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राजनेता

मोरारजी देसाई जीवनी - Biography of Morarji Desai in Hindi Jivani

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        मोरारजी देसाई भारत के स्वाधीनता सेनानी और के छ्ठे प्रधानमंत्री (सन् 1977 से 79) थे। वह प्रथम प्रधानमंत्री थे जो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के बजाय अन्य दल से थे। वही एकमात्र व्यक्ति हैं जिन्हें भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न एवं पाकिस्तान के सर्वोच्च सम्मान निशान-ए-पाकिस्तान से सम्मानित किया गया है। वह 81 वर्ष की आयु में प्रधानमंत्री बने थे। इसके पूर्व कई बार उन्होंने प्रधानमंत्री बनने की कोशिश की परंतु असफल रहे।


        लेकिन ऐसा नहीं हैं कि मोरारजी प्रधानमंत्री बनने के क़ाबिल नहीं थे। वस्तुत: वह दुर्भाग्यशाली रहे कि वरिष्ठतम नेता होने के बावज़ूद उन्हें पंडित नेहरू और लालबहादुर शास्त्री के निधन के बाद भी प्रधानमंत्री नहीं बनाया गया। मोरारजी देसाई मार्च 1977 में देश के प्रधानमंत्री बने लेकिन प्रधानमंत्री के रूप में इनका कार्यकाल पूर्ण नहीं हो पाया। चौधरी चरण सिंह से मतभेदों के चलते उन्हें प्रधानमंत्री पद छोड़ना पड़ा।


प्रारंभिक जीवन :


        मोरारजी देसाई का जन्म 29 फ़रवरी 1896 को गुजरात के भदेली नामक स्थान पर हुआ था। उनका संबंध एक ब्राह्मण परिवार से था। उनके पिता रणछोड़जी देसाई भावनगर (सौराष्ट्र) में एक स्कूल अध्यापक थे। वह अवसाद (निराशा एवं खिन्नता) से ग्रस्त रहते थे, अत: उन्होंने कुएं में कूद कर अपनी इहलीला समाप्त कर ली। पिता की मृत्यु के तीसरे दिन मोरारजी देसाई की शादी हुई थी। बचपन से ही युवा मोरारजी ने अपने पिता से सभी परिस्थितियों में कड़ी मेहनत करने एवं सच्चाई के मार्ग पर चलने की सीख ली।


        उन्होंने सेंट बुसर हाई स्कूल से शिक्षा प्राप्त की एवं अपनी मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की। तत्कालीन बंबई प्रांत के विल्सन सिविल सेवा से 1918 में स्नातक की डिग्री प्राप्त करने बाद उन्होंने बारह वर्षों तक डिप्टी कलेक्टर के रूप में कार्य किया। 1930 में जब भारत में महात्मा गाँधी द्वारा शुरू किया गया आजादी के लिए संघर्ष अपने मध्य में था, श्री देसाई का ब्रिटिश न्याय व्यवस्था में विश्वास खो चुका था, इसलिए उन्होंने सरकारी नौकरी छोड़कर आजादी की लड़ाई में भाग लेने का निश्चय किया।


        यह एक कठिन निर्णय था लेकिन श्री देसाई ने महसूस किया कि यह देश की आजादी का सवाल था, परिवार से संबंधित समस्याएं बाद में आती हैं, देश पहले आता है। श्री देसाई को स्वतंत्रता संग्राम के दौरान तीन बार जेल जाना पड़ा। वे 1931 में अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के सदस्य बने और 1937 तक गुजरात प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सचिव रहे।


        जब पहली कांग्रेस सरकार ने 1937 में कार्यभार संभाला, श्री देसाई राजस्व, कृषि, वन एवं सहकारिता मंत्रालय के मंत्री बने। महात्मा गांधी द्वारा शुरू किये गए व्यक्तिगत सत्याग्रह में श्री देसाई को गिरफ्तार कर लिया गया था। अक्टूबर 1941 उन्हें छोड़ दिया गया एवं अगस्त 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान उन्हें फिर से गिरफ्तार कर लिया गया। इस बार उन्हें 1945 में छोड़ दिया गया।


        ग्रेजुएशन करने के बाद, देसाई जी ने सिविल की परीक्षा उतीर्ण की. 1918 में सिविल सर्विस शुरू कर दी, 12 वर्षो तक डीपटी कलेक्टर के पद पर कार्यरत रहे. विद्यार्थी जीवन में देसाई बहुत ही सामान्य छात्र थे परन्तु इन्हें वाद-विवाद प्रतियोगिता में महारथ हासिल थी. उन्हें वाद-विवाद में बहुत सारे पुरूस्कार प्राप्त हुए. गुजरात में डिप्टी कलेक्टर के पद में कार्य के दौरान देसाई जी महात्मा गाँधी जी एवम बाल गंगाधर तिलक के संपर्क में आये, जिनसे मिलने के बाद वे उनसे बहुत प्रभावित हुए. देसाई जी का स्वभाव बहुत ही अलग था, घर की विकट परिस्थितियों ने इन्हें बहुत कठोर बना दिया था. इसका प्रभाव इनकी सरकारी नौकरी पर भी पड़ा और इन्हें काँग्रेस में अड़ियल नेता भी कहा जाता था .


