तेज आवज़, मस्जिदों में नमाज़ और गिरिजाघरों में प्रार्थना लोगों द्वारा सुनी जाती है, परमेश्वर द्वारा नहीं। ईश्वर केवल मौन आवाज़ सुनता है जो हमारे ह्रदय के अन्तर्भाग से निकलती है