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राजनेता

शंकरदयाल शर्मा जीवनी - Biography of Shankar Dayal Sharma in Hindi Jivani

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        डॉ शंकरदयाल शर्मा भारत के नवें राष्ट्रपति थे। इनका कार्यकाल २५ जुलाई १९९२ से २५ जुलाई १९९७ तक रहा। राष्ट्रपति बनने से पूर्व आप भारत के आठवे उपराष्ट्रपति भी थे, आप भोपाल राज्य के मुख्यमंत्री (1952-1956) रहे तथा मध्यप्रदेश राज्य में कैबिनेट स्तर के मंत्री के रूप में उन्होंने शिक्षा, विधि, सार्वजनिक निर्माण कार्य, उद्योग तथा वाणिज्य मंत्रालय का कामकाज संभाला था। केंद्र सरकार में वे संचार मंत्री के रूप में (1974-1977) पदभार संभाला।


        इस दौरान भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष (1972-1974) भी रहे। डॉ. शकंरदयाल शर्मा प्रतिभा के धनी व्यक्ति थे। उन्होंने शिक्षा से लेकर राजनीति में जो भी मुकाम हासिल किया अपनी मेहनत से। राष्ट्रपति बनने से पहले वह उपराष्ट्रपति भी रह चुके थे। उन्होंने पंजाब यूनिवर्सिटी, आगरा कॉलेज, लखनऊ यूनिवर्सिटी से शिक्षा ग्रहण की फिट्ज़विलियम कॉलेज, कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से पीएचडी की। उन्हें लखनऊ विश्विद्यालय से समाज सेवा के लिए चक्रवर्ती स्वर्ण पदक भी दिया गया। उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय तथा कैंब्रिज में कानून का अध्यापन कार्य भी किया।


प्रारंभिक जीवन :


        स्वतंत्र भारत के नौंवे राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा का जन्म 19 अगस्त 1918 को मध्यप्रदेश के भोपाल शहर में हुआ था. उनके पिता का नाम खुशीलाल शर्मा एवं माता का नाम सुभद्रा शर्मा था. शंकर दयाल जी ने अपनी शिक्षा देश एवं विदेश के यूनिवर्सिटी से पूरी की थी. शंकर दयाल जी ने शिक्षा की शुरुवात सेंट जॉन कॉलेज से की थी. इसके बाद उन्होंने आगरा यूनिवर्सिटी और इलाहबाद यूनिवर्सिटी से भी शिक्षा ग्रहण की थी. लॉ की पढाई (L.L.M) के लिए वे लखनऊ यूनिवर्सिटी चले गए.


        शिक्षा के प्रति लगन के चलते शंकर दयाल जी Ph.D करने के लिए फिट्ज़विलियम कॉलेज, कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी चले गए. इसके बाद उन्होंने लन्दन युनिवर्सिटी से सार्वजानिक प्रशासन (Public Administration) में डिप्लोमा किया. इतनी शिक्षा ग्रहण करने के बाद भी डॉ शंकर दयाल शर्मा जी यहाँ रुके नहीं, उन्होंने लखनऊ युनिवर्सिटी में 9 साल तक लॉ की शिक्षा दी, और वहां प्रोफ़ेसर रहे. इसके बाद फिर लन्दन चले गए और कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में भी उन्होंने बच्चों को लॉ की शिक्षा दी.


        लखनऊ यूनिवर्सिटी और कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में शर्मा लॉ पढ़ाते थे। जबकि कैम्ब्रिज में वे टैगोर सोसाइटी और कैम्ब्रिज मजलिस के कोषाध्यक्ष भी थे। गाजीयाबाद की अलाहाबाद यूनिवर्सिटी अलुमिनी एसोसिएशन के तरह से चुनी हुई 42 सदस्यों की सूचि में उन्हें “प्राउड पास्ट अलुम्नुस (Proud Past Alumnus)” का सम्मान भी दिया गया था। हार्वर्ड लॉ स्कूल के भी वे सदस्य थे। इसके बाद उनकी नियुक्ती लिकन इन में सम्माननीय बेंचर और मास्टर के पद पर की गयी थी।


        कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी ने उन्हें डॉक्टर ऑफ़ लॉ की डिग्री देकर सम्मानित किया था। डॉक्टर शर्मा ने सेंट जान्स कॉलेज आगरा, आगरा कॉलेज, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, लखनऊ विश्वविद्यालय, फित्ज़विल्यम कॉलेज, कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय, लिंकोन इन् तथा हारवर्ड ला स्कूल से शिक्षा प्राप्त की। इन्होंने हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत साहित्य में एम.ए. की डिग्री विश्वविद्यालय में प्रथम स्थान के साथ प्राप्त की, आपने एल.एल.एम. की डिग्री भी लखनऊ विश्व विद्यालय से प्रथम स्थान के साथ प्राप्त की थी, विधि में पी.एच.डी. की डिग्री कैम्ब्रिज से प्राप्त की, आपको लखनऊ विश्विद्यालय से समाज सेवा में चक्रवर्ती स्वर्ण पदक भी प्राप्त हुआ था।


        डॉ शंकर दयाल जी के राजनैतिक सफ़र की शुरुवात 1940 में तब हुई, जब उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए कांग्रेस पार्टी की सदस्यता ग्रहण की. ये वो पार्टी थी, जिसके अंदर रह कर उन्होंने स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए बहुत सारी लड़ाईयां लड़ी, बहुत से आन्दोलन में हिस्सा लिया. इसके साथ ही कई चुनाव लढ़े और जीत हासिल कर उच्च पद में विराजमान रहे. वे अपने जीवन के अंत तक इस पार्टी के प्रति बहुत ईमानदार रहे, उन्होंने इसका साथ कभी नहीं छोड़ा. 1942 में महात्मा गाँधी द्वारा चले गए “भारत छोड़ो आन्दोलन” में डॉ शंकर दयाल जी की महत्वपूर्ण भूमिका थी.


        स्वतंत्रता संग्राम में और भोपाल रियासत के विलय के आन्दोलन में आपने सक्रिय भाग लिया और जेल की यातनाएँ सहीं। देश के स्वतंत्र होने पर शंकरदयाल शर्मा 1952 से 1956 तक भोपाल राज्यसभा के सदस्य चुने गए और प्रथम मुख्यमंत्री बने। राज्यों के पुनर्गठन के बाद कुछ समय तक वहाँ मंत्रिमंडल के सदस्य के रूप में उन्होंने अनेक महत्त्वपूर्ण विभागों का कार्यभार सम्भाला। 1956 आप लोकसभा के सदस्य चुने गए और केन्द्र सरकार में संचार मंत्री बने। 1971 में वे पाँचवीं लोकसभा के लिए भी निर्वाचित हुए।


        शंकरदयाल शर्मा 21 अगस्त, 1987 को उपराष्ट्रपति पद पर निर्विरोध निर्वाचित हुए और 3 सितंबर, 1987 को पद की शपथ ग्रहण की। इसके बाद डॉ शर्मा 16 जुलाई, 1992 को राष्ट्रपति पद के लिये निर्वाचित हुए और 25 जुलाई, 1992 को उन्होंने देश के सर्वोच्च पद की शपथ ग्रहण की थी। भोपाल की 'गुलिया दाई की गली' से राष्ट्रपति भवन तक का डॉक्टर शर्मा का सफर बहुतों को रोमांचित करता है, परंतु यह निर्विवाद सत्य है, कि वे बाल्यकाल से ही मेधावी थे। उनके समकक्ष असाधारण शैक्षणिक योग्यता के धनी आज की राजनीतिक प़ीढी में तो बिरले ही मिलते है।


        1960 के समय में शर्मा ने कांग्रेस पार्टी की लीडरशिप के लिए इंदिरा गांधी की मदद की थी। 1972 में उनकी नियुक्ती AICC के अध्यक्ष के रूप में की गयी थी। 1974 से उन्होंने यूनियन कैबिनेट में 1974-77 तक संचार मंत्री बने रहते हुए सेवा की थी। 1971 और 1980 में उन्होंने भोपाल से लोक सभा सीट जीती। बाद में उन्होंने बहुत से समारोहपूर्ण पदों पर काम किया। 1984 में उन्होंने भारतीय राज्य का गवर्नर बने रहते हुए सेवा की, उस समय वे आंध्र प्रदेश के पहले गवर्नर थे। इस समय में उनकी बेटी गीतांजलि माकन और दामाद ललित माकन, भी संसद के युवा सदस्य और प्रसिद्ध राजनीतिक नेता थे, जिनकी हत्या सिक्ख आतंकवादियों ने कर दी थी।


        1985 में उन्होंने आंध्र प्रदेश छोड़ दिया और पंजाब के गवर्नर बने, उस समय भारत सरकार और सिक्ख आतंकवादियों के बीच हिंसा की स्थिति थी, उन आतंकवादियों में से बहुत से पंजाब में ही रहते थे। इसी वजह से 1986 में उन्होंने पंजाब छोड़ दिया और अंततः वे महाराष्ट्र चले गये। इसके बाद 1987 तक वे महाराष्ट्र के गवर्नर बने रहे और फिर उसी साल उनकी नियुक्ती भारत के आठवे उपराष्ट्रपति और राज्य सभा के चेयरमैन के रूप में की गयी थी।


        उन्होंने कांग्रेस सेवा दल के ऑल इंडिया एडवायजरी बोर्ड के चेयरमैन के रूप में भी कांग्रेस की सेवा की। 1975 में सूचना मंत्री के रूप में उन्हें यूनियन कैबिनेट में आत्मसात कर लिया गया। वह 1977 में वह लोकसभा चुनाव में हार गये। लेकिन 1980 में पुनः लोकसभा में आ गये और बहुत से गैर सरकारी पदों, कांग्रेस पार्टी के अंदर और बाहर कार्य किया।


        कुछ सालों पहले मार्केट में आई एक पुस्तक में इस बात का उल्लेख किया गया है कि जब बाबरी मस्जिद ढांचा ढहाने के लिए कार सेवकों ने चढ़ाई कर दी थी, उस समय मदद के लिए समाजसेवियों और मुस्लिम नेताओं ने प्रधानमंत्री कार्यालय में फोन किया तो वहां से कोई राहत नहीं मिल पाई थी। तत्काल यह लोग राहत के लिए राष्ट्रपति डॉ. शर्मा के पास पहुंच गए, लेकिन उनसे मिलने वाले लोग यह देखकर हैरान थे कि उनके सामने देश का राष्ट्रपति फूट-फूटकर रो रहा है।


        वे सभी लोग बाबरी ढांचे के मामले में राष्ट्रपति से हस्तक्षेप की मांग करने आए थे। इस पर डा. शर्मा ने उन्हें एक पत्र दिखाया, जो उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव को लिखा था। डा. शर्मा ने पत्र में नरसिम्हा राव से कहा था कि उत्तरप्रदेश की सरकार को बर्खास्त कर सुरक्षा व्यवस्था को केंद्र सरकार अपने हाथों में ले। फिर शर्मा ने आसपास मौजूद लोगों से कहा कि मैं भी प्रधानमंत्री राव तक नहीं पहुंच पा रहा हूं।


        डॉ शंकर दयाल शर्मा स्वर्ण पदक सभी प्रतिष्ठित भारतीय विश्वविद्यालयों में सम्मानित किया गया है। यह पुरस्कार वर्ष 1994 में गठित किया गया था, डॉ शंकर दयाल शर्मा से प्राप्त निधि से। इस पदक के एक स्नातक छात्र चरित्र, आचरण और उत्कृष्टता अकादमिक प्रदर्शन में, पाठ्येतर गतिविधियों और सामाजिक सेवा सहित सामान्य प्रवीणता के मामले में सबसे अच्छा होना करने के लिए घोषित करने के लिए सम्मानित किया है। शहडोल जिला कांग्रेस कमेटी ने कांग्रेस भवन में पूर्व राष्ट्रपति डॉ. शंकरदयाल शर्मा की 17वीं पुण्य तिथि मनाई।


        कार्यक्रम की अध्यक्षता जिला कांग्रेस कमेटी अध्यक्ष नीरज द्विवेदी एड. ने किया। सर्वप्रथम उपस्थित कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने डॉ. शर्मा की तस्वीर पर माल्यार्पण कर अपने-अपने विचार प्रकट किये। अध्यक्षता कर रहे जिला अध्यक्ष नीरज द्विवेदी ने कहा कि डॉ. शर्मा प्रखर वक्ता समाजसेवी एवं देश के महान नेताओं में से एक माने जाते हैं। बैठक का संचालन सत्य नारायण साहू ने किया। आभार प्रदर्शन सुरेश कुंडे ने किया। बैठक में मुख्य रूप से रामसिरोमणी मिश्रा, गुलसेर, जयश्री, मोहित सोनी, अखिल पटेल आदि मौजूद रहे।


मृत्यू :


        डॉ शंकर दयाल शर्मा का देहांत 26 दिसंबर, 1999 को 81 वर्ष की आयु में नई दिल्ली में हुआ। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कानूनी पेशे के लिए उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए और कानून के शासन के प्रति प्रतिबद्धता के लिए उन्हें सदैव याद किया जाएगा। डॉ. शंकर दयाल शर्मा एक बहुत गंभीर व्यक्तित्व वाले इंसान थे.


        वह अपने काम के प्रति बेहद संजीदा और प्रतिबद्ध रहा करते थे. इसके अलावा वह संसद के नियम कानून का सख्ती से पालन करते और उनका सम्मान करते थे. उनके बारे में कहा जाता है कि एक बार राज्य सभा में एक मौके पर वे इसलिए रो पड़े थे कि क्योंकि राज्य सभा के सदस्यों ने किसी राजनैतिक मुद्दे पर सदन को जाम कर दिया था.