        1929 में सरकारी नौकरी को छोड़ कर भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई में हिस्सा लिया एवम सविनय-अवज्ञा आन्दोलन में भाग लिया.1930 में, देसाई जी, स्वतंत्रता की लड़ाई के दौरान तीन बार जेल गए. सन 1931 में इन्हें भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस में अहम् स्थान मिला. इनके कार्य के प्रति लग्न को देख कर इन्हें 1937 में गुजरात प्रदेश काँग्रेस का अध्यक्ष बना दिया गया. इसके बाद इन्होने गुजरात में भारतीय युवा काँग्रेस का गठन किया. देसाई जी को सरदार पटेल ने इस युवा काँग्रेस का अध्यक्ष बना दिय. यह राजस्व एवम गृहमंत्री भी रहे. देसाई जी कट्टर गाँधीवादी नेता एवम उच्च चरित्र का पालन करने वाले व्यक्ति थे. इन्होने उस वक्त फिल्मों में होने वाले अभद्र चित्रण का विरोध किया.


        सरकारी नौकरी छोड़ने का बाद मोरारजी देसाई स्वाधीनता आन्दोलन में कूद पड़े। इसके बाद उन्होंने महात्मा गाँधी के नेतृत्व में अंग्रेजों के विरूद्ध ‘सविनय अवज्ञा’ आन्दोलन में भाग लिया। स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान मोरारजी कई बार जेल गए। सन 1931 में वह गुजरात प्रदेश की कांग्रेस कमेटी के सचिव बने और फिर अखिल भारतीय युवा कांग्रेस की शाखा स्थापित कर उसके अध्यक्ष बन गए। अपने नेतृत्व कौशल से वह स्वतंत्रता सेनानियों के चहेते और गुजरात कांग्रेस के महत्वपूर्ण नेता बन गए।


        सन 1934 और 1937 के प्रांतीय चुनाव के बाद उन्हें बॉम्बे प्रेसीडेंसी का राजस्व और गृह मंत्रालय सौंपा गया। जैसा की ऊपर कहा जा चुका है कि स्वाधीनता आन्दोलन के दौरान राष्ट्रीय राजनीति में मोरारजी का नाम वज़नदार हो चुका था पर उनकी प्राथमिक रुचि राज्य की राजनीति में ही थी इसलिए 1952 में इन्हें बंबई प्रान्त का मुख्यमंत्री बनाया गया। गुजरात तथा महाराष्ट्र दोनों बंबई प्रोविंस के अंतर्गत आते थे।


        इसी दौरान भाषाई आधार पर दो अलग राज्य – माहाराष्ट्र (मराठी भाषी क्षेत्र) और गुजरात (गुजरात भाषी क्षेत्र) – बनाने की मांग बढ़ने लगी पर मोरारजी इस तरह के विभाजन के लिए तैयार नहीं थे। सन 1960 में मोरारजी ने ‘संयुक्त महाराष्ट्र समिति’ के प्रदर्शनकारियों पर गोली चलने आ आदेश इया जिसमे लगभग 105 लोग मारे गए। इस घटना के बाद मोरारजी को बॉम्बे के मुख्य मंत्री पद से हटाकर केंद्र में में बुला लिया गया।


        उस समय वे ऐसे पहले प्रधानमंत्री थे जो भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के बजाय अन्य दल के थे. भारत सरकार के विभिन्न पदों पर वे विराजमान रहे, जैसे की : बॉम्बे राज्य के मुख्यमंत्री, गृहमंत्री, अर्थमंत्री और डिप्टी प्रधानमंत्री. अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देसाई एशिया के दो मुख्य देश भारत और पकिस्तान के बिच शांति चाहते थे. 1974 में भारत के पहले आणविक विस्फोट के समय देसाई ने चाइना और पकिस्तान के साथ अच्छे संबंध बनाये रखने में काफी सहायता की.


        और 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान वे दोनों देशो की सेनाओ का टकराव नही करवाना चाहते थे. परिणामतः 1974 के आणविक कार्यक्रमों में उन्होंने भारत की तरफ से महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. मोरारजी देसाई अकेले ऐसे भारतीय है जिन्हें पकिस्तान के सर्वोच्च सम्मान निशान-ए-पकिस्तान से सम्मानित किया गया था. यह सम्मान उन्हें 1990 के एक रंगारंग कार्यक्रम में पकिस्तान के राष्ट्रपति घुलाम इशाक खान ने दिया था.


