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अभिनेता

जॉय मुखर्जी जीवनी - Biography Of Joy Mukherjee in Hindi Jivani

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हिंदी फिल्मों के आकर्षक अभिनेताओं में शुमार Joy Mukherjee को फिल्मी पृष्ठभूमि उनके पिता शशिधर मुखर्जी से विरासत में मिली। उन्होंने विरासत में मिली अभिनय प्रतिभा को निखारा-संवारा और धीरे-धीरे वे 60 के दशक के लोकप्रिय अभिनेताओं की सूची में शामिल हो गए।


महिला प्रशंसकों के चहेते Joy Mukherjee के फिल्मी कॅरिअर की शुरूआत पिता शशिधर के होम-प्रोडक्शन की फिल्म लव इन शिमला से हुई। 1960 में बनी यह फिल्म Joy Mukherjee और सह-अभिनेत्री साधना के लिए अत्यंत सफल साबित हई। लव इन शिमला में देव की भूमिका में Joy Mukherjeeके अभिनय की बेहद सराहना हुई। 1964 और 1966 में उन्होंने दो और सफल फिल्में दीं-जिद्दी और लव इन टोकियो।


उन्होंने बहुत ही कम अवधि में अनेक फिल्मों में अपने अभिनय का परचम लहराया। आशा पारेख, ाधना, माला सिन्हा और सायरा बानो जैसी सुप्रसिद्ध व सफल अभिनेत्रियों के साथ उनकी रोमांटिक जोडि़यां बेहद पसंद की गई। 1963 में बनी फिल्म फिर वहीं दिल लाया हूं Joy Mukherjee के कॅरिअर की उल्लेखनीय फिल्म रही जिसमें उन्होंने अपने कॅरिअर की सबसे यादगार भूमिका निभायी। देखते-ही-देखते Joy Mukherjee सफलता की बुलंदियों पर पहुंच गए। वक्त बीतता गया और धर्मेद्र, जितेंद्र, राजेश खन्ना जैसे अन्य अभिनेताओं के उभरने से Joy Mukherjee की छवि धूमिल होने लगी। अपनी गिरती लोकप्रियता के मद्देनजर Joy Mukherjeeचुनींदा फिल्में ही करने लगें। उन्होंने अभिनय के क्षेत्र में अपनी कला के प्रदर्शन के साथ-साथ फिल्मों के निर्माण और निर्देशन की ओर भी रूख किया। दुर्भाग्यवश, फिल्म निर्माण-निर्देशन में भी उन्हें सफलता नहीं मिल पायी। फिल्मी कॅरिअर से परे Joy Mukherjee ने छोटे पर्दे पर भी अपनी मौजूदगी दर्ज करायी। 2009 में उन्होंने धारावाहिक ऐ दिल-ए-नादान में अपने अभिनय का प्रदर्शन किया।


अभिनय का मौका


फ़िल्म सूत्रों के आदिगुरु कहे जाने वाले शशिधर मुखर्जी का पूरा परिवार फ़िल्मी रहा, किंतु उनके बेटे जॉय मुखर्जी को फ़िल्म अभिनेता बनना क़तई पसंद नहीं था। अपने पिता के आस-पास मौजूद रहकर उनकी फ़िल्मी गतिविधियों को बालक जॉय मुखर्जी नजदीक से देखा करते थे। शूटिंग के तमाम दृश्य उन्हें किसी तमाशे के समान लगते थे। जॉय मुखर्जी का इरादा टेनिस खिलाड़ी बनकर अंतरराष्ट्रीय प्रसिद्धि प्राप्त करने का था। जब वह बी.ए. की पढ़ाई कर रहे थे, तभी एक दिन उनके पिता ने पूछ लिया कि आखिर वह अपनी ज़िंदगी में करना क्या चाहता हैं? इस सवाल के साथ ही उन्होंने फ़िल्म "हम हिंदुस्तानी" का कांट्रेक्ट भी जॉय के सामने रख दिया। जॉय ने अनमने भाव से फ़िल्म यह सोचकर साइन कर ली कि चलो पॉकेटमनी के लिए अच्छी रकम मिल जाएगी। जब फ़िल्म का ट्रायल शो हुआ, तो प्रिव्यू थियेटर से वह भागकर घर आ गये। परदे पर अपने अभिनय तथा लुक को वह बर्दाश्त नहीं कर पाये थे।


बी.ए. में तृतीय श्रेणी


जॉय मुखर्जी की किस्मत में टेनिस खिलाड़ी बनने की लकीरें नहीं थीं। उन्हें दो-तीन फ़िल्मों के और प्रस्ताव मिले। शुरू-शुरू में उन्हें झिझक रही। धीरे-धीरे उनकी फ़िल्मों में दिलचस्पी बढ़ती चली गई। इसका परिणाम भी सामने आ गया। वे अपनी बी.ए. की पढ़ाई में पिछड़ गए और तृतीय श्रेणी में उत्तीर्ण हुए। उन्हीं दिनों फ़िल्मकार बिमल राय फ़िल्म 'परख' बनाने जा रहे थे। उन्होंने जॉय की कुछ फ़िल्में देखीं और 'परख' के लिए नायक की भूमिका उनके सामने रखी। अपनी जरुरत से ज़्यादा व्यस्तता के चलते जॉय ने मना कर दिया। बिमल राय ने बसंत चौधरी को लेकर वह फ़िल्म पूरी की।


लव इन शिमला


जॉय मुखर्जी की दूसरी फिल्म थी लव इन शिमला। इसे नए डायरेक्टर आरके नय्यर निर्देशित कर रहे थे। एक सिंधी फिल्म में काम कर चुकी साधना को नायिका के बतौर लिया गया था। इस फिल्म की अधिकांश शूटिंग शिमला में हुई थी। शूटिंग के दौरान आसपास के दर्शकों की जमा भीड़ में से कुछ तानाकशी की आवाजें जॉय के कानों में गूँजती थी- ये क्या हीरो बनेगा? ये क्या एक्टिंग करेगा? आइने में इसने अपनी सूरत देखी है? यह सब सुनकर जॉय चुप रहते क्योंकि जवाब के लिए कोई सुपरहिट फिल्म उनके पास नहीं थी।


लव इन शिमला फिल्म सुपरहिट साबित हुई। जॉय को स्टार का दर्जा मिला। साधना ने बालों की नई स्टाइल इजाद की, जो लड़कियों में 'साधना कट' नाम से लोकप्रिय हुई। लव इन शिमला के दौरान ही आरके नय्यर और साधना को भी प्यार हो गया। आगे चलकर वह शादी में बदला।


फ़िल्मों की सूची


o हैवान (1977)


o एक बार मुस्कुरा दो (1972)


o कहीं आर कहीं पार (1971)


o आग और दाग (1970)


o एहसान (1970)


o इन्स्पेक्टर (1970) ... इन्स्पेक्टर राजेश/एजेंट 707


o मुजरिम (1970) ... गोपाल


o पुरस्कार (1970) ... राकेश


o दुपट्टा (1969)


o दिल और मोहब्बत (1968) ... रमेश चौधरी


o एक कली मुस्काई (1968)


o हमसाया (1968)


o शागिर्द (1967) ... राजेश


o लव इन टोक्यो (1966) ... अशोक


o ये जिंदगी कितनी हसीन हैं (1966) ... संजय मल्होत्रा


o साज़ और आवाज़ (1966)


o बहू बेटी (1965) ... शेखर


o आओ प्यार करें (1964)


o दूर की आवाज़ (1964)


o इशारा (1964)


o जी चाहता हैं (1964)


o जिद्दी (1964) ... अशोक


o फिर वही दिल लाया हूं (1963) ... मोहन


o एक मुसाफिर एक हसीना (1962)


o उम्मीद (1962)


o हम हिंदुस्तानी (1960) ... सत्येन्द्र नाथ


o लव इन शिमला (1960) .. देव कुमार मेहरा