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व्यवसायी

स्टीव जॉब्स जीवनी - Biography of Steve Jobs in Hindi Jivani

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नाम : स्टीवन पॉल जॉब्स

जन्म : 24 फ़रवरी 1955 सैन फ्रांसिस्को, कैलिफोर्निया, संयुक्त राज्य अमरीका

पिता : पॉल रेनहोल्ड जॉब्स

माता : क्लारा जॉब्स

पत्नी : लोरेन पॉवेल


        स्टीवन पॉल "स्टीव" जॉब्स एक अमेरिकी बिजनेस टाईकून और आविष्कारक थे. वे एप्पल इंक के सह-संस्थापक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी थे. अगस्त २०११ में उन्होने इस पद से त्यागपत्र दे दिया. जॉब्स पिक्सर एनीमेशन स्टूडियोज के मुख्य कार्यकारी अधिकारी भी रहे. सन् २००६ में वह दि वाल्ट डिज्नी कम्पनी के निदेशक मंडल के सदस्य भी रहे, जिसके बाद डिज्नी ने पिक्सर का अधिग्रहण कर लिया था. १९९५ में आई फिल्म टॉय स्टोरी में उन्होंने बतौर कार्यकारी निर्माता काम किया.


        कंप्यूटर, लैपटॉप और मोबाइल फ़ोन बनाने वाली कंपनी ऐप्पल के भूतपूर्व सीईओ और जाने-माने अमेरिकी उद्योगपति स्टीव जॉब्स ने संघर्ष करके जीवन में यह मुकाम हासिल किया. कैलिफोर्निया के सेन फ्रांसिस्को में पैदा हुए स्टीव को पाउल और कालरा जॉब्स ने उनकी माँ से गोद लिया था. जॉब्स ने कैलिफोर्निया में ही पढ़ाई की. उस समय उनके पास ज़्यादा पैसे नहीं होते थे और वे अपनी इस आर्थिक परेशानी को दूर करने के लिए गर्मियों की छुट्टियों में काम किया करते थे.


आरंभिक जीवन :


        24 फरवरी 1955 को केलिफोर्निया में जन्मे Steve Jobs का जीवन जन्म से हि संघर्ष पूर्ण था, उनकी माँ अविवाहित कॉलेज छात्रा थी. और इसी कारण वे उन्हें रखना नहीं चाहती थी, और Steve Jobs को किसी अच्छे परिवार में गोद देने का फैसला कर दिया. लेकिन जो गोद लेने वाले थे उन्होंने ये कहकर मना कर दिया की वे लड़की को गोद लेना चाहते हैं. फिर Steve Jobs को केलिफोर्निया में रहने वाले पॉल (Paul) और कालरा (Kaalra) जॉब्स ने गोद ले लिया. Paul and kaalra दोनों ही ज्यादा पढ़े लिखे नहीं थे और मध्यम वर्ग (Medium family) से ताल्लुक रखते थे.


        सन् 1973 मई जॉब्स अटारी मे तकनीशियन के रूप मे कार्य करते थे. वहाँ लोग उसे "मुश्किल है लेकिन मूल्यवान" कहते थे. मध्य १९७४, मे आध्यात्मिक ज्ञान की खोज मे जॉब्स अपने कुछ रीड कॉलेज के मित्रो के साथ कारोली बाबा से मिलने भारत आए. किंतु जब वे कारोली बाबा के आश्रम पहुँचे तो उन्हें पता चले की उनकी मृत्यु सितम्बर १९७३ को हो चुकी थी. उस के बाद उन्होने हैड़खन बाबाजी से मिलने का निर्णय किया. जिसके कारण भारत मे उन्होने काफ़ी समय दिल्ली, उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश मे बिताया.


        सन 1976 में स्टीव वोजनियाक ने मेकिनटोश एप्पल 1 कंप्यूटर का आविष्कार किया. जब वोजनियाक ने यह जॉब्स को दिखाया तो जॉब्स ने इसे बेचने का सुझाव दिया. इसे बेचने के लिए वे और वोजनियाक गेरेज में एप्पल कंप्यूटर का निर्माण करने लगे. जॉब्स 1976 में एप्पल के सह-संस्थापक बने और एप्पल के पर्सनल कंप्यूटर बेचने लगे. एप्पल तेज़ी से आगे बढती गयी और पैसे कमाती गयी और पहले साल के अंत में ही पर्सनल कंप्यूटर बनाने वाली दूसरी कंपनी बन गयी. एप्पल इतनी बड़ी मात्र में पर्सनल कंप्यूटर का उत्पादन करने वाली पहले सबसे बड़ी कंपनी बनी. 


        1979 में, Xerox PARC के टूर के बाद, जॉब्स ने Xerox Alto की व्यावहारिक जरूरतों को जान, उसे परखा, जिसने बाद में माउस का निर्माण किया और साथ ही ग्राफिकल यूजर इंटरफ़ेस (GUI) का भी निर्माण किया. दुनिया में हो रहे विविध क्षेत्रो में विकास की बदौलत 1983 में एप्पल लिसा में असफल हुई. और GUI के साथ कंप्यूटर का उत्पादन करने वाली पहली कंपनी बनने की चाह से 1985 में एप्पल लेसनर प्रिंटर प्रस्तुत किया. वोज और जॉब्स आगे बढ़ते गये और एप्पल I के बाद एप्पल II प्रस्तुत किया. जिसमे अतिरिक्त रंग को सपोर्ट करने वाला सिस्टम था. जॉब्स ने अपने कंपनी के विकास को तेज़ करने के लिए एक निवेशक को मना लिया, और उनकी कंपनी तेज़ी से आगे बढ़ने लगी. एप्पल का सुनहरा पल चालू हो गया था. साथ ही वे एनीमेशन मूवी का निर्माण भी करते चले गये. 1995 में आयी फिल्म टॉय स्टोरी में उन्होंने बतौर कार्यकर्त्ता और निर्माता काम किया.


        जब स्टीव 15 वर्ष के हुए तब उनके पिता ने उनको उपहार स्वरुप कार दी जो एक सेकंडहैण्ड कार थी | स्टीव ने पिता ने इसमें नया इंजिन लगाकर कामचलाऊ बनाया था | स्टीव जॉब्स को स्कूल के दिनों में मैरीजुआना की लत पड़ गयी थी जो एक नशीला पदार्थ होता है | इसके बारे में जब उनके पिता को पता चला तो उन्होंने स्टीव को खूब डांटा और वादा करने को कहा कि भविष्य में कभी नशीले पदार्थो का सेवन नही करेंगे | स्टीव जॉब्स ने अपने पिता के साथ किये वादे को आजीवन निभाया और कभी नशीली चीजो को हाथ नही लगाया था | स्टीव जॉब्स को तैराकी में भी रूचि थी और वो स्कूल की तैराकी टीम का हिस्सा भी थे | तैराकी टीम में ही उनकी मुलाक़ात स्टीव वोजनियाक से हेई जिनको भी इलेक्ट्रॉनिक्स में रचि थी |


        स्टीव जॉब्स की रूचि इलेक्ट्रॉनिक्स में ज्यादा थी लेकिन रीड कॉलेज में पढाई करते हुए उनका ध्यान आध्यात्म की ओर बढ़ गया था | बाबा रामदास की एक पुस्तक “Be Here Now ” ने उन्हें सबसे ज्यादा प्रभावित किया था | इसी कॉलेज में उनकी मुलाकात डेनियल कोटक से हुयी थी | स्टीव जॉब्स आध्यात्म के सम्पर्क में आते ही शाकाहारी बन गये थे और उन्हें शाकाहार विषय पर कई पुस्तके पढ़ी थी | उनके मित्र कोटक को भी उन्होंने शाकाहार बना दिया था | आध्यात्म में बढती रूचि के कारण उन्होंने कृष्ण मन्दिर में जाना शुरू कर दिया था | यह स्टीव जॉब्स की जीवन का परिवर्तनकारी दौर था |


एप्पल की शुरुआत :


        सन 1976 में मात्र 20 वर्ष की उम्र में उन्होंने एप्पल Apple कंपनी की शुरुआत कि. स्टीव Steve ने अपने स्कूल के सहपाठी मित्र वोजनियाक के साथ मिल कर अपने पिता के गैरेज में ऑपरेटिंग सिस्टम मेकिनटोश (mac) तैयार किया. और इसे बेचने के लिए एप्पल कंप्यूटर का निर्माण करना चाहते थे. लेकिन पैiसो की कमी के कारण समस्या आ रही थी. लेकिन उनकी ये समस्या उनके एक मित्र माइक मर्कुल्ला ने दूर कर दि साथ ही वे कंपनी में साझेदार partner भी बन गये. और स्टीव ने एप्पल कंप्यूटर बनाने की शुरुआत की.


        लेकिन उनकी ये उपलब्धि ज्यादा देर तक नहीं रही, उनके साझेदारो द्वारा उनको ना पसंद किये जाने और आपस में कहासुनी के कारण एप्पल कंपनी की लोकप्रियता कम होने लगी. धीरे-धीरे कंपनी पूरी तरह कर्ज में डूब गयी. और बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर की मीटिंग में सारे दोष स्टीव का ठहराकर सन 1985 में उन्हें एप्पल कंपनी से बाहर कर दिया. ये उनके जीवन का सबसे दुखद पल था.


प्रसंग :


        पेप्सिको के पूर्व प्रेसीडेंट जान स्कूली कहते हैं कि जब मैं एक बार उनके घर पर गया तो देख कर हैरत में पड़ गया कि कमरे में एक भी फर्नीचर नहीं था. सिर्फ एक तस्वीर लगी थी. वह तस्वीर थी आइंस्टीन की. स्टीव आइंस्टीन को अपना आदर्श मानते थे. थ्रुमैन कहते हैं बौद्ध धर्म मानता है कि आप ध्यान के जरिए सत्य जान सकते हैं. साथ ही आप अपनी क्षमताओं को असीम बढ़ा सकते हैं. स्टीव जाब्स ने ऐसा ही किया. संघर्ष के दिनों को याद करते हुए उन्होंने कहा कि एक ऐसा भी वक्त था जब मैं जमीन पर सोने को मजबूर था। हर रविवार को हरे क़ृष्ण मंदिर में लंगर लगता था। वह खाने के लिए मैं सात किलोमीटर पैदल चल कर जाता था। इसलिए असफलता और खराब हालत से परेशान होने की जरूरत नहीं है। स्टीव ने एक बार स्वीकार किया था कि उन्होंने एससीडी ड्रग का इस्तेमाल किया था।


विचार :


• आओ आने वाले कल में कुछ नया करते है बजाए इसकी चिंता करने के, की कल क्या हुआ था।

• आपका समय सीमित है, इसलिए इसे किसी और की जिंदगी जी कर व्यर्थ मत कीजिये। बेकार की सोच में मत फंसिए,अपनी जिंदगी को दूसरों के हिसाब से मत चलाइए। औरों के विचारों के शोर में अपनी अंदर की आवाज़ को, अपने इन्ट्यूशन को मत डूबने दीजिए। वे पहले से ही जानते हैं की तुम सच में क्या बनना चाहते हो। बाकि सब गौण है।

• डीजाइन सिर्फ यह नहीं है कि चीज कैसी दिखती या महसूस होती है। डिजाइन यह है कि चीज काम कैसे करती है।

• यह निश्चय करना की आपको क्या नहीं करना है उतना ही महत्त्वपूर्ण है जितना की यह निश्चय करना की आप को क्या करना है।

• इस बात को याद रखना की मैं बहत जल्द मर जाऊँगा मुझे अपनी ज़िन्दगी के बड़े निर्णय लेने में सबसे ज्यादा मददगार होता है, क्योंकि जब एक बार मौत के बारे में सोचता हूँ तब सारी उम्मीद, सारा गर्व, असफल होने का डर सब कुछ गायब हो जाता है और सिर्फ वही बचता है जो वाकई ज़रूरी है। इस बात को याद करना की एक दिन मरना है…किसी चीज को खोने के डर को दूर करने का सबसे अच्छा तरीका है। आप पहले से ही नंगे हैं। ऐसा कोई कारण नहीं है की आप अपने दिल की ना सुने।

• कई कम्पनियों ने छंटनी करने का फैसला किया है,शायद उनके लिए ये सही होगा। हमने अलग रास्ता चुना है। हमारा विश्वास है कि अगर हम कस्टमर के सामने अच्छे प्रोडक्ट्स रखते रहेंगे तो वो अपना पर्स खोलते रहेंगे।

• दिलचस्प विचारों और नयी प्रौद्योगिकी को कम्पनी में परिवर्तित करना जो सालों तक नयी खोज करती रहे , ये सब करने के लिए बहुत अनुशासन की आवश्यकता होती है।


मृत्यु :


        स्टीव को सन 2003 से पेन क्रियेटिव नाम की कैंसर की बिमारी हो गयी थी। लेकिन फिर भी वे रोज कंपनी में जाते ताकि लोगो को बेहतरीन से बेहतरीन टेक्नालजी प्रदान कर सके. और कैंसर कि बिमारी के चलते 5 अक्टूबर 2011 को पालो आलटो केलिफोर्निया में उनका निधन हो गया।