        मोरारजी देसाई का हमेशा से ही यह मानना था की जब तक गावो और कस्बो में रहने वाले गरीब लोग सामान्य जीवन जीनव में सक्षम नही होते, तब तक समाजवाद का कोई मतलब नही है. मोरारजी ने इस परेशानी को देखते हुए अपने राज्य में किसानो एवं किरायेदारो के हितो में कई महत्वपूर्ण नियम बनाये जिनकी काफी तारीफ़ की जाने लगी थी. उन्होंने केवल नियम ही नही बनाये बल्कि उन्होंने अडिग होकर पूरी इमानदारी से उन नियमो को लागू भी किया.


        बॉम्बे में उन समय उनके प्रशासन व्यवस्था की काफी तारीफ की गयी थी. मोरारजी देसाई 1952 में बम्बई के मुख्यमंत्री बने। 1967 में इंदिरा गाँधी के प्रधानमंत्री बनने पर मोरारजी को उप प्रधानमंत्री और गृह मंत्री बनाया गया। 1975 में वह जनता पार्टी में शामिल हो गए। 23 मार्च, 1977 को 81 वर्ष की अवस्था में मोरारजी देसाई ने भारतीय प्रधानमंत्री का दायित्व ग्रहण किया। वह सन् 1977 से 1979 तक भारत के प्रधानमंत्री थे। शास्त्री प्रधानमंत्री तो बने लेकिन खराब सेहत ने उनका बहुत दिनों तक साथ नहीं दिया.


        प्रधानमंत्री बनने के दो साल के भीतर ही 11 जनवरी, 1966 का ताशकंद में उनकी रहस्यमय परिस्थितियों में मृत्यु हुई. इसके बाद एक बार फिर से मोरारजी देसाई के सामने प्रधानमंत्री बनने का अवसर पैदा हुआ. लेकिन इस बार भी उन्हें निराश होना पड़ा और कांग्रेस ने इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री चुन लिया. हालांकि, इस दफा मोरारजी ने एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया था.


        इसके बाद वे 1969 में कांग्रेस से अलग हो गए. 1975 में आपातकाल के खिलाफ जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में जो आंदोलन चला उसमें मोरारजी भी शामिल थे और इस आंदोलन से निकली जनता पार्टी जब 1977 के चुनावों में जीतकर आई तो अंततः मोरारजी देसाई का प्रधानमंत्री पद के लिए लंबा इंतजार समाप्त हुआ.


        जब मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने तो उन्‍होंने शराब पर पाबंदी के अलावा कई सारे कदम उठाए। इसके अलावा, वे हॉर्स रेसिंग और क्रॉसवर्ड पजल्‍स पर भी पाबंदी लगाने के पक्ष में थे। मैंने उनको ध्‍यान में रखते हुए एक कॉर्टून बनाया था। इसी से वह गुस्‍सा गए और उन्‍होंने आनन-फानन में कैबिनेट की बैठक बुलाई। उन्‍होंने कहा कि क्‍या इन कॉर्टून पर बैन लगाने का कोई रास्‍ता है कि वे कैसे आम लोगों की अभिव्‍यक्ति की स्‍वतंत्रता का हनन कर रहे हैं। जनता पार्टी के नेतृत्व में मोरारजी देसाई की सरकार चल रही थी।


        1978 में 16 जनवरी को प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने बड़े नोटों 1000, 5000 और 10,000 के नोटों को बैन कर दिया था। हालांकि, तब देश की अर्थव्यवस्था इतनी बड़ी नहीं थी। उस दौर के लोगों को कहना है कि 1978 में पुराने नोटों को बदलने का काम बिना किसी विशेष परेशानी के हो गया था क्योंकि, 1000 रुपए के बड़े नोट आम आदमी के पास नहीं थे। आज परेशानी यह है कि 500 और 1000 के नोट आम आदमी के पास हैं। घोषणा के अगले दिन 17 जनवरी 1978 को देश के सभी बैंक बंद थे। कहा जाता है कि उस समय रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के गवर्नर आईजी पटेल सरकार के इस फैसले के पक्ष में नहीं थे। उस वक्त भी देश के तमाम बैंकों के बाहर नोटों को बदलने के लिए इसी तरह ही लंबी लाइनें लगीं थीं।


        मोरारजी देसाई का देहांत 10 अप्रैल 1995 में हुआ। वह प्रथम प्रधानमंत्री थे जो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के बजाय अन्य दल से थे। वही एकमात्र व्यक्ति हैं जिन्हें भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न एवं पाकिस्तान के सर्वोच्च सम्मान निशान-ए-पाकिस्तान से सम्मानित किया गया